संतान की दीर्धायु और धन-समृद्धि के लिये करें संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) का व्रत एवं पूजन। जानियें संकष्टी चतुर्थी जिसे सकट चौथ (Sakat Chauth) भी कहते है उस के व्रत एवं पूजन की विधि, महत्व और उजमन की विधि। साथ ही पढ़ियें सकट चौथ की दोनों कहानियाँ…भगवान गणेश की कहानी और चौथ माता की कहानी (Chauth Mata Ki Kahