Vat Savitri Vrat 2024- पढ़ें वट सावित्री व्रत का विधान एवं व्रत कथा

vat savitri vrat & Shani jayanti

ज्येष्ठ मास की अमावस्या (Amavasya) को महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिये वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) रखती हैं। इस दिन शनि जयंती भी मनाई जाती हैं। जानियें वट सावित्री व्रत कब से प्रारम्भ होगा?, शनि जयंती कब है?, वट सावित्री व्रत की क्या विधि है?, शनि जयंती पर किस विधि के द्वारा शनिदेव की पूजा करें और उन्हे प्रसन्न करें? और साथ ही पढ़ें वट सावित्री व्रत का विधान एवं वट सावित्री व्रत कथा (Vat Savitri Vrat Katha)।

Vat Savitri Vrat / Bad Sayat Amavasya / Shani Jayanti
वट सावित्री व्रत / बड़ सायत अमावस्या / शनि जयंती

ज्येष्ठ मास की अमावस्या को बड़ सायत अमावस (Bad Sayat Amavasya) भी कहते हैं। इस दिन शनि जयंती (Shani Jayanti) भी मनाई जाती है और महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिये वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) भी रखती हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार अमावस्या को दान-पुण्य और पितरों की शांति के लिए किये जाने वाले पिंड दान व तर्पण के लिए बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन शनि जयंती भी होने से ज्येष्ठ अमावस्या का महत्व और भी अधिक हो जाता है। सूर्यपुत्र शनिदेव हिन्दू ज्योतिष में नवग्रहों में एक बहुत महत्वपूर्ण ग्रह। शनि जयंती के दिन शनि देव के पूजन का विशेष विधान है। इससे शनिदेव प्रसन्न होते है और जातक को उनकी कृपा की प्राप्ति होती है।

Vat Savitri Vrat (Bad Amavasya / Shani Jayanti) kab hai?
वट सावित्री व्रत (बड़ सायत अमावस्या / शनि जयंती) कब है?

इस वर्ष वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) का आरम्भ 4 जून, 2024 (मंगलवार) से होगा और वट सावित्री व्रत पूर्ण 6 जून, 2024 (गुरूवार) को होगा।

बड़ सायत अमावस्या और शनि जयंती (Shani Jayanti) 6 जून, 2024 (गुरूवार) के दिन मनाई जायेगी।

गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन किया जाता है। इस लिये यहाँ इसे वट पूर्णिमा (Vat Purnima) के नाम से भी जाना जाता है। वट पूर्णिमा (Vat Purnima) व्रत का आरम्भ 19 जून, 2024 (बुधवार) से होगा और वट सावित्री व्रत पूर्ण 21 जून , 2024 (शुक्रवार) को होगा। वट सावित्री व्रत का पारणा 22 जून, 2024 शनिवार के दिन किया जायेगा।

Vat Savitri Vrat (Bad Amavasya / Shani Jayanti) Ki Vidhi
वट सावित्री व्रत व शनि जयंती की विधि

इस अमावस्या पर दान-धर्म, पिंडदान के साथ-साथ शनि देव का पूजन और वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) भी रखा जाता है।

  • इस दिन नदी या कुंड या जलाशय में स्नान करें और फिर सूर्य देव को अर्घ्य देकर बहते जल में तिल प्रवाहित करें।
  • पितरों की शांति के लिए पिंडदान करें और किसी गरीब को भोजन कराकर यथासम्भव दान-दक्षिणा दें।
  • शनिदेव को काले तिल, काले कपड़े, कड़वा तेल और नीले फूल चढाएँ। शनि चालीसा का पाठ करें।
  • वट सावित्री व्रत करने वाली स्त्रियों को इस दिन यम देव की पूजा करनी चाहिए और दान-दक्षिणा देनी चाहिए।
  • इस दिन को बड़ अमावस भी कहते है इस दिन बड़ की पूजा की जाती हैं।
  • जल, रोली, मौली,चावल से बड़ की पूजा करके गुड़, भीगे चने, फूल चढ़ा कर सूत को बड़ के वृक्ष के तने पर लवेटते हैं और परिक्रमा देते हैं।
  • बड़ के पत्तों के आभूषण बनाकर पहनते हैं और बड़ सायत अमावस की कहानी सुनते हैं। भीगे चनों में रुपये रखकर बायना निकालकर सास को देते हैं और चरणस्पर्श करते है।

