पुरूषोत्तम मास की पूर्णिमा (Purushottam Maas Ki Purnima) का व्रत एवं पूजन करने से सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा की जाती है। जानियें कब है अधिक मास की पूर्णिमा (Adhik Maas Purnima)? साथ ही पढ़ियें पुरूषोत्तम मास की पूर्णिमा का महत्व, पूजन की विधि, उद्यापन की विधि, अधिक मास की पूर्णिमा पर दान का महत्व, धन संबंधी सभी पेरशानियाँ दूर का उपाय और लक्ष्मी नारायण की कहानी…
Adhik Maas Ki Purnima / Purushottam Maas Ki Purnima
अधिक मास की पूर्णिमा / पुरूषोत्तम मास की पूर्णिमा
शास्त्रों में अधिक मास की पूर्णिमा (Adhik Maas Purnima) का बहुत महत्व बताया गया हैं। पुरूषोत्तम मास (Purushottam Maas) भगवान विष्णु को ही समर्पित हैं। अधिक मास की पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा का विधान हैं। इस दिन व्रत-पूजन, यज्ञ-हवन, दान-पुण्य और नदी या अन्य तीर्थ स्थानों पर स्नान आदि का विशेष महत्व होता हैं। इस दिन किये गये दान का पुण्य फल कई गुणा अधिक होता हैं।
Adhik Maas Ki Purnima Kab Hai?
अधिक मास की पूर्णिमा कब हैं?
इस वर्ष अधिक मास की पूर्णिमा (Adhik Maas Purnima) का व्रत,1 अगस्त, 2023 मंगलवार के दिन किया जायेगा।
Purushottam Maas Ki Purnima Ka Mahatva
पुरूषोत्तम मास की पूर्णिमा का महत्व
पुरूषोत्तम मास (अधिक मास) की पूर्णिमा (Adhik Maas Purnima) पर सूर्योदय से पहले पवित्र नदी या तीर्थ स्थान या त्रिवेणी में स्नान करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती हैं। इस दिन अपने पूर्वजों के निमित्त दान आदि करने से या उनका तर्पण करने से उन्हे शांति मिलती हैं। पुरूषोत्तम मास में किये गये पुण्य कर्मों का फल कई गुणा बढ़ जाता हैं। पुरूषोत्तम मास की पूर्णिमा (Purushottam Maas Ki Purnima) के व्रत एवं पूजन से
1. साधक की सारी सांसारिक मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।
2. जातक को समस्त प्रकार के भौतिक सुख प्राप्त होते हैं।
3. धन-धान्य, सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य में बढ़ोत्तरी होती हैं।
4. अविवाहित युवती या अविवाहित युवक द्वारा इस व्रत को करने से उन्हे उनकी कामना के अनुसार योग्य, सुंदर, सुशील, गुणवान, मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त होता हैं।
5. इस दिन व्रत एवं पूजन करने से माँ लक्ष्मी और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती हैं।
6. साधक सांसारिक सुखों को भोगकर मृत्यु के उपरांत उत्तम लोक को प्राप्त करता हैं।
Purushottam Maas Ki Purnima Ke Pujan Ki Vidhi
पुरूषोत्तम मास की पूर्णिमा के पूजन की विधि
1. अधिक मास की पूर्णिमा (Adhik Maas Purnima) का व्रत स्त्री – पुरूष दोनों ही कर सकते हैं।
2. इस दिन व्रत करने वाले को प्रात: काल सूर्योदय से पूर्व ही उठकर घर की साफ-सफाई करके स्वयं स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहियें। यदि सम्भव हो तो बिना सिला पीले रंग का वस्त्र धारण करें।
