शत्रु पर विजय दिलाने वाला और सभी मनोरथों को सिद्ध करने वाला है विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) का व्रत एवं पूजन । जानियें विजया एकादशी व्रत कब हैं? पढ़ियें विजया एकादशी व्रत का महत्व, विजया एकादशी व्रत की विधि, विजया एकादशी व्रत के नियम और व्रत कथा।
Vijaya Ekadashi
विजया एकादशी
फाल्गुन माह की कृष्णपक्ष की एकादशी को विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) के नाम से पुकारा जाता हैं। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा किये जाने का विधान है। पौराणिक कथाओं के अनुसार लंका विजय के लिये भगवान श्री राम ने विजया एकादशी के व्रत को किया था। ऐसा शास्त्रों मे वर्णित है कि इस व्रत को करने से साधक की सभी समस्याओं का समाधान हो जाता हैं, सभी कार्य सहजता से पूर्ण हो जाते और उसका मनोरथ अवश्य सिद्ध होता हैं। हिंदु मान्यता के अनुसार विजया एकादशी का व्रत बहुत ही उत्तम फल देने वाला और महत्वपूर्ण व्रत हैं।
Vijaya Ekadashi Kab Hai?
विजया एकादशी कब हैं?
इस वर्ष विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) व्रत (स्मार्त) 6 मार्च, 2024 बुधवार के दिन किया जायेगा। और विजया एकादशी व्रत (वैष्णव) 7 फरवरी, 2024 गुरूवार के दिन किया जायेगा।
Significance of Vijaya Ekadashi
विजया एकादशी का महत्व
हिंदु धर्म में एकादशी व्रत का विशेष स्थान हैं। सभी व्रतों में एकादशी व्रत को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता हैं। एकादशी का व्रत करने से जातक के सभी पापों का नाश हो जाता है। इस व्रत को करने से साधक को वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने समुद्र लांघने और लंका विजय की कामना से इस व्रत को किया था। इस व्रत के प्रभाव से उनका लंका विजय का अभीष्ट सिद्ध हुआ। तभी से फाल्गुन माह की कृष्णपक्ष की इस एकादशी को विजया एकादशी के नाम से पुकारा जाता हैं।
विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) का व्रत एवं पूजन पूरी श्रद्धा और भक्ति भावना के साथ करने से
- साधक के सभी पापों का नाश हो जाता हैं।
- सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती हैं।
- धन-सम्पत्ति में वृद्धि होती हैं।
- शत्रु पर विजय प्राप्त होती हैं।
- मनोरथ सिद्ध होता हैं।
- परिवार में शांति और सौहार्द बढ़ता हैं।
- समस्याओं का समाधान हो जाता हैं।
- कार्य सुगमता से पूर्ण हो जाते हैं।
- साधक इस लोक में सभी सुखों का भोग करके मरणोपरांत मोक्ष को प्राप्त होता हैं।
Vrat Aur Pujan Vidhi
व्रत एवं पूजन विधि
विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) के व्रत में भगवान विष्णु के पूजन का विधान हैं। इस उत्तम व्रत की विधि इस प्रकार से हैं
- फाल्गुन मास की विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) का व्रत एक दिन पूर्व यानी दशमी तिथि की रात से ही आरम्भ हो जाता हैं। दशमी की रात से ही मनुष्य को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये और संयमित आचरण करना चाहिये।
- विजया एकादशी के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजास्थान पर भगवान का ध्यान करके विजया एकादशी के व्रत का संकल्पि लें।
- पूजास्थान पर एक वेदी का निर्माण करें और उस पर उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा रखें। इस व्रत की पूजा में सप्त धान की वेदी या सप्त धान से घट स्थापना की जाती हैं।
- फिर एक कलश में जल भरकर वेदी पर रखें। उस कलश में आम या अशोक के वृक्ष के 5 पत्ते लगायें।
