Papankusha Ekadashi 2023: पढ़ियें पापांकुशा एकादशी व्रत के नियम, विधि एवं कथा…

Papankusha Ekadashi

समस्त पापों का प्रायश्चित करने व सद्गति पाने के लिये पापांकुशा एकादशी का व्रत (Papankusha Ekadashi) करें। जानियें पापांकुशा एकादशी व्रत कब और कैसे करें? इसके साथ ही पढ़ियेंं पापांकुशा एकादशी का महात्म्य (Significance Of Papankusha Ekadashi), व्रत के नियम और पापांकुशा एकादशी व्रत कथा (Papankusha Ekadashi Vrat Katha)

Papankusha Ekadashi Vrat
पापांकुशा एकादशी व्रत

आश्विन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi) के नाम से जाना जाता हैं। जैसा कि इस एकादशी के नाम से ही प्रदर्शित होता है, पापों पर अंकुश लगाने वाली। पापांकुशा एकादशी को इसलिये भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योकि यह मनुष्य के पापों को ऐसे नियंत्रित करती है जैसे हाथी को महावत एक अंकुश से वश में कर लेता हैं। इस एकादशी का व्रत एवं पूजन करने से साधक के सभी पाप नष्ट हो जाते है और उसका हृदय निर्मल हो जाता हैं। पापांकुशा एकादशी पर भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा किये जाने का विधान हैं।

पापांकुशा एकादशी कब हैं?
Papankusha Ekadashi Kab Hai?

इस वर्ष पापांकुशा एकादशी का व्रत (Papankusha Ekadashi Vrat) एवं पूजन 25 अक्टूबर, 2023 बुधवार के दिन किया जायेगा।

Ekadashi Vrat Ka Mahatva
एकादशी का महात्म्य (महत्व)

हिंदु मान्यता के अनुसार एकादशी व्रत (Ekadashi Vrat) को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता हैं। पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi) की सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि इसका व्रत एवं पूजन करने से साधक के साथ उसके परिवारजनों को भी इसका लाभ प्राप्त होता है अर्थात इसका पुण्य मिलता हैं।

  • पापांकुशा एकादशी का व्रत एवं पूजन श्रद्धा-भक्ति और सच्चे हृदय से करने से जातक का मन शुद्ध व निर्मल होता हैं।
  • मनुष्य अपने पापों से मुक्त हो जाता है। उसके सभी पाप कर्मों का प्रायश्चित हो जाता हैं।
  • पापांकुशा एकादशी व्रत के प्रभाव से साधक के साथ-साथ ही उसके माता-पिता और उसके अन्य साथियों को भी उनके पापों से मुक्ति मिल जाती हैं।
  • सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं।
  • मनुष्य संसार के सभी सुखों का भोग करके मृत्यु के उपरांत स्वर्ग लोक को चला जाता हैं।

Papankusha Ekadashi Vrat Aur Puja Vidhi
पापांकुशा एकादशी व्रत एवं पूजन विधि

पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi) पर भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा की जाती हैं। अन्य एकादशी की भांति पापांकुशा एकादशी का व्रत भी एक दिन पूर्व यानी दशमी तिथि की रात से ही आरम्भ हो जाता है। दशमी की रात से ही मनुष्य को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये।

  • पापांकुशा एकादशी के दिन प्रात: काल स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत होकर व्रती को व्रत का संकल्प लेना चाहिये। व्रत करने वाली यदि स्त्री हो तो वो इस बात का ध्यान रखें कि सिर से स्नान न करें।
  • संकल्प लेने के बाद कलश की स्थापना करके उस पर भगवान विष्णु के स्वरूप भगवान पद्मनाभ की प्रतिमा रखें। अगर उनकी प्रतिमा ना होतो उनका चित्र भी रख सकते हैं। और यदि वो भी ना हो तो भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर रखकर फिर उसकी पूजा करें।
  • प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाकर, चंदन से तिलक करें व नेवैद्य अर्पित करें। फल-फूल अर्पित करें, और धूप, दीप से आरती करें। यदि आप स्वंय ये पूजा नही कर सकते तो किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से भी पूजन करवा सकते हैं।
  • विष्णु सहस्त्रनाम स्त्रोत्र का पाठ करें।
  • इसके बाद पापांकुशा एकादशी व्रत का महात्म्य और कथा (Papankusha Ekadashi Vrat Katha) पढ़े या सुनें।
  • दिनभर उपवास करें। संध्या के समय भगवान की पूजा और आरती के बाद फलाहार करें।
  • अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मण को भोजन करवायें और यथाशक्ति दान-दक्षिणा दे कर संतुष्ट करें।
  • फिर उसके बाद स्वयं भोजन करें।
  • व्रत की रात को जागरण अवश्य करें। इस व्रत के दिन दुर्व्यसनों से दूर रहे और सात्विक जीवन जीयें।

Ekadashi Vrat Ke Niyam
एकादशी व्रत के नियम

पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi) पर भूल कर भी यह काम ना करें।

  • इस दिन स्त्रियाँ सिर से स्नान न करें। यानि बाल न धोयें।
  • भोजन में चावल का सेवन न करें।
  • व्रत करने वाला इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  • मौन रखें अन्यथा कम बोलें, बिल्कुल भी क्रोध ना करें।
  • अपने आचरण पर नियंत्रण रखें।

Papankusha Ekadashi Vrat Katha
पापांकुशा एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में विन्ध्याचल पर्वत क्षेत्र में एक बहेलिया निवास करता था। उसका नाम था क्रोधन। उसने अपने जीवन में कोई भी अच्छा कर्म नही किया था। उसने अपने पूरे जीवनकाल में सदैव जीवहत्या, हिंसा, चोरी, लूट, झूठ बोलना, मदिरापान करना, वेश्यागमन आदि जैसे पापकर्म ही कियें थे।

जब क्रोधन की मृत्यु का समय आया तो यमराज ने यमदूत को उसे लाने का आदेश दिया। यमदूत ने क्रोधन को उसकी मृत्यु से पूर्व ही इस बात से अवगत करा दिया, कि अब उसकी मृत्यु का समय निकट हैं। यमराज ने उन्हे उसे लाने के लिये भेजा हैं। अपनी मृत्यु के विषय में जानकर उस बहेलिये क्रोधन को भय व्याप्त हो गया।

मृत्यु के भय से वो ऋषि अंगिरा के आश्रम में जा पहुँचा और उनके पैरों में गिर पड़ा और दुखी होकर उनसे विनती करने लगा। उसने ऋषि अंगिरा से कहा, “हे ऋषिवर! मेरी मृत्यु का समय निकट है और मैंने अपने जीवन में कोई भी पुण्य कर्म नही किया हैं। आप मेरी सहायता कीजिये जिससे मेरे कर्मों का प्रायश्चित हो सकें।

उस बहेलिये की बातें सुनकर ऋषि अंगिरा को उसपर दया आ गई। तब उन्होने उस बहेलिये क्रोधन को पापंकुशा एकादशी के व्रत के विषय में बताया। ऋषि अंगिरा ने उसे कहा, कि आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे पापांकुशा एकादशी के नाम से जाना जाता हैं, तुम उस दिन का उपवास करों और भगवान विष्णु का पूजन करों। पापांकुशा एकादशी का व्रत एवं पूजन करने से जातक के सभी पापों का नाश हो जाता हैं। ऐसा कहकर उन्होने उसे व्रत का विधान उसे बता दिया।

संयोगवश अगले दिन ही पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi) थी। उस बहेलिये क्रोधन ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ उस व्रत का पालन किया और उस व्रत के प्रभाव से बहेलिये क्रोधन के समस्त पाप नष्ट हो गये। भगवान विष्णु की कृपा से मृत्यु के उपरांत वो वैकुण्ठ धाम को चला गया।

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