भादों की कृष्णपक्ष की द्वादशी को वत्स द्वादशी (Vats Dwadashi) और बछबारस (Bach Baras) के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बछबारस (Bachbaras) के दिन गौमाता की पूजा करने से संतान सुरक्षित रहती है और उसकी उम्र लम्बी होती है। जानियें कब है बछबारस? साथ ही पढ़ियें बछवारस क्यों मनाते हैं?, बछबारस की पूजा कैसे करें? और बछबारस की प्रचलित कथायें…
Bach Baras 2024 (Vats Dwadashi)
बछवारस 2024 (वत्स द्वादशी)
भाद्रपद मास (भादों) की कृष्णपक्ष की द्वादशी तिथि के दिन बछ बारस (Bach Baras) का पर्व मनाया जाता हैं। इस दिन पुत्रवती स्त्रियाँ अपने पुत्र के स्वास्थ्य और लम्बी उम्र के लिये गौमाता से प्रार्थना करती हैं और बछड़े वाली गाय का पूजन करती हैं। इस दिन चाकू से काटी गई वस्तुयें, गेहूँ, जौ, और गाय के दूध से बनी चीजों का सेवन निषेध हैं। एक दिन पहले ही रात्रि को बछबारस (Bachbaras) के लिये मूंग, मोठ, चने एवं बाजरा भिगो कर रख दिया जाता है। उसे भिजोना कहते हैं।
Bach Baras / Vats Dwadashi Kab Hai?
बछवारस / वत्स द्वादशी कब है?
इस वर्ष बछवारस (Bach Baras) की पूजा एवं व्रत 30 अगस्त, 2024 शुक्रवार के दिन किया जायेगा।
Bachbaras (Vats Dwadashi) Kyun Manate Hai?
बछवारस (वत्स द्वादशी) क्यों मनाते हैं?
हमारे आराध्य श्री कृष्ण को गायों से बहुत प्रेम था। उन्होने गौ-सेवा के महत्व को लोगों को बताया और गाय को माता कहकर उसकी पूजा को प्रतिपादित किया। भगवान श्री कृष्ण स्वयं गायों की सेवा किया करते थें। उनके गायों के प्रति इस प्रेम को देखकर स्वयं कामधेनू ने बहुला गाय का रूप लेकर नंदबाबा की गौशाला में स्थान लिया था।
भगवान श्री कृष्ण का एक नाम गोपाल भी है। इस दिन पहली बार भगवान श्री कृष्ण गायों और बछड़ों को चराने के लिये गये थे। माता यशोदा ने श्री कृष्ण को खूब सजा-धजा कर और पूजा पाठ कराकर इस दिन गाय चराने के लिये भेजा था। उनके साथ उनके बड़े भाई बलराम भी थें। श्री कृष्ण उनके साथ गायों और उनके बछड़ों को लेकर चराने के लिये गये थे। इसलिये इस दिन सब लोग गौ-पूजा करके भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिये गये गौ-सेवा के संदेश को सम्मान देकर इसे एक पर्व के रूप में मनाते हैं।
Bach Baras Ki Puja Vidhi
बछ बारस की पूजा कैसे करें? बछ बारस की पूजा विधि
बछ बारस के दिन पुत्रवती स्त्रियाँ व्रत रखती है और गाय – बछड़ें की पूजा करती हैं। बछ बारस से एक दिन पहले रात्रि को बछबारस के लिये मूंग, मोठ, चने एवं बाजरा भिगो कर रख दिया जाता है। फिर प्रात: काल स्नानादि के बाद पूजा से पहले उसे कढ़ाई में छोंक कर पका लिया जाता हैं।
1. व्रत करने वाली स्त्री को बछ बारस के दिन प्रात: काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ कपड़े पहननें चाहिये।
2. यदि आपके घर पर बछड़े वाली दूध देने वाली गाय हो तो उसे बछडे़ के साथ स्नान करायें।
3. फिर गाय और उसके बछड़े को नया कपड़ा ओढा़कर, हल्दी-चंदन से तिलक करें और फूलों की माला पहनायें। अगर सम्भव तो उनेक सींगों को भी सजायें।