- तत्पश्चात् वेदी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। साथ ही भगवान गणेश की प्रतिमा भी स्थापित करें।
- धूप-दीप जलाकर सर्वप्रथम भगवान गणेश की पूजा करें। उनके सिंदूर लगायें, रोली-चावल से तिलक करें, फल-फूल व दूर्वा चढ़ायें। जनेऊ चढ़ाये और भोग लगायें।
- तत्पश्चात् भगवान विष्णुर की पूजा करें। उनको पंचामृत से अभिषेक करायें, रोली-चावल से तिलक करें, चंदन लगायें, पीले रंग के फल-फूल अर्पित करें, तुलसी दल चढ़ाये और भोग लगायें।
- विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
- इसके बाद विजया एकादशी व्रत की कथा पढ़ें या सुनें।
- इसके बाद धूप-दीप से भगवान विष्णु की आरती करें।
- संध्या पूजन के समय भगवान विष्णुभ की आरती करने के पश्चात फलाहार ग्रहण करें।
- इस व्रत में अन्न का सेवन नही करें। सिर्फ फलाहार करें।
- व्रत की रात को जागरण अवश्य करें। इस व्रत के दिन दुर्व्यसनों से दूर रहे और सात्विक जीवन जीयें।
- व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मण को भोजन करवायें और यथाशक्ति दान-दक्षिणा दे कर संतुष्ट करें।
- इसके बाद व्रत का पारण करे और स्वयं भोजन करें।
Vrat Ke Niyam
व्रत के नियम
- इस व्रत के दिन सभी व्यसनों से दूर रहें। इस व्रत में जुआ खेलना, मदिरा पीना, आदि निषेध है।
- इस व्रत में रात्रि जागरण अवश्य करें और रातभर भगवान का भजन-कीर्तन करें।
- एकादशी व्रत करने वाले को झूठ नही बोलना चाहिये, किसी पराई वस्तु को नही लेना चाहिये, चोरी नहीं करनी चाहिए, परनिन्दा से बचना चाहिये।
- संयमित आचरण करना चाहिये और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये।
- किसी को कटु शब्द नही बोलने चाहिये और क्रोध नही करना चाहिये।
- व्रत करने वाली स्त्री को सिर से स्नान नही करना चाहिये।
Vijaya Ekadashi Vrat Katha
विजया एकादशी व्रत कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से फाल्गुन मास की कृष्णपक्ष की एकादशी के विषय में बताने के लिये कहा, वे बोले “हे जनार्दन! आप ही सृष्टि का सृजन, पालन व नाश करने वाले हो। मेरा आपको बारम्बार प्रणाम हैं। आपसे मेरा निवेदन है कि मुझ पर कृपा करके मुझे फाल्गुन मास की कृष्णपक्ष की एकादशी के विषय में बताइये।“ तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “ हे धर्मराज युधिष्ठिर! फाल्गुन मास की कृष्णपक्ष की एकादशी को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता हैं। इसका व्रत करने से जातक के सभी मनोरथ सफल होते है और उसे अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती हैं।“
फिर श्रीकृष्ण ने विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) की कथा सुनाते हुये कहा कि एक बार देवऋषि नारद ने इस एकादशी के विषय में परमपिता ब्रह्मा जी से पूछा था। तब ब्रह्माजी ने नारद जी को विजया एकादशी का महत्व बताते हुये कहा कि, “हे नारद! तुम जिस एकादशी के विषय मे जानना चाहते हो उसे विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है। विजया एकादशी का व्रत बहुत ही उत्तम और दुर्लभ हैं। इस व्रत का पालन करने से साधक के समस्त पापों का नाश होता है। उसे हर स्थान पर विजय प्राप्त होती हैं और उसकी शत्रु पर विजय होती हैं।“
ब्रह्मा जी ने विजया एकादशी की कथा सुनाते हुये कहा, कि त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के रूप में अवतार लिया था। जब श्रीराम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ चौदह वर्ष का वनवास भोग रहे थे। तब लंका नरेश रावण छल से देवी सीता का हरण करके लंका ले गया। देवी सीता को कुटिया में ना पाकर श्रीराम और लक्ष्मण व्याकुल हो गये और उन्होने देवी सीता की खोज आरम्भ कर दी।
उन्हे घायल जटायु ने दुखी होकर सीता हरण का सारा वृतांत सुनाया। सीता की खोज में श्री राम की भेंट हनुमान जी से हुई, उन्होने श्री राम को अपने मित्र सुग्रीव से मिलाया। तब सुग्रीव ने उन्हे देवी सीता के वो आभुषण दिखाये जो उन्होने सहायता मांगते हुये आकाश मार्ग जाते हुये नीचे फेंके थे। श्री राम जी की सुग्रीव से मित्रता हुई और सुग्रीव ने देवी सीता को खोजने में पूरा सहयोग देने का वचन दिया।
हनुमान जी ने देवी सीता को खोज निकाला और लंका जाकर देवी सीता से भेंट करके उन्हे भगवान श्री राम का संदेश सुनाया। फिर लंका से आकर श्री राम को देवी सीता के विषय में बताया। तब श्री राम ने लंकापति रावण को उसकी धृष्टता का दण्ड़ देने का निर्णय लेकर लंका पर चढ़ाई कर दी।
श्री राम के लंका पहुँचने में सबसे बड़ी बाधा था विशाल समुद्र। समुद्र को पार करने की युति पर श्री राम अपने सहयोगियों से मंत्रणा कर रहे थे। तब लक्ष्मण जी ने उन्हे सुझाया कि समीप ही कुमारी द्वीप पर ऋषि वकदालभ्य का आश्रम हैं। हमें उनसे कोई सुझाव पूछना चाहिये। तब श्री राम ऋषि वकदालभ्य के आश्रम पहुँचे। श्री राम को देखकर ऋषि वकदालभ्य उन्हे पहचान गये। उन्होने श्री राम से आने का कारण पूछा तो श्री राम ने उन्हे अपनी सारी कथा सुना दी। और उनसे अपना लंका विजय का निश्चय भी बताया। फिर उनसे सागर पार करके लंका पहुँचने का कोई उपाय बताने का आग्रह किया।
तब ऋषि वकदालभ्य ने उन्हे कहा कि, “आप फालगुन माह की कृष्णपक्ष की एकादशी के दिन व्रत किजिये। इस व्रत के प्रभाव से आपकी सभी समस्याओं का समाधान हो जायेगा और आपका अभीष्ट सिद्ध होगा। आप अवश्य ही इस समुद्र को पार करके राक्षसराज रावण को हराकर लंका जीतेंगें।
श्री राम ने ऋषि वकदालभ्य से एकादशी व्रत की विधि पूछी। तब उन्होने कहा कि, “एकादशी से एक दिन पूर्व अर्थात दशमी के दिन स्वर्ण या चाँदी या ताँबा या मिट्टी् का एक घट लेकर उसमें जल भरें और अशोक के या आम के पाँच पल्लव रखें। एक वेदि की स्थापना करें। उस वेदी पर सप्त धान रखें और उस सप्त धान पर घड़ा रखें। एकादशी के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर वेदी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करके उनका पंचामृत से अभिषेक करें। धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान की पूजा करें।
पूजा के बाद पूरे दिन और पूरी रात्रि उस घड़े के समक्ष बैठकर भगवान का ध्यान करें। द्वादशी के दिन स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर उस घड़े को किसी योग्य ब्राह्मण को दान करें। ऋषि वकदालभ्य बोले, ”हे मर्यादा पुरूषोत्त्म राम! यदि आप अपने सेनापतियों के साथ इस व्रत का पालन करोगे तो आपकी विजय निश्चित है।“ श्री राम ने ऋषि वकदालभ्य के वचानानुसार विजया एकादशी के व्रत का पालन किया। इस व्रत के प्रभाव से उन्होने विशाल सागर को पार करके रावण को उसके बंधु-बांधवों के साथ यमलोक भेज दिया और लंका पर विजय पताका फहराई।
परमपिता ब्रह्माजी ने नारदजी से आगे कहा, “हे पुत्र नारद! जो भी मनुष्य इस विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) के व्रत के महात्म्य को पढ़ता या सुनता है, उसे वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है।“ श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा, “हे धर्मराज! जो भी मनुष्य इस व्रत का विधिपूर्वक पालन करेगा, उसकी सभी स्थानों पर विजय होगी।”