Kamada Ekadashi 2024 – कामदा एकादशी व्रत कब और कैसे किया जाता है? जानियें इसका महत्व

Kamada Ekadashi Vrat Ki Vidhi vrat katha aur Mahatva

Kamada Ekadashi Vrat
कामदा एकादशी व्रत

चैत्र मास की शुक्लपक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी (Kamada Ekadashi) के नाम से पुकारा जाता हैं। भक्तों के मनोरथों को पूर्ण करने वाला है कामदा एकादशी का व्रत एवं पूजन। शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी का विधि-विधान के साथ व्रत एवं पूजन करने से साधक की सभी मनोकामनायें सिद्ध होती है और उसके सभी पापों का नाश हो जाता हैं। कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा किये जाने का विधान है।

Kamada Ekadashi Vrat Kab Hai?
कामदा एकादशी व्रत कब है?

इस वर्ष कामदा एकादशी (Kamada Ekadashi) का व्रत 19 अप्रैल, 2024 शुक्रवार के दिन किया जायेगा।

Kamada Ekadashi Vrat Ka Mahatva
कामदा एकादशी व्रत का महत्व

हिंदु धर्म में एकादशी व्रत (Ekadashi Vrat) का विशेष महत्व हैं। शास्त्रों में एकादशी व्रत को बहुत ही प्रभावशाली और उत्तम बताया गया हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार स्वयं भगवान श्रीकृ्ष्ण ने अर्जुन को एकादशी व्रत के विषय में बताया था। भगवान श्रीकृष्ण ने कामदा एकादशी के व्रत के महत्व के विषय में अर्जुन से कहा था कि कामदा एकादशी का व्रत को करने से साधक को सहस्त्रों यज्ञों के अनुष्ठान करने और हजारों गायों के दान करने के समान पुण्य प्राप्त होता है। जो भी मनुष्य इस कामदा एकादशी (Kamada Ekadashi) का व्रत पूर्ण श्रद्धा भक्ति और विधि-विधान से करता है-

  • उसके समस्त पापों का शमन हो जाता हैं।
  • मरणोपरांत उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। अर्थात वो वैकुण्ठ धाम को चला जाता है।
  • साधक के समस्त मनोरथ सिद्ध होते हैं।
  • सौभाग्यवती स्त्रियों का सौभाग्य अखण्ड़ रहता है।
  • पति-पत्नी के रिश्तों में मधुरता आती और पारिवारिक कलह से मुक्ति मिलती है।
  • धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
  • परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
  • मनुष्य के कष्टों का नाश होता हैं और वो दुखों से मुक्त हो जाता है।
  • इस व्रत को करने से जातक को प्रेत व राक्षस जैसी दुष्ट योनियों से मुक्ति मिलती है।

Ekadashi Vrat Aur Puja Ki Vidhi
एकादशी व्रत एवं पूजा की विधि

कामदा एकादशी (Kamada Ekadashi) के व्रत में भगवान विष्णु की पूजा किये जाने का विधान हैं। इस उत्तम व्रत की विधि इस प्रकार से है।

  • चैत्र मास की कामदा एकादशी (Kamada Ekadashi) का व्रत एक दिन पूर्व यानी दशमी तिथि की रात से ही आरम्भ हो जाता हैं। दशमी की रात से ही मनुष्य को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये और संयमित आचरण करना चाहिये।
  • कामदा एकादशी (Kamada Ekadashi) के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूजास्थान पर भगवान का ध्यान करके कामदा एकादशी के व्रत का संकल्पे लें।
  • पूजास्थान पर एक वेदी का निर्माण करें और उस पर उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा रखें। इस व्रत की पूजा में सप्त धान की वेदी या सप्त धान से घट स्थापना की जाती हैं।
  • फिर एक कलश में जल भरकर वेदी पर रखें। उस कलश में आम या अशोक के वृक्ष के 5 पत्ते लगायें।
  • तत्पश्चात्‌ वेदी पर भगवान विष्णुध की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। साथ ही भगवान गणेश की प्रतिमा भी स्थापित करें।
  • धूप-दीप जलाकर सर्वप्रथम भगवान गणेश की पूजा करें। उनके सिंदूर लगायें, रोली-चावल से तिलक करें, फल-फूल व दूर्वा चढ़ायें। जनेऊ चढ़ाये और भोग लगायें।
  • तत्पश्चात्‌ भगवान विष्णुर की पूजा करें। उनको पंचामृत से अभिषेक करायें, रोली-चावल से तिलक करें, चंदन लगायें, पीले रंग के फल-फूल अर्पित करें, तुलसी दल चढ़ाये और भोग लगायें।
  • विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
  • इसके बाद कामदा एकादशी व्रत की कथा पढ़ें या सुनें।
  • इसके बाद धूप-दीप से भगवान विष्णुज की आरती करें।
  • संध्या पूजन के समय भगवान विष्णु की आरती करने के पश्चात फलाहार ग्रहण करें।
  • इस व्रत में अन्न का सेवन नही करें। सिर्फ फलाहार करें।
  • व्रत की रात को जागरण अवश्य करें। इस व्रत के दिन दुर्व्यसनों से दूर रहे और सात्विक जीवन जीयें।
  • व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मण को भोजन करवायें और यथाशक्ति दान-दक्षिणा दे कर संतुष्ट करें।
  • इसके बाद व्रत का पारण करे और स्वयं भोजन करें।

