संतान की लम्बी उम्र और कुशलता के लिये करें अहोई अष्टमी का व्रत। जानियें अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) कब हैं? और इस व्रत का क्या महत्व है? इसके साथ पढ़ियें अहोई अष्टमी व्रत कथा (Ahoi Ashtami Vrat Katha), पूजन की विधि, अहोई अष्टमी उद्यापन की विधि (Ahoi Ashtami Udyapan) और व्रत के नियम…
Ahoi Ashtami
अहोई अष्टमी
हिन्दु कैलेण्ड़र के कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि के दिन अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) का व्रत किया जाता हैं। अहोई अष्टमी का व्रत महिलाएं अपनी संतान की लम्बी उम्र और कुशलता की कामना से रखती हैं। संतान की कामना रखने वाली स्त्रियाँ भी अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं।
ऐसी मान्यता है कि अहोई अष्टामी (Ahoi Ashtami) का व्रत करने से संतान से जुड़ी सभी समस्याओं का नाश होता है और उनके सभी कष्टों का निवारण होता। अहोई अष्टमी को अहोई आठे (Ahoi Aathe) भी कहा जाता हैं। इस व्रत में तारों को अर्ध्य देकर ही स्त्रियाँ अपना व्रत खोलती हैं।
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Ahoi Ashtami Kab Hai?
अहोई अष्टमी कब हैं?
इस वर्ष अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) का व्रत 24 अक्टूबर, 2024 गुरूवार के दिन किया जायेगा।
Ahoi Ashtami Vrat Ka Mahatva
अहोई अष्टमी व्रत का महत्व
अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) पर माता पार्वती और सेही (स्याओं) माता की पूजा अर्चना की जाती हैं। अहोई माता अनहोनी को टालने वाली हैं। इनका व्रत एवं पूजन करने से संतान की किसी भी अनहोनी से रक्षा होती हैं। मातायें अहोई अष्टमी का व्रत एवं पूजन अपनी संतान की लम्बी आयु और उनकी कुशलता के लिये रखती हैं।
संतानहीन स्त्रियाँ भी सन्तान की कामना से अहोई अष्टमी का व्रत एवं पूजन करती हैं। हिंदु मान्यता के अनुसार अहोई अष्टमी का व्रत एवं पूजन करने महिलाओं की संतान प्राप्ति की कामना पूर्ण होती हैं।
Ahoi Ashtami Vrat Aur Pujan Ki Vidhi
अहोई अष्टमी व्रत एवं पूजन की विधि
संतान की कुशलता की कामना से महिलायें अहोई अष्टमी का व्रत एवं पूजन करती हैं।
- अहोई अष्टकमी (Ahoi Ashtami) के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- फिर पूजास्थान पर बैठकर जल और अक्षत हाथ में लेकर व्रत का संकल्प करें।
- अहोई अष्टमी की पूजन (Ahoi Ashtami Ki Puja) संध्या के समय की जाती हैं। संध्या के समय दीवार खड़िया से लीपकर उसपर गेरू और चावल से अहोई का चित्र बनायें या अहोई का चित्र लगायें।
- चार कुल्हड़ ले उसमें से दों में स्वच्छ जल भर कर रखें, तीसरे में साबुत मूंग और चौथे कुल्हड़ में चावल भरकर रखें। इन्हे सम्भाल कर रखें। यह जल रूप चौदस (छोटी दीवाली) के दिन पूरे घर में यह छिड़कें और इस जल को नहाने के जल में ड़ालकर स्नान भी करें। मूंग-चावल से अन्नकूट के दिन प्रसाद बनायें।
- अहोई माता के समक्ष दीपक जलायें। जल के छींटे लगायें। रोली चावल से गणेश, देवी पार्वती और अहोई माता की पूजा करें। फूल माला अर्पित करें।
- पांच या सात फल अहोई माता को अर्पित करें। दक्षिणा के साथ भोग अर्पित करें।
- हाथ में चावल लेकर अहोई माता की कथा कहें या सुनें। फिर गणेशजी की कथा कहें या सुनें।
- अहोई माता की आरती करें।
- पूजा के बाद तारों को अर्ध्य दें। इसके बाद 14 पूये (पूड़े), फल, रूपये रखकर बायना निकाले और मिनशकर अपनी सास को दें। और उनके पैर छूयें।
- तत्पश्चात् अपने से बड़ों के चरणस्पर्श करके उनका आशीर्वाद लें।
