Janmashtami 2024: जानियें स्मार्त एवं वैष्णव कब और कैसे करेंं जन्माष्टमी का व्रत?

Janmashtami

पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग में भाद्रपद (भादों) मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में धरती पर अवतार लिया था। पृथ्वी को पापियों के पाप से मुक्त करने और धर्म की स्थापना के लिये श्री कृष्ण ने अवतार लिया था। श्री कृष्ण के जन्मदिन (Krishna Jayanthi) को जन्माष्टमी (Janmashtami) कहा जाता है और इस दिन मन्दिरों और घरों में उनकी पूजा की जाती है। श्री कृष्ण की भक्ति से आपकी हर समस्या का समाधान होता है। जानियें कब है जन्माष्टमी? और साथ ही पढ़ियें जन्माष्टमी व्रत (Janmashtami Vrat) की विधि, महत्व और कथा…

Janmashtami Vrat
जन्माष्टमी व्रत

भाद्रपद (भादों) मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जन्माष्टमी (Janmashtami) का त्यौहार मनाया जाता हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया था। कंस को उसके पापों का दण्ड़ देने के लिये और धरती से पापियों का अंत करके धर्म की स्थापना करने के लिये, भगवान ने श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया था।

आज के उत्तर प्रदेश की मथुरा नगरी में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। श्री कृष्ण, वासुदेव जी और देवकी जी की आठवीं संतान थे। कंस ने अपनी बहन देवकी और उसके पति वासुदेव जी को कारागार में कैद कर रखा था। भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में कंस की जेल में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। और उनके जन्म लेते ही सभी पहरेदार निंद्रा में चले गये और तब वासुदेव जी अपने पुत्र श्री कृष्ण को लेकर अपने मित्र नंद जी के पास छोड़ आये।

हर वर्ष इस दिन पूरा देश भगवान श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव मनाता हैं। जगह जगह पर जन्माष्टमी (Janmashtami) पर तरह तरह के आयोजन किये जाते हैं। अर्धरात्रि को मंदिरों में भगवान श्री कृष्ण का जन्म किया जाता हैं। पंचामृत से उनका अभिषेक किया जाता हैं। इस दिन श्री कृष्ण की पूजा अर्चना और व्रत करने से मनुष्य के सभी पापों का नाश होता और उसकी सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं। कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) का हिंदु धर्म में बहुत महत्व हैं। घर-घर में भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती हैं, व्रत किया जाता हैं, पकवान बनाये जातें हैं। विशेषकर मथुरा, वृंदावन, द्वारिका और पुरी में तो जन्माष्टमी की शोभा देखते ही बनती हैं।

Janmashtami Kab Hai?
जन्माष्टमी कब है?

इस वर्ष जन्माष्टमी (Janmashtami) का व्रत 26 अगस्त, 2024 सोमवार के दिन किया जायेगा।

यह स्मार्त और वैष्णव क्या हैं? इन दोनों में क्या अंतर हैं?

शास्त्रानुसार, हिंदु धर्म में लोगों को दो वृहद सम्प्रदायों में बाँटा गया हैं एक है वैष्णव और दूसरा है स्मार्त। वैष्णव संप्रदाय में वो लोग आते हैं, जिन्होंने वैष्णव संप्रदाय के नियमानुसार उसकी विधि पूर्वक दीक्षा ली हो। इस संप्रदाय के ज्यादातर लोग

1. गले में कंठी (एक विशेष प्रकार की माला) धारण करते हैं।

2. विष्णु भगवान के चरण का चिन्ह अपने माथे पर बनाते हैं यानि माथे पर उस चिन्ह का टीका लगाते हैं।

वो सभी जो वैष्णव सम्प्रदाय में नही आते, वो सभी स्मार्त सम्प्रदाय के माने जाते हैं। अर्थात जिन लोगों ने वैष्णव संप्रदाय के नियमानुसार उसकी विधि पूर्वक दीक्षा नही ली हो, वो लोग स्मार्त सम्प्रदाय के माने जाते हैं।

यह दोनों सम्प्रदाय के लोग अपने सम्प्रदाय के नियमानुसार ही व्रत एवं पूजन करते हैं।

Janmashtami Ka Vrat Kab Kare?
जन्माष्टमी का व्रत कब करना चाहिये?

