Maa Siddhidatri: माँ सिद्धिदात्री के मंत्र, स्तुति, स्तोत्र, कवच पाठ से करें माँ की साधना…

Maa Siddhidatri

अष्ट-सिद्धि व नव-निधि प्रदान करने वाली है माँ सिद्धिदात्री की उपासना (Maa Siddhidatri Ki Upasana)। जानियें माँ सिद्दिदात्री की साधना (Maa Siddhidatri Ki Sadhana) कब और कैसे करें? और कैसा है माँ का स्वरूप? साथ ही पढ़ियें देवी सिद्धिदात्री की कथा (Devi Siddhidatri Ki Katha), उनकी उपासना का महत्व और माँ सिद्धिदात्री के मंत्र एवं स्तुति (Maa Siddhidatri Mantra)…

Navratri Ke Ninth Day Kare Maa Siddhidatri Ki Upasana
नवरात्रि के नौवे दिन करें माँ सिद्धिदात्री की उपासना

माँ आदिशक्ति का नौवाँ स्वरूप है देवी सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri)। नवरात्रि के नवें दिने माँ सिद्धिदात्री की पूजा किये जाने का विधान हैं। अष्ट सिद्धि और नव-निधि प्रदान करने वाली है माँ सिद्धिदात्री। माँ सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) अपने भक्तों के अवगुणों एवं दोषों का नाश करके उन्हे संमार्ग की ओर ले जाती हैं।

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Maa Siddhidatri Ka Swaroop
माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप

  • माँ सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) का वाहन शेर हैं।
  • कमल माँ सिद्धिदात्री का आसन है, जिस पर माँ विराजमान होती हैं।
  • माँ सिद्धिदात्री की चार भुजायें हैं, दाहिनी ओर के एक हाथ में माँ ने गदा और दूसरे हाथ में चक्र धारण किया हैं। बायी ओर के एक हाथ में शंख और दूसरे हाथ में कमल का पुष्प शोभायमान हैं।
  • माँ ने सिर पर मुकुट धारण किया हैं और उनके मुख पर मंद मुस्कान बहुत मोहक लगती हैं।
  • माँ सिद्धिदात्री ने लाल वस्त्र धारण किये हैं।
  • माँ सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करने वाली हैं।

Maa Siddhidatri Ki Katha
माँ सिद्धिदात्री की कथा

हिंदु मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति के लिए माँ सिद्धिदात्री की तपस्या की थी। जो अष्ट सिद्धियाँ भगवान शिव ने माँ सिद्धिदात्री से प्राप्त की थी वो हैं- अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व।

माँ सिद्धिदात्री (Maa Siddhidatri) ने भगवान शिव के तप से प्रसन्न होकर उन्हे मनोवांछित सिद्धियाँ प्रदान की थी। हिंदु धर्मग्रंथों के अनुसार देवी आदिशक्ति ही माँ सिद्धिदात्री के रूप में भगवान शिव के बायें भाग में प्रकट हुई, जिससे भगवान शिव का आधा शरीर देवी सिद्धिदात्री का हो गया। तभी से भगवान शिव को अर्धनारीश्वर भी कहा जाता था।

Maa Siddhidatri Ki Upasana Ka Mahatva
माँ सिद्धिदात्री की उपासना का महत्व

मनुष्य, यक्ष, गंधर्व, सिद्ध, देव, दानव आदि सभी माँ सिद्धिदात्री की उपासना (Maa Siddhidatri Ki Upasana) करते हैं। माँ सिद्धिदात्री के ध्यान और पूजन से

  • मनुष्य को उसकी वांछित वस्तुयें सहजता से सुलभ हो जाती हैं।
  • मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति हैं।
  • उसके लिये कोई भी वस्तु अप्राप्य नही रहती और ना ही कोई स्थान अगम्य रहता हैं।
  • पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से विधिवत माँ सिद्धिदात्री की उपासना करने से जातक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती हैं।
  • जातक शोक, भय, रोग, दोष आदि से मुक्त हो जाता हैं।
  • ज्योतिषशास्त्र के अनुसार माँ सिद्धिदात्री की साधना (Maa Siddhidatri Ki Sadhana) से जातक को केतु ग्रह की अनुकूलता प्राप्त होती हैं।

Maa Siddhidatri Ke Mantra
माँ सिद्धिदात्री मंत्र

ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥

माँ सिद्धिदात्री प्रार्थना मंत्र

सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥

सिद्धिदात्री स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

सिद्धिदात्री ध्यान मंत्र

वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
कमलस्थिताम् चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्विनीम्॥
स्वर्णवर्णा निर्वाणचक्र स्थिताम् नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शङ्ख, चक्र, गदा, पद्मधरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटिं निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

सिद्धिदात्री स्त्रोत

कञ्चनाभा शङ्खचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम्।
नलिस्थिताम् नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोऽस्तुते॥
परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता, विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भवसागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनीं।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥

सिद्धिदात्री कवच मंत्र

ॐकारः पातु शीर्षो माँ, ऐं बीजम् माँ हृदयो।
हीं बीजम् सदापातु नभो गृहो च पादयो॥
ललाट कर्णो श्रीं बीजम् पातु क्लीं बीजम् माँ नेत्रम्‌ घ्राणो।
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै माँ सर्ववदनो॥

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