पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi) के व्रत का पालन करने से होता है भक्तों के सभी पापों का शमन। जानियें पापमोचनी एकादशी व्रत कब है?, एकादशी व्रत का महत्व, व्रत के नियम, पूजा-विधि और साथ ही पढ़ियें पापमोचनी एकादशी व्रत की कथा…
Papmochani Ekadashi
पापमोचनी एकादशी
चैत्र मास की कृष्णपक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi) के नाम से पुकारा जाता हैं। भक्तों के पापों का मोचन करने वाली पापमोचनी एकादशी के नाम से ही विदित होता है कि इस एकादशी का विधि-विधान के साथ व्रत एवं पूजन करने से साधक के सभी पापों का नाश हो जाता हैं। पापमोचनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा किये जाने का विधान है।
Papmochani Ekadashi Kab Hai?
पापमोचनी एकादशी कब है?
इस वर्ष पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi) का व्रत 5 अप्रैल, 2024 शुक्रवार के दिन किया जायेगा।
Papmochani Ekadashi Ka Mahatva
पापमोचिनी एकादशी महत्व
हिंदु धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व हैं। शास्त्रों के अनुसार पापमोचिनी एकादशी (Papmochani Ekadashi) का व्रत बहुत ही प्रभावशाली और उत्तम माना जाता हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार स्वयं भगवान श्रीकृ्ष्ण ने अर्जुन को एकादशी व्रत के विषय में बताया था। भगवान श्रीकृष्ण ने पापमोचिनी एकादशी के व्रत के महत्व के विषय में अर्जुन से कहा था कि इस व्रत को करने से साधक को सहस्त्रों यज्ञों के अनुष्ठान करने के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। हजारों गायों का दान करने से जो पुण्य मिलता है उतना पुण्य जातक को एक पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने से ही प्राप्त हो जाता है। जो भी मनुष्य इस पापमोचिनी एकादशी का व्रत पूर्ण श्रद्धा भक्ति और विधि-विधान से करता है-
- उसके समस्त पापों का शमन हो जाता हैं।
- मरणोपरांत उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। अर्थात वो वैकुण्ठ धाम को चला जाता है।
- साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
- परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
- मनुष्य के कष्टों का नाश होता हैं और वो दुखों से मुक्त हो जाता है।
- इस व्रत को करने से जातक बड़े से बड़े महापाप से मुक्त हो जाता है। गुरुपत्नी गमन, ब्राह्मण की हत्या, सोने की चोरी और मदिरा पान जैसे महापापों से जातक मुक्त हो जाता है।
Papmochani Ekadashi Puja Vidhi
पापमोचिनी एकादशी पूजा विधि
पापमोचिनी एकादशी (Papmochani Ekadashi) के व्रत में भगवान विष्णु की पूजा किये जाने का विधान हैं। इस उत्तम व्रत की विधि इस प्रकार से है।
चैत्र मास की पापमोचिनी एकादशी का व्रत एक दिन पूर्व यानी दशमी तिथि की रात से ही आरम्भ हो जाता हैं। दशमी की रात से ही मनुष्य को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये और संयमित आचरण करना चाहिये।
- पापमोचिनी एकादशी (Papmochani Ekadashi) के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजास्थान पर भगवान का ध्यान करके पापमोचिनी एकादशी के व्रत का संकल्पे लें।
- पूजास्थान पर एक वेदी का निर्माण करें और उस पर उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा रखें। इस व्रत की पूजा में सप्त धान की वेदी या सप्त धान से घट स्थापना की जाती हैं।
- फिर एक कलश में जल भरकर वेदी पर रखें। उस कलश में आम या अशोक के वृक्ष के 5 पत्ते लगायें।
- तत्पश्चात् वेदी पर भगवान विष्णुध की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। साथ ही भगवान गणेश की प्रतिमा भी स्थापित करें।
- धूप-दीप जलाकर सर्वप्रथम भगवान गणेश की पूजा करें। उनके सिंदूर लगायें, रोली-चावल से तिलक करें, फल-फूल व दूर्वा चढ़ायें। जनेऊ चढ़ाये और भोग लगायें।
- तत्पश्चात् भगवान विष्णुर की पूजा करें। उनको पंचामृत से अभिषेक करायें, रोली-चावल से तिलक करें, चंदन लगायें, पीले रंग के फल-फूल अर्पित करें, तुलसी दल चढ़ाये और भोग लगायें।
- विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
- इसके बाद पापमोचिनी एकादशी व्रत की कथा (Papmochani Ekadashi Vrat Katha) पढ़ें या सुनें।
- इसके बाद धूप-दीप से भगवान विष्णु की आरती करें।
- संध्या पूजन के समय भगवान विष्णु की आरती करने के पश्चात फलाहार ग्रहण करें।
- इस व्रत में अन्न का सेवन नही करें। सिर्फ फलाहार करें।
- व्रत की रात को जागरण अवश्य करें। इस व्रत के दिन दुर्व्यसनों से दूर रहे और सात्विक जीवन जीयें।
- व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मण को भोजन करवायें और यथाशक्ति दान-दक्षिणा दे कर संतुष्ट करें।
- इसके बाद व्रत का पारण करे और स्वयं भोजन करें।
Papmochani Ekadashi Vrat Ke Niyam
पापमोचिनी एकादशी व्रत के नियम
- इस व्रत के दिन सभी व्यसनों से दूर रहें। इस व्रत में जुआ खेलना, मदिरा पीना, आदि निषेध है।
- इस व्रत में रात्रि जागरण अवश्य करें और रातभर भगवान का भजन-कीर्तन करें।
- एकादशी व्रत (Ekadashi Vrat) करने वाले को झूठ नही बोलना चाहिये, किसी पराई वस्तु को नही लेना चाहिये, चोरी नहीं करनी चाहिए, परनिन्दा से बचना चाहिये।
- संयमित आचरण करना चाहिये और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये।
- किसी को कटु शब्द नही बोलने चाहिये और क्रोध नही करना चाहिये।
- व्रत करने वाली स्त्री को सिर से स्नान नही करना चाहिये।
Papmochani Ekadashi Vrat Katha
पापमोचनी एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर और अर्जुन को चैत्र मास की पापमोचिनी एकादशी (Papmochani Ekadashi) का महात्मय बताया और इसकी कथा सुनाते हुये कहा कि प्राचीन समय में अत्यंत पराक्रमी मान्धाता नामक राजा ने ऋषि लोमश से प्रश्न किया कि मनुष्य द्वारा जाने-अनजाने में होने वाले पापों का निवारण कैसे हो सकता है? और वो उनसे कैसे मुक्ति पा सकता है? ऋषि लोमश ने राजा मान्धाता के प्रश्न के उत्तर में यह कथा सुनाई।
अति प्राचीन काल में एक अत्यंत रमणीय चैत्ररथ नाम का वन था। उस वन में देवराज इंद्र देवताओं और गंधर्वों के साथ आनंद से विहार किया करते थे। इस वन में ऋषि भी तपस्या किया करते थे।
एक समय कि बात है कि अत्यंत रूपवती मंजुघोषा नाम की अप्सरा वन में तपस्या करते च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी पर मोहित हो गयी। अप्सरा मंजुघोषा ऋषि मेधावी को आकर्षित करने और उनकी तपस्या को भंग करने के लिये प्रयास करने लगी। उसने इसके लिये नृत्य और गीत का उपयोग किया। अप्सरा मंजुघोषा की मनस्थिति को समझ कर कामदेव ने उसकी सहायता की, जिससे ऋषि मेधावी कामपीडित होकर मंजुघोषा की ओर आकर्षित हो गये। ऋषि मेधावी तपस्या त्याग कर मंजुघोषा के साथ रमण करने लगे। उन्हे रतिक्रीडा करते हुये कई वर्ष बीत गये।
तत्पश्चात अप्सरा मंजुघोषा ने ऋषि मेधावी से अपने स्थान पर जाने की आज्ञा मांगी। उसकी बातों को सुनकर ऋषि मेधावी को अपनी भूल का बोध हुआ और वो क्रोध एवं ग्लानि से भर गये। उन्होने मंजुघोषा को अपने पतन और अपनी तपस्या के भंग होने का कारण मानकर उसे पिशाचिनी होने का श्राप दे दिया। ऋषि के श्राप को सुनकर वो बहुत डर गई। उसने रोते हुये ऋषि मेधावी से क्षमा याचना की। तब ऋषि मेधावी उसको लेकर अपने पिता च्यवन के आश्रम पहुँचे और उन्हे सारा वृतांत सुनाया। ऋषि च्यवन को अपने पुत्र पर बहुत क्रोध आया और उन्होने उससे कहा कि इस पाप में वो दोनों बराबर के दोषी है। इस पाप से मुक्त होने के लिये ऋषि च्यवन ने अपने पुत्र मेधावी और अप्सरा मंजुघोषा दोनों को पापमोचनी एकादशी का व्रत करने के लिये कहा। ऋषि च्यवन ने उन्हे पापमोचनी एकादशी के व्रत का महात्म्य बताकर उसकी सम्पूर्ण विधि बताई।
ऋषि पुत्र मेधावी और अप्सरा दोनों ने पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ पूरे विधि-विधान से पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi) का व्रत पूर्ण किया। इस व्रत के प्रभाव से अप्सरा मंजुघोषा को उस श्राप से मुक्ति मिल गयी और वो अपने लोक चली गई। और ऋषि पुत्र मेधावी भी अपने पाप से मुक्त होकर वैकुण्ठ धाम को चले गये।