नवरात्रि के पहले दिन करें माँ शैलपुत्री (Maa Shailaputri) की उपासना। जानियें कैसा है माँ शैलपुत्री का स्वरूप? साथ ही पढ़ें माँ शैलपुत्री की कथा और उनकी उपासना के मंत्र…
Navratri Ka Pehla Din – Maa Shailaputri
नवरात्रि का पहला दिन – माँ शैलपुत्री
नवरात्रि के प्रथम दिन पर माँ दुर्गा के शैलपुत्री (Maa Shailaputri) स्वरूप की पूजा की जाती हैं। नवरात्रि के प्रथम दिन घटस्थापना की जाती हैं। (घटस्थापना की विधि और मुहुर्त के लिये यहाँ क्लिक करें।)
माँ शैलपुत्री को हेमवती और वृषारुढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। माँ शैलपुत्री की सवारी वृष (वृषभ) हैं।
माँ दुर्गा के जिन नौ स्वरूपों की नवरात्रि में पूजन की जाती है, उसमें प्रथम स्वरूप माँ शैलपुत्री हैं। इसलिये नवरात्रि के प्रथम दिन पर माँ शैलपुत्री (Maa Shailaputri) की पूजा की जाती हैं।
Maa Shailaputri Ka Swaroop
माँ शैलपुत्री का स्वरूप
• माँ शैलपुत्री (Maa Shailaputri) के मस्तक पर अर्ध चंद्रमा सुशोभित हैं।
• दायें हाथ में त्रिशूल धारण किया हुआ हैं।
• माँ के बायें हाथ में कमल शोभायमान हैं।
• माँ शैलपुत्री की सवारी वृषभ हैं।
विशेष : ज्योतिष शास्त्र के अनुसार माँ शैलपुत्री (Maa Shailaputri) की उपासना करने से जातक को चंद्र ग्रह की अनुकूलता प्राप्त होती हैं। चंद्र ग्रह के दुष्प्रभाव नष्ट हो जाते हैं।
Maa Shailaputri Ki Katha
माँ शैलपुत्री की कथा
शैलपुत्री (Shailaputri) शब्द संस्कृत भाषा का शब्द हैं, जिसका अर्थ है ‘पर्वत की बेटी’। हिंदु धर्मग्रंथों में वर्णित पौराणिक कथाओं के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री सती से भगवान शिव का विवाह हुआ। उनके विवाह के बाद दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में दक्ष ने अपनी सभी पुत्रियों और देवी-देवताओं को आमंत्रित किया परंतु भगवान शिव और माता सती को निमंत्रण नही भेजा।
माता सती ने अपने पिता के यज्ञ में जाने की इच्छा व्यक्त करी तो भगवान शिव ने उन्हे समझाया कि बिना निमंत्रण के वहाँ जाना उचित नही हैं। तब माता सती ने कहा को वो मेरे पिता का घर हैं, और एक पुत्री होने के नाते मुझे वहाँ जाने में कोई आपत्ति नही हैं। और उनके हठ के सामने भगवान शिव विवश हो गये और उन्होने अपने गणों को माता की सती के साथ भेज दिया। जब माता सती वहाँ पहुँची तो उन्हे वहाँ अपमान का सामना करना पड़ा और जब उनके पिता दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया, तो उन्हे क्रोध आ गया और उन्होने वही यज्ञ की अग्नि में स्वयं को भस्म कर दिया।
माता सती द्वारा अग्नि में प्रवेश करने के विषय में जब भोलेनाथ को पता चला तो उन्होने क्रोध में आकर वीरभद्र को यज्ञ का विध्वंस करने के लिये भेजा। वीरभद्र ने यज्ञ में पहुँच कर सारे यज्ञ को विध्वंस कर दिया और उसी यज्ञ की अग्नि में दक्ष प्रजापति का शीश काटकर ड़ाल दिया। इन्ही माता सती ने शैलपुत्री के रूप में हिमालयराज हिमावंत के यहाँ पुनर्जन्म लिया। इस प्रकार माँ शैलपुत्री (Maa Shailaputri) पूर्वजन्म में माता सती थी।
Mata Shailaputri Ke Mantra
माता शैलपुत्री के मंत्र
विधिपूर्वक माता की पूजा अर्चना करने के बाद इस मंत्र का पाठ करते हुये माँ शैलपुत्री (Maa Shailaputri) का ध्यान करें।
ध्यान मंत्र :-
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
आसन पर बैठकर 108 बार इस मन्त्र का जाप करें।
मंत्र :-
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
इस मंत्र के द्वारा माँ शैलपुत्री की स्तुति करें।
स्तुति मंत्र :-
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