Lalita Chhath 2023: जानियें ललिता जी का जन्मोत्सव कब है? साथ ही पढ़ियेंं ललिता जी का माहात्म्य…

Lalita Chhath

कुछ स्थानों पर ललिता जी का जन्मोत्सव ललिता छ्ठ (Lalita Chhath) के दिन मनाया जाता है तो कुछ स्थानों पर सप्तमी के दिन जिसे ललिता सप्तमी (Lalita Saptami) कहा जाता है। ललिता जी की आराधना से बनेंगे सौभाग्यशाली और मिलेगी दैवी कृपा। जानियें ललिता जी का जन्मोत्सव कब है? साथ ही पढ़ियेंं ललिता जी का माहात्म्य…

Lalita chhath (Lalita Saptami)
ललिता छठ (ललिता सप्तमी)

भाद्रपद माह (भादों) की शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि के दिन ललिता सप्तमी (Lalita Saptami) का पर्व मनाया जाता हैं। विभिन्न मंदिरों में इस दिन ललिता जी का जन्मोत्सव मनाया जाता हैं।

बहुत से स्थानों पर एक दिन पूर्व यानि भाद्रपद माह (भादों) की शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि के दिन ललिता छठ (Lalita Chhath) पर श्री ललिता जी का जन्मोत्सव मनाया जाता हैं।

Lalita chhath (Lalita Saptami) Kab Hai?
ललिता छठ (ललिता सप्तमी) कब हैं?

इस वर्ष ललिता छठ (Lalita Chhath) का उत्सव 21 सितम्बर, 2023 गुरूवार के दिन मनाया जायेगा। और जो लोग ललिता सप्तमी मनाते हैं, वो ललिता सप्तमी (Lalita Saptami) का पर्व 22 सितम्बर, 2023 शुक्रवार के दिन मनायेंगे।

Lalita Ji Ka Mahatamya
ललिता जी का महात्म्य

हिंदु धर्मग्रंथों के अनुसार ललिता जी श्री राधारानी और श्री कृष्ण की प्रिय सखी थी। ब्रज भूमि और राधा-कृष्ण के मन्दिरों में उनका जन्मोत्सव बहुत धूम-धाम से मनाया जाता हैं। यह दिन ललिता जी को समर्पित हैं।

ललिता जी का जन्मोत्सव राधाष्टमी से पहले आता हैं। राधा जी की को अपनी सखियों में ललिता जी अतिप्रिय थी। पौराणिक ग्रंथो के अनुसार ललिता जी की भक्ति के बिना राधारानी को प्राप्त नही किया जा सकता। ललिता जी राधा जी को बहुत प्रिय थी। ललिता जी का पूजन एवं दर्शन बहुत ही शुभ माना जाता हैं।

ललिता जी को भी राधा जी और कुष्ण जी से बहुत अनुराग था। ललिता जी बहुत ही भी बुद्धिमान थी।
राधा जी की अष्टसखियाँ देवी ललिता जी के मार्गदर्शन में काम करती थी। सारी सखियाँ कृष्ण जी और राधा जी की सेवा के लिए ललिता जी के प्रति बहुत भक्ति और सम्मान रखती थी।

ऐसी मान्यता है कि ललिता जी का जन्म करेहला गाँव में हुआ था। ललिता जी को श्री कृष्ण की आठ गोपियों में से एक माना जाता है जो राधारानी और भगवान कृष्ण की सबसे बड़ी भक्त थी। उन अष्टसखियों के नाम थे – ललिता, विशाखा, तुंगविद्या, चित्रलेखा, इंदुलेखा, चंपकलता, सुदेवी और रंगादेवी।
इन आठ गोपियों में ललिता जी सबसे आगे थी। यह सभी अष्टसखियाँ हमारे सबके आराध्य श्री कृष्ण और श्री राधा के आध्यात्मिक प्रेम का प्रतीक हैं।

ब्रज भूमि में बहुत से मंदिर हैं, जहां भगवान कृष्ण और राधारानी के साथ ललिता और विशाखा दो साखियों विराजमान हैं। राजस्थान के जयपुर शहर में स्थित लाड़ली जी के मंदिर में राधा-कृष्ण अपनी अष्ट सखियों के साथ विराजमान हैं। यहाँ हर वर्ष ललिता छठ (Lalita Chhath) पर ललिता जी का जन्मोत्सव मनाया जाता हैं। और राधाष्टमी पर श्री राधारानी का जन्मोत्सव धूम-धाम से मनाया जाता हैं। यह मंदिर ललित सम्प्रदाय का हैं।

उत्तर प्रदेश में वृंदावन में प्रसिद्ध पवित्र ललिता कुंड स्थित है, इसके विषय में यह मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने से भक्तों को मोक्ष प्राप्त होता हैं। ललिता जी की भक्ति करने से मनुष्य को राधा जी कृपा प्राप्त होती हैं। ललिता जी की आराधना करने से मनुष्य सौभाग्यशाली होता है और उसका सदा ही शुभ होता हैं। ललिता जी, राधा और कृष्ण के लिए दिव्य प्रेम और भक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। जो उनके प्रति समर्पण और भक्ति का भाव रखता है, वो उसके मार्ग की सभी बाधाओं को समाप्त कर देती हैं। ललिता सप्तमी (Lalita Saptami)/ ललिता छठ पर ललिता जी, भगवान कृष्ण और राधारानी का पूजन करना अत्यधिक शुभफल प्रदान करने वाला हैं।

बहुत से भक्त एक ललिता सप्तमी व्रत (Lalita Saptami Vrat) भी मानते हैं, जिसे सन्तान सप्तमी व्रत (Santan Saptami Vrat) भी कहा जाता हैं। इस व्रत के विषय में भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। यह व्रत महिलायें अपने सुख-सौभाग्य, बच्चों के लंबे जीवन और उनके उत्तम स्वास्थ्य के लिए करती हैं।