हिंदू धर्म में आँवला नवमी (Amla Navami) का विशेष महत्व है। स्थिर लक्ष्मी और आरोग्य प्राप्ति के लिये करें आँवला नवमी का पूजन। जानियें आँवला नवमी कब हैं?, इसका क्या महत्व हैं? साथ ही पढ़ें आँवला नवमी की पूजा विधि, कथा और आँवले का पौराणिक महत्व।
Amla Navami 2024
आंवला नवमी 2024
कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की नवमी तिथि के दिन आंवला नवमी (Amla Navami) का त्यौहार मनाया जाता हैं। इसे आंवला नौमी (Amla Naumi), अक्षय नवमी (Akshay Navami) और कूष्मांडा नवमी (Kushmanda Navami) के नाम से भी जाना जाता हैं। इस दिन आँवले के वृक्ष की पूजा व परिक्रमा की जाती हैं। हिंदू मान्यता के अनुसार आँवले के वृक्ष की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के आंसू से हुई थी और इसके अंदर भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों का वास हैं। इस दिन दान का भी विशेष महत्व होता हैं। आँवला नवमी का विधि-विधान से पूजन करने से जातक को आरोग्य की प्राप्ति होती है और उसकी सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।
Amla Navami Kab Hai?
आँवला नवमी कब हैं?
इस वर्ष आँवला नवमी (Amla Navami) का पूजन 10 नवम्बर, 2024 रविवार के दिन किया जायेगा।
Significance Of Amla Naumi
आँवला नौमी का महात्म्य (महत्व)
पौराणिक मान्यता के अनुसार सबसे पहले आँवला नवमी (Amla Navami) पर देवी लक्ष्मी ने आँवले के वृक्ष की पूजा की थी और उसके नीचे भगवान विष्णु और भगवान शिव को भोजन कराया था। इसके विषय में जो एक पौराणिक कथा है, उसके अनुसार एक बार देवी लक्ष्मी भ्रमण करने की इच्छा से धरती लोक पर आई।
धरती पर आकर उनके मन में इच्छा हुयी कि वो भगवान विष्णु और भगवान शिव की एक साथ पूजा करें। किंतु दोनों की पूजा एक साथ करना कैसे सम्भव हो? वो यही सोच रही थी। तभी उनके मन में विचार आया की भगवान शिव को बेल बहुत प्रिय है और भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय हैं, और आँवले में इन दोनों कि गुण उपस्थित हैं। अर्थात यह दोनों को ही प्रिय हैं। यही विचार करके उन्होने आँवले के वृक्ष को भगवान विष्णु और भगवान शिव का प्रतीक मानकर उसकी पूजा की। उनकी इस पूजा से भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों प्रसन्न हुये और उनके समक्ष प्रकट हुये। देवी लक्ष्मी ने उनको आँवले के वृक्ष के नीचे ही भोजन कराया और फिर स्वयं भोजन किया। तभी से आँवले के वृक्ष की पूजा और उसके पास भोजन करने की परम्परा का आरम्भ हुआ।
हिंदु मान्यता के अनुसार आँवला नवमी (Amla Navami) का पूजन करने से
- घर-परिवार में सभी निरोगी रहते हैं।
- सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती हैं।
- धन-समृद्धि की प्राप्ति होती हैं।
- जातक की मनोकामना पूर्ण होती हैं।
- उत्तम संतान की प्राप्ति होती हैं।
- देवी लक्ष्मी, भगवान विष्णु और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती हैं।
- सभी कष्टों का निवारण होता हैं।
- जातक दीर्धायु होता हैं।
- इस दिन पितरों का तर्पण करने से पितरों को शांति मिलती हैं।
- आँवला नवमी (Amla Navami) के दिन दान करने से उसका पुण्य कई गुणा अधिक बढ़ जाता हैं।
Amla Navami Ki Puja Vidhi
आँवला नवमी की पूजा की विधि
आँवला नवमी (Amla Navami) के दिन आँवले के वृक्ष की पूजा का विधान हैं।