4. तत्पश्चात तांबे का बर्तन लेकर उसमें पानी भरें। उसमें तिल, अक्षत, इत्र और फूल ड़ालकर गाय पर छिड़के और उसके पैरों (खुर) पर जल ड़ाले। यह करते समय निम्नलिखित मंत्र का पाठ करें –
क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते।
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥
5. गाय माता के खुर पर लगी मिट्टी से अपने मस्तक पर टीका लगायें।
6. दीपक जलाकर गौमाता की आरती उतारें। भीगे चने, मूंग, मोठ एवं बाजरा गाय को अर्पित करें।
7. गौ पूजन के पश्चात बछ बारस की कहानी (Bach Baras Ki Kahani) कहे या सुनें।
8. व्रत करने वाली स्त्री भिजोना (भीगा हुआ मूंग,मोठ, बाजरा और चने) पर पैसे रखकर अपनी सास या जेठानी को पैर छू करे दें।
9. बछ बारस (Bach Baras) के पूरे दिन व्रत रखकर रात को अपने ईष्ट देवता का ध्यान और पूजन करके भोजन करें।
10. इस दिन भोजन में गेहूँ और जौ नही खाना चाहिये और ना ही गाय के दूध से बनी किसी वस्तु का सेवन करना चाहियें। साथ ही चाकू से कुछ भी नही काटना चाहिये और न ही चाकू से कटी किसी वस्तु का सेवन करना चाहियें। इस दिन सब्जी भी काटना वर्जित हैं।
11. अगर आपके घर पर बछड़े वाली गाय न हो तो, आपके घर के आस-पास जहाँ भी बछड़े वाली गाय हो वहाँ इसी विधि से पूजा करें। पूजा के बाद उसके लिये दक्षिणा भी रखें।
12. यदि आपको बछड़े वाली गाय न मिले तो भी आप यह पूजा कर सकती है। उस परिस्थिति में आप गीली मिट्टी से गाय एवं बछडे़ की प्रतिमा बनाकर उपरोक्त विधि से उनकी पूजा करें।
बछ बारस (Bach Baras) की दो बहुत ही प्रचलित कथायें हैं।
Bach Baras Ki Kahani – First
बछ बारस की कहानी – प्रथम
प्राचीन समय की बात है, एक गाँव में एक सास और बहू रहा करती थी। सास बहुत ही धार्मिक थी। नित्य प्रतिदिन मंदिर जाना, पूजा पाठ करना, गौ सेवा करना, यह उसकी दिनचर्या का महत्वपूर्ण काम था। उसकी बहू भी बहुत आज्ञाकारी थी। जो भी उसकी सास कहती वो बिना प्रश्न किये उस कार्य को सम्पादित कर देती थी। उनके पास एक गाय और बछड़ा था। उस गाय का नाम था गेहूँला और उसके बछड़े का नाम था जौला। दोनों सास बहू उस गाय और बछड़े से बहुत प्यार करती थी और खूब मन लगाकर उनकी सेवा भी करती थी। वो गाय भी बहुत ही समझदार थी, प्रतिदिन चरने के लिये छोड़ने पर शाम को स्वयं ही घर पर आ जाती थी।
एक बार सास ने घर पर जौ की बालियाँ लाकर रखी। परंतु वो बहू को उनके विषय में बताना भूल गई। सास हर दिन की भांति प्रात:काल उठकर अपने नित्य कर्मों से निवृत्त होकर मंदिर जाने के लिये तैयार हुई और गाय को चरने के लिये छोड़ दिया। मंदिर जाते जाते उसने अपनी बहू को आवाज लगाकर कहा- बहू मैं मंदिर जा रही हूँ। जब तक मैं वापस लौट कर आँऊ तब तक तू जौ लाकर, काटकर उबालने के लिये रख देना। बहू को घर पर रखें जौ के विषय में कुछ भी पता नही था। उसको अपनी सास की बात सुनकर ऐसा लगा कि उसकी सास ने उसे जौला यानी गाय के बछड़े को काटकर उबालने के लिये कहा हैं।
यह सुनकर वो सोच में पड़ गई, कि आज सासू माँ ने कैसी बात कह दी? अगर मैं उनकी बात मानती हूँ, तो मुझे इस निरिह बछड़े की हत्या करनी पड़ेगी। जिससे मुझे गौहत्या का पाप लगेगा। लेकिन अगर उनकी बात नही मानती हूँ और उनके कहे अनुसार नही करती हूँ तो उनकी अवज्ञा होगी। वो भी मेरे लिये पाप के समान ही हैं।
