Chandra Chhath 2023: चंद्र छठ का व्रत कब और कैसे करें? पढ़ें व्रत की विधि और व्रतकथा

Chandra Chhath

पूर्व जन्म के पापों का नाश करने वाला है यह चंद्र छठ (Chandra Chhath) का व्रत। जानियें कब है चंद्र छठ (Chand Chhath)? साथ ही पढ़ियें व्रत की विधि और व्रत कथा…

Chandra Chhath 2023
चन्द्र छठ 2023

भाद्रपद मास की कृष्णपक्ष की षष्ठी तिथि को चंद्र छठ (Chand Chhath) का व्रत किया जाता हैं। इसी दिन हल षष्ठी का पर्व भी मनाया जाता हैं। हिंदु मान्यता के अनुसार चंद्र षष्ठी के व्रत के प्रभाव से पूर्व जन्मों के पापों का क्षय होता है और उन पाप कर्मों से कुयोनि में उत्पन्न जातक को उस योनि से मुक्ति मिल जाती हैं। यह व्रत कुँवारी कन्याओं के द्वारा किया जाता हैं।

Chand Chhath Kab Hai?
चन्द्र छठ कब हैं?

इस वर्ष चन्द्र छठ (Chand Chhath) का व्रत 4 सितम्बर, 2023 सोमवार के दिन मनाया जायेगा।

Chandra Chhath Vrat Ki Pujan Vidhi
चन्द्र छठ व्रत की पूजन विधि

1. चन्द्र छठ व्रत (Chandra Chhath) का पूजन संध्या के समय किया जाता हैं।

2. शाम के समय स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

3. पूजा स्थान पर चौकी रखें। फिर उस पर जल से भरें कलश को स्थापित करें। एक गिलास लें और उसमें गेहूँ भरकर उसे भी चौकी पर रखें।

4. फिर उस कलश पर रोली के छींटे लगाकर सात टीके बनायें।

5. गेहूँ के गिलास पर सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा रखें।

6. फिर चंद्र छठ (Chandra Chhath) की कथा पढ़ें या सुनें। कथा सुनते समय अपने हाथ में सात गेहूँ के दाने रखें।

7. कथा सुनने के बाद चंद्रमा को अर्ध्य दें। अर्ध्य देने के बाद पूजा में रखे गेहूँ और दक्षिणा के पैसे किसी ब्राह्मण को दें।

8. इसके बाद कन्या अपना व्रत खोल सकती है यानि भोजन ग्रहण कर सकती हैं।

Chand Chhath Ki Katha
चंद्र छठ की कथा

प्राचीन समय की बात है एक नगर में एक धनवान सेठ और उसकी पत्नी रहते थें। उनके एक पुत्र भी था। सेठ की पत्नी की धर्म-कर्म में रूचि नही थी। वो पुरानी परम्पराओं को भी नही मानती थी। हिंदु परम्परा के अनुसार मासिक धर्म के समय पर स्त्री को रसोई का कार्य नही करना चाहिये। परंतु सेठ की पत्नी इन सब बातों को नही मानती थी। और बिना ऋतु स्नान कियें ही रसोई के कार्य करना, बर्तन आदि चीजें छूना जैसे काम करती थी।

उसके इस दुराचरण का उसके पति के धर्म-कर्म पर भी बुरा प्रभाव पड़ा और मृत्यु के बाद उन दोनों को बुरी योनियों में जन्म लेना पड़ा। सेठ को मरने के बाद बैल की योनि मिली, तो उधर सेठ की पत्नी को कुतिया की योनि में जन्म लेना पड़ा। इन योनियों में भी वो दोनों अपने बेटे के घर पर ही थे। और उसके घर की रखवाली करते थे। एक दिन सेठ का श्राद्ध था, उसके बेटे ने अपनी स्त्री से कहा कि आज पिताजी का श्राद्ध है। घर पर मैंने पण्ड़ित जी को न्यौता दिया है वो भोजन के लिये आयेंगे। यह कहकर वो काम पर चला गया।