1. यदि अष्टमी तिथि प्रथम दिन ही अर्धरात्रि तक हो, तो जन्माष्टमी (Janmashtami) का व्रत प्रथम दिन करना चाहिये।

2. अगर अष्टमी तिथि अगले दिन ही अर्धरात्रि तक हो, तो जन्माष्टमी (Janmashtami) का व्रत अगले दिन करना चाहिये।

3. अगर अष्टमी तिथि दोनों ही दिन पर अर्धरात्रि तक हो तो फिर नक्षत्र देखा जाता हैं। जिस भी दिन अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि तक हो उस दिन जन्माष्टमी का व्रत करना चाहिये।

4. यदि दोनों दिन अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि तक हो तो जन्माष्टमी का व्रत अगले दिन करना चाहिये।

5. अगर दोनों ही अष्टमी तिथि अर्धरात्रि तक ना हो और दोनों ही दिन रोहिणी नक्षत्र भी ना हो तो जन्माष्टमी का व्रत दूसरे दिन किया जाना चाहिये।

Janmashtami Vrat Aur Pujan Vidhi
जन्माष्टमी व्रत एवं पूजन की विधि

1. जन्माष्टमी (Janmashtami) का व्रत एक दिन पूर्व यानि सप्तमी से ही प्रारम्भ हो जाता हैं। व्रत करने वाले मनुष्य को सप्तमी पर सात्विक भोजन करना चाहिये और रात को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये।

2. जन्माष्टमी (Janmashtami) पर उपवास करना चाहिये। इस दिन प्रात:काल स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर पूजास्थान पर पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर मुख करके सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्‌पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि सभी देवताओं का ध्यान करके उन्हे प्रणाम करें।

3. फिर हाथ में जल, फल, गंध और कुश लेकर निम्नलिखित श्लोक का उच्चारण करते हुये व्रत का संकल्प करे

ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥

4. तत्पश्चात श्री गोपाल सहस्त्रनाम का पाठ करें।

5. दोपहर में काले तिल पानी में ड़ालकर उससे स्नान करें और उसके बाद माता देवकी के लिये प्रसूति गृह का निर्माण करें। वहाँ स्वच्छ एवं सुंदर-सी चादर बिछाकर कलश की स्थापना करें।

6. प्रसूति गृह का निर्माण करने के बाद वहाँ पर माता देवकी और भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा या तस्वीर लगायें। हो सके तो श्री कृष्ण को स्तनपान कराती हुई माता देवकी की प्रतिमा या तस्वीर लगायें।

7. अर्धरात्रि में भगवान श्री कृष्ण के बालरूप (लड़्ड़ू गोपाल) जी का जन्म करें। फिर पंचामृत से उनका अभिषेक करें।

8. भगवान के बालरूप (लड्ड़ू गोपाल) को पालने में बिठायें और उनकी पालना झाँकी सँजायें।

9. माता देवकी, वासुदेव जी, बलरामजी, नन्द बाबा, यशोदा मैया और माता लक्ष्मी जी का ध्यान करते हुये, उनके नाम का उच्चारण करें। पूर्ण श्रद्धा और भक्ति भावना से उनका पूजन करें। माखन-मिश्री, पंजीरी, नारियल व खरबूजे के बीज से बना पाक और पांच फल का भोग अर्पित करें।

10. तत्पश्चात इस मंत्र का पाठ करते हुये पुष्पांजलि अर्पित करके पूजा पूर्ण करें –

प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः।
वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः।
सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तुते।