3. फिर उगते हुये सूर्य को जल चढ़ायें।
4. अगर शुभ मुहुर्त हो तो यह पूजा दोपहर से पहले के मुहुर्त में करना श्रेष्ठ माना जाता हैं।
5. पूजास्थान पर स्वच्छ करके एक चौकी स्थापित करें। उस पर कोरा (नया / बिना इस्तेमाल किया) लाल और पीला वस्त्र बिछायें। कपड़ा बिछाते समय इस बात का ध्यान रखें कि पीला वस्त्र चौकी के दाहिने तरफ बिछा हों और लाल वस्त्र बायीं तरफ बिछा हो।
6. स्वयं पूर्व की ओर मुख कर के पूजास्थान पर रखी चौकी के सामने बैठ जायें।
7. फिर लाल कपड़े पर माँ लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और पीले वस्त्र पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। यदि आपके पास दोनों की अलग-अलग प्रतिमा या तस्वीर ना होकर दोनों की एक ही प्रतिमा या तस्वीर हो तो आप उसे दोनों कपड़ों के मध्य में स्थापित कर सकते हैं।
8. फिर लक्ष्मीनारायण के समक्ष हाथ में पुष्प, अक्षत, सुपारी और जल लेकर व्रत का संकल्प करें। और जो भी आपकी मनोकामना हो उसका विचार करके उसे पूरी करने के लिये ईश्वर से निवेदन करें।
9. तत्पश्चात् धूप-दीप जलाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें।
10. भगवान विष्णु की प्रतिमा का पंचामृत से अभिषेक करें। और माता लक्ष्मी की प्रतिमा का दूध से अभिषेक करें।
11. फिर रोली, अक्षत, चंदन, मौली से दोनों का पूजन करें। सुगंधित फूलों की मालायें चढ़ाये। माता लक्ष्मी को कमल के फूल अतिप्रिय है, इसलिये उन्हे कमल के फूल अर्पित करें और साथ ही उन्हे सुहाग की सामग्री भी अर्पित करें।
12. फिर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को मिठाई का भोग लगायें।
13. पूजन के बाद लक्ष्मीनारायण की कथा कहें या सुनें। कथा के बाद हरि स्तुति का पाठ करें।
14. इस के बाद धूप-दीप और कपूर से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करें।
15. पूजा के बाद गाय को और ब्राह्मण दम्पति को भोजन करायें और यथासम्भव दक्षिणा देकर उन्हे प्रसन्न करें।
16. स्वयं रात्रि को चंद्रमा को अर्ध्य देने के बाद ही भोजन करें।
17. रात्रि को भजन कीर्तन का आयोजन करें।
18. आप स्वयं पूजा नही कर सकते हो, तो किसी योग्य ब्राह्मण के द्वारा पूजा और हवन करा सकते हैं।
Purushottam Maas Ki Purnima Ke Vrat Ka Udyapan
पुरूषोत्तम मास की पूर्णिमा के व्रत का उद्यापन
इस व्रत के उद्यापन के लिये पूजन की विधि तो वही रहती हैं। पूजन के बाद हवन किया जाता हैं और 11 ब्राह्मण दम्पति को भोजन कराया जाता हैं। उन्हे वस्त्र, कम्बल, फल और धन देकर संतुष्ट किया जाता हैं।
Adhik Maas Ki Purnima Ke Din Daan Ka Mahatva
अधिक मास की पूर्णिमा पर दान का महत्व