- फिर स्वयं भोजन ग्रहण करें।
Ahoi Ashtami Udyapan Ki Vidhi
अहोई अष्टमी उद्यापन की विधि
अहोई अष्टमी के व्रत का उद्यापन (Ahoi Ashtami Udyapan) भी किया जाता हैं। जब किसी महिला को पुत्र की प्राप्ति होती है या जब किसी महिला के पुत्र का विवाह होता हैं, उस वर्ष अहोई माता के 14 बहू, 14 बेटे, 4 हाथ व 4 पैर बनाये जाते हैं। परंतु दोगड़ दो ही होती हैं। और माला में दो नये मनके डलवायें जाते हैं।
उद्यापन वाले वर्ष दो बायने निकाले जाते हैं, एक तो वो जो आप हर वर्ष निकालते है और दूसरा विशेष बायना। उद्यापन वाले वर्ष जो विशेष बायना निकाला जाता हैं वो इस प्रकार हैं – पूये (पूड़े) या गुलगुले या कोई मिठाई, सास के लिये साड़ी-ब्लाऊज, पैर-छुआई की दक्षिणा पल्ले में बाँधकर बायना मिनश कर अपनी सास या पण्ड़ितानी को दें।
Ahoi Ashtami Vrat Ki Famous Katha
अहोई अष्टमी व्रत की दो कथायें प्रचलित हैं-
Ahoi Ashtami Vrat Katha – First
अहोई अष्टमी व्रत की कथा प्रचलित कथा – प्रथम
बहुत समय पहले एक नगर में एक साहूकार अपने परिवार के साथ निवास करता था। उसका भरा-पूरा परिवार था। उसके सात पुत्र और एक पुत्री थी। उसके सभी सातों पुत्रों का विवाह हो गया था। इस प्रकार उसके सात बहुएँ भी थी। वो सब बहुत खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे।
एक बार साहूकर की सातों बहुएँ अपनी ननद के साथ मिट्टी खोदने के लिये जंगल में गई। वहाँ वो सभी कुदाल लेकर मिट्टी खोदने लगी। साहूकार की बेटी ने भी कुदाली से मिट्टी खोदनी शुरू करी परंतु दुर्भाग्यवश उसने जहाँ मिट्टी खोदने के लिये कुदाल चलायी वहाँ पर स्याहु माता की मांद थी। और उस मांद में स्याहु के बच्चे थे। लड़की के हाथ से कुदाल लगने से स्याहु माता के बच्चे की मृत्यु हो गई।
अपने बच्चे को मरा हुआ देखकर स्याहु माता को क्रोध आ गय। उसने उन ननद भाभी से कहा जिसने भी मेरे बच्चे को मारा है, उसकी भी कोई संतान जीवित नही रहेगी। बताओं तुम में से किसने मेरे बच्चे को मारा हैं? स्याहु माता की ऐसी बातें सुनकर वो सभी ननद भाभी ड़र गई। और जिस ननद से यह पाप हुआ था दुखी होकर रोने लगी और उसने अपनी भाभियों से कहा कि आप मेरी मदद करों। मेरा आरोप अपने ऊपर ले लो।
उसकी छ: भाभियों ने तो मना कर दिया। किंतु सबसे छोटी भाभी ने स्याहु के सामने हाथ जोड़कर उससे कहा कि मैंने जान बूझकर यह पाप नही किया, मुझसे अंजाने में यह गलती हो गयी। किन्तु स्याहु ने क्रोध में आकर उसे श्राप दे दिया कि तेरी संतान जन्म लेने के सात दिन में मृत्यु को प्राप्त हो जायेगी।
इस हादसे के बाद जब उस छोटी बहू के संतान हुई वो जन्म लेने के सात दिन में ही मृत्यु को प्राप्त हो गई। ऐसे जब भी उसके संतान होती वो जन्म लेते ही मृत्यु को प्राप्त हो जाती। यह देखकर उसकी सास ने एक विद्वान पण्ड़ित को बुलाया और उससे सारा किस्सा सुनाकर उस श्राप के निवारण का उपाय पूछा। तब उस पण्ड़ित ने बताया कि स्याहु माता का श्राप तो सिर्फ वो स्वयं ही वापस ले सकती हैं। इसलिये तुम स्याहु माता से प्रार्थना करों कि वो अपना श्राप वापस ले लें।
छोटी बहू को पता चला कि सुरही गाय स्याहु की सहेली हैं। सुरही गाय एक पैर से लंगड़ी थी। छोटी बहू ने हर दिन सुरही गाय ही सेवा आरम्भ कर दी। प्रात:काल ही जाकर उसके रहने के स्थान को साफ करती, उसके चारे की व्यवस्था करती और उसके पीने के लिये साफ पानी भरती। जब सुरही गाय ने यह देखा तो उसे बहुत प्रसन्नता हुई और साथ में आश्चर्य भी हुआ कि कौन हर दिन मेरे लिये इतना सब करता हैं?