11. पूजन के बाद सबको प्रसाद बाँटे।

12. फिर स्वयं फलाहार करें (सिंघाड़े के आटे या कोटू के आटे या राजगिरि के आटे से बना भोजन, दूध-दही या दूध से बनी वस्तु)। कोई अनाज से बनी वस्तु न खायें। अधिकतर लोग इस दिन अर्धरात्रि में भगवान के जन्म के बाद ही फलाहर करते हैं।

13. उसके बाद भजन-कीर्तन करते हुए समय बितायें।

14. अगले दिन नवमी को जन्माष्टमी के व्रत का पारणा करें। पारणा करने के बाद ही व्रत पूर्ण होता हैं।

Janmashtami Ki Katha
जन्माष्टमी की कथा

हिंदु धर्म ग्रंथो के अनुसार द्वापर युग में मथुरा नगरी पर राजा उग्रसेन राज किया करते थे। वह बहुत ही सज्जन, धर्म-परायण और न्यायप्रिय राजा थे। उनका पुत्र कंस बहुत ही दुष्ट और पापी था। उसके दुराचरण के कारण मथुरावासी बहुत ही दुखी थे। जब राजा उग्रसेन ने उसे उसके पापों के लिये दण्ड़ित करना चाहा, तो उसने राजा उग्रसेन को अपदस्थ करके कारागार में ड़ाल दिया और बलपूर्वक उनके सिन्हासन पर आरूढ़ हो गया।

उसने स्वयं को मथुरा का राजा घोषित कर दिया था। उसने राजा बनते ही अपनी शक्ति का खुला दुरूउपयोग करना आरम्भ कर दिया। उसने ऋषि मुनियों का जीना मुश्किल कर दिया और चारों ओर अधर्म और पाप फैलाने लगा। जनता उसके अत्याचारों से त्रस्त हो रही थी।

कंस की एक बहन थी, उसका नाम था देवकी। वो उसे बहुत प्रिय थी। देवकी का विवाह वसुदेव जी के साथ हुआ। जब कंस अपनी बहन देवकी और वसुदेव जी को विवाह के उपरांत विदा करने के लिये अपने रथ में बिठाकर ले जा रहा था, तब एक आकाशवाणी हुई कि, हे कंस! तू जिस बहन देवकी को इतने प्रेम से रथ में लेकर जा रहा हैं, उसी देवकी का आठवाँ पुत्र तेरा काल बनेगा।

ऐसी आकाशवाणी सुनकर कंस क्रोधित हो उठा और अपनी बहन देवकी की हत्या करने को तैयार हो गया। तब वसुदेव जी ने कंस को रोका और समझाया की, तुम्हारे प्राणों को देवकी के आठवें पुत्र से संकट है, देवकी से नही। इसलिये तुम देवकी के प्राण मत लों। मैं तुम्हें वचने देता हूँ, हमारी आठवीं संतान मैं तुम्हे दे दूंगा।

वसुदेव जी का वचन सुनकर कंस ने उनकी बात मान ली। और देवकी जी और वसुदेव जी को बंदीगृह में ड़ाल दिया। वो अपने अभिमान में आकर ईश्वर को चुनौती दे रहा था, कि वो अपने काल को नष्ट करके, स्वयं को ईश्वर प्रमाणित कर देगा। तब नारद जी ने उसके पास आकर उसे भ्रम में ड़ाल दिया और कहा- संतान की गिनती आरम्भ से की जायेगी या आखिरी संतान से। विधाता की लीला तुम कैसे जानोगे? तब कंस ने निर्णय लिया की वो देवकी सभी संतानों को मौत के घाट उतार देगा।

उसने एक के बाद एक करके देवकी के छ: पुत्रों की निर्मम हत्या कर दी। तब संकर्षण के द्वारा देवकी जी की सातवीं संतान को रोहिणी जी के गर्भ में स्थापित किया गया और बलराम जी का जन्म हुआ। उनके बाद भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अर्धरात्रि में रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण जी ने जन्म लिया। भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लेते ही माता देवकी और पिता वसुदेव जी को अपने चतुर्भुज रूप के दर्शन करायेंं।