हिंदु धर्म ग्रंथों में पुरुषोत्तम मास (अधिक मास) की पूर्णिमा (Adhik Maas Purnima) के दिन पवित्र नदी या तीर्थ स्थानों पर स्नान और दान का बहुत महत्व बताया गया हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किये हुये दान का पुण्यु कई गुणा बढ़ जाता हैं। इस दिन जरूरतमंदों को दिये गये दान से अर्जित पुण्य अक्षुण रहता हैं। उसका कभी क्षय नही होता। इस दिन स्नान, दान, जप और तप करने से मनुष्य के जीवन के समस्त कष्टों का नाश हो जाता हैं। उसे संसार के सभी सुखों की प्राप्ति होती हैं। और मृत्यु के उपरांत उत्तम लोक को चला जाता हैं।
लक्ष्मी नारायण की पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये और उन्हे यथासम्भव दान-दक्षिणा देकर संतुष्ट करना चाहिये। इस दिन निर्धन को दान करना भी विशेष पुण्य दायक कर्म हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन ब्राह्मण को दान देने से जातक को मरणोपरांत ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती हैं।
इस दिन पितरों के निमित्त आप जो भी दान देते है, वो उनको वो जिस भी लोक और योनि में हो, वहाँ उन्हे प्राप्त होता हैं। इससे उन्हे संतुष्टि होती है और वो प्रसन्न होते हैं। इसलिये इस दिन पितरों के निमित्त किये दान से जातक को पितरों का और अन्य देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता हैं।
Dhan Sambandhi Pareshaniyon Ko Door Karne Ka Upay
धन संबंधी सभी पेरशानियाँ दूर का उपाय
ऐसी मान्यता है कि पूर्णिमा, एकादशी और गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की उपासना करने से बहुत शुभ फल प्राप्त होते हैं। धन की इच्छा रखने वाले मनुष्य को भगवान विष्णु के इस मंत्र का 108 बार जाप हर पूर्णिमा, एकादशी और गुरूवार के दिन करना चाहिये। ऐसा करने से उसकी धन सम्बंधित समस्याओं का नाश हो जाता हैं। और उसे कभी धन की कमी नही रहती।
मंत्र:
ऊँ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
ऊँ भूरिदा त्यसि श्रुतरू पुरूत्रा शूर वृत्रहन। आ नो भजस्व राधसि।।
Lakshmi Narayan Ki Kahani
लक्ष्मीनारायण की कहानी
एक पौराणिक कथा के अनुसार अतिप्राचीन समय में एक बार भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी आपस में बात कर रहे थें। भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी से कहा, “हे प्रिय! देखों मनुष्यों में मेरी भक्ति कितनी बढ़ गयी है, वो सदा ही नारायण-नारायण का जाप करते रहते हैं।“ तब माता लक्ष्मी ने कहा, “हे प्रभु! यह सब आपकी भक्ति आपको पाने के लिये नही, बल्कि मुझे प्राप्त करने के लिये करते हैं।“ तब श्री हरि विष्णु ने कहा, “देवी! आपको ऐसा क्यों लगता हैं? यह सब लक्ष्मी-लक्ष्मी का जाप थोड़े करते हैं।“ तब माता लक्ष्मी ने कहा, “प्रभु! यदि आपको मेरी बात पर विश्वास नही हो रहा तो आप परीक्षा लेकर देख लों।“
तब नारायण भगवान धरती पर एक नगर में एक ब्राह्मण का रूप लेकर एक धनी साहूकर के द्वार पर पहुँच गये। उस साहूकार ने उनसे उनके विषय में पूछा और उनके वहाँ आने का प्रयोजन भी बताने के लिये कहा। तब ब्राह्मण रूप धारी भगवान विष्णु ने कहा, कि मैं एक ब्राह्मण हूँ और भगवान विष्णु का भक्त हूँ। आपके नगर में कुछ दिन भगवान विष्णु की कथा और भजन कीर्तन करने की इच्छा से आया हूँ। यह जानकर उस साहूकार ने उनको अपने घर पर निवास करने के लिये कहा और अपने कुछ लोगों को भजन कीर्तन की व्यवस्था करने के लिये कहा।
