Rakshabandhan 2024: जानिये राखी बाँधनें का शुभ मुहूर्त? साथ ही पढ़ियें रक्षाबंधन की कहानी और पूजा विधि

Rakshabandhan

रक्षाबंधन (Rakshabandhan) भाई-बहन के प्रेम का त्यौहार है। इस दिन बहनेंं अपने भाई को राखी बाँधती है। जानिये कब है रक्षाबन्धन? साथ ही पढ़ियें रक्षाबंधन का पौराणिक महत्व, राखी बाँधने का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और रक्षाबंधन की कहानी…

Rakshabandhan
रक्षाबंधन

श्रावण मास (सावन) की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन (Rakshabandhan) का त्यौहार मनाया जाता हैं। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कुशलता और समृद्धि की कामना के साथ भाई की कलाई पर रक्षासूत्र (जिसे राखी भी कहते है) बाँधती है। भाई उसके बदलें अपनी बहनों को उनकी रक्षा का वचन देता और साथ ही उन्हे उपहार भी देता है। रक्षाबंधन भाई-बहन का त्यौहार है।

Rakshabandhan Kab Hai?
रक्षाबंधन कब है?

इस वर्ष रक्षाबंधन (Rakshabandhan) का पर्व 19 अगस्त, 2024, सोमवार के दिन मनाया जायेगा।

रक्षाबन्धन (Rakshabandhan) का पर्व पूर्णिमा के दिन 19 अगस्त को मनाया जायेगा। भद्रोपरान्त प्रदोष काल में रक्षाबन्धन मनाना उचित रहेगा। इस बार भद्रा प्रात: 09:51 बजे से दोपहर 1:33 बजे तक रहेगी। रक्षासूत्र भद्रा के बाद दोपहर 1:33 के बाद बांधना उत्तम होगा।

रक्षाबंधन शुभ समय – दोपहर 01:33 बजे से रात्रि 09:12 बजे तक
अवधि – 07 घंटे 40 मिनट
अपराहन रक्षाबंधन शुभ मुहूर्त – दोपहर 01:51 बजे से शाम 04:24 बजे तक
अवधि – 02 घंटे 33 मिनट
प्रदोष काल में रक्षाबंधन मुहूर्त – शाम 07:00 बजे से रात्रि 09:12 बजे तक
अवधि – 02 घंटे 12 मिनट

(यह समय जयपुर – राजस्थान के अनुसार है।)

किस मुहूर्त में राखी बाँधनी चाहिये?

हिंदु मान्यता के अनुसार रक्षाबंधन (Rakshabandhan) का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जिस दिन पूर्णिमा दोपहर के बाद तक पड़ रही हो। रक्षाबंधन मनाने के कुछ आवश्यक नियम इस प्रकार है

1. अगर पूर्णिमा तिथि के दिन दोपहर के बाद तक के समय में भद्रा लग रही हो तो रक्षाबन्धन नहीं मनाया जाता। ऐसी परिस्थिति में हम यह देखते है कि पूर्णिमा अगर अगले दिन शुरु के तीन पहर तक हो तो रक्षाबन्धन का त्यौहार अगले दिन करना चाहिए।

2. परंतु अगर पूर्णिमा अगले दिन शुरु के तीन पहर तक न हो तो रक्षाबंधन का त्यौहार पहले दिन भद्रा निकलने के बाद प्रदोष काल में मनाया जा सकता हैं।

शास्त्रानुसार भद्रा में रक्षाबंधन मनाना निषेध है। इसके अतिरिक्त ग्रहण के सूतक के समय भी रक्षाबंधन मनाना निषेध है।

Shravan Purnima (Rakhi Purnima) Worship Method
श्रावण पूर्णिमा (राखी पूर्णिमा) की पूजा-विधि

1. श्रावण पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन (Rakshabandhan) के दिन महिलाएँ प्रात:काल स्नादि नित्यक्रिया से निवृत होकर स्वच्छ कपड़े पहनेंं।

2. घर की दीवार या दरवाजे के दोनों ओर अपने ईष्ट देवता का नाम लिखें या उनका चिन्ह बनायें या स्वास्तिक बनायें।

3. तत्पश्चात दूध की मीठी सेवई या खीर या और किसी अन्य मिठाई से उसकी पूजन करें।

4. फिर उसके बाद उस पर राखी बाँधें (लगायें)।

5. नाग पंचमी की पूजा पर जो स्त्रियाँ गेहूँ की बालियाँ लगाती हैं, वो अपने भाईयों की कलाई पर राखी बाँधने के बाद भाईयों के कानों पर गेहूँ की बालियों को लगायें।

6. बहुत से लोग इस दिन का उपवास रखते है और रक्षाबंधन के बाद ही भोजन ग्रहण करते है। और कुछ लोग श्रावण पूर्णिमा से एक दिन पूर्व उपवास रखते है और विधि विधान के साथ रक्षाबंधन मनाने के बाद भोजन ग्रहण करते है।

7. इस दिन पितृ-तर्पण और ऋषि-पूजन भी किया जाता है। इस दिन इसका विशेष महत्व होता हैं।