सेठ की बहू ने श्राद्ध के लिये तरह तरह के पकवान और खीर बनाई। सेठ की बहू काम में व्यस्त थी और तभी एक साँप आया और खीर के बर्तन में खीर चांटने लगा। उस पर बहू का ध्यान नही गया परंतु उस कुतिया ने साँप को खीर में मुँह लगाते देख लिया। उसने सोचा की बहू ने इस साँप को नही देखा और यही खीर वो पण्ड़ित जी को खिलायेगी तो जहर से उनकी मृत्यु हो जायेगी। यही सोच कर उस कुतिया ने उस खीर के बर्तन को गिरा दिया। यह देखकर बहू को बहुत क्रोध आया और उसने उस कुतिया के लकड़ी फेंक कर मारी, जो उस कुतिया की पीठ पर जाकर लगी। कुतिया के बहुत तेज चोट आयी। बहू ने फिर दूसरी खीर बनायी।

बहू और बेटे ने बड़े प्रेम से पण्ड़ित जी को भोजन कराया और दक्षिणा देकर विदा किया। उस दिन उस बहू ने उस कुतिया को खाने के लिये कुछ भी नही दिया। रात्रि में कुतिया, बैल के पास गई और उससे बोली आज आपका श्राद्ध था। आपके नाम पर पण्ड़ित को खूब स्वादिष्ट भोजन कराया गया। आपको भी अच्छे से भोजन मिला होगा। किंतु मुझे तो आज भोजन के बदले मार खानी पड़ी। बैल ने उससे कारण पूछा तो कुतिया ने उसे सारी कहानी सुनाई। तब बैल बोला की मेरा भी आज का दिन अच्छा नही रहा, आज और दिनों से काम ज्यादा था। मुझे भी भरपेट भोजन नही मिला।

जब कुतिया और बैल बातें कर रहे थे, तो वो बेटा और बहू सुन रहे थे। उनको उनकी बातें सुनकर बहुत अचम्भा हुआ और साथ ही दुख भी हुआ। फिर अपने मन की संतुष्टि के लिये उस बेटे ने एक पहुँचे हुये पण्ड़ित से जाकर पूछा कि मेरे माता पिता मृत्यु के उपरांत अब किस योनि में हैं? तब उस पण्ड़ित ने बताया कि तुम्हारे पिता बैल और माता कुतिया की योनि में दुख भोग रहे हैं। वो अभी तुम्हारे ही घर में है। उसको यह जानकर बहुत दुख हुआ।

उसने उस पण्ड़ित से उसका कारण पूछा तो पण्ड़ित ने बताया कि तुम्हारी माता धर्म-कर्म में विश्वास नही करती थी। वो धार्मिक रीति-रिवाजों का भी अनुसरण नही करती थी। वो ऋतुकाल में भी रसोई के काम करती थी। जबकि मासिक धर्म के समय यह वर्जित होता हैं। उनको उसी पाप का दण्ड़ मिल रहा है। तब उस बेटे ने अपने माता पिता की उस योनि से मुक्ति का उपाय पूछा। तब पण्ड़ित ने उसे भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की षष्ठी अर्थात चंद्र छठ के व्रत के विषय में बताया और कहा जब पूजन के बाद कुंवारी कन्या चंद्रमा को अर्ध्य दें, तब वो दोनो अर्ध्य के जल के नीचे खड़े हो जायें, जिससे वो जल उन पर पड़े। इससे उनको इस योनि से मुक्ति मिल जायेगी।

घर पहुँच कर उस बेटे ने बैल और कुतिया को बहुत प्रेम किया और उनको प्रेम से भोजन कराया। फिर जब चंद्र छठ (Chandra Chhath) आयी तब उसने कुंवारी कन्या से चंद्र षष्ठी का व्रत और पूजन कराया। अर्ध्य के समय उस कुतिया और बैल को अर्ध्य के जल के नीचे खड़ा करा दिया। उन पर अर्ध्य का जल पड़ने से उनकी मुक्ति हो गई।

इस प्रकार चंद्र छठ (Chand Chhath) का व्रत और पूजन करने से मनुष्य के पूर्व जन्म के पापों का भी निवारण हो जाता हैं।