- आँवला नवमी (Amla Navami) के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर आँवले के वृक्ष की पूजा करें।
- घी का दीपक प्रज्वलित करें।
- आँवले के वृक्ष की जड़ में दूध अर्पित करते हुये “ॐ धात्र्ये नम:” मंत्र का जाप करें।
- फिर रोली से छींटे लगाकर चावल चढ़ायें। फूल माला अर्पित करें।
- भोग में खीर-पूरी और मिठाई आदि अर्पित करें।
- आँवले के वृक्ष की 108 परिक्रमा करें। परिक्रमा करते हुये पीला धागा वृक्ष के चारों ओर लपेटती जायें।
- आँवला नवमी की कथा पढ़ें या सुनें। फिर गणेश जी की कहानी कहे या सुनें।
- फिर दीपक और कपूर से देवी लक्ष्मी, भगवान विष्णु और भगवान शिव की आरती करें।
- आँवले के वृक्ष के पास ब्राह्मणों को भोजन करायें और दक्षिणा देकर उनको संतुष्ट करें।
- उसके बाद स्वयं भी वही भोजन करें।
- आँवला नवमी (Amla Navami) के दिन आँवले के वृक्ष की पूजा की जाती है इसलिये इस दिन आँवले का सेवन करना वर्जित हैं।
Amla Navami Ki katha
आँवला नवमी की कथा
आँवला नवमी (Amla Navami) की दो कथायें प्रचलित हैं-
Amla Navami Ki katha (First)
आँवला नवमी की कथा (प्रथम) – साहूकार की कथा
प्राचीन समय में काशी नाम के एक नगर में एक वैश्य अपनी पत्नी के साथ निवास करता था। वैश्य बहुत ही धार्मिक और सदाचारी था। उस वैश्य के कोई संतान नही थी। इस कारण से उसकी पत्नी और वो दोनों दुखी थे।
संतान प्राप्ति के लिये उन्होने बहुत से उपाय किये, परंतु उन्हे सफलता नही मिली। एक दिन उन्हे किसी ने कहा कि अगर तुम संतान प्राप्ति की इच्छा से भगवान भैरव को किसी बालक की बलि चढ़ा दो तो तुम्हे संतान अवश्य प्राप्त होगी।
धर्मात्मा वैश्य ने ऐसा कार्य करने से इंकार कर दिया। किंतु उसकी पत्नी ने मन ही मन ऐसा करने की ठान ली। एक दिन मौका पाकर उसने भैरव जी के नाम से एक बालक की बलि दे दी। एक बालक की हत्या करने के कारण वो पाप की भागी हो गई और उसके पूरे शरीर में कोढ़ हो गया।
वैश्य की पत्नी ने सारी बात अपने पति को बताई तो उसने भी उसे त्याग दिया। वैश्य ने अपनी स्त्री को कहा, ”ब्रह्म हत्या, गौ हत्या एवं बालक वध बहुत ही बड़े और अक्षम्य अपराध हैं। तू इसके प्रायश्चित के लिये गंगा नदी पर जाकर तपस्या कर।“ वैश्य की पत्नी ने वैसा ही किया।
वहाँ उसे देवी गंगा ने आँवला नवमी पर आँवले के वृक्ष का पूजन करने के लिये कहा। उसने पूरे विधि विधान से आँवला नवमी का व्रत (Amla Navami Ka Vrat) एवं पूजन किया। उसके प्रभाव से वो रोग-मुक्त हो गई और उसके पति ने भी उसे स्वीकर कर लिया। प्रभु कृपा से उसकी संतान की कामना भी पूर्ण हो गई।
Amla Navami Ki Kahani
आँवला नवमी की कहानी – द्वितीय (राजा आँवलिया की कहानी)
प्राचीन समय में एक बहुत ही दानवीर राजा हुआ करता था। उसका नाम आँवलिया था। उसका नियम था, वो प्रतिदिन स्वर्ण के एक मन आँवले लोगो को दान करने के उपरान्त ही भोजन करता था।
राजा के द्वारा इतना स्वर्ण दान करने से राजा के पुत्र और पुत्रवधु चिंतित रहते। एक दिन राजा की पुत्रवधु ने अपने पति से कहा कि यदि इस प्रकार महाराज स्वर्ण दान करते रहे तो सारा राजकोष रिक्त हो जायेगा और हम लोगो का क्या होगा? राजकुमार अपनी पत्नी की बातों में आगया और उसने अपने पिता की राजगद्दी पर कब्जा करके उन्हे राज्य से निकाल दिया।