Bad Amavasya Aur Shani Jayanti Ka Mahatva
ज्येष्ठ अमावस्या और शनि जयंती का महत्व

हिंदू मान्यता के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि देव का जन्म हुआ था। इस कारण ज्येष्ठ अमावस्या का धार्मिक महत्व और भी अधिक हो जाता है। शनि जयंति (Shani Jayanti) पर शनि देव की कृपा पाने के लिए और उन्हे प्रसन्न करने के लिये विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है। उन्हे दण्डनायक भी कहा जाता है। शनिदेव सभी को उनके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं।

Shani Dev Ki Janam Katha
शनिदेव की जन्म कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार शनिदेव, सूर्यदेव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। सूर्यदेव का विवाह संज्ञा से हुआ था और उनसे उन्हे तीन संतानों की प्राप्ति हुई थी मनु, यम और यमुना। कुछ वर्षों तक संज्ञा सूर्य देव के साथ रहीं परंतु वो अधिक समय तक सूर्यदेव का तेज सहन नहीं कर पाईं। और इसलिए अपनी छाया को सूर्यदेव की सेवा में छोड़कर चली गई। कुछ समय पश्चात छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म हुआ। जब सूर्यदेव को यह सब पता चला कि छाया असल में उनकी विवाहिता पत्नी संज्ञा नहीं है तो वे बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने शनिदेव को अपना पुत्र मानने तक से इनकार कर दिया। इसी कारण से शनिदेव और सूर्यदेव पिता-पुत्र होने के बावजूद भी एक-दूसरे के प्रति बैर भाव रखने लगे।

Vat Savitri Vrat Ka Vidhan
वट सावित्री व्रत का विधान

वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) सौभाग्यवती स्त्रियों का एक महत्वपूर्ण व्रत है। उत्तर भारत, बिहार, मध्य प्रदेश आदि स्थानों पर इस व्रत का प्रारम्भ ज्येष्ठ मास की अमावस्या से 2 दिन पहले त्रयोदशी से हो जाता है। और यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को किया जाता है। इस दिन महिलाएँ वट वृक्ष यानि बरगद के पेड़ का पूजन करती हैं। सौभाग्यवती स्त्रियां यह व्रत अपने अखंड सौभाग्य की कामना के लिये करती हैं। इस दिन यमराज के साथ सत्यवान-सावित्री की पूजा का विधान है।

गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन किया जाता है। इस लिये यहाँ इसे वट पूर्णिमा (Vat Purnima) के नाम से भी जाना जाता है।

Vat Savitri Vrat Katha / Bad Amavasya Ki Kahani
वट सावित्री व्रत कथा / बड़ सायत अमावस्या की कहानी

प्राचीन समय की बात है भद्र देश में अश्वपति नाम का एक राजा राज्य करता थ। उसके कोई संतान नहीं थी। उसने बड़े-बड़े विद्वान पण्डितों को बुलाकर उनको अपनी समस्या बताई। राजा ने उनसे कहा कि मेरे कोई संतान नहीं है। आप कुछ ऐसा उपाय करो जिससे मुझे संतान प्राप्त हो जाये।

तब पण्डित बोले, “राजन तुम्हारे एक कन्या का जन्म होगा परंतु वो 12 वर्ष की अल्पायु में ही विधवा हो जाएगी।” राजा को यह सुनकर बहुत दुख हुआ। राजा ने उनसे उस समस्या का उपाय जानना चाहा तो पण्डितों ने कहा-तुम अपनी पुत्री से माँ पार्वती की और बड़ सायत अमावस की पूजा कराना। राजा ने यज्ञ-होम आदि कराये और प्रभु की कृपा से उसकी रानी गर्भवती हो गई और 9 माह के माह के पश्चात उसने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया।