उनकी माया से सभी सैनिक गहरी नींद में सो गये। वसुदेवजी के सारे बंधने खुल गये। कारागार के सभी द्वार स्वत: ही खुल गयें। वसुदेव जी श्री कृष्ण को टोकरी में लेकर यमुना पार करके गोकुल में अपने मित्र नंद जी के पास पहुँच गयें। वहाँ माता यशोदा ने एक कन्या को जन्म दिया था। वो कन्या और कोई नही योगमाया थी। नंद बाबा ने वो कन्या वसुदेव जी को सौंप दी और श्री कृष्ण जी को सोती हुई माता यशोदा जी के पास लिटा दिया। वसुदेव जी उस कन्या को लेकर वापस कारागार में आगये। और सबकुछ पहले जैसा हो गया।

पहरेदार ने कंस को जाकर सूचित किया की देवकी की आठवीं संतान ने जन्म ले लिया हैं। कंस उसकी हत्या करने के लिये बंदीगृह पहुँच गया। उसने बलपूर्वक देवकी जी से उस कन्या को छीन लिया। जैसे उसने उस कन्या को मारने के लिये उछाला, वो कन्या आकाश में उड़ गयी और देवी का रूप धारण करके बोली, हे कंस! तू मुझे क्या मारता हैं? तुझे मारने वाला तो जन्म ले चुका है और गोकुल में पल रहा हैं।

यह सब देखकर कंस क्रोध से तिलमिला उठा। फिर तो उसने एक के बाद एक भयानक राक्षसों को श्री कृष्ण की हत्या के लिये भेजा और भगवान श्री कृष्ण ने उन सबको यमलोक भेज दिया। गोकुल में अनेक बाल लीलायें करी जैसे पूतना वध, माखन चुराना, गोवर्धन पर्वत उठाना, कालिया मर्दन, गाय चराना, अपनी मधुर बांसुरी की धुन से सबको मोहित करना, गोपियों संग रास रचाना, आदि।

उनके बड़े होने पर कंस ने उन्हे मथुरा बुलाया जिससे वो उनका वध कर सकेंं। तब श्री कृष्ण अपने भाई बलराम के साथ वहाँ गये और कंस को उसके साथियों के साथ मृत्यु के घाट उतार दिया। फिर अपने माता-पिता और उग्रसेन जी को बंदीगृह से मुक्त कराया। तत्पश्चात उग्रसेन जी को पुन: मथुरा का राजा बनाया।

Significance of Janmashtami
जन्माष्टमी का महत्व

Radha Krishan
Radha Krishan

जन्माष्टमी (Janmashtami) का पर्व पूरे देश के हर्ष-उल्लास से मनाया जाता हैं। मथुरा, वृंदावन, द्वारिका और पुरी के मंदिरों मे लाखों श्रद्धालु दर्शन करने जाते है। सभी कृष्ण मंदिरों में भगवान का मनमोहक श्रुंगार किया जाता हैं। उन्हे पालने में झुलाया जाता है। घरों में भी लोग श्री कृष्ण को पालने में झुलाते है। मंदिरो में उनके अवतार की झांकी सजाई जाती हैं। कई स्थानों पर दही हाँड़ी का आयोजन किया जाता है।

व्रत करने वाले भक्त रात्रि के बारह बजे तक व्रत नही खोलते है। जब मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हो जाता है, आरती हो जाती है तब उनके प्रसाद के साथ व्रत खोलते हैं।
कहा जाता है भगवान श्री कृष्ण विष्णु जी के पूर्ण अवतार थे। उन्होने सोलह कलाओं से जन्म लिया था। राधा उनकी शक्ति थी। ब्रज में आज भी राधा कृष्ण के नाम की धूम हैं। श्री कृष्ण महान योगी भी थे। उन्होने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान दिया। महाभारत के युद्ध में पाण्ड़वों का साथ देकर समाज में धर्म की स्थापना करी।

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