पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग में हरछठ (Harchat) जिसे हल षष्ठी (Hal Shashti) भी कहते है उस दिन श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था। बलराम जी को शेषनाग का अवतार माना जाता है। इस दिन उनकी पूजा किये जाने का विधान है। विधि-विधान से हरछठ (Harchat) का व्रत और पूजन करने से साधक को सुख-समृद्धि, सौभाग्य एवं संतान की सुरक्षा प्राप्त होती है। जानियें कब है हल षष्ठी? साथ ही पढ़ियें इसका महत्व, पूजन विधि, नियम और व्रत कथा…
Harchat 2024 (Hal Shashti)
हरछठ (हल षष्ठी)
भाद्रपद (भादों) मास की कृष्णपक्ष की षष्ठी तिथि के दिन हरछठ (Harchat) का पर्व मनाया जाता हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई श्री बलरामजी का इस दिन जन्म हुआ था। इसीलिये इस दिन उनका जन्मोत्सव मनाया जाता है। हल बलरामजी का प्रिय शस्त्र है, इसीलिये उन्हे हलधर और उनकी जयंती के पर्व को ‘हल षष्ठी’ कहा जाता हैं। पूरे भारतवर्ष में इस त्यौहार को और भी कई नामों से जाना जाता है जैसे, ललही छठ, चंद्र छठ, बलराम जयन्ती, बलदेव छठ, रंधन छठ, हलछठ (Hal Chhat) , हरछठ व्रत (Harchat), चंदन छठ, तिनछठी और तिन्नी छठ। कुछ जगहों पर इस दिन को सीता माता के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता हैं।
हरछठ (Harchat) का पर्व बलराम जी को समर्पित हैं। धर्मग्रंथानुसार बलराम जी शेषनाग जी के अवतार थे। द्वापर युग में जब भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में जन्म लिया था तब शेषनाग ने उनके बड़े भाई बलराम के रूप में जन्म लिया था। बलराम जी, माता देवकी और वसुदेव जी की सातवी संतान थे। कंस से बचाने के लिये उन्हे संकर्षण विधि के द्वारा माता रोहिणी के गर्भ में स्थापित किया गया था। इस प्रकार बलराम जी ने माता रोहिणी के गर्भ से जन्म लिया था। बलराम जी का एक नाम संकर्षण भी हैं।
Hal Chhat Vrat Kab Hai?
हल छठ कब हैं?
इस वर्ष हरछठ (Harchat) व्रत 24 अगस्त, 2024 शनिवार के दिन किया जायेगा।
Hal Shashti Vrat Aur Pujan Ki Vidhi
हल षष्ठी व्रत एवं पूजन विधि
1. हरछठ (Harchat) वाले दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें।
2. फिर पूजा के लिये गोबर लेकर आयें और उससे जमीन लीप कर एक तालाब की आकृति बनायें।
3. तत्पश्चात झरबेरी, अमलतास और पलाश की एक-एक ड़ाली को बाँधकर एक हरछठ बनायें। फिर उस हरछठ को इस तालाब में झरबेरी, ताश (अमलतास ) तथा पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई ‘हरछठ’ को तालाब में गाड़ दें। इसके बाद इनका पूजन करें।
4. इसकी पूजा में सात अनाज चढ़ाने की परम्परा हैं। सात अनाज में गेहूं, जौ, चना, मूंग, मक्का धान और अरहर लें। इन सात अनाजों को चढ़ाने के पश्चात हरी कजरियां, धूल, होली दहन की राख, होली की आग पर भुने होरहा (भुने हुए बूटे) और जौ की बालें अर्पित करें।
5. तालाब में गाड़ी गई हरछठ के पास आभूषण और हल्दी का रंगा हुआ कपड़ा रखें।
6. तत्पश्चात भैंस के दूध से बने मक्खन से हवन करें। ध्यान रहे इस दिन गाय के दूध से बनी कोई चीज काम न लें।
7. हवन के बाद हल छठ (Hal Chhat) की कथा कहें या सुनें।
कथा सुनने के बाद इस मंत्र का पाठ करके प्रार्थना करें –
गंगाद्वारे कुशावर्ते विल्वके नीलेपर्वते।
स्नात्वा कनखले देवि हरं लब्धवती पतिम्॥
ललिते सुभगे देवि-सुखसौभाग्य दायिनि।
अनन्तं देहि सौभाग्यं मह्यं, तुभ्यं नमो नमः॥
भावार्थ- हे देवी! आपने गंगा द्वार, कुशावर्त, विल्वक, नील पर्वत और कनखल तीर्थ में स्नान करके पति रूप में भगवान शंकर को पाया है। सुख एवं सौभाग्य प्रदान करने वाली ललिता देवी आप मुझे भी अखण्ड़ सुहाग प्रदान किजिये। मेरा आपको बार-बार प्रणाम है।
Harchat Vrat Ke Niyam
