Chhath Puja 2023: जानियें कब से शुरू होगा छठ पूजा का महापर्व? पढ़ियें छठ पूजा की विधि, रस्में, नियम, महत्व और कथायें…

Chhath Puja

सन्तान प्राप्ति और उसकी सुरक्षा के लिये किया जाता हैं छठ माता का व्रत (Chhath Mata Ka Vrat) एवं पूजन। कार्तिक माह में छठ पूजा (Chhath Puja) का पर्व चार दिनोंं तक बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस महापर्व की शुरुआत नहाय खाय (Nahay Khay) की रस्म के साथ होती है। जानियें कब से आरम्भ होगी छठ पूजा? कौन सी रस्म (Chhath Puja ki Rasme) किस दिन मनायी जायेगी? साथ ही पढ़ियें छठ पूजा का महत्व, पूजा विधि, व्रत के नियम और लोक कथा…

Chhath Puja 2023
छठ पूजा 2023

कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की षष्ठी के दिन छठ पूजा (Chhath Puja) का उत्सव मनाये जाने की परम्परा हैं। इसे सूर्य षष्ठी व्रत (Surya Shashti Vrat) और डाला छठ (Dala Chhath) के नाम से भी पुकारा जाता हैं। इस महापर्व का आरम्भ कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि से होता है और समापन कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की सप्तमी को होता हैं। छठ पूजा (Chhath Puja) का त्यौहार भारत देश के बिहार, झारखण्ड़ और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बहुत धूम धाम से मनाया जाता हैं। इस व्रत में लगातार चतुर्थी तिथि से सप्तमी तिथि तक व्रत किया जाता हैं। मातायें अपनी संतान की कुशलता की कामना से छ्ठ माता (Chhath Mata) का व्रत एवं पूजन करती हैं। जिनके संतान ना हो वो भी संतान प्राप्ति की कामना से सूर्य छष्ठी (Surya Shashti) का व्रत एवं पूजन करती हैं।

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Chhath Puja Kab Hai?
छठ पूजा का पर्व कब से कब तक मनाया जायेगा?

इस वर्ष छठ पूजा (Chhath Puja) का पर्व 17 नवम्बर, 2023 शुक्रवार से आरम्भ होकर 20 नवम्बर, 2023 सोमवार तक मनाया जायेगा।

Dala Chhath Puja Ki Paramparaye / Rasme
डाला छठ पूजा पर निभाई जाने वाली रस्में

नहाय-खाय (Nahay Khay) – 17 नवंबर, 2023 – चतुर्थी तिथि के दिन नहाय-खाय (Nahay Khay) की रस्म होती हैं। इस रस्म के नाम से ही पता चल जाता है कि इसमें क्या किया जाता हैं? इस रस्म के अंतर्गत व्रती अपने घर को और स्वयं शुद्ध करते हैं। घर की शुद्धि के लिये उसको साफ-सुथरा किया जाता हैं। और स्वयं के मन और शरीर की शुद्धि करते हैं। इस दिन गंगा नदी में स्नान करे और अगर यह सम्भव ना हो तो स्नान के जल में गंगा जल मिलाकर स्नान करें।

व्रत करने वाले इस दिन कद्दू की सब्जी, दाल-चावल आदि शुद्ध शाकाहारी और सात्विक भोजन करें। साथ ही इस दिन घर के सभी सदस्य व्रत करने वाले सदस्य के भोजन करने के उपरान्त ही भोजन करते हैं।

नहाय-खाय (Nahay Khay) की रस्म में इस बातों का ध्यान रखें

  1. व्रत करने वाले स्त्री-पुरूष को छठ पूजा के व्रत की समाप्ति तक भूमि पर ही शयन करना चाहिये।
  2. मांस मदिरा का सेवन ना करें।
  3. स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें।
  4. इस दिन छठ पूजा (Chhath Puja) के प्रसाद के लिये उपयोग में आने वाले चावल और अनाज को धोकर सुखाया जाता है और जब तक वो सूख ना जाये तब तक उसका ध्यान रखना होता है। जिससे कोई पक्षी आदि उसको झूठा ना कर दें।

खरना की रस्म (Kharna) – 18 नवंबर, 2023 – पंचमी तिथि के दिन खरना (Kharna) की रस्म मनायी जाती हैं। इसे लोखण्ड़ा के नाम से भी जाना जाता है। इस रस्म के अंतर्गत व्रत करने वाले अपने रिश्तेदारों, मित्रों, परिचितों और पड़ोसियों आदि को प्रसाद ग्रहण करने के लिये बुलाते हैं। इस दिन व्रती पूरे दिन उपवास का पालन करते है और फिर सायंकाल एक समय भोजन करते हैं। खरना (Kharna) की रस्म के दिन बने भोजन में चीनी और नमक का उपयोग नही किया जाता। इस दिन भोजन में विशेष व्यंजन बनाये जाने की परम्परा हैं। इस दिन गन्ने के रस में चावल की खीर बनायी जाती है, साथ ही चावल-दूध का पिट्ठा और घी से चुपड़ी हुई रोटी बनती हैं।