साहूकार के लोगों ने सारी व्यवस्था कर दी और अगले ही दिन से ब्राह्मण वेषधारी श्री नारायण ने कथा वाचन एवं भजन कीर्तन शुरू कर दिया। जब भगवान स्वयं अपनी कथा कह रहे हो तो उससे अच्छा और क्या हो सकता हैं। उनके कथावाचन और भजन कीर्तन में लोग मुग्ध हो जाते। श्री हरि के द्वारा श्री हरि की कथा सुनने का आनंद लेते। दिनों दिन भीड़ बढ़ने लगी। और बहुत बड़ी संख्या में लोग कथा सुनने के लिये आने लगें।
एक दिन माता लक्ष्मी उसी नगर में लोगों की परीक्षा लेने के लिये एक वृद्ध महिला का रूप लेकर आयी। वृद्ध महिला के रूप में वो एक घर के सामने पहुँची, तो उन्होने देखा कि एक महिला उस घर पर ताला लगाकर कही जाने की तैयारी कर रही हैं। तब उन्होने उस महिला को रोक कर कहा, पुत्री मुझे प्यास लगी है, थोड़ा पानी पिला दें। उस महिला ने कहा माता जी मुझे प्रवचन के लिये जाना हैं, मुझे वहाँ पहुँचने में पहले ही देर हो चुकी हैं। पर उस वृद्ध महिला ने फिर कहा, पुत्री मुझे पानी पिलाकर फिर चली जाना। उस महिला को दया आ गयी और उसने उस वृद्ध महिला को पानी का लोटा भर कर दिया। उस वृद्ध महिला ने पानी पीकर जैसे ही लोटा वापस किया वो सोने का हो गया। यह देखकर वो महिला आश्चर्य से भर गई। फिर तो वो उस वृद्धा से भोजन की मनुहार करने लगी। बोली, माता जी आप को भूख भी लगी होगी। आप कहो तो भोजन भी लगा दूँ। उस महिला ने सोचा जब पानी के लिये मैंने लोटा दिया, तो वो सोने का हो गया अगर यह वृद्धा भोजन करेगी तो थाली, कटोरी आदि और भी मेरे बर्तन सोने के हो जायेंगे। परंतु उस वृद्ध महिला ने मना कर दिया और कहा पुत्री तुझे प्रवचन के लिये देर हो रही होगी। तू प्रवचन के लिये जा।
वो स्त्री प्रवचन के लिये चली गयी। परंतु उसके मन में वही बातें चल रही थी। उसने प्रवचन में आयी अन्य महिलाओं को भी उस घटना के विषय में बताया। जब महिलाओं ने सुना की एक वृद्धा को पानी पिलाने से वो बर्तन को सोने का बना देती है, तो वो भी प्रवचन बीच में ही छोड़ कर उस वृद्ध महिला की खोज में निकल पड़ी। जैसे-जैसे सबको उस वृद्ध महिला के विषय में पता चला वो सब उस वृद्ध महिला की प्रतीक्षा करने, उसकी खोज करने और सेवा करने में व्यस्त हो गये। और इस कारण से प्रवचन में जाना छोड़ दिया। इस प्रकार प्रवचन में आने वाले लोगों दिन प्रतिदिन कम होते गये।