यह जानने के लिये वो प्रात:काल जागकर देखने लगी कि कौन आता हैं? जब साहूकार की छोटी बहू आयी और वहाँ पर सफाई करने लगी तो सुरही गाय ने उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया। फिर उससे पूछा तू कौन है? और क्यो मेरी इतनी सेवा कर रही हैं? तब छोटी बहू ने उसे उस दिन का सारा वृत्तांत सुनाया और कहा कि स्याहु तुम्हारी सहेली हैं। उसके श्राप के कारण मेरी संतान जन्म लेते ही मर जाती हैं। यदि तुम स्याहु से कह कर मुझे श्राप मुक्त करा दो, तो तुम्हारा बहुत आभार होगा और तुम्हारा पुत्रवती होने का आशीर्वाद भी तभी फलित होगा।
यह सुनकर सुरही गाय उसे स्याहु के पास ले गई और उसने स्याहु को समझाया कि तुम्हारे बच्चे की मृत्यु इसके हाथ से नही हुई थी, बल्कि इसकी ननद से अनजाने में गलती से हुई थी। इसने तो अपनी ननद को तुम्हारे श्राप से बचाने के लिये आरोप अपने ऊपर ले लिया था। यह अब तक अपनी सात संतान तुम्हारे श्राप के कारण खो चुकी हैं। तुम इसे अपने श्राप से मुक्त कर दो। सारी बात जानकर स्याहु को छोटी बहू पर दया आ गई और उसने उसे अपने श्राप से मुक्त कर दिया। और साथ ही उसे सात पुत्रों की माता होने का आशीर्वाद भी दिया। उसके बाद उसे सात पुत्रों की प्राप्ति हुई। तब से अहोई पर स्याहु के बच्चे बनाकर पूजा की जाती हैं।
Ahoi Ashtami Vrat Katha – 2
अहोई अष्टमी की प्रचलित कथा – 2
बहुत समय पहले एक नगर में एक साहूकार और उसकी पत्नी रहते थे। साहूकार के सात पुत्र थे। एक दिन साहूकार की पत्नी पूजा की मिट्टी लेने के लिये जंगल में गई। वहाँ वो कुदाल लेकर मिट्टी खोदने लगी। किंतु दुर्भाग्यवश वहाँ पर एक सेही की मांद थी। साहूकार की पत्नी की कुदाल से सेही के बच्चे के प्राण चले गयें। इस दुर्घटना से वो बहुत दुखी हुई और दुखी होकर अपने घर लौट आई।
कुछ ही दिन बाद साहूकार का एक बेटा मर गया। फिर कुछ दिन बाद दूसरा पुत्र की काल के गाल में समा गया। एक के बाद एक करके उसके सातों पुत्र मृत्यु को प्राप्त हो गयें। साहूकार का घर दुख के सागर में ड़ूब गया। एक दिन एक साधू उनके घर आये। तब साहूकार की स्त्री ने उनसे अपना दुख कहा।
साधू ने कहा कि तुम्हारे हाथ से सेही के बच्चे की हत्या हुयी थी यह उसी का परिणाम हैं। तुम कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन अहोई माता का व्रत एवं पूजन करों। उनसे अपनी गलती की क्षमा माँगों। उनकी कृपा से तुम्हारे दुखों का नाश होगा और संतान की रक्षा होगी।
साहूकार की स्त्री ने कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन अहोई माता का व्रत (Ahoi Mata Ki Puja) एवं पूजन किया और माता से प्रार्थना करी, हे माता! मुझसे जो अपराध हुआ वो अंजाने में हुआ। मैंने सेही के बच्चों को जान-बूझकर नही मारा। आप मेरे अपराध को क्षमा करों। उसके भक्ति युक्त वचन सुनकर अहोई माता उस पर प्रसन्न हुई और उन्होने उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया। साथ ही उसे उसके दोष से मुक्त कर दिया। साहूकार की पत्नी को पुन: सात पुत्रों की प्राप्ति हुई और अहोई माता (Ahoi Mata) की कृपा से उसकी संतान दीर्धायु हुई।
