Vaikuntha Chaturdashi 2023: जानियें कब और कैसे करें वैकुण्ठ चतुर्दशी का व्रत एवं पूजन? साथ में पढ़ें इसका महत्व और व्रत कथा

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मोक्ष दिलाने वाला हैं वैकुंठ चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi) का व्रत एवं पूजन। वैकुण्ठ चतुर्दशी का व्रत बहुत ही पुण्यदायी हैं। जानिये वैकुण्ठ चतुर्दशी कब है? इसका क्या महत्व है? साथ ही पढ़िये वैकुण्ठ चतुर्दशी के पूजन की विधि और व्रत कथा।

Vaikuntha Chaturdashi
वैकुंठ चतुर्दशी

कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को वैकुंठ चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi) के नाम से पुकारा जाता हैं। जैसा की इसके नाम से ही प्रतीत होता हैं कि इस दिन का व्रत एवं पूजन करने वाले के सभी पाप नष्ट हो जाते है और वो मरणोपरांत वैकुंठ धाम को चला जाता हैं। वैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा किये जाने का विधान हैं।

Vaikuntha Chaturdashi Kab Hai?
वैकुंठ चतुर्दशी कब हैं?

इस वर्ष वैकुंठ चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi) का व्रत एवं पूजन 25 नवम्बर, 2023 शनिवार के दिन किया जायेगा।

Vaikuntha Chaturdashi Ka Mahatva
वैकुंठ चतुर्दशी का महत्व (महात्म्य)

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वैकुंठ चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi) का व्रत एवं पूजन करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के वैकुंठ धाम के द्वार खुले रहते है, जो भी मनुष्य इस दिन मृत्यु को प्राप्त होता है वो सीधे वैकुण्ठ धाम को चला जाता हैं।

वैकुंठ चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi) के दिन निशिथकाल अर्थात मध्यरात्रि में भगवान विष्णु और प्रात:काल (सूर्योदय के समय) भगवान शिव की पूजा की जाती हैं। इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से साधक के सभी पापों का शमन होता हैं। पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने भगवान शिव की पूजा की थी। भगवान विष्णु की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनको सुद्रर्शन चक्र प्रदान किया था।

पुराणों में वैकुण्ठ चतुर्दशी के विषय में बहुत सी कथायें उपस्थित हैं। वैकुण्ठ चतुर्दशी को बहुत महत्वपूर्ण माना गया हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में मरे सभी योद्धाओं का श्राद्ध और तर्पण कराया था। इसलिये वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन पितरों का श्राद्ध और तर्पण करना उत्तम माना जाता है, ऐसा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती हैं।

वैकुण्ठ चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi) के दिन भगवान विष्णु ने भगवान शिव की एक हजार कमल के पुष्पों से मणिकर्णिका घाट पर पूजा की थी। इसलिये इस दिन भगवान विष्णु की एक हजार कमल के पुष्पों से पूजा करना अति उत्तम बताया गया हैं। जिस वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति के लिये ऋषि-मुनि अनेक वर्षों की कठोर तपस्या करते हैं, वो वैकुण्ठ धाम मनुष्य को वैकुण्ठ चतुर्दशी पर व्रत एवं पूजन से बहुत ही सरलता से प्राप्त हो जाता हैं।

इस दिन सप्तऋषि की आराधना किये जाने का भी विधान हैं। हिंदु मान्यता के अनुसार इस दिन सप्तऋषि की उपासना करने से साधक के समस्त कष्टों का निवारण हो जाता हैं। इस दिन तीर्थ स्थान पर स्नान और दान करने से भी बहुत पुण्य प्राप्त होता हैं। वैकुण्ठ चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi) के दिन व्रत एवं पूजन करने से

  • साधक के सभी पापों का नाश हो जाता हैं।
  • उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती हैं।
  • मनुष्य इस लोक के सुखों को भोगकर मरणोपरांत वैकुण्ठ धाम को चला जाता हैं।
  • इस दिन पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती हैं और वो अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
  • इस दिन व्रत एवं पूजन करने से जातक के रोग आदि कष्टों का निवारण होता हैं।

Vaikuntha Chaturdashi Ke Vrat Aur Pujan Ki Vidhi
वैकुण्ठ चतुर्दशी के व्रत एवं पूजन की विधि

वैकुण्ठ चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi) के दिन भगवान विष्णु और भगवान शंकर दोनों की पूजा की जाता हैं। भगवान शिव की पूजा प्रात:काल अर्थात सूर्योदय के समय की जाती है और भगवान विष्णु की पूजा निशिथकाल अर्थात मध्यरात्रि में की जाती हैं।

Vishnu Bhagwan Ki Puja Vidhi
भगवान विष्णु की पूजा की विधि

  • वैकुण्ठ चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi) पर भगवान विष्णु की षोडशोपचार पूजा किये जाने का विधान हैं।
  • मध्यरात्रि की पूजा के लिये तैयारियाँ पहले ही करलें। स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके एक चौकी पर कपड़ा बिछाकर उसपर एक कलश की स्थापना करें।
  • उसपर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें।
  • फिर मध्यरात्रि के समय धूप – दीप जलाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा का पंचामृत से अभिषेक करें।
  • फिर भगवान विष्णु की प्रतिमा के चंदन और कुमकुम का तिलक करें, अक्षत चढ़ायें। इत्र चढ़ायें।
  • फल-फूल अर्पित करके, भोग अर्पित करें। इस दिन भगवान विष्णु को पंच मेवा और मखाने की खीर का भोग लगायें।
  • इस दिन विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करते हुये भगवान विष्णु को 1000 कमल चढ़ाने चाहिये। किंतु यह सम्भव ना हो तो कमल के पुष्प का एक जोड़ा अवश्य चढ़ायें।
  • फिर विष्णुसहस्त्रनाम, पुरूष सूक्त और श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करें।
  • वैकुण्ठ चतुर्दशी की कथा का पाठ या श्रवण करें।
  • भगवान विष्णु की आरती करें।
  • तत्पश्चात्‌ भगवान से अपनी गलतियों और त्रुटियों के लिये क्षमा माँगे। और उनसे अपना मनोरथ कहें।

Bhagwan Shiv Ki Puja Vidhi
भगवान शिव की पूजा की विधि

  • वैकुंठ चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi) पर भगवान शिव की पूजा प्रात:काल सूर्योदय के समय किये जाने का विधान हैं।
  • प्रात:काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • फिर शिवालय जाकर “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करते हुये गाय के दूध, दही और गंगा जल से शिवलिंग का अभिषेक करें।
  • फिर भगवान शिव को बिल्वपत्र, आंकड़ा, धतूरा, पुष्प और मौसमी फल अर्पित करें।
  • भगवान शिव को भांग चढ़ायें।
  • फिर भोग में भगवान शिव को श्वेत मिठाई अवश्य अर्पित करें।
  • धूप-दीप जलाकर रुद्राष्टक और शिवमहिम्नस्त्रोत का पाठ करें।
  • तत्पश्चात्‌ भगवान महादेव से अपनी गलतियों की क्षमा माँगे और उनसे अपना मनोरथ कहें।
  • इस दिन ‘ॐ ह्रीं ओम हरिणाक्षाय नम: शिवाय’ मंत्र का कम से कम 108 बार जाप अवश्य करें। ऐसा करने से जातक को भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता हैं।
  • वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन सप्तऋषि का पूजन भी किया जाता हैं। सप्तऋषि का पूजन करने से जातक की सभी समस्याओं का निवारण होता हैं।

विशेष : वैकुंठ चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi) पर बनारस (वाराणसी) के मणिकर्णिका घाट पर सूर्योदय के समय स्नान करना अति शुभ माना जाता हैं। इसे मणिकर्णिका स्नान कहा जाता हैं।

Vaikuntha Chaturdashi Ke Vrat Ki Katha
वैकुण्ठ चतुर्दशी के व्रत के लिये चार कथायें प्रचलित हैं।


Vaikuntha Chaturdashi Vrat Katha –First
वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत कथा – प्रथम

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने कार्तिक मास की चतुर्दशी के दिन काशी के मणिकर्णिका घाट पर स्नान किया और भगवान शिव को एक हजार कमल के पुष्प अर्पित करने का संकल्प किया। फिर भगवान विष्णु ने भगवान शिव का अभिषेक करके पूजन आरम्भ किया।

भगवान शिव ने भगवान विष्णु की परीक्षा लेने के लिये एक हजार कमल में से एक कमल का फूल अदृश्य कर दिया। एक के बाद एक करके जब भगवान विष्णु ने सभी कमल के पुष्प शिव जी पर चढ़ाये तो उन्हे एक पुष्प कम मिला। अपना संकल्प अधूरा रहता देख भगवान विष्णु को विचार आया कि मुझे कमलनयन के नाम से पुकारा जाता है अर्थात मेरे नयन कमल के समान हैं। यही विचार करके उन्होने अपना एक नेत्र भगवान शिव को चढ़ा दिया।

भगवान विष्णु की भक्ति देखकर भगवान शिव अतिप्रसन्न हुये और तभी भगवान शिव ने प्रकट होकर विष्णु जी को सुदर्शन चक्र भेंट किया और कहा, “आपके समान कोई दूसरा नही हो सकता। आप मुझे अतिप्रिय हो। आज के दिन जो भी कोई आपकी और मेरी पूजा करेगा उसके सभी पापों का नाश हो जायेगा।“

Vaikuntha Chaturdashi Vrat Katha – Second
वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत कथा – द्वितीय

एक धार्मिक कथा के अनुसार नारद जी धरती के लोगो के दुख और संताप को देखकर बहुत दुखी हुये और धरतीवासियों के दुखों के निवारण के लिये भगवान विष्णु के पास गये।

नारद जी को देखकर भगवान ने उन्हे आदर से पूछा , “हे देव ऋषि! आज आपका यहाँ आना कैसे हुआ?” तब नारद जी ने कहा, “प्रभु आप तो अंतर्यामी हो। आप अपने इस भक्त के मन का हाल भी जानते हो। धरती पर रहने वाले प्राणी अलग-अलग योनियों में जन्म लेकर नाना प्रकार के दुख झेल रहे हैं। उनको उन दुखों से मुक्त करने और मोक्ष प्राप्ति के लिये कोई आसान सा उपाय बताइये।“

तब भगवान विष्णु ने नारदजी से कहा, “हे नारद! तुमने पृथ्वी पर रहने प्राणियों के हित के लिये बहुत अच्छा प्रश्न किया हैं। जो भी कोई मनुष्य कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी के दिन पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ मेरा व्रत एवं पूजन करेगा, उसके सभी कष्टों का निवारण हो जायेगा और मरणोपरांत सीधे वैकुण्ठ धाम को प्राप्त करेगा। साथ ही कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी के दिन जो भी कोई मृत्यु को प्राप्त होगा, उसे भी वैकुण्ठ की प्राप्ति होगी।“

भगवान विष्णु ने अपने द्वारपाल जय और विजय को बुलाकर आदेश दिया कि कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी के दिन वैकुण्ठ के द्वार खुले रहेंगे। इस दिन प्राण त्यागने वाले को भी वैकुण्ठ धाम प्राप्त होगा। तभी से कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को वैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से पुकारा जाने लगा।

Vaikuntha Chaturdashi Vrat Katha – Third
वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत कथा – तृतीय

प्राचीन समय में एक गॉव में एक ब्राह्मण रहता था। उसका नाम धनेश्वर था। जन्म से तो वो ब्राह्मण था किन्तु कर्म के बहुत ही पापी था। उसने जीवन में अनेक पापकर्म किये।

सन्योगवश एक बार धनेश्वर वैकुंठ चतुर्दशी के दिन गोदावरी नदी में स्नान के लिए गया। वहाँ बहुत से भक्त भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना कर रहे थे। भक्तों की उस भीड़ में और ऐसे धार्मिक वातावरण में धनेश्वर भी उनके साथ पूजा करने लगा। भक्तों की संगत से उसे भी पुण्य प्राप्त हुआ।

इससे उसके समस्त पापों का नाश हो गया और मृत्यु के उपरांत वो वैकुंठ धाम को चला गया।

Vaikuntha Chaturdashi Vrat Katha – Fourth
वैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत कथा – चतुर्थ

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद गंगापुत्र भीष्म जब बाणों की शैया पर थे तब उन्होने सूर्य के उत्तरायण पर प्राण त्यागने का निश्चय किया। वो कार्तिक मास का समय था जब सभी पाण्ड़व श्रीकृष्ण के साथ भीष्म के पास राजधर्म का ज्ञान पाने के लिये जाते थे।

भीष्म ने उन्हे राज, धर्म, निति, अर्थशास्त्र, मोक्ष आदि सभी विषयों पर उपदेश दिये। उनके द्वारा दिये गये उपदेशों को सुनकर भगवान श्रीकृष्ण बहुत प्रभावित हुये और उन्होने भीष्म से कहा, “ आपने अपने अनुभव और ज्ञान से सभी का मार्ग प्रशस्त किया हैं। आपके जैसा धर्मात्मा और ज्ञानी अब कदाचित ही इस धरती पर पुन:जन्म लेगा। कार्तिक मास की एकादशी से लेकर कार्तिक मास की पूर्णिमा तक पाँच दिनो को मैं आपकी स्मृति में भीष्म पंचक का नाम देता हूँ। जो भी भीष्म पंचम का व्रत करेगा उसके सभी पाप नष्ट हो जायेगें। वो संसार के समस्त सुखों का उपभोग करके मरणोपरान्त मोक्ष को प्राप्त होगा।“

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