Angarki Chaturthi Vrat – अंगारकी चतुर्थी व्रत करने से वर्ष की सभी संकष्टी चतुर्थियों के व्रत का पुण्य प्राप्त होता हैं

Angarki Chaturthi Vrat

Angarki Chaturthi Vrat (Sankashti Chaturthi Vrat)
अंगारकी (अंगारक) चतुर्थी व्रत (संकष्टी चतुर्थी व्रत)

हिंदु धर्म में भगवान गणेश को सर्वप्रथम पूजा जाता हैं। हिंदु मान्यता के अनुसार हर कार्य की सफलता और निर्विघ्न समाप्ति के लिये भगवान गणेश की पूजा की जाती हैं। गणेश जी विघ्नहर्ता हैं। हर माह की कृष्णपक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता हैं। इस दिन भगवान गणेश जी की पूजा और व्रत करने का विधान हैं। ऐसी मान्यता है की गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का व्रत एवं पूजन करने से जातक के जीवन के सभी कष्टों का नाश हो जाता हैं अर्थात भगवान गणेश जी अपने भक्त के सभी कष्टों को नष्ट करके उसे सभी कष्टों से मुक्त कर देते हैं।

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जब संकष्टी चतुर्थी मंगलवार के दिन होती है तो उसे अंगारकी चतुर्थी या अंगारकी संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। अंगारकी चतुर्थी का व्रत करने से जातक को वर्ष की सभी संकष्टी चतुर्थियों के व्रत का पुण्य मिलता हैं। अंगारकी चतुर्थी छ माह में एक बार आती हैं।

संकष्टी चतुर्थी को कुछ स्थानों पर संकट हारा और सकट चौथ के नाम से भी पुकारा जाता हैं।

Angarki Chaturthi Vrat Kab Hai?
अंगारकी चतुर्थी व्रत कब हैं?

इस वर्ष अंगारकी संकष्टी चतुर्थी का व्रत 10 जनवरी, 2023 मंगलवार के दिन किया जायेगा हैं।

Angarki Chaturthi Vrat Ka Mahatva
अंगारकी संकष्टी चतुर्थी का महत्व

हिंदु धर्म में संकष्टी चतुर्थी का विशेष स्थान हैं। हिंदु धर्म शास्त्रों के अनुसार संकष्टी चतुर्थी के दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा और व्रत करने से

  • साधक के घर-परिवार से सभी नकारात्मक प्रभाव दूर हो जाते हैं।
  • गृहकलेश से मुक्ति मिलती हैं, और घर-परिवार में शांति रहती हैं।
  • भगवान गणेश जी की कृपा से समस्त रोगों का नाश होता हैं।
  • जातक सभी ऋणों से मुक्त हो जाता हैं।
  • गणेश की कृपा से साधक की सभी मनोकामनायें पूरी होती हैं।
  • जातक को सभी कार्यों मे सफलता प्राप्त होती है और सभी कार्य र्निविघ्नता से पूर्ण होते हैं।
  • सभी समस्याओं और विपत्तियों का नाश होता हैं।
  • धन-सम्पत्ति में वृद्धि होती हैं।
  • साधक के सभी दुख दूर हो जाते हैं।

Angarki Chaturthi Vrat Aur Puja Ki Vidhi
अंगारकी चतुर्थी व्रत एवं पूजा विधि

अंगारकी संकष्टी चतुर्थी के व्रत में सूर्योदय से लेकर रात्रि को चंद्रमा के दर्शन तक उपवास रखना होता हैं। रात्रि में चंद्रमा के दर्शन के बाद ही व्रत पूर्ण होता हैं। वर्ष में सिर्फ भाद्रपद की कलंक चतुर्थी के दिन ही चंद्र दर्शन निषेध हैं।

  • अंगारकी संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने वाले को प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिये।
  • यदि सम्भव हो तो लाल रंग के वस्त्र धारण करें। ऐसा करना शुभ माना जाता हैं।
  • फिर गणेश जी की पूजा करने के लिये पूजास्थान पर पूर्व-दिशा की ओर मुख करके बैठ जायें।
  • पूजा में गणेश जी के साथ मां दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर अवश्य रखें और गणेश जी के साथ उनकी भी पूजन करें।
  • धूप –दीप जलाकर गणेश जी को दूध से स्नान करायें। सिंदूर और घी मिलाकर चोला चढ़ायें।
  • चाँदी का वर्क चढ़ाये। जनेऊ अर्पित करें।
  • गणेश जी का पूजन करते हुये इस मंत्र का जाप करें –

मंत्र:- गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।

  • रोली-चावले से तिलक करके, गंध और पुष्प अर्पित करें।
  • गणेश जी को लड़्‌ड़ुओं का भोग लगायें। फल चढ़ायें। पान और सुपारी चढ़ायें।
  • गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें और फिर गणेश जी की आरती करें।
  • दिन में पूजन के बाद फलाहार का सेवन कर सकते हैं, आज के दिन फलाहार में हो सके तो सेंधा नमक का सेवन भी ना करें।
  • संध्या के समय धूप-दीप जलाकर गणेश जी की पूजन करें और अंगारकी संकष्टी चतुर्थी की कहानी कहे या सुनें।
  • पूजन के बाद रात्रि को चंद्रमा के दर्शन के पश्चात्‌ ही भोजन करें।

Angarki Chaturthi Vrat Katha
अंगारकी चतुर्थी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार ऋषि भारद्वाज और देवी पृथ्वी के पुत्र का नाम मंगल था। मंगल ने अपने पिता की आज्ञा से मात्र सात वर्ष की आयु से भगवान गणेश की कठोर तपस्या आरम्भ कर दी थी। उस बालक ने भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिये वर्षों तक कठोर तप किया, निराहार रहा। उसकी इस श्रद्धा और भक्ति को देखकर भगवान गणेश प्रसन्न हो गये और उन्होने मंगल को कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन दर्शन दियें।

भगवान गणेश ने पृथ्वी पुत्र को दर्शन देकर वरदान मांगने के लिये कहा। धरती पुत्र ने भगवान गणेश से सदैव उनकी शरण में रहने के साथ स्वर्ग में देवताओं से समकक्ष पद पाने की इच्छा व्यक्त करी। तब भगवान गणेश ने उनकी मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद दिया और कहा तुम्हे स्वर्ग में देवताओं के समान सम्मान प्राप्त होगा। तुम मंगल और अंगारक नाम से प्रसिद्ध होंगे। मंगलवार के दिन आने वाली संकष्टी चतुर्थी को तुम्हारे नाम अर्थात अंगारकी चतुर्थी के नाम से जाना जायेगा और इसका व्रत एवं पूजन करने से साधक को वर्ष की सभी संकष्टी चतुर्थी के व्रत का पुण्य लाभ होगा। ऐसा कहकर भगवान गणेश अंतर्ध्यान हो गये।

संकष्टी चतुर्थी का यह व्रत बहुत ही दुर्लभ है और इसकी महिमा अपरमपार हैं। इसका व्रत करने से जातक की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। भगवान गणेश जी कृपा से उसे सुख-शांति, धन-समृद्धि व आरोग्य की प्राप्ति होती हैं।