समस्त पाप व संताप दूर होते है वरूथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) का व्रत एवं पूजन। जानियें कब और कैसे करें वरूथिनी एकादशी का व्रत एवं पूजन? और साथ ही पढ़ियें वरूथिनी एकादशी व्रत कथा…
Varuthini Ekadashi Vrat
वरूथिनी एकादशी व्रत
वरूथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) वैशाख मास कृष्णपक्ष की एकादशी होती है। यह व्रत सुख एवं सौभाग्य का प्रतीक है। इस व्रत के प्रभाव से प्राणी के समस्त पाप व संताप दूर हो जाते हैं। और उसे अथाह शक्ति प्राप्त होती है। इस दिन भक्तिभावना के साथ भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। वरूथिनी एकादशी का व्रत करने से प्राणी को वो पुण्य प्राप्त होता जो की सूर्यग्रहण के समय मे स्वर्ण दान करने से प्राप्त होता है, जो की योग्य ब्राह्मणों को दान देने से और वर्षो तक तपस्या करने से प्राप्त होता है।
इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को दोनों लोकों में सुख प्राप्त होता है। वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) व्रत करने वाले मनुुुुुष्य को
इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये। परनिंदा और दुष्ट लोगों की संगत से बचना चाहिए। झूठ नही बोलना चाहिये, दातुन नही फाड़ना चाहिये और क्रोध नही करना चाहिये।
Varuthini Ekadashi Vrat Kab Hai?
वरूथिनी एकादशी व्रत कब हैं?
इस वर्ष वरूथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) का व्रत 4 मई, 2024 शनिवार के दिन किया जायेगा।
Ekadashi Vrat Ki Puja Vidhi
एकादशी व्रत की पूजन विधि इस प्रकार है-
- व्रत से एक दिन पहले यानि दशमी को भी एक ही बार भोजन करना चाहिए।
- व्रत वाले दिन प्रात:काल स्नान आदि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
- व्रत में तेल युक्त भोजन, दूसरे का अन्न, शहद, चना, मसूर की दाल और कांसे के बर्तन में भोजन वर्जित है।
- विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
- रात्रि के समय में भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए जागरण करें और अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करें। व्रत के दिन भजन-कीर्तन और भगवान का चिंतन-मनन करते हुए दिन निकालना चाहिए।
Baruthini Ekadashi Vrat Ka Mahatva
बरूथिनी एकादशी व्रत का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वरूथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) का व्रत अत्यंत पुण्यफलदायी है। इस व्रत को करने से प्राणी को इतना पुण्य प्राप्त होता जो की सूर्यग्रहण के समय मे स्वर्ण दान करने से प्राप्त होता है। सहस्त्रों योग्य ब्राह्मणों को दान देने और वर्षो तक कठोर तपस्या करने से जितना पुण्य मिलता है उतना पुण्य वरूथिनी एकादशी व्रत से प्राप्त होता है।
- वरूथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) व्रत का माहात्म्य सुनने से सहस्र गोहत्या का दोष भी नष्ट हो जाता है।
- यह व्रत कन्यादान के फल से भी अधिक पुण्यदायक व्रत है।
- इस व्रत को करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते है|
- भगवान विष्णु की कृपा से मनुष्य के समस्त
- दुख और कष्ट दूर होते हैं|
- सौभाग्य में वृद्धि होती है।
- मनुष्य सभी सुखों को भोगकर मृत्यु के उपरांत मोक्ष को प्राप्त होता है।
Varuthini Ekadashi Vrat Katha
वरूथिनी एकादशी व्रत कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार अर्जुन के आग्रह पर भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) की कथा और उसके महत्व के विषय मे बताया था, जो कि इस प्रकार है।
प्राचीन समय में नर्मदा नदी के किनारे पर मान्धाता नाम का राजा राज करता था। वह राजा स्वभाव से बहुत ही दानवीर और तपस्वी था। एक बार जब वो जंगल में तप कर रहा था। उसपर एक जंगली भालू ने हमला कर दिया और उसका पैर चबाने लगा। फिर इसके पश्चात भालू राजा को घसीटता हुआ वन में ले गया। राजा घबराया परंतु तपस्या के धर्म का पालन करते हुए उसने क्रोध नही किया और भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगा। राजा की प्रार्थना सुनकर भक्तवत्सल भगवान श्री विष्णु वहां प्रकट हो गए और अपने चक्र से उस भालू का संहार कर दिया। परंतु तब तक भालू ने राजा के एक पैर को खा लिया था। इससे राजा अत्यंत दुखी हुए। तब भगवान श्री विष्णु ने राजा के दुख और कष्ट को देखकर उससे कहा – वत्स! तुम मथुरा जाकर वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वाराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। इसके प्रभाव से तुम पहले की ही भांति स्वस्थ और पूर्ण अंग वाले हो जाओगे।
भालू ने जो तुम्हारा अंग भंग किया है, वो अंग ठीक हो जायेगा। तुम्हारा यह हाल तुम्हारे पूर्वजन्म के अपराध के कारण हुआ है। इसलिये मेरा कहा मानकर इस व्रत का पालन करो। तुम्हारे सभी कष्ट दूर हो जायेंगें। राजा ने भगवान विष्णु की आज्ञानुसार इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से किया। व्रत के प्रभाव से वो राजा फिर से सुन्दर अंग वाला हो गया।