संध्या अर्ध्य (छठ पूजन अस्तगामी) – 19 नवंबर, 2023 – कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि के दिन व्रत करने वाले संध्या के समय सूर्य भगवान को अर्ध्य देते हैं। यह इस पर्व का मुख्य दिन होता हैं। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जल व्रत करता हैं।

उषा अर्ध्य (डाला छठ उदयगामी) – 20 नवंबर, 2023 – छठ पूजा (Chhath Puja) के चौथे दिन सूर्योदय के समय सूर्यदेव को अर्ध्य दिया जाता हैं। व्रत करने वाला सूर्योदय से पूर्व ही नदी के किनारे पहुँचकर अपने परिवारजनों के साथ सूर्य देव को अर्ध्य दें। तत्पश्चात छठ माता से अपनी गलतियों की क्षमा मांगकर अपनी संतान की सुरक्षा और परिवार में शांति-समृद्धि की कामना करें।
फिर पीपल के पेड़ की पूजा करें। पूजा के उपरांत व्रत करने वाला कच्चे दूध का शरबत पीकर और प्रसाद खाकर व्रत का पारण करें।

Chhath Puja Ki Vidhi
छठ पूजन की विधि

  • बांस की तीन टोकरियों में फल, ठेकुआ और चावल के लड़्डू रखें।
  • फिर इससे अर्ध्य देने के लिये सूप को तैयार करें।
  • संध्या के समय व्रत करने वाले अपने परिजनों के साथ सूर्यास्त होने से पहले नदी के किनारे पहुँचकर नदी में उतरकर अस्त होते सूर्य को अर्ध्य दें।
  • भगवान सूर्य को जल एवं दूध से अर्ध्य दिया जाता हैं।
  • फिर प्रसाद से भरें सूप में दीपक रखकर उससे छठ माता की पूजा करें।
  • इसके बाद छठ माता की कथा (Chhath Mata Ki Katha) कहे या सुनें।
  • इस दिन सूर्य देव की उपासना के बाद षष्ठी माता के गीत गाये जाते हैं।

Chhath Puja Ka Mahatva
छठ पूजा का महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार लंका विजय के बाद राम राज्य की स्थापना की कामना से भगवान राम और माता सीता ने कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि के दिन उपवास रखकर भगवान सूर्य की पूजा की थी। फिर अगले दिन सूर्योदय के समय अर्ध्य देकरक पूजा को पूर्ण किया था।

एक अन्य कथा के अनुसार द्वापर युग में जब पा‌ण्ड़व अपना सबकुछ जुएँ मे हारकर वनवास की शर्त को पूरा कर रहे थे, तब द्रौपदी ने कार्तिक मास की षष्ठी के दिन व्रत करके सूर्यदेव की उपासना की थी और उनसे पाण्ड़वों का खोया हुआ सम्मान पुन प्राप्त करने की कामना की थी।

हिन्दु मान्यता के अनुसार कार्तिक मास की षष्ठी तिथि के दिन भगवान सूर्य और माता षष्ठी का व्रत एव पूजन करने से

  • साधक की मनोकामना पूर्ण होती हैं।
  • संतान हीन को संतान की प्राप्ति होती हैं।
  • परिवार में सुख-शांति आती हैं।
  • संतान की रक्षा होती हैं।
  • धन-समृद्धि की प्राप्ति होती हैं।
  • आरोग्य की प्राप्ति होती हैं।
  • शक्ति की प्राप्ति होती हैं।

धार्मिक मान्यता के अनुसार छठ पूजा के दिन भगवान सूर्य की पूजा इसलिये की जाती है क्योकि छठ माता (Chhath Mata) भगवान सूर्य की बहन हैं। सूर्यदेव को अर्ध्य देने के बाद छठ माता की पूजा (Chhath Mata Ki Puja) करते है और उनसे संतान एवं परिवार की सुरक्षा की कामना की जाती हैं। अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार छठ माता को माँ दुर्गा का छठा स्वरूप माना जाता हैं। छठ माता को देवी कात्यायनी का रूप समझा जाता हैं। अधिकांशत मातायें छठ माता की पूजा (Chhath Mata Ki Puja) और व्रत सन्तान देने वाली और उसकी रक्षा करने वाली माता के रूप में करती हैं।

Chhath Puja Ki Puranik Katha
छठ पूजा की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय के स्वायम्भुव मनु के पुत्र प्रियव्रत का राज्य था। वह बहुत ही न्यायप्रिय और धर्मपरायण थे। उनकी पत्नी मालिनी भी एक पतिव्रता स्त्री थी। किंतु दुर्भाग्यवश उन दोनो के कोई संतान नही थी। इसके कारण वो दोनों अत्यंत दुखी थे।

