Sampada Mata Ka Dora – जानियें सांपदा माता का डोरा कब और कैसे लिया जाता है?

Sampada Mata Ka Dora

Sampada Ka Dora
सांपदा का डोरा

चैत्र मास की कृष्णपक्ष की द्वितिया या धूलण्डी के अगले दिन सांपदा माता की पूजा और व्रत करने की परम्परा है। इस व्रत को दशामाता का व्रत और दशामाता का डोरा (Dasha Mata Ka Dora) के नाम से भी जाना जाता है। घर की स्त्रियाँ घर की उन्नति के लिये इस दिन सांपदा माता की पूजा करके उनका डोरा अपने गले में बाँधती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार धन-लक्ष्मी की प्राप्ति और उसमें बढोत्तरी के लिये महिलाओं को सांपदा माता का डोरा (Sampada Mata Ka Dora) गले में बाँधना चाहिये और उनका व्रत एवं उद्यापन का करना चाहिये।

Sampada Ka Dora Kab Liya Jata Hai?
सांपदा माता का डोरा कब लिया जाता है?

सांपदा का डोरा (Sampada Mata Ka Dora)  होलिका दहन के दूसरे दिन यानी धूलण्डी के दिन लिया जाता है। इस वर्ष सांपदा/ संपदा (दशा माता) का व्रत 25 मार्च, 2024 सोमवार के दिन किया जायेगा। कुछ स्थानों पर दशामाता (Dashamata) का व्रत एवं पूजन चैत्र मास की कृष्णपक्ष की दशमी तिथि के दिन भी किया जाता है। जो महिलाएँ इस दिन दशामाता का व्रत करती हैं वो 4 अप्रैल, 2024 गुरूवार के दिन दशामाता का व्रत एवं पूजन करें।

Sampada Ka Dora Banane Aur Pujan Ki Vidhi
सांपदा माता का डोरा बनाने और पूजने की विधि

  • सांपदा माता का डोरा (Sampada Mata Ka Dora) बनाने के लिय कच्चे सूत के सोलह तार को मिलाकर डोरा बनाये और उसे होलिका दहन के दर्शन कराकर अपने पास रखलें।
  • कच्चे सूत के सोलह तारों के धागे में सोलह गांठ लगायें और उसे हल्दी से रंग लें।
  • एक कलश पर स्वास्तिक बनाकर उसमें जल भर कर रखें। साथ ही पूजन के लिये रोली, चावल, जौं के सोलह दाने भी रखें।
  • डोरे को रखकर उस पर रोली-चावल चढ़ायें।
  • तत्पश्चात्‌ जौं के सोलह दाने हाथ में लें और सांपदा माता की कहानी पढ़ें या सुनें।
  • कहानी सुनने के बाद डोरें को गलें में धारण करें। डोरा धारण करने बाद उन जौं के दानों को सम्भाल कर रखलें। जब यह डोरा खोला जाता है तब इन दानों का उपयोग किया जाता है।
  • सांपदा माता का डोरा वैशाख मास में खोला जाता हैं। जिस दिन डोरा खोलें उस दिन सांपदा माता का व्रत करें और उनकी कहानी पढें या सुनें।
  • सांपदा माता का डोरा (Sampada Mata Ka Dora) लेते समय जो जौं के सोलह दाने सम्भाल कर रखें थे उनके साथ सांपदा माता के डोरे से भगवान सूर्य को अर्घ्य दें।
  • सूर्यदेव को अर्घ्य देने के बाद में स्वयं भोजन करें।

Sampada Mata Ka Udyapan Kaise Kare?
सांपदा माता का उद्यापन कैसे करें?

जिस वर्ष घर में पुत्र का जन्म या पुत्र का विवाह हो उसी वर्ष सांपदा माता का उद्यापन किया जाता हैं। सांपदा माता के उद्यापन में सोलह जगह चार-चार पूरी और हलवा रखें। एक तीयल रखकर उस पर हाथ फेर कर (मिनस कर) सासूजी को दें और उनके चरणस्पर्श करके आशीर्वाद प्राप्त करें।
फिर जो सोलह जगह पूरी और हलवा रखा था उसे सोलह ब्राह्मणियों को तिलक करके दक्षिणा रखकर प्रदान करें। यदि सम्भव हो तो उन्हे पूरा भोजन करायें।

Sampada Mata Ki Kahani
सांपदा माता की कहानी

अति प्राचीन समय में नल नाम का एक राजा था। उसके पास अपार धन-सम्पत्ति थी। इस कारण उसमें बहुत अहंकार आ गया था। राजा नल की रानी का नाम दमयंती था। धुलण्डी के दिन रानी ने देखा की महल के नीचे बहुत भीड लगी हुयी थी। बहुत सी औरते एक बुढ़िया से सांपदा माता का डोरा (Sampada Mata Ka Dora) ले रही थी। वो बुढिया सांपदा माता का डोरा बाँटने के साथ औरतों को सांपदा माता की कहानी भी सुना रही थी।

रानी यह देखकर अपनी दासी को सारा वृत्तांत पता करने के लिये भेजा। दासी ने रानी आज्ञा मानकर वहाँ उपस्थित स्त्रियों के सारी बात पूछी और फिर रानी दमयंती को आकर बताई। दासी ने रानी को बताया कि एक बुढ़िया सभी स्त्रियों को सांपदा माता का डोरा (Sampada Mata Ka Dora) बाँट रही है, इस डोरे की पूजा करने और इसे बांधने से सांपदा माता की कृपा से धन-लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। दासी ने रानी को बताया कि कच्चे सूत की सोलह तार से डोरा बनाकर उसमें सोलह गाँठ लगायें। फिर उसे हल्दी में रंगकर रोली-चावल से पूजा करें। जौं के सोलह दाने हाथ में लेकर सांपदा माता की कहानी पढ़ें या सुनें। कहानी सुनने के बाद डोरें को गले में बाँध लें।

यह सब जानकर रानी के मन में भी सांपदा माता का डोरा बाँधने की इच्छा हुई। रानी ने भी बुढिया से डोरा लेकर विधि पूर्वक उसकी पूजा करके और कहानी सुनकर डोरें को अपने गले के हार में बाँध लिया। राजा नल ने जब रानी के गले के हार में डोरा देखा तो रानी से पूछा, “हे रानी! तुमने अपने गले के हार में यह क्या बाँध रखा है? रानी दमयंती ने राजा से कहा, “हे राजन! मैंनें अपने गले के हार में सांपदा माता का डोरा (Sampada Mata Ka Dora) बाँध रखा है। इसके प्रभाव से धन-लक्ष्मी में वृद्धि होती है।“ राजा ने रानी से कहा कि हमारे पास अपार धन हैं, हमें इसकी कोई आवश्यकता नही हैं। अज्ञान और अहंकार वश राजा ने रानी के गले से डोरा निकालकर उसे फेंक दिया।

राजा के इस कृत्य से सांपदा माता रूष्ट हो गयी और उन्होने राजा को स्वप्न में दर्शन देकर कहा, “हे राजन! मैं सांपदा हूँ। तुमने मेरा अपमान किया हैं इसलिये अब मैं तुम्हारे पास से जा रही हूँ। मेरे जाने के बाद तेरा सारा धन कोयला हो जायेगा।“ राजा जब प्रात जागा तो उसने देखा कि उसका समस्त धन कोयला हो गया है। राजा ने जब यह देखा तो उसके पैरों तले जमीन निकल गई। राजा ने रानी से कहा अब हमारा यहाँ उचित नही है, इसलिये यहाँ पर एक ब्राह्मण की पुत्री को महल की देखभाल के लिये छोड देंगें। वो महल की साफ-सफाई का ध्यान रख लेंगी, सुबह-शाम दीपक जला देगी और जल इत्यादि का प्रबंध कर लेगी। राजा अपनी रानी को साथ लेकर वन की ओर चल दिया। मार्ग राजा को भूख लगी तो उसने दो तीतर का शिकार करके रानी को दिये। एक तालाब के निकट पहुँच कर रानी उन्हे भूनने लगी और राजा स्नान के लिये चला गया। जब राजा वापस आकर भोजन के लिये बैठा तो वो तीतर पुन: जीवित होकर उड गये। राजा रानी को भूखा ही रहना पडा।

राजा रानी के साथ अपनी बहन के यहाँ पहुँचा। राजा की बहन ने उन्हे एक पुराने घर में ठहराया। वहाँ पर राजा की बहन के सोने की बच्छी और बछोडा रखा था। राजा-रानी के देखते-देखते वो धरती में समा गये। यह देखकर राजा-रानी वहाँ से निकल गये और उनके ऊपर चोरी का कलंक लग गया। फिर राजा अपने एक मित्र के यहाँ पहुँचा। राजा के मित्र ने उसे अपने महल में ठहराया। वो जिस कमरे में थे वहाँ खूँटी पर एक बहुमूल्य हार टंगा था। राजा-रानी के सामने उसे हार को खूंटी निगल गयी। उनके ऊपर चोरी का आरोप ना लग जाये यह सोचकर राजा-रानी को लेकर वहाँ से भी निकल गया।

भटकते-भटकते राजा-रानी एक निर्जन स्थान पर पहुँच गयें। जब वो वहाँ पहुँचे तो वो निर्जन स्थान एक सुंदर बगीचे में बदल गया। तब उस बगीचे का स्वामी उनके पास आया और उनके विषय में बताने के लिये कहा। राजा ने उससे कहा, कि हम काम की खोज में इधर-उधर भटक रहें, यदि आपके पास कोई काम हो तो बताये। उस व्यक्ति ने उन्हे काम पर रख लिया। राजा बगीचे की देखभाल करता और रानी फूलों की मालायें बनाकर बाजार में बेचने जाती। एक दिन रानी ने देखा की कुछ स्त्रियाँ सांपदा का डोरा (Sampada Mata Ka Dora) ले रही हैं और कहानी सुन रही हैं। यह देखकर उसे अपनी पुरानी बातें याद आ गयी। रानी ने भी डोरा लिया और कहानी सुनी। डोरे को गले में बांधकर जब वो राजा के सम्मुख पहुँची तो राजा ने उससे उस डोरे के विषय में पूछा। रानी ने राजा को किस्सा याद दिलाया और राजा ने जो भूल की थी उसका स्मरण कराया। रानी के राजा से कहा कि आपने सांपदा माता का डोरा तोड कर फेंका उससे माता रूष्ट हो गयी और हमें इतने कष्टों का सामना करना पडा। फिर रानी ने हाथ जोडकर सांपदा माता से अपने पुराने दिन लौटाने की विनती करी। राजा को भी अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने भी सांपदा माता से अपनी गलती के लिये क्षमा मांगी।

ऐसा करने से सांपदा माता प्रसन्न हो गयी और रात्रि में राजा को स्वप्न आया उसमें उसने देखा की एक स्त्री कह रही है कि मैं जा रही हूँ और दूसरी कह रही है कि मैं आ रही हूँ।

राजा ने उनसे परिचय पूछा तो आने वाली ने अपना परिचय दिया कि मैं लक्ष्मी हूँ और जाने वाली ने कहा कि मैं दरिद्रता हूँ। राजा जब प्रात:उठा और कुएँ पर जल लेने गया। राजा ने जब कुएँ से जल निकाला तो पहली बार जौं निकले, दूसरी बार हल्दी और तीसरी बार कच्चा सूत निकला। राजा ने ले जाकर वो सभी चीजें रानी को दे दी। रानी ने विधि-विधान से सांपदा माता के डोरे की पूजा की। सांपदा माता की कृपा से धन-धान्य की प्राप्ति हुई। फिर वो दोनों अपने राज्य की ओर चल दिये।

राजा-रानी को साथ लेकर अपने मित्र के पास पहुँचा। मित्र उन्हे उसी कमरे में ले गया, जिसमें उन्हे पहले रूकवाया था। राजा-रानी ने देखा कि उस खूंटी ने वो बहुमूल्य हार उगल दिया और इससे उन पर लगा कलंक हट गया। फिर राजा रानी के साथ अपनी बहन के पास पहुँचा और उसी घर में रूका जिसमें पहले रूका था। राजा-रानी ने देखा की बच्छी-बच्छोड़ा पुन: धरती से प्रकट होगये। यहाँ से उनपर लगा चोरी का कलंक धुल गया। राजा-रानी को आभास हुआ कि अब उनके अच्छे दिन आ गये। मार्ग में चलते हुये वो उस तालाब पर पहुँचे तो उन्हे वही भुने हुये दोनों तीतर मिले, जो पहले उड गये थे।

राजा-रानी जब महल में पहुँचे तो महल पहले कि भांति भव्य हो गया था। उनकी जो धन कोयल में बदल गया था, वो उन्हे पुन: पूर्वस्थिति में प्राप्त हो गया। राजा-रानी ने जिस ब्राह्मण की पुत्री को महल की देखभाल के लिये छोडा था, उसे उन्होने अपनी पुत्री बना लिया। फिर बडी धूम-धाम से उस लडकी का विवाह आयोजित किया।

पुत्री के विवाह के पश्चात्‌ रानी के मन में सांपदा माता का उद्यापन करने की इच्छा हुई। रानी ने उद्यापन में हलवा-पूरी की रसोई की, सोलह ब्राह्मणियों को भोजन कराया और उन्हे सोलह वस्तुएँ दी। सांपदा माता की कृपा से राजा-रानी के सभी दुखों का नाश हो गया और उनका जीवन खुशियों से भर गया।

हे सांपदा माता! आपसे यही प्रार्थना है कि जैसा आपने पहले राजा को दिया वैसा किसी को भी मत देना और जैसा राजा को आपने बाद में दिया वैसा सबको देना, जैसे आपने राजा-रानी के दुख समाप्त किये, वैसे सबके दुख हरना। कहानी सुनते समय हुंकारा भरते रहें। फिर बिन्दायक जी की कहानी भी कहें।