सुख, सौभाग्य और संतान प्राप्ति के लिये करें सीता अष्टमी (Sita Ashtami) का व्रत एवं पूजन। जानें सीता अष्टमी कब हैं? पढ़िये सीता अष्टमी व्रत एवं पूजन कैसे करें? इसको करने की क्या विधि हैं? साथ ही पढ़े देवी सीता की कहानी और सीता अष्टमी का महत्व।
पढ़ियें माता सीता के 108 नाम… जिनका पाठ करने से होगा हर समस्या का समाधान
Sita Ashtami / Sita Jayanti
सीता अष्टमी / सीता जयंती
हिंदु पंचाग के फाल्गुन मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी को सीता अष्टमी (Sita Ashtami) के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन देवी सीता धरती से प्रकट हुयी थी, इसलिये सीता अष्टमी को सीता जयंती (जानकी जयंती) भी कहा जाता है। देवी सीता को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। माता सीता को जानकी, जनकनंदनी भी कहा जाता हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार सीता अष्टमी के दिन विधि-विधान और पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ देवी सीता और प्रभु राम की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है, उत्तम संतान की प्राप्ति होती है और साधक जिस मनोकामना से व्रत एवं पूजन करता है वो अवश्य पूरी होती हैं।
Sita Ashtami Kab Hai?
सीता अष्टमी कब हैं?
इस वर्ष सीता अष्टमी (Sita Ashtami) 4 मार्च, 2024 सोमवार के दिन मनाई जाएगी।
Significance Of Janaki Ashtami
अष्टमी का महत्व
हिंदु धर्म में देवी सीता का विशेष महत्व है। देवी सीता को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। सीता अष्टमी के दिन देवी लक्ष्मी धरती पर देवी सीता के रूप में प्रकट हुयी थी। सीता अष्टहमी (Sita Ashtami) के दिन देवी सीता और भगवान श्री राम की उपासना किये जाने का विधान हैं। इस दिन व्रत एवं पूजन करने से
- सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं।
- धन-समृद्धि में वृद्धि होती हैं।
- उत्तम संतान प्राप्ति की इच्छा पूर्ण होती हैं।
- अविवाहित अगर विवाह की कामना से इस दिन व्रत एवं पूजन करते है तो शीघ्र विवाह के योग बनते हैं।
- मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती हैं।
- पति की आयु लम्बी होती हैं।
- पति–पत्नी में अनुराग बढ़ता हैं।
How To Worship Sita Jayanti?
सीता जयंती का व्रत एवं पूजन कैसे करें?
सीता अष्टमी (Sita Ashtami) के दिन भगवान श्रीराम और देवी सीता की पूजा की जाती हैं। यह व्रत विशेषकर सुखागिन स्त्रियों के लिये माना जाता है। इस दिन व्रत व पूजन करने की विधि इस प्रकार हैं
- सीता अष्टमी (Sita Ashtami) के दिन प्रात:काल जल्दी ही स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- फिर पूजा स्थान पर बैठकर देवी सीता और प्रभु श्रीराम का ध्यान करके सीता अष्टमी के व्रत का संकल्प करें।
- फिर पूजास्थान पर एक चौकी बिछाकर उस पर एक पीला कपड़ा बिछायें। चौकी पर एक कलश में जल भरकर रखें। चौकी पर देवी सीता और प्रभु श्रीराम की तस्वीर या मूर्ति रखें। साथ ही भगवान गणेश और माता गौरी की प्रतिमा भी रखें।
- धूप-दीप जलाकर सर्वप्रथम भगवान गणेश की पूजा करें। उन्हे जल के छींटे लगाकर, सिंदूर चढ़ायें, रोली-चावल से तिलक करें, मोली चढ़ाये, जनेऊ अर्पित करें, फल-फूल अर्पित करें, दूर्वा चढ़ाये, भोग लगाये और पान व सुपारी अर्पित करें।
- फिर माता गौरी की पूजा करें। उनके रोली-चावल से तिलक करें, वस्त्र चढ़ाये, फल-फूल अर्पित करें, पान-सुपारी चढ़ायें और भोग लगायें।
- फिर भगवान श्री राम और देवी सीता की पूजा करें। उनके जल से छींटें लगाये, रोली-चावल से तिलक करें, हल्दी लगायें, पीले वस्त्र चढ़ायें, पीले रंग के फूल और फल अर्पित करें।
- देवी सीता को सोलह श्रृंगार की सामग्री चढ़ायें।
- फिर पीले रंग के पकवानों का भोग लगायें।
- देवी सीता के इस मंत्र का 108 बार जाप करें-
मंत्र – श्री जानकी रामाभ्यां नमः।
- भगवान श्रीराम और देवी सीता की आरती करें।
- इस दिन दूध और गुड़ से बने पकवानों का दान करना बहुत शुभ माना जाता हैं।
- संध्या के समय संध्या पूजन के पश्चात् इन्ही पकवानों से अपना व्रत खोलें। दिन में एक ही समय भोजन करें।
Story Of Devi Sita
देवी सीता की कहानी
महाकाव्य रामायण के अनुसार एक बार मिथिला नगरी में भीषण अकाल पड़ा और नगरवासी जल की एक बूंद के लिये भी तरस गये। इस आपात परिस्थिति के निवारण के लिये राजा जनक ने ऋषियों के परामर्श पर यज्ञ का आयोजन किया और यज्ञ पूर्ण होने पर धरती पर हल चलाया। तब राजा जनक को धरती से एक स्वर्ण की पेटी में एक कन्या मिली। धरती से प्रकट हुई यह कन्या देवी सीता के नाम से प्रसिद्ध हुई। राजा जनक ने उस कन्या को अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया। देवी सीता को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। देवी सीता के प्रकट होते ही मिथिला में चारों ओर खुशहाली छा गई।
राजा जनक की पुत्री होने के कारण उन्हे जानकी और जनकनंदिनी भी कहा जाता हैं। देवी सीता जन्म से ही विलक्षण थी। उनके गुण और सौंदर्य अप्रतिम था। उनसे विवाह के लिये राजा जनक ने एक भव्य स्वयंवर का आयोजन किया और उसकी शर्त यह रखी की जो भी वीर राजा या राजकुमार शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ायेगा उसी से वो देवी सीता का विवाह करेंगे। उस स्वयंवर में समस्त राजा व राजकुमार पधारें किंतु कोई भी शिव धनुष को उठा नही सका। तब गुरू विश्वामित्र की आज्ञा पाकर भगवान श्री राम ने उस शिव धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाकर राजा जनक की प्रतिज्ञा को पूर्ण किया। इस प्रकार राम और सीता का विवाह हुआ।
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