Ekadashi Vrat Ke Niyam
एकादशी व्रत के नियम

  1. इस व्रत के दिन सभी व्यसनों से दूर रहें। इस व्रत में जुआ खेलना, मदिरा पीना, आदि निषेध है।
  2. इस व्रत में रात्रि जागरण अवश्य करें और रातभर भगवान का भजन-कीर्तन करें।
  3. एकादशी व्रत (Ekadashi Vrat) करने वाले को झूठ नही बोलना चाहिये, किसी पराई वस्तु को नही लेना चाहिये, चोरी नहीं करनी चाहिए, परनिन्दा से बचना चाहिये।
  4. संयमित आचरण करना चाहिये और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये।
  5. किसी को कटु शब्द नही बोलने चाहिये और क्रोध नही करना चाहिये।
  6. व्रत करने वाली स्त्री को सिर से स्नान नही करना चाहिये।

Kamada Ekadashi Vrat Katha
कामदा एकादशी व्रत की कथा

अति प्राचीन काल में एक पुण्डरीक नामका राजा था। वो नागलोक पर राज्य करता था। वह एक कलाप्रेमी व विलासी राजा था। उसकी सभा में बहुत से गंधर्व, अप्सराएँ, किन्नर आदि नर्तन व गायन प्रस्तुत किया करते थे।

राजा पुण्डरीक की सभा में ललित और ललिता नाम का गंधर्व जोडा था। गंधर्व ललित नर्तन व गायन में प्रवीण था। एक समय राजा पुण्डरीक की सभा में विशाल नृत्य और गीत का आयोजन किया गया। उस सभा में दूर-दूर से राजा-महाराजा पधारें। राजा पुण्डरीक ने गंधर्व ललित को अपना नृत्य प्रस्तुत करने के लिये कहा। ललित ने अपनी पूर्ण क्षमता से नृत्य और गीत प्रस्तुत किया लेकिन सभा में उपस्थित अपनी पत्नी की ओर ध्यान भटक जाने से उसका नृत्य और गीत बेताला हो गया। भरी सभा में ऐसी धृष्टता देखकर राजा पुण्डरीक क्रोधित हो गये। उन्होने इसे अपना मानकर गंधर्व ललित हो राक्षस हो जाने का श्राप दे दिया। राजा पुण्डरीक के श्राप के कारण ललित राक्षस योनि में वर्षों तक विभिन्न लोकों में भटकता रहा। उसकी पत्नी ललिता भी अपने पत्नी धर्म का पालन करते हुये उसके साथ-साथ भटकती रही।

श्राप से दुखित होकर स्थान-स्थान भटकते हुये वो दोनों विन्ध्याचल पर्वत के शिखर पर बने ऋषि श्रृंगी के आश्रम में जा पहुंचे। उन दोनों ने ऋषि श्रृंगी को अपनी करुण कथा सुनाई, जिसको सुनकर ऋषि श्रृंगी को उनपर दया आ गई। तब ऋषि श्रृंगी ने उन दोनों को चैत्र माह की शुक्लपक्ष की एकादशी जिसे कामदा एकादशी (Kamada Ekadashi) के नाम से जाना जाता है उसका व्रत करने का परामर्श दिया। ऋषि श्रृंगी ने उन्हे व्रत का सारा विधान बताया और कहा कि इस व्रत को करने से तुम इस नीच योनि से मुक्त हो कर पुन: अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त कर लोगे। इस व्रत को करने से तुम्हारी सभी मनोकामनायें पूर्ण होगी। दोनो श्रापित पति-पत्नी ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ विधि-विधान से कामदा एकादशी का व्रत एवं पूजन किया। इस व्रत के प्रभाव से उन दोनों के सभी पाप नष्ट हो गये, गंधर्व ललित को राक्षस योनि से मुक्ति मिल गई और वो दोनों दिव्य स्वरूप पाकर स्वर्गलोक को चले गये।