माँ कूष्माण्ड़ा (Maa Kushmanda) की भक्ति से आयु, यश और बल में वृद्धि होती हैं। जानियें कब और कैसे करें माँ कुष्माण्ड़ा की उपासना (Maa Kushmanda Ki Upasana)? और कैसा है माता कूष्माण्डा का स्वरूप (Maa Kushmanda Ka Swaroop)? इसके साथ ही पढ़ियें माँ कूष्माण्डा की पौराणिक कथा (Devi Kushmanda Ki Katha) , माँ कूष्माण्ड़ा के मंत्र (Maa Kushmanda Ke Mantra), स्तुति और स्तोत्र…
Navratri Mein kare Maa Kushmanda Ki Upasana
नवरात्रि के चौथे दिन करे माँ कूष्माण्डा की उपासना
नवरात्रि के चौथे दिन देवी के कूष्मांडा (Devi Kushmanda) स्वरूप की पूजा करने का विधान हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माँ कूष्मांडा को ही ब्रह्माण्ड़ की उत्पत्ति का कारक माना जाता हैं। माँ कूष्मांडा देवी का चतुर्थ स्वरूप हैं, इन्हे ही आदिशक्ति भी कहा जाता हैं। माँ कूष्माण्ड़ा (Maa Kushmanda) अपने भक्तों पर सदा ही कृपा करती हैं, इनकी पूजा करने से साधक को धन-वैभव और सुख-शांति की प्राप्ति होती हैं।
पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ पवित्र भाव और स्थिर मन से माँ कूष्माण्ड़ा की उपासना करने से भक्तों के सभी कष्टों का निवारण हो जाता है। नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्माण्ड़ा की उपासना करें। माँ कूष्माण्ड़ा की उपासना (Maa Kushmanda Ki Upasana) से साधक के रोग-दोष एवं शोक नष्ट हो जाते हैं। आयु, यश और बल में वृद्धि होती हैं। थोड़े प्रयास से ही देवी कूष्माण्ड़ा प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीष प्रदान करती हैं।
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Maa Kushmanda Ka Swaroop
माँ कूष्माण्डा का स्वरूप
- माँ कूष्माण्डा (Maa Kushmanda) सूर्य के समान तेज वाली हैं।
- सूर्यमंडल के अंदर के लोक में इनका वास हैं।
- माँ कूष्माण्डा (Maa Kushmanda) अष्टभुजाधारी हैं, माँ के हाथों में चक्र, गदा, धनुष, तीर, अमृत कलश, कमण्डलु और कमल शोभा पाते हैं।
- शेर माँ कूष्माण्डा का वाहन हैं।
Devi Kushmanda Ki Katha
देवी कूष्माण्डा की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार जब सभी दिशाओं में सिर्फ अंधकार था, ब्रह्माण्ड़ का भी अस्तित्व नही था, तब माँ कूष्माण्डा ने ही अपनी हल्की सी मुस्कुराहट से सृष्टि की रचना की थी। माँ कूष्माण्डा (Maa Kushmanda) की कांति सूर्य के समान हैं। ब्रह्माण्ड़ की रचना करने के बाद माँ कूष्माण्डा ने ही सृष्टि के पालन के लिये ब्रह्मा, विष्णु, महेश, महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती (त्रिदेव और त्रिदेवी) को उंपन्न किया। पूरी सृष्टि में माँ कूष्माण्डा (Maa Kushmanda) का तेज फैला हुआ हैं।
Devi Kushmanda Ke Pujan Ka Jyotishiya Mahatva
देवी कूष्माण्डा के पूजन का ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार देवी कूष्माण्डा (Devi Kushmanda) की पूजा करने से साधक को सूर्य ग्रह की अनुकूलता प्राप्त होती हैं।
Maa Kushmanda Ke Mantra
माँ कूष्माण्ड़ा के मंत्र
मंत्र
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
माँ कूष्माण्ड़ा का प्रार्थना मंत्र
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
माँ कूष्माण्ड़ा की स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
माँ कूष्माण्ड़ा का ध्यान मंत्र
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥
भास्वर भानु निभाम् अनाहत स्थिताम् चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पद्म, सुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कोमलाङ्गी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
माँ कूष्माण्ड़ा स्त्रोत
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहि दुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
माँ कूष्माण्ड़ा कवच मंत्र
हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिग्विदिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजम् सर्वदावतु॥
माँ कूष्माण्ड़ा के विशिष्ट मंत्र
शत्रु से मुक्ति के लिये इस मंत्र का जाप करते हुये घी, शहद, फूल, फल, पत्रादि से हवन करें।
मंत्र
ॐ ऐं गर्ज गर्ज क्षणं मूढ मधु यावत् पिबाम्यहम्।
मया त्वयि हतेऽत्रैव गर्जिष्यन्त्याशु देवताः ऐं ॐ।।
या
ॐ ऐं ततो हाहाकृतं ततो हाहाकृतं सर्वं दैत्यसैन्यं ननाश तत्।
प्रहर्षं च परं जग्मुः सकला देवतागणाः ऐं ॐ।।
शक्तिशाली शत्रु को पराजित करने के लिये इस मंत्र का जाप करते हुये राई, घी तथा दूर्वा से हवन करें
ॐ ऐं क्षणेन तन्महासैन्यमसुराणां तथाऽम्बिका।
निन्ये क्षयं यथा वह्निस्तृणदारु महाचयम् ऐं ॐ।।
जीवन की सभी समस्याओं के नाश के लिये प्रतिदिन इस मंत्र का 108 बार जाप करें।
ॐ ऐं से नम: सर्वाप्रशमनं त्रैलोक्यस्या खिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यस्मद् वैरिविनाशनम् नमो सें ऐं ॐ।।
मान-सम्मान, प्रतिष्ठा और विजय प्राप्ति के लिये इस मंत्र का जाप करते हुये मालकांगनी के फूल, घी, भोजपत्र से हवन करें।
ॐ ऐं विद्यासु शास्त्रेषु विवेकदीपेष्वाद्येषु
वाक्येषु च का त्वदन्या।
ममत्वगर्तेऽतिमहान्धकारे,
विभ्रामयत्येतदतीव विश्वम् ऐं ॐ।
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