होलाष्टक (Holashtak) के आठ दिनों तक शुभ कार्य पूर्णतया वर्जित रहते हैं। होलाष्टक क्या होते हैं? इस वर्ष होलाष्टक कब से कब तक रहेंगें? होलाष्टक में शुभ कार्य क्यों वर्जित होते हैं? अपने ऐसे सवालों के जवाब जानने के लिये पढ़ें।
Holika Dahan 2024 – जानियें होलिका दहन कब है? और होलिका दहन पर क्या करना चाहिये?
Holashtak Kya Hote Hai?
होलाष्टक क्या होते हैं?
फाल्गुन मास की शुक्लपक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक के आठ दिनों को होलाष्टक (Holashtak) कहा जाता हैं। होलाष्टक आठ दिनों के होते है और अष्टमी तिथि से आरम्भ होते हैं। शास्त्रों के अनुसार इन आठ दिनों में कोई शुभ या मांगलिक कार्य करना वर्जित माना गया हैं। फाल्गुन मास भगवान शिव और भगवान श्री कृष्ण की उपासना को समर्पित हैं। होली हमारे देश का बहुत बड़ा त्यौहार हैं। इसे रंगों का त्यौहार भी कहा जाता हैं। इस त्यौहार को लोग बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं। होली से आठ दिन पहले से होलाष्टक लग जाते है और इस समय पर कोई शुभ कार्य नही किया जाता। होलिका दहन के अगले दिन लोग एक दूसरे पर रंग डालकर खुशियाँ मनाते हैं।
Holashtak Kab Se Shuru Honge?
कब से लगेंगे होलाष्टक?
इस वर्ष 17 मार्च, 2024 रविवार से होलाष्टक (Holashtak) आरम्भ होकर 25 मार्च, 2024 सोमवार को समाप्त होंगे।
Why are auspicious works prohibited in Holashtak?
होलाष्टक में शुभ कार्य क्यो वर्जित होते हैं?
यह तो हम सभी जानते हैं कि होलाष्टक (Holashtak) में शुभ कार्य वर्जित होते हैं। किंतु शुभ कार्य वर्जित होने का क्या कारण हैं? आइये यह जानते है,
होलाष्टक (Holashtak) में शुभ कार्य निषिद्ध होने के विषय में पौराणिक और ज्योतिषिय कारण माने जाते है। एक पौराणिक कथा के अनुसार राक्षसराज हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था। उसने कठोर तपस्या के द्वारा बहुत सी शक्तियाँ और वरदान प्राप्त करके स्वयं को ईश्वर घोषित कर दिया था। किंतु उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु को ही ईश्वर मानता था और उन्ही की भक्ति करता था। हिरण्यकश्यप ने क्रोधित होकर प्रह्लाद को बंदी बना कर बहुत कठिन यातनाएँ दी। जब हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को बंदी बनाकर कष्ट दिये थे तब होलाष्टक का ही समय था। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका के द्वारा प्रह्लाद को अग्नि में जलाकर मारना चाहा, तब भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद तो बच गया किंतु होलिका जल कर भस्म हो गयी। इसलिये हर वर्ष होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन के दिन ही होलाष्टक समाप्त होते हैं। भगवान विष्णु के परम भक्त को होलाष्टक में दुख और यातनाएँ दी गई थी, इसलिये होलाष्टक मे कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है।
उपरोक्त कथा के अतिरिक्त एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवताओं के आग्रह पर कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या में विघ्न डालने का प्रयास किया था। तब फाल्गुन मास की शुक्लपक्ष की अष्टमी के दिन कामदेव पर क्रोधित होकर भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। उस समय प्रकृति में बड़ी नीरसता आ गई थी। सम्पूर्ण प्रकृति में शोक व्याप्त हो गया था। इस कारण से भी इस समय शुभ कार्य निषिद्ध कर दिये गये थे।
इसके अतिरिक्त ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन मास की शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर पूर्णिमा तक नवग्रह अपने उग्र रूप में रहते हैं। इस कारण से सम्पूर्ण वातावरण में नकारात्मकता आ जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुण मास की शुक्लपक्ष की अष्टमी, जिस दिन से होलाष्टक (Holashtak) आरम्भ होते है अर्थात होलाष्टक के प्रथम दिन चंद्रमा, नवमी तिथि के दिन सूर्य, दशमी तिथि के दिन शनि, एकादशी तिथि के दिन शुक्र, द्वादशी तिथि के दिन गुरु, त्रयोदशी तिथि के दिन बुध, चतुर्दशी तिथि के दिन मंगल और पूर्णिमा के दिन राहु-केतु उग्र रूप धारण किये रहते हैं। इसलिये शास्त्रों में होलाष्टक के दिनों में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना गया हैं।