Ganesh Ji Ki Kahani
गणेश जी की कहानी
धर्म कथा के अनुसार एक समय की बात है एक गाँव में एक बुढ़िया रहा करती थी। वो गणेशजी की बहुत बड़ी भक्त थी। एक बार उसी गाँव में गणेशजी भेष बदलकर चुटकी भर चावल और एक गिलास में दूध लेकर आये और सबसे घूम-घूम कर कहने लगे की मेरे इस दूध और चावल की खीर बना दो। सब उनपर हंसने लगे और किसी ने भी उनकी खीर नही बनायी।
तब उन्हे वो बुढ़िया मिली, उसने कहा- आजा मैं तेरे लिये खीर बना देती हूँ। तब बुढ़िया एक कटोरा लेकर आयी तो गणेश जी ने कहा कि माई इसके लिये बड़ा बर्तन लाओ। बुढ़िया बोली इतना सा ही दूध और चावल है, इसमें ही बन जायेगा। गणेश जी बोले तुम बड़ा बर्तन लेकर तो देखों। बुढ़िया ने बड़ा भगोना लेकर उसमें दूध ड़ाला तो वो पूरा भर गया।
गणेश जी ने कहा तुम खीर बनाओं तब तक मैं थोड़ा धूम कर आता हूँ। ऐसा कहकर गणेश जी बाहर चले गये। खीर बनकर तैयार होगई पर गणेशजी नही आये तो बुढ़िया के मुँह में खीर देखकर पानी आने लगा। तब उसने खीर निकाली और बोली हे गणेश जी लो भोग लगा लो और ऐसे गणेश जी को भोग लगाकर उसने खीर खायी। फिर गणेश जी आये तो बुढ़िया ने उनसे कहा कि ले खीर खा ले। तब गणेश जी ने कहा कि मैंने तो खीर पहले ही खा ली। बुढ़िया बोली तूने कब खायी?
तब गणेश जी ने कहा, जब तुमने खीर खाने से पहले कहा था, हे ग़णेश जी! लो भोग लगा लो। फिर गणेश जी ने उसे अपना असली स्वरूप दिखाया और उससे वरदान माँगने के लिये कहा। बुढ़िया ने कहा मुझे वरदान मांगना नही आता। गणेश जी ने उसे बिन माँगे ही धन-सम्पत्ती और सुख सुविधायें प्रदान की। हे गणेश जी! महाराज जैसे आपने उस बुढ़िया की सुनी वैसे सबकी सुनना।
Vrat Ke Niyam
व्रत के नियम
- अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) के व्रत में तारों को अर्ध्य देने के लिये तांबे के कलश का उपयोग ना करें। इस दिन तांबे को अशुद्ध माना जाता हैं। इसलिये किसी और धातु के कलश से अर्ध्य दें।
- अहोई अष्टमी के व्रत में तारों को अर्ध्य दिया जाता हैं। इस दिन तारों को अर्ध्य देने के बाद ही व्रत पूर्ण होता हैं।
- अहोई अष्टमी(Ahoi Ashtami) पर निर्जल व्रत किया जाता हैं।
- अहोई अष्टमी का व्रत संतान की रक्षा के लिये किया जाता हैं। इसलिये इस दिन संतान को प्रेम से रखें। यदि उनसे कोई गलती भी हो जाये तो उन्हे डांटे या मारे नही।
- अहोई अष्टमी के दिन व्रत करने वाली स्त्री को दिन में सोना नही चाहियें।
- अहोई अष्टमी का व्रत करने वाली स्त्री अपने घर में इस दिन पोंछा नहीं लगायें।
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