वो इसी धर्मसंकट में उलझ गई थी। बैठी – बैठी यही सोचे जा रही थी क्या करें? और क्या न करें? अंत में उसने अपनी सास की आज्ञा का पालन करना ही अपना धर्म जाना और गाय के बछड़े जौला को काटकर बर्तन में उबालने के लिये रख दिया। परंतु उस बछड़े की हत्या करके उसके मन को बिल्कुल भी चैन नही मिल रहा था और वो उसका दुख मान कर बस रोये जा रही थी।
जब उसकी सास वापस आयी तो उसकी आँखें घर का दृश्य देखकर आश्चर्य से फटी रह गई। घर में खून ही खून फैल रहा था। जहाँ-तहाँ खून के धब्बे देखकर उसने अपनी बहू को आवाज लगाई। उसकी बहू रोती हुई उसके सामने आगई। तब सास ने उससे पूछा कि यह घर में खून कहाँ से आया? तब बहू ने सास को उसकी आज्ञा याद करायी और कहा कि यह रक्त जौला का है। मैंने आपके कहे अनुसार उसको काटकर उबालने के लिये रख दिया हैं।
बहू की बात सुनकर सास ने उसे कहा मैंने तुम्हे घर में रखें जौ काटकर उबालने के लिये कहा थी ना कि गाय के बछड़े जौला को काटकर उबालने के लिये कहा था। यह सुनकर बहू अपनी सुधबुध खो बैठी। उसकी सास का भी दुख के मारे बुरा हाल हो गया। तब सास ने हिम्मत करके अपनी बहू को सम्भाला और उसे अपने साथ अपने ईष्ट देव के मंदिर लेकर गई। वहाँ पहुँच कर दोनो सास-बहू हाथ जोड़कर उनके आगे खड़ी हो गई।
उनके सामने बारम्बार माथा टेककर, नाक रगड़कर बहू की उस गलती के लिये क्षमा माँगने लगी। सास ने कहा- हे प्रभु! मैंने सदा ही आपका ध्यान और पूजन सच्ची श्रद्धा एवं भक्ति के साथ किया हैं। हमेशा धर्म का पालन किया। मेरी आपसे विनती है कि यदि मेरी बहू ने यह सब जानबूझकर किया है, तो इसे सजा दो और अगर इससे यह भूल वश हुआ है, तो इसे क्षमा करों और उस बछड़े को पुन: जीवित कर दो। दोनो सास बहू मंदिर में भूखी-प्यासी ईश्वर का ध्यान करती रही।
जब शाम होने लगी तब उन्हे लगा कि अब गाय चरकर वापस आने वाली होगी और अपने बछड़े को जीवित ना पाकर उसका क्या हाल होगा? यही सोचकर वो मंदिर से घर के लिये रवाना हो गई। घर पहुँच कर उन्होने देखा की गाय भी आ चुकी है। सास-बहू आगे के बारे में सोचकर भयभीत हो रही थी, तभी जैसे ही गाय रम्भाते हुये घर की तरह बढ़ी उसका बछड़ा घर के अंदर से दौड़ता हुआ अपनी माँ के पास आ गया।
यह देखकर सास बहू दोनो विस्मित हो गई और बार-बार ईश्वर का धन्यवाद देने लगी। तब उन्होने घर आकर उस गाय और बछड़े की खूबा सेवा करी। तबसे स्त्रियाँ अपनी संतान की रक्षा और लम्बी आयु के लिये बछ बारस का व्रत एवं पूजा-अर्चना करती हैं।
Bachbaras Ki Kahani – Second
बछ बारस की कहानी – द्वितीय
पौराणिक कथानुसार बहुत समय पहले सुवर्णपुर नामक नगर पर देवदानी नाम का एक राजा राज किया करता था। उसकी दो रानियाँ थी। एक का नाम था सीता’ और दूसरी का गीता। देवदानी एक न्यायप्रिय और धर्मपरायण राजा था।
राजा के पास एक बहुत बड़ी गौशाला थी उसमें बहुत सी गायें और भैंसे थी। रानी सीता को एक भैंस अति प्रिय थी और वो उसका बहुत खयाल रखती थी। वही दूसरी ओर रानी गीता को एक गाय और उसका बछड़ा बहुत ही ज्यादा प्रिय था। वो उस गाय को अपनी सखी मानती थी और उसके बछड़े को अपनी संतान के समान स्नेह करती थी।