राजा प्रियव्रत अपनी समस्या लेकर ऋषि कश्यप के पास गये और उन्हे सारा हाल सुनाया। तब ऋषि कश्यप ने एक पुत्रेष्टि यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ के प्रभाव से राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। किंतु वो पुत्र मृत पैदा हुआ। यह देखकर राजा-रानी दोनों दुख के सागर में डूब गये। राजा-रानी दोनों ने पुत्र वियोग में अन्न जल त्याग दिया और अपने प्राण त्यागने का निर्णय कर लिया।

अन्न जल त्यागने से उनके द्वारा अंजाने में षष्ठी का व्रत (Shashti Vrat) हो गया। जब वो दोनों अपने पुत्र के मृत शरीर को लेकर नदी के पास पहुँचे और जैसे ही दोनों ने प्राण त्यागने की इच्छा से नदी में प्रवेश किया तभी माता षष्ठी आकाश से विमान में बैठकर आयी और राजा से कहा, “ हे प्रियव्रत! मैं परमपिता ब्रह्मा की मानस पुत्री देवी षष्ठी हूँ। जो भी मेरा व्रत एवं पूजन करता है, मैं उसकी मनोकामना पूर्ण करती हूँ। मैं संतानहीन को संतान देती हूँ और संतानवान की संतान की रक्षा करती हूँ। तुमने पंचमी से षष्ठी तक अन्न-जल त्यागकर अंजाने ही मेरा व्रत किया है, और उसी के प्रभाव से मैं तुम्हारे समक्ष प्रकट हुई हूँ।“

राजा ने देवी षष्ठी (Devi Shashti) से अपने पुत्र के लिये जीवन दान मांगा। देवी षष्ठी ने राजा प्रियव्रत के मृत पुत्र के सिर पर हाथ फेरकर उसे पुन: जीवित कर दिया। इसके बाद से राजा रानी ने हर कार्तिक मास की षष्ठी को व्रत एवं पूजन करना आरम्भ कर दिया। तभी से छठ पूजा (Chhath Puja) किये जाने का प्रचलन हुआ।

Surya Shashti Ki Lok Katha
सूर्य षष्ठी की प्रचलित लोक कथा

बहुत समय पूर्व बिन्दुसार तीर्थ में एक वैश्य निवास करता था। उसका नाम महीपाल था। महीपाल बहुत चतुर व्यवसायी था। किंतु उसकी धर्म-कर्म में कोई रूचि नही थी। बल्कि वो नास्तिक और धर्म के विरूद्ध आचरण करने वाला था।

एक बार उसने ईश्वर के अस्तित्व को नकारते हुये भगवान सूर्य की प्रतिमा के समक्ष मल-मूत्र त्याग दिया। इस पापकर्म के कारण सूर्य देव उस पर कृपित हो गये और उसके नेत्रों की ज्योति छीन ली। वो नेत्रहीन होकर दुखी होकर इधर-उधर भटकने लगा।

अपने दुखद जीवन का अंत करने की इच्छा से महीपाल गंगा जी में कूदकर आत्महत्या करने लिये चल दिया। तभी नारद जी उसके सामने आये और उसे रोकर उससे आत्महत्या करने का कारण पूछा। उसने उन्हे सारा वृतांत सुना दिया। तब नारद जी ने उसे कहा, “ हे मूर्ख तूने भगवान सूर्य का अपमान किया है और उसी पापकर्म के कारण तुझे यह दुख प्राप्त हुआ हैं। अब तू भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिये कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि के दिन व्रत कर और सूर्य देव को अर्ध्य देकर पूजन कर। इससे तेरे सभी कष्ट दूर हो जायेंगे।”

महीपाल ने नारदजी के कथन का अनुसरण किया और उसके प्रभाव से उसके सभी कष्टो का नाश हो गया और उसे मृत्यु के उपरांत उत्तम लोक की प्राप्ति हुयी।

Dala Chhath Ke Niyam
डाला छठ के नियम

  • नहाय-खाय (Nahay Khay) की रस्म में स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। गंगा स्नान के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • चतुर्थी तिथि अर्थात नहाय-खाय (Nahay Khay) से छठ पूजा की समाप्ति (उषा अर्ध्य) तक व्रत करने वाले स्त्री-पुरूष को भूमि पर ही शयन करना चाहिये।
  • सात्विक भोजन करें। प्याज-लहसून आदि भोजन में ना ड़ालें।
  • मांस-मदिरा से दूर रहें।
  • पूजा की वस्तुओं को झूठे या गन्दे हाथ ना लगाये और उनकी पवित्रता का पूरा ध्यान रखें।
  • व्रत करने वाले को बिना सिलाई वाले वस्त्र धारण करने चाहिये।
  • महिलाओं और पुरूषों को पारम्परिक वस्त्र ही पहनने चाहिये।
  • एक बार जब कोई स्त्री छठ का व्रत आरम्भ कर देती है तो उसे उस समय तक व्रत करना होता है, जब तक उसकी आगे की पीढ़ी अर्थात उसकी बहू इस व्रत को प्रारम्भ ना कर दें।
  • यदि किसी की परिवार में मृत्यु हो जाये तो उस वर्ष यह व्रत नही किया जाता।

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