जानियें भक्तों पर कृपा करने वाली और दुष्टों का नाश करने वाली माँ कालरात्रि का स्वरूप (Maa Kaalratri Ka Swaroop) कैसा है? कब और कैसे करें माँ कालरात्रि की उपासना (Maa Kaalratri Ki Upasana)। साथ ही पढ़ियें माँ कालरात्रि की पौराणिक कथा (Maa Kaalratri Ki Katha), माँ कालरात्रि के पूजन का महत्व (Significance of Maa Kaalratri Pujan), और माँ कालरात्रि के मंत्र (Maa Kaalratri Mantra), स्तोत्र आदि…
Navratri Ke Saatve Din Kare Maa Kaalratri Ki Upasana
नवरात्रि के सातवें दिन करें माँ कालरात्रि की उपासना
नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि (Maa Kaalratri) की पूजा किये जाने का विधान हैं। आदिशक्ति देवी दुर्गा का सातवाँ स्वरूप है माँ कालरात्रि। हिंदु धर्मग्रंथों में माँ कालरात्रि को देवी पार्वती के समान ही माना जाता हैं। माँ कालरात्रि की उपासना करने से जातक सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता हैं। माँ कालरात्रि विषम परिस्थितियों का नाश करने वाली हैं। माँ कालरात्रि (Maa Kaalratri) को साहस और वीरता का प्रतीक माना जाता हैं। माता ने यह रूप दुष्टों का नाश करने के लिये धारण किया था।
माँ कालरात्रि के विभिन्न नाम: काली, महाकाली, भद्रकाली, चामुंडा, चंडी, भैरवी, दुर्गा, मृत्यु, रुद्राणी, रौद्री और धुमोरना।
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Maa Kaalratri Ka Swaroop
माँ कालरात्रि का स्वरूप
- माता कालरात्रि (Mata Kaalratri) के शरीर का रंग बिल्कुल रात्रि के समान काला हैं। उनके बाल बिखरे हुये हैं।
- देवी कालरात्रि (Devi Kaalratri) ने गले में विद्युत की माला धारण की हैं।
- माँ कालरात्रि (Maa Kaalratri) के तीन आँखें हैं।
- माँ कालरात्रि की सवारी गदर्भ (गधा) हैं।
- देवी कालरात्रि ने चतुर्भुज रूप धारण किया हैं। जिसमें देवी के चार हाथ है, दाहिनी तरह का एक हाथ अभय मुद्रा में है, जिससे वो अपने भक्तों को निर्भय करती हैं। और दाहिनी तरह का दूसरा हाथ वर मुद्रा धारण किया है, जिससे वो अपने भक्तों को मनोवांछित वरदान प्रदान करती हैं। माँ कालरात्रि ने बायी ओर के एक हाथ वज्र धारण किया हुआ है और दूसरे में गंड़ासा धारण किया हुआ हैं।
Maa Kaalratri Ki Katha
माँ कालरात्रि की पौराणिक कथा
पौराणिक कथानुसार शुंभ और निशुंभ नाम के दो दैत्यों ने अपनी शक्ति के बल पर स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया और देवताओं को वहाँ से अपदस्थ कर दिया। शुम्भ-निशुम्भ के अत्याचार बढ़ते जा रहे थे। तब सभी देवता मिलकर भगवान शिव और माता पार्वती के पास गये और उनसे सहायता माँगी। तब भगवान शिव के कहने पर माता पार्वती ने देवताओं की सहायता करने और दानवों का संहार करने के लिये दुर्गा का रूप धारण किया।
माँ दुर्गा से युद्ध करने के लिये शुंभ-निशुम्भ ने चण्ड़-मुण्ड़ को युद्ध के लिये भेजा, तो माँ ने चण्ड़ी रूप लेकर उन्हे मृत्यु के घाट उतार दिया। इसलिये माँ को चामुण्ड़ा के नाम से भी पुकारा जाता हैं।
तब रक्तबीज युद्ध करने के लिये आया। रक्तबीज के रक्त की बूंद के धरती पर गिरते ही एक और रक्तबीज जन्म ले लेता था। तब उसके वध के लिये माँ दुर्गा ने कालरात्रि को प्रकट किया। माँ कालरात्रि ने रक्तबीज के रक्त की एक बूंद को भी धरती पर गिरने नही दिया और उसके रक्त को पीकर उसका अंत किया।
अंत में माता ने शुम्भ-निशुम्भ को उनकी सेना के साथ यमलोक भेज दिया। सभी राक्षसों का अंत करके देवी ने देवताओं को उनका लोक और सम्मान पुन: वापस दिलाया।
Maa Kaalratri Ke Pujan Ka Mahatva
माँ कालरात्रि के पूजन का महत्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार माँ कालरात्रि की उपासना (Maa Kaalratri Ki Upasana) से जातक को शनि ग्रह की अनुकूलता प्राप्त होती हैं।
- माँ कालरात्रि (Maa Kaalratri) अपने भक्तों पर हमेशा कृपा करती हैं और दुष्टों का नाश करती हैं।
- माँ कालरात्रि की उपासना करने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती हैं।
- माँ कालरात्रि भय का नाश करने वाली हैं। इनके स्मरण मात्र से दुष्ट शक्तियाँ भयभीत हो जाती हैं।
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Maa Kaalratri Ke Mantra
माँ कालरात्रि के मंत्र
ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥
माँ कालरात्रि प्रार्थना मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
Kaalratri Stuti
कालरात्रि स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
Kaalratri Dhyaan Mantra
कालरात्रि ध्यान मंत्र
करालवन्दना घोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिम् करालिंका दिव्याम् विद्युतमाला विभूषिताम्॥
दिव्यम् लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयम् वरदाम् चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम्॥
महामेघ प्रभाम् श्यामाम् तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥
सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।
एवम् सचियन्तयेत् कालरात्रिम् सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥
Kaalratri Stotra
कालरात्रि स्त्रोत
हीं कालरात्रि श्रीं कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं ह्रीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥
Kaalratri Kavacha Mantra
कालरात्रि कवच मंत्र
ऊँ क्लीं मे हृदयम् पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
ललाटे सततम् पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥
रसनाम् पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशङ्करभामिनी॥
वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि।
तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी॥
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