राज्य से निकाले जाने के बाद राजा और रानी चलते-चलते एक वन में जा पहुँचे। उस दिन स्वर्ण दान ना करने के कारण राजा ने भोजन भी नही किया। उसकी ऐसी निष्ठा और प्रतिबद्धता देखकर भगवान ने राजा को स्वप्न में दर्शन देकर कहा, ”राजन! जहाँ तुम रूके हो, यही एक आँवले का वृक्ष है। इससे तुम्हे प्रतिदिन स्वर्ण के आँवले प्राप्त होंगे। जिससे तुम पहले की भांति दान-पुण्य कर सकोगे।“ जब राजा की आँख खुली तो वो स्वर्ण के आँवलों का पेड़ देखकर गद्गद् हो गया।
उसने पूर्व की भांति पुन: प्रतिदिन एक मन स्वर्ण के आँवले दान करना आरम्भ कर दिया। वो वही उस जंगल में महल बनाकर रहने लगा। धीरे-धीरे वहाँ पर एक सुंदर नगर बस गया।
उधर राजा के पुत्र ने जिस राज्य पर कब्जा किया वो राज्य उससे जाता रहा और उसकी स्थिति भिखारी जैसी हो गई। भटकते-भटकते वो अपने पिता के नगर में ही पहुँच गया। राजा-रानी ने अपने पुत्र और पुत्रवधु को पहचान लिया और उनको ऐसी अवस्था में देखकर उन्हे बहुत दुख हुआ। जब राजा के पुत्र ने अपने पिता का वैभव देखा तो देखता ही रह गया। उसने अपने माता-पिता से क्षमा माँगी। राजा-रानी ने भी अपने पुत्र-बहू को क्षमा कर दिया। उसके बाद वो सभी सुख से रहने लगे।
Ganesh Ji Ki Kahani
गणेश जी की कहानी
बहुत समय पहले की बात है एक बार एक बालक गणेश जी से मिलने की इच्छा लेकर अपने घर से निकल पड़ा। उसने अपने घर वालों से कह दिया कि अब मैं गणेश जी के दर्शन करके ही घर वापस आऊंगा। चलते-चलते वो एक घने वन में पहुँच गया। उस भयावह वन में भी बिना ड़रे वो बालक सिर्फ भगवान गणेश से मिलने के लिये बढ़ता गया।
उस बालक की भक्ति और दृढ़ता देखकर गणेश जी उसपर प्रसन्न हो गये और एक ब्राह्मण भेष लेकर उसके सामने आ गये। ब्राह्मण का रूप धारण किये भगवान गणेश जी ने उस बालक से पूछा, “ तू इस वन में किसको ढ़ूंढ़ रहा हैं।“ तब उस बालक ने कहा, “मुझे गणेश जी से मिलना है और मैं उन्ही को ढ़ूंढ़ रहा हूँ।“ तब ब्राह्मण का रूप धारण किये भगवान गणेश जी ने उस बालक से कहा, “ मैं ही हूँ बिंदायक! माँग क्या माँगना हैं। किंतु जो भी माँगे एक बार में ही माँग लेना।“ उस बालक ने कहा “पिता की आमदनी से रखें हाथी की सवारी करूँ, मुट्ठी से परोसें दाल-चावल, खेत-खलिहान, जरी के कपड़े, हीरे-मोती के गहने और सुंदर सी पत्नी।“ गणेश जी ने उसे सबकुछ दिया।
Hindu Dharm Ke Anusar Amla Ke Benefits
हिंदु धर्म ग्रंथों में वर्णित आँवले के लाभ
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आँवले का सेवन करना स्वास्थ्य के लिये लाभदायक होने के साथ ही आँवले का धार्मिक महत्व भी हैं। पौराणिक ग्रंथों में आँवले को बहुत शुभ बताया गया हैं।
- इसके पूजन ने भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं।
- आँवले के सेवन से मनुष्य पापमुक्त और दीर्धायु हो जाता हैं।
- आँवले के रस का पान करने से धन का संचय होता हैं।
- आँवले के रस को जल में ड़ालकर स्नान करने से दरिद्रता का नाश होता और सभी प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त होते हैं।
- आँवले के वृक्ष और उसके फल का नाम लेने से, दर्शन करने से और छूने से ही भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं।
- ऐसी मान्यता है कि आँवले के वृक्ष में भगवान विष्णु और भगवान शिव का वास होता हैं।
- जिस घर में आँवले का वृक्ष हो वहाँ पर देवी लक्ष्मी निवास करती हैं।
- आँवले के वृक्ष के नीचे बैठने से और भोजन करने मात्र से ही मनुष्य के रोगों का शमन हो जाता हैं।
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