रानी गीता और उस गाय में एक दूसरे के प्रति इतना प्यार देखकर रानी सीता और उसकी भैंस उनसे ईर्ष्या करती थी। रानी सीता स्वयं को रानी गीता से श्रेष्ठ मानती थी और उसकी भैंस भी स्वयं को गायों से श्रेष्ठ मानती थी। परंतु गायों को पूजा जाता देखकर उसको बहुत ईर्ष्या होती थी। ईर्ष्यावश एक दिन उस भैंस ने रानी सीता को रानी गीता और उसकी गाय के विषय में भड़काना शुरू कर दिया। भैंस ने कहा इस गाय और बछड़े को सब बहुत प्यार करते हैं। राजा देवदानी भी इस गाय और बछड़े में अधिक रूचि लेते हैं। इस तरह से तो एक दिन तुम और मैं अकेले ही रह जायेंगे। सभी उस गाय-बछड़े और रानी गीता को ही सम्मान देंगे। उसकी बाते सुनकर रानी सीता को क्रोध आगया और असुरक्षा की भावना से ग्रस्त होकर उसने मौका पाते ही उस गाय के बछड़े को काटकर गेहूँ के ढ़ेर के नीचे दबा दिया।
अपने बछड़े को ना पाकर वो गाय दुखी होकर आंसु बहाने लगी। उसको दुखी देखकर रानी गीता भी व्यथित हो उठी। रानी ने सेवकों को उस गाय के बछड़े को खोजने के लिये कहा परंतु उसका कोई पता नही चल सका। ऐसे ही कुछ ही दिन बीत गयें।
एक दिन राजा जब भोजन करने बैठा तो राजा को भोजन में से बहुत बुरी दुर्गंध आने लगी। उसे सभी तरफ रक्त और मांस ही मांस दिखाई देने लगा। यह देखकर वो भोजन से उठ गया। जैसे ही वो भोजन से उठकर बाहर की तरफ गया तभी बाहर रक्त और मांस के टुकड़ों की बारिश होने लगी। यह सब देखकर राजा बहुत परेशान हो उठा। उसे कुछ भी समझ नही आ रहा था कि ऐसा क्यूँ हो रहा हैं? तब वो अपने गुरू के पास गया।
उसके गुरू बहुत ही ज्ञानी और सिद्ध पुरूष थे। उन्होने अपने तपोबल से यह जान लिया की रानी सीता ने भैंस के भड़काने और असुरक्षा भाव के कारण गाय के बछड़े को मारकर गेहूँ के ढ़ेर के नीचे दबा दिया है!। उन्होने राजा देवदानी को कहा, हे राजन! तुम्हारी रानी ने एक भैंस की बातों में आकर गाय के बछ्ड़े की निर्मम हत्या करके गेहूँ के ढ़ेर के नीचे दबा दिया है। यह सब उसी का परिणाम हैं। जल्द ही बछ बारस (Bach Baras) आने वाली है उस दिन तुम अपनी रानियों के साथ गाय-बछड़े की पूजा करना। और उस भैंस को नगर से निकाल देना।
राजा ने आकर सारी बात अपनी रानियों से कही, राजा की बात सुनकर रानी सीता को अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने प्रायश्चित करने का निश्चय किया। राजा ने उस भैंस को नगर से बाहर छुड़वा दिया। बछ बारस के दिन पूरे विधि विधान से राजा और रानियों ने गाय और बछड़े का पूजन किया। उस दिन उन्होने कोई भी कटी हुई वस्तु का उपयोग नही किया और ना ही गाय के दूध से बनी किसी वस्तु का उपभोग किया। रानी सीता ने पूजन करके अपनी गलती की क्षमा याचनी करी।
बछबारस (Bachbaras) की पूजा के प्रभाव से वो गाय का बछड़ा फिर से जीवित हो गया। और उस रानी का पाप भी नष्ट हो गया। बछबारस के दिन गाय और बछड़े के पूजन का विशेष महत्व हैं। ऐसा करने से संतानवती स्त्रियों की संतान दीर्धायु होती हैं। उनके प्राणों पर कोई संकट नही आता।