लोगों की बातें सुनकर और दिन-प्रतिदिन प्रवचन में आने वाले लोगों की भीड़ को कम होता देखकर भगवान समझ गये कि लक्ष्मी जी इस नगर में आ चुकी है। जब यह बातें उस साहूकर तक पहुँची की एक वृद्धा नगर में आयी है और जिस के भी बर्तन में वो जल, दूध या भोजन करती है, वो सोने का हो जाता है। यह बात सुनकर वो साहूकर भी प्रवचन छोड़कर उस वृद्ध महिला के पास पहुँच गया। और वहाँ पहुँच कर उनसे कहा, “हे माता! आप सब पर कृपा कर रही हैं और आपने मुझे अपनी सेवा का मौका नही दिया। जबकि मैंने तो अपने घर पर भगवान के प्रवचन का आयोजन कर रखा था। और आप मेरे ही घर क्यूँ नही आयी? तब वृद्धा रूपधारी माता लक्ष्मी ने कहा- “बेटा! मैं तेरे घर भी आती परंतु तूने अपने घर पर प्रवचन का आयोजन कर रखा था। मैंने सोचा जब वो कथा वाचक तेरे घर से चला जायेगा, तब मैं तेरे घर पर आऊँगी।“
वृद्धा की ऐसी बातें सुनकर उस साहूकर ने कहा, “ माता! अगर आप उस कथा वाचक के रहते मेरे घर नही आ सकती तो, मैं उस कथा वाचक के रहने की व्यवस्था कहीं ओर कर देता हूँ। आप मेरे साथ चलिये।“ यह कहकर वो साहूकर उनको लेकर जल्दी से अपने घर पहुँचा और ब्राह्मण रूपधारी भगवान नारायण से कहा कि मैंने आपके रहने की व्यवस्था धर्मशाला में कर दी हैं। आप यहाँ से वहाँ पर चले जाइये। तब उस ब्राह्मण ने कहा, पुत्र अभी तो कथा मैं कुछ दिन शेष हैं। मैं उसके बाद तो वैसे ही चला जाऊँगा।“ साहूकार ने कहा, “नही मेरे पास इतना समय नही हैं। मेरे घर पर एक अतिथि आये है और मुझे उनको अपने यहाँ रखना हैं। इसलिये आप यहाँ से चले जाइये।“ तभी वृद्ध स्त्री का रूप धारण किये माँ लक्ष्मी अन्दर आ गयी और साहूकार से बोली तुम बाहर रूकों। मैं इनसे बात करना चाहती हूँ। उनकी बात सुनकर साहूकर बाहर चला गया। तब माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से कहा,” प्रभु! देख लिजिये यह लोग आपकी भक्ति तो करते है पर आपको पाने के लिये नही बल्कि मुझे पाने के लिये। अब तो आप मेरी बात मानेंगे।“ तब भगवान विष्णु ने कहा,” देवी! आपकी बात सत्य है। किंतु एक सत्य यह भी है कि आप भी यहाँ इसीलिये आयी है, क्योकि यहाँ पर मेरी भक्ति हो रही थी। मैं यहाँ साधू के रूप में प्रभु भक्ति कर रहा था और अन्य लोग भी यहाँ आकर ईश्वर की भक्ति में लगे हुये थे। इसलिये जहाँ भी साधू-महात्मा और भक्त प्रभु की आराधना करेंगे, वहाँ पर आपका वास होगा।“ ऐसा कहकर भगवान विष्णु वैकुण्ठ धाम को चले गये।
भगवान विष्णु के वैकुण्ठ चले जाने के बाद उस साहूकार के घर पर नगर वासियो की भीड़ जमा हो गई। सभी लोग उस वृद्ध महिला को अपने घर ले जाकर सेवा करना चाहते थे। तब वृद्ध महिला के रूप में माता लक्ष्मी ने नगरवासियों को कहा, कि मैं अब यहाँ से जा रही हूँ। सब उनसे पूछने लगे कि हमसे ऐसी क्या गलती हो गई है, जो आप हमें यूँ छोड़ कर जा रही हो। तब माता ने उत्तर दिया कि मैं तो वही वास करती हूँ, जहाँ भगवान नारायण वास करते हैं। आप लोगों ने तो उन्हे निकाल दिया तो अब मैं यहाँ कैसे रह सकती हूँ? वो जो यहाँ कथा वाचन करते थे वो मेरे स्वामी थे। माता ने उनको अपना परिचय दिया और यह भी बताया कि किस तरह भगवान विष्णु एक कथा वाचक के रूप में साहूकार के यहाँ रहे। उन्होने कहा कि मेरे स्वामी यहाँ थे, इसलिये मैं यहाँ आयी थी। अब वो यहाँ से चले गये, इसलिये मैं भी अब जाती हूँ। ऐसा कहकर मातालक्ष्मी वहाँ से अंतर्ध्यान हो गई।