राजा ने पण्डितों से उसकी जन्मपत्री बनवाई और उसा कन्या के भविष्य के विषय मे जानना चाहा। पण्डितों ने जन्मपत्री देखकर कहा कि जिस दिन यह कन्या 12 वर्ष की होगी उसी दिन इसका विधवा होने का योग है। इसलिए आप अपनी कन्या से पार्वती जी और बड़ सायत अमावस की पूजा करायें।

जब कन्या सावित्री बड़ी हुई तो उसका विवाह सत्यवान के साथ हुआ। सत्यवान के माता-पिता अन्धे थे। सावित्री उनकी बहुत सेवा करती थी। सावित्री को यह ज्ञात था की वह ज़िस दिन 12 वर्ष की होगी उसी दिन उसके पति की मृत्यु हो जाएगी। जिस दिन वह 12 वर्ष की हुई उस दिन वह अपने पति से बोली कि आज मैं भी आपके साथ चलूँगी। सत्यवान ने कहा तुम मेरे साथ चलोगी तो मेरे माता पिता की सेवा कौन करेगा? अगर वो आज्ञा देंगे तो मै तुम्हे साथ ले चलुँगा। सावित्री ने अपने सास-ससुर के पास जाकर उनसे जंगल जाने की आज्ञा माँगी। तो उन्होने सहर्ष उसको आज्ञा दे दी।

जंगल में सत्यवान वृक्ष की छाया में सो गया और सावित्री लकड़ियाँ तोड़ने लगी। उस वृक्ष में एक साँप रहता था, उसने सत्यवान को डस लिया। यह देखकर सावित्री अपने पति के सिर को गोदी में लेकर विलाप करने लगी। तभी वहाँ से महादेव और पार्वती जी गुजरे तो सावित्री ने उनके चरण पकड़ लिए और कहा कि आप मेरे पति को वापस जिन्दा कर दो।

माँ पार्वती बोली कि आज बड़ सायत अमावस्या है, तू इसकी पूजा करेगी तो तेरा पति अवश्य जिन्दा हो जाएगा। फिर उसने बहुत प्रेम से बड़ की पूजा करी। बड़ के पत्तों के आभूषण बनाकर पहने तो वो हीरे मोती के हो गए। तभी धर्मराज आ गये और उसके पति सत्यवान को ले जाने लगा। सावित्री ने उसके चरण पकड़ लिए। धर्मराज ने उसे बहुत समझाया परंतु वो नही मानी। उसकी दृढ इच्छा शक्ति को देखकर धर्मराज प्रसन्न हो गये और उससे वरदान माँगने को कहा। तब सावित्री ने कहा कि मेरे माता-पिता के कोई पुत्र नहीं है। उन्हे पुत्र प्राप्त हो। धर्मराज ने कहा- तथास्तु। फिर उसने कहा कि मेरे और सत्यवान के 100 पुत्र हो जाएँ। धर्मराज ने उसे वो वरदान दे दिया और बोला तुझे 100 पुत्र प्राप्त हो जाएंगे। फिर जब वो सत्यवान को ले जाने लगे तब सावित्री ने कहा कि हे महाराज! यदि आप मेरे पति को ही ले जायेंगे तो मुझे पुत्र कैसे प्राप्त होंगे ? तब धर्मराज ने उसके पति के प्राण वापस कर दिये और कहा – हे सावित्री! बड़ सायत अमावस्या का व्रत करने से और पार्वतीजी की पूजा करने से तेरा पति पुन: जीवित हुआ है।

सारे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया गया कि जेठ की अमावस आएगी जब बड़ की पूजा करना और बड़ के पत्तों के आभूषण बनाकर पहनना और बायना निकालना। हे प्रभु! जिस प्रकार बड़ सायत अमावस्या के व्रत के प्रभाव से सावित्री को सुहाग मिला उसी प्रकार सबको देना। जो भी इस कहानी को कहता अथवा सुनता है उसकी सब मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। बड़ सायत अमावस्या को वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) भी कहते हैं।