Gopashtami 2024: जानियें कब और कैसे करें गोपाष्टमी पर गौ-पूजा? पढ़ियें गोपाष्टमी की कथा एवं महत्व

Gopashtami

गोपाष्टमी (Gopashtami) के दिन गोसेवा और गौपूजन से श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। जानियें गोपाष्टमी पर गौ-सेवा और गौ-पूजन का महत्व। कैसे करें गोपाष्टमी पर गौ-पूजा? कब है गोपाष्टमी? साथ में पढ़ें गोपाष्टमी से जुड़ी पौराणिक कथा (Gopashtami Ki Katha)।

Gopashtami 2024
गोपाष्टमी 2024

कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि के दिन गोपाष्टमी (Gopashtami) का पर्व मनाया जाता हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार गोपाष्टमी के ही दिन से भगवान श्री कृष्ण ने गौ-चारण अर्थात गायों को चराना शुरू किया था। भगवान श्री कृष्ण ने सभी को गौसेवा का महत्व बताया। स्वयं श्री कृष्ण गायों की सेवा किया करते थे। गोपाष्टमी (Gopashtami) पर गौ-पूजन से श्री कृष्ण की कृपा के साथ धन-समृद्धि भी प्राप्त होती हैं।

Gopashtami Kab Hai?
गोपाष्टमी कब हैं?

इस वर्ष गोपाष्टमी (Gopashtami) का पर्व 9 नवम्बर, 2024 शनिवार के दिन मनाया जायेगा।

Gop Ashtami Ki Puja Vidhi
गोप अष्टमी की पूजा विधि

गोपाष्टमी (Gopashtami) के दिन गौ-पूजा (Gau Puja) और भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती हैं।

  • गोपाष्टमी (Gopashtami) के दिन प्रात:काल गाय एवं उसके बछड़े को नहला कर साफ-सुथरा करें। फिर उनके पैरों में घुंघरू बांधे और उन्हे आभूषण पहनाकर सजायें।
  • फिर गाय और बछड़े के रोली-चावल से तिलक करें। उसे वस्त्र अर्पित करने के लिये उसके सींग पर चुनरी बांधे।
  • गाय और बछड़े को हरा चारा, गुड़ व जलेबी आदि खिलायें।
  • फिर धूप-दीप से उनकी आरती उतारें।
  • तत्पश्चात्‌ गौमाता के चरण छूयें।
  • गाय की परिक्रमा करें। फिर उसे बाहर चराने के लिये लेकर जाये।
  • जब संध्या के समय गायें वापस आये तब उसे साष्टांग दण्ड़वत्‌ होकर प्रणाम करें।
  • गाय के चरणों की धूल से तिलक करें।
  • गोपाष्टमी के दिन ग्वालों का तिलक करके उन्हे दान-दक्षिणा दी जाती हैं।
  • गोपाष्टमी पर मंदिरों में अन्नकूट का आयोजन किया जाता हैं।
  • गोपाष्टमी पर भगवान श्री कृष्ण की भी पूजा-अर्चना की जाती हैं।
  • जिनके घरों में गाय ना हो वो गौशाला में जाकर गायों की सेवा-पूजा करें। और उनके निमित्त दान-पुण्य करें।

Gau Seva Ka Mahatva
गौसेवा का महत्व

हिंदु धर्म में गाय की सेवा करने का बहुत महत्व हैं। ऐसा माना जाता है कि गाय के अंदर सभी देवी-देवताओं का वास होता हैं। स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने गायों की सेवा और पूजा की थी। उन्होने सभी को गोसेवा का महत्व बताकर गौसेवा के लिये प्रेरित किया था।

  • गाय की सेवा करने से जातक को महान पुण्य प्राप्त होता हैं।
  • उसके जीवन के सभी दुख-संतापो का नाश हो जाता हैं।
  • शरीर निरोगी रहता हैं।
  • घर-परिवार में सुख-शांति का वास होता हैं।
  • धन-समृद्धि में वृद्धि होती हैं।
  • जातक को श्री कृष्ण की प्राप्त होती हैं।
  • मृत्यु के पश्चात सद्गति प्राप्त होती हैं।

Gopashtami Ki Katha
गोपाष्टमी की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान श्रीकृष्ण की आयु मात्र छ: वर्ष की हुई तो उन्होने माता यशोदा से कहा, “मैया! अब मैं बड़ा हो गया हूँ। अब मैं भी गायों को चराने के लिये वन जाऊंगा।“ माता यशोदा ने नन्द बाबा को श्री कृष्ण के हठ के विषय में बताया तो वो गौ-चारण का शुभ मुहूर्त जानने के लिये ऋषि शांडिल्य के पास गयें।

ऋषि शांडिल्य जब गौ-चारण का शुभ मुहूर्त निकालने लगे तो, वो बहुत आश्चर्य में पड़ गये क्योकि उस दिन के अतिरिक्त कोई अन्य शुभ मुहूर्त नही निकल रहा था। ऋषि शांडिल्य ने नंद बाबा को कहा कि आज के अतिरिक्त कोई भी अन्य शुभ मुहूर्त नही हैं। उस दिन कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि थी। जिस दिन भगवान कुछ करना चाहे तो उससे शुभ मुहूर्त कोई और हो ही नही सकता।

नंद बाबा ने घर आकर माता यशोदा को सारी बात बताई। तब मैया यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण का श्रृन्गार किया। और पूजा करा कर उन्हे गायों को चराने के लिये वन भेजा। कहते है जब मैया यशोदा ने श्रीकृष्ण से चरण पादुका पहनने के लिये कहा तो उन्होने कहा कि मेरी गायों ने चरण पादुका नही पहन रखी। अगर आप मुझे चरण पादुका पहनाना चाहती हो, तो पहले गौमाता को पहनाओं। भगवान श्री कृष्ण बिना पैरों कें कुछ पहने, नंगे पैर ही गायों को चराने वन जाया करते थे। भगवान श्री कृष्ण को गोपाल के नाम से भी पुकारा जाता हैं।

Gopashtami Ke Puranik Kathaye
गोपाष्टमी की अन्य पौराणिक कथाएँ

पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र देव की पूजा के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिये ब्रजवासियों को प्रेरित किया, तब देवराज इंद्र ने क्रोध में आकर मेघों को ब्रजक्षेत्र में मूसलाधार बारिश का आदेश दिया था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की और देवराज इंद्र के अभिमान को भंग किया। तब पूरे सात दिनों तक ब्रज क्षेत्र में मूसलाधार बारिश हुई थी। गोपाष्टमी (Gopashtami) के दिन ही देवराज इंद्र भगवान ने प्रकट होकर श्री कृष्ण से क्षमा मांगी थी और इसी दिन भगवान ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली से उतार कर वापस अपने स्थान पर स्थापित किया था।

एक अन्य कथा के अनुसार गोपाष्टमी (Gopashtami) के दिन राधा जी गवाले का रूप लेकर श्री कृष्ण के साथ गायों को चराने के लिये वन गयी थी। क्योकि लड़की होने के कारण वो गाय चराने वन में नही जा सकती थी।

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