Shukra Pradosh Vrat Katha: शुक्र प्रदोष के दिन पढ़ें शुक्र प्रदोष व्रत कथा और पायें सुख-समृद्धि एवं सौभाग्य का वरदान

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प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) भगवान भोलेनाथ को समर्पित है। हर माह में दो प्रदोष व्रत आते है। जब प्रदोष व्रत शुक्रवार के दिन होता है तो उसे शुक्र प्रदोष (Shukra Pradosh) कहते है। शुक्र प्रदोष व्रत (Shukra Pradosh Vrat) के दिन शुक्र प्रदोष व्रत कथा (Shukra Pradosh Vrat Katha) का पाठ अवश्य करना चाहिये। इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन सुखमय होता है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। जानिये कब है शुक्र प्रदोष व्रत? साथ ही पढ़ियें शुक्र प्रदोष व्रत कथा (Shukra Pradosh Vrat Katha) और उसका महत्व…

वर्ष 2024 का प्रदोष व्रत कैलेण्ड़र (Pradosh Vrat Calendar) – जानियें हर माह के प्रदोष व्रत की तारीख

Shukra Pradosh Vrat Kab Hai?
शुक्र प्रदोष व्रत कब है?

शुक्र प्रदोष व्रत (Shukra Pradosh Vrat) 19 जुलाई, 2024 (आषाढ़ मास शुक्लपक्ष) और 13 दिसम्बर, 2024 (मार्गशीर्ष मास शुक्लपक्ष) के दिन किया जायेगा।

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Significance of Shukra Pradosh Vrat
शुक्र प्रदोष व्रत का महत्व

प्रदोष व्रत बहुत ही प्रभावशाली व्रत है और जब यह व्रत शुक्रवार के दिन होता है तो इसका प्रभाव और बढ़ जाता है। शुक्र प्रदोष व्रत के दिन विधि विधान के साथ पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से भगवान शिव की उपासना करने से

  • सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।
  • वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।
  • जीवन में आये संकटों का निवारण होता है।
  • रोग, दरिद्रता और अभावों का नाश होता है।
  • साधक को आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है।
  • विचारों में सकारात्मकता आती है।
  • साधक अज्ञान के अन्धकार से निकलकर ज्ञान के प्रकाश को प्राप्त करता है।
  • मनुष्य सांसारिक सुखों को भोग कर अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है।

Shukra Pradosh Vrat Katha
शुक्र प्रदोष व्रत कथा

बहुत समय पूर्व की बात है एक नगर में तीन मित्र निवास करते थे। उनमें से एक राजकुमार था दूसरा एक ब्राह्मण कुमार और तीसरा साहूकार (सेठ) का पुत्र था। उन तीनों में मित्रों में परस्पर बहुत स्नेह था। तीनों ही विवाहित थे। राजकुमार और ब्राह्मण कुमार दोनों की स्त्रियाँ उनके साथ रहती थी। साहूकर पुत्र का विवाह तो हो गया था परंतु गौना नही हुआ था। अर्थात उसकी स्त्री अपने मायके में ही थी।

एक दिन की बात है तीनों मित्र एकसाथ बैठकर जीवन में स्त्रियों के महत्व की चर्चा कर रहे थे। तभी ब्राह्मण पुत्र ने स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए कहा कि “नारी के बिना घर भूतों का डेरा होता है।“ राजकुमार ने भी ब्राह्मण कुमार के विचार से सहमति दिखाई। यह देखकर उस साहूकार के पुत्र को लगा की उसे भी अपनी स्त्री को अपने साथ ही रखना चाहिये। उसने शीघ्र अति शीघ्र अपनी पत्‍नी को उसके मायके से लाने का निर्णय कर लिया। उसके माता-पिता ने उसे बताया कि अभी हम बहू का गौना नही करा सकते क्योकि अभी शुक्र अस्त है। शास्त्रों के अनुसार जब शुक्र अस्त हो तब उस काल में बहू-बेटियों को उनके घर से विदा करवाकर लाना शुभ नहीं माना जाता। किंतु साहूकार का बेटा नहीं माना और स्वयं अपनी स्त्री को लाने के लिये ससुराल पहुँच गया।

जब वो अपनी स्त्री को लेने ससुराल पहुँचा तो वहाँ उसकी सास और ससुर ने भी उसे समझाने का प्रयत्न किया की जब शुक्र अस्त हो तब बेटियाँ विदा नही की जाती। किंतु वो नही माना और उसकी जिद्द के आगे उन्हे झुकना पड़ा। बेटी के माता-पिता को अपनी पुत्री को उसके पति के साथ विदा करने के लिये विवश होना पड़ा।

साहूकार का पुत्र जब अपनी स्त्री को लेकर चला तो उसे मार्ग में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ा। नगर से थोड़ा बाहर निकलते ही बैलगाड़ी का पहिया निकल गया और बैल की टांग टूट गई। और वो दोनों पति-पत्नी नेचे गिर पड़े। उन दोनों के भी चोट लग गई। अपने आप को सम्भालते हुये वो दोनों पैदल आगे बढ़ें तो मार्ग में उन्हें ड़ाकुओं ने पकड़ लिया और जो भी उनके पास धन-गहने इत्यादि थे वो सब लूट लिये। जैसे-तैसे करके साहूकार का पुत्र अपनी स्त्री के साथ अपने घर के निकट पहुँचा तो वहाँ उसे के विषैले सर्प ने डस लिया। साहूकार ने जब यह देखा तो उसने शीघ्रता से एक वैद्य को बुलाया। वैद्य ने जब उसका परीक्षण किया तो बताया की विष के प्रभाव से वो 3 दिनों के भीतर मृत्यु को प्राप्त हो जायेगा। उसका बचना सम्भव नही है। यह सुनकर साहूकार के घर मे शोक की लहर दौड़ गई।

जब यह सब बात उस साहूकार के पुत्र के मित्रों को पता चली तो वो दोनों वहाँ आयें। साहूकार से सारी बात जानकर उस ब्राह्मण कुमार ने कहा की आप धैर्य रखियें। इस गलती को सुधारने और इसके प्रभाव को कम करने के लिये आप दोनों अपने पुत्र की रक्षा की कामना से शुक्र प्रदोष व्रत किजिये। साथ ही अपने पुत्र और उसके स्त्री के साथ उसके ससुराल भेज दीजियें। साहूकार ने अपने पुत्र के प्राणों की रक्षा के लिये ब्राह्मण कुमार के कथनानुसार सब कुछ किया। साहूकार ने अपने पुत्र को उसकी स्त्री के साथ ससुराल भेज दिया और स्वयँ अपनी पत्नी के साथ अपने पुत्र की सुरक्षा के लिये विधि अनुसार शुक्र प्रदोष व्रत किया। उस व्रत के प्रभाव से साहूकार का पुत्र स्वस्थ हो गया। उसके जीवन पर आया संकट टल गया। जब शुक्र उदय हुआ तब साहूकार का बेटा अपनी पत्नी को लेकर पुन: अपने घर सकुशल लौट आया। शुक्र प्रदोष व्रत के प्रभाव से उनके सभी कष्ट दूर हो गए।