इन विशेष बातों का ध्यान रखें हर छठ व्रत एवं पूजन में
1. हल छठ (Hal Chhat) के दिन हल पूजन का बहुत महत्व होता है।
2. हल छठ के दिन गाय के दूध, दही एवं गाय के दूध से बनी किसी भी वस्तु का सेवन करना निषेध हैं।
3. हरछठ (Har Chhat) पर हल के द्वारा जुता हुआ अन्न खाने का भी बहुत महत्व होता है।
4. हरछठ के दिन महुए की दातुन से दांत साफ करने चाहिए।
Hal Shashti Vrat Katha
हल षष्ठी की व्रतकथा
बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक ग्वालिन रहा करती थी। वो स्वभाव से बहुत लालची थी। वो हर दिन गाँव में दूध, दही, मक्खन बेचने जाती थी। वो ग्वालिन गर्भवती थी और उसके प्रसव का समय पास आ गया था।
एक दिन जब वो गाँव में दूध-दही बेचने जा रही थी, तो मार्ग में उसके प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। उसने सोचा की यदि मैं प्रसव के कारण दूध-दही बेचने नही जाऊँगी तो ये सब व्यर्थ हो जायेगा। यही सोचकर वो आगे बढ़ती रही, परंतु गांव पहुँचने से पहले ही उसका प्रसव हो गया। उसने झरबेरी की ओट में बच्चे को जन्म दिया। परंतु अपनी वस्तुएँ बेचने के उन्माद में वो बच्चे को वही छोड़कर गांव मे दूध-दही आदि बेचने चली गई।
उस दिन सन्योग से हरछठ (Harchat) थी। गांव वालों ने उससे पूछा की यह दूध भैंस का है या गाय का? आज हल षष्ठी है और हम आज सिर्फ भैंस के दूध से बनी वस्तुएँ ही उपयोग में लेंगे। उसने मन ही मन सोचा यदि मैं इन्हे सच बता दूंगी कि यह दूध गाय और भैंस दोनो का मिश्रित है, तो यह लोग आज मुझसे दूध नही खरीदेंगे। इससे मेरा सारा परिश्रम और दूध व्यर्थ हो जायेगा। यह सब सोच कर उसने गाँव वालो से झूठ बोल दिया कि यह दूध भैंस का ही हैं। भोले-भालेगांव वालो ने उसकी बात को सच मानकर उससे दूध खरीद लिया।
उस ग्वालिन को आभास भी नही हुआ कि उसने कितना बड़ा अपराध किया है। उसके इस पापकृत्य के फलस्वरूप उसने जिस झरबेरी की ओट में अपने नवजात बच्चे को छोड़ा था, उसके पास के खेत में किसान हल चला रहा था, तभी अचानक उसके बैल बेकाबू होकर दौड़े और उनके लगे हल का फल बच्चे के पेट में धंस गया। हल के घुसने से वो बालक वही मर गया।
बच्चे को मरा देखकर किसान को बहुत दुख हुआ। किसी को पता न चले यही सोचकर उसने उस बच्चे के शरीर के घाव को झरबेरी के कांटों से टाँक दिया। और अपने बैलों को लेकर वहाँ से चला गया।
जब ग्वालिन दूध बेचकर उस झरबेरी के पास पहुंची तो अपने बच्चे की ऐसी हालत देखकर चीख मारकर रोने लगी। तभी उसे स्मरण हुआ कि आज हल षष्ठी के दिन लोगो को झूठ बोलकर भैंस के स्थान पर गाय और भैंस का मिश्रित दूध देकर उनकी पूजा को खंड़ित किया है। उसने जो अपराध किया है यह उसी का परिणाम है। ईश्वर ने उसे उसी पाप की सजा दी है।
यही सोचकर उसके मन में प्रायश्चित का भाव जागा और अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिये वो वापस उसी गांव में गयी जहाँ उसने लोगो दूध बेचा था। वहाँ हर घर और हर गली-मुहल्ले में घूम-घूम कर उसने अपनी गलती स्वीकारी, उन लोगों को उसे मिली सजा के विषय में बताकर उनसे क्षमा माँगी।
तब उन स्त्री और पुरूषों को उसपर दया आ गयी और उन्होने उसे क्षमा कर दिया। साथ ही ईश्वर से प्रार्थना करी कि उस ग्वालिन की भूल को क्षमा करें।
सभी से क्षमा माँगने के बाद जब वो एक बार फिर से झरबेरी के नीचे पहुंची तो उसने देखा कि उसका बच्चा जीवित अवस्था में था। उसकी खुशी का ठिकाना नही रहा। उसने हाथ जोड़कर ईश्वर को धन्यवाद दिया और भविष्य में कभी भी असत्य न बोलने का प्रण लिया।
अपने स्वार्थ के लिए असत्य बोलना बहुत बड़ा पाप है। इसको ब्रह्म हत्या के समान माना गया हैं। इसीलिये हमें कभी भी अपने स्वार्थ और दूसरों का अहित करने के लिये झूठ नही बोलना चाहिये।