8. देश के कुछ क्षेत्रों में इस दिन श्रवण पूजन की जाती है। वही श्रवण कुमार जो अपने अंधे माता-पिता को अपने कंधे पर लेकर तीर्थ कराने निकला था। परन्तु भूलवश महारज दशरथ के हाथों मारा गया था। इस दिन उस मातृभक्त-पितृभक्त श्रवण कुमार को याद किया जाता है और उनकी पूजा की जाती है।

9. रक्षाबंधन के दिन बहन भाईयों की लम्बी उम्र, कुशलता और समृद्धि की कामना करते हुए उसकी कलाई पर राखी बांधे और भाई अपनी बहन को उपहार के साथ उसे उसकी रक्षा का वचन देंं। भाई को जब राखी बांधे तब इस मंत्र का उच्चारण करेंं।

ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।

Significance Of Raksha Bandhan
रक्षाबंधन का पौराणिक महत्व

पौराणिक कथा के अनुसार कई वर्षों तक देवताओं और असुरों के मध्य युद्ध होता रहा और युद्ध में देवता कमजोर पड़ने लगे। तब एक समय ऐसा भी आया जब लगने लगा की असुर देवताओं को परास्त कर देंगे। और समूचे त्रिलोक में उनका साम्राज्य हो जायेगा। वो तीनो लोको को अपने अधीन कर लेंगे।

ऐसे समय में देवराज इन्द्र ने देवगुरु बृहस्पति से सहायता माँगी। वो उनकी शरण में गये और उनसे प्रार्थना करी। तब देवगुरु बृहस्पति ने देवराज की सहायता के लिये रक्षा विधान का अनुष्ठान किया और अपनी मंत्र शक्ति से एक दिव्य अभिमंत्रित रक्षा सूत्र प्रकट किया। फिर अपने मंत्रो के द्वारा उसमें शक्ति का संचार किया। उस रक्षा सूत्र को देवराज इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने अपने पति के दाहिने हाथ पर बाँध दिया।

उस रक्षा सूत्र की शक्ति पाकर देवराज इन्द्र ने असुरों को परास्त करके अपना सम्मान और राज्य पुन: प्राप्त किया।

Raksha Bandhan Ki Kahani
रक्षाबंधन की कहानी

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार राजा बलि ने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न करके बहुत शक्ति अर्जित कर ली थी और उसी शक्ति के बल पर उसने स्वर्ग आदि तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। तब देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता माँगी।

राजा बलि ने एक यज्ञ का आयोजन किया। तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण करके राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। दैत्यगुरू शुक्राचार्य ने राजा बलि को ऐसा करने से मना किया। परंतु राजा बलि ने अपने यहाँ आये याचक को खाली हाथ भेजने से मना कर दिया। और वामन रूप धारी भगवान विष्णु को तीन पग भूमि देने का सन्कल्प कर लिया।

तब भगवान विष्णु ने विराट रूप लेकर एक पग में पूरी पृथ्वी, आकाश और समस्त दिशाओं को ढक लिया। दूसरे पग में स्वर्ग आदि समस्त लोकों को ढक लिया। फिर राजा बलि से पूछा की तीसरा पग कहाँ रखूँ ? तब राजा बलि ने कहा, कि आप अपना तीसरा पग मेरे शीष पर रखों। भगवान विष्णु ने वैसा ही किया और राजा बलि को पाताल लोक में भेज दिया। भगवान विष्णु राजा बलि की धर्मपरायणता और श्रद्धा देखकर अति प्रसन्न हुये और उससे वर मांगने के लिये कहा। तब राजा बलि ने भगवान विष्णुजी से हर समय अपने साथ रहने का वर माँगा। भगवान ने उसको मनचाहा वरदान दे दिया और उसके साथ पाताल लोक में चले गयें।

तब भगवान विष्णु को वापस लाने के लिये माता लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बाँध कर अपना भाई बनाया और भगवान विष्णु को उनके वचन से मुक्त करने का आग्रह किया। तब राजा बलि ने माँ लक्ष्मी की बात मानकर विष्णु जी को उनके वचने से मुक्त करके उस वचन की अवधि को चार माह तक ही सीमित कर दिया। तब से रक्षाबंधन पर बहन भाई को राखी बांधती आ रही है।

रक्षाबंधन (Rakshabandhan) से जुडी अन्य पौराणिक कथाएँ :

• हिंदु मान्यता के अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया। उसमें भगवान श्री कृष्ण को अग्रपूजा के लिये चुने जाने पर चेदिराज शिशुपाल ने भगवान श्री कृष्ण को अपशब्द कहने शुरू कर दिये। भगवान श्रीकृष्ण ने उसके सौ पापों को माफ करने के बाद उसको रोका परन्तु वो नही रूका। तब भगवान श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया। तब उनकी उँगली से रक्त बहता देखकर द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण की अंगुली पर अपनी साड़ी से कपड़ा फाड़कर उनकी चोट पर बांधा था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को उसकी रक्षा का वचन दिया था। और जब भरी राजसभा में दुःशासन ने द्रौपदी के वस्त्रहरण का प्रयास किया तब भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी के सम्मान की रक्षा करी।

रक्षाबंधन (Rakshabandhan) का पर्व पूरे देश के घर-घर में मनाया जाता है। यह त्यौहार बहन और भाई के प्रेम का प्रतीक है। आप सभी को रक्षाबंधन की ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ।