Uma Maheshwara Vrat 2023: जानियें उमा महेश्वर व्रत कब है? पढियें व्रत का महत्व, विधि और कथा…

Uma Maheswara vrat

अपार धन की प्राप्ति और सुख-प्राप्ति के लिये करें उमा महेश्वर व्रत (Uma Maheshwara Vrat)। यह प्रभावशाली व्रत भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिये किया था। जानियें उमा महेश्वर व्रत (Uma Maheshwar Vrat) कब किया जायेगा?, इस व्रत का क्या महत्व है? साथ में पढ़ियें उमा महेश्वर व्रत की कथा और पूजन की विधि…

Uma Maheshwara Vrat 2023
उमा महेश्वर व्रत

भाद्रपद मास (भादों) की पूर्णिमा तिथि के दिन उमा महेश्वर व्रत (Uma Maheshwara Vrat) किया जाता हैं। इस दिन का व्रत करने से जातक को भगवान शिव और माता की कृपा प्राप्त होती हैं। हिंदु मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु ने भी देवी लक्ष्मी की प्राप्ति के लिये उमा महेश्वर व्रत का अनुष्ठान किया था। उमा महेश्वर व्रत (Uma Maheshwar Vrat) के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन करने का विधान हैं।

Uma Maheshwara Vrat Kab Hai?
उमा महेश्वर व्रत कब हैं?

इस वर्ष उमा महेश्वर व्रत (Uma Maheshwara Vrat) 29 सितम्बर, 2023 शुक्रवार के दिन किया जायेगा।

Vrat Aur Puja Ki Vidhi
उमा महेश्वर व्रत एवं पूजा की विधि

भाद्रपद मास (भादों) की पूर्णिमा तिथि के दिन उमा महेश्वर का व्रत (Uma Maheshwar Vrat) एवं पूजन किया जाता हैं।

  • भाद्रपद मास (भादों) की पूर्णिमा के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • फिर शिवालय में जाकर भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा को दूध से स्नान करायें।
  • फिर विल्पपत्र, पुष्प और फूलमाला चढ़ायें।
  • माता पार्वती को श्रुंगार की वस्तुयें चढ़ायें।
  • दीपक जलायें, फल अर्पित करें और भोग लगायें।
  • तत्पश्चात्‌ उमा महेश्वर की कथा (Uma Maheshwara Vrat Katha) कहें या सुनें।
  • कथा सुनने के बाद शिवाष्टक का पाठ करें और भगवान शिव जी की आरती करें।
  • पूजा करने के बाद ब्राह्मण को भोजन करायें और सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा देकर उसे संतुष्ट करें।
  • दिन में एक ही समय भोजन करें।
  • फिर रात को भजन कीर्तन करके समय व्यतीत करें।

Uma Maheshwara Vrat Katha
उमा महेश्वर व्रत की कथा

मत्स्य पुराण में उमा महेश्वर व्रत (Uma Maheshwara Vrat) का उल्लेख किया गया हैं। मत्स्य पुराण में उल्लिखित कथा के अनुसार एक बार कैलाश पर्वत से भगवान शंकर के दर्शन करके लौटते समय मार्ग में महर्षि दुर्वासा की भेंट भगवान विष्णु से हुई। महर्षि दुर्वासा को भगवान शंकर ने आशीर्वाद स्वरूप एक बिल्वपत्र की माला प्रदान की थी। जब महर्षि दुर्वासा की भेंट भगवान विष्णु से हुई तो उन्होने वो माला विष्णु जी को दे दी। भगवान विष्णु ने महर्षि दुर्वासा से मिली उस माला को स्वयं अपने गले में धारण ना करके गरूण जी के गले में पहना दिया। यह देखकर महर्षि दुर्वासा को क्रोध आ गया। और उन्होने क्रोध में आकर भगवान विष्णु से कहा कि तुमने मेरे आराध्य भगवान शंकर का अपमान किया हैं। उनके द्वारा दी गई माला मैंने तुम्हे उपहार स्वरूप दी और तुमने वो माला स्वयं धारण ना करके अपने गरूण को पहना दी। यह मेरा और मेरे भगवान शंकर का घोर अपमान हैं। इसलिये मैं तुम्हे श्राप देता हूँ की तुम्हारा सारा वैभव नष्ट हो जायेगा। तुम श्रीहीन हो जाओगे, लक्ष्मी तुम्हारे पास से चली जायेगी, क्षीरसागर भी तुमसे छीन जायेगा और तुम्हारा शेषनाग भी तुम्हारी मदद नही का पायेगा।

महर्षि दुर्वासा से ऐसा श्राप सुनकर भगवान विष्णु ने उस श्राप को स्वीकर किया और फिर बड़े शांत स्वर में उन्होने महर्षि दुर्वासा से उस श्राप के निवारण का उपाय पूछा। तब महर्षि दुर्वासा ने भगवान विष्णु को उमा महेश्वर व्रत (Uma Maheshwara Vrat) करने का परामर्श दिया। महर्षि दुर्वासा ने कहा कि उमा महेश्वर व्रत के करने से मेरे श्राप के कारण तुम जो कुछ भी खोओगें वो सब तुम्हे पुन: प्राप्त हो जायेगा। तब भगवान विष्णुजी ने भाद्रपद माह की पूर्णिमा पर उमा महेश्वर व्रत (Uma Maheshwar Vrat) का अनुष्ठान किया। इस व्रत के प्रभाव से महर्षि दुर्वासा के दिये श्राप का निवारण हुआ और लक्ष्मी के साथ-साथ उन्होने जो भी वस्तुये खोई थी उन्हे वो सब पुन: प्राप्त हो गई।

Significance Of Uma Maheshwar Vrat
उमा महेश्वर व्रत का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद माह की पूर्णिमा के दिन उमा महेश्वर का व्रत (Uma Maheshwara Vrat) एवं पूजन पूरे विधि-विधान से करने से मनुष्य जाने-अंजाने अपने द्वारा किये सभी पापकर्मों से मुक्त हो जाता हैं। उसके सभी पाप नष्ट हो जाते है और सभी दोषों का निवारण हो जाता हैं।

इस व्रत को करने से साधक की सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं। उसे अपार धन की प्राप्ति होती हैं। उसे जीवन में हर प्रकार का धन और सुख प्राप्त होता हैं। समाज में मान-प्रतिष्ठा मिलती हैं। यह बहुत ही शुभ और महान फल देने वाला व्रत हैं। इस व्रत के करने से भगवान शिव और माता पार्वती प्रसन्न होते हैं और साधक को उनकी कृपा प्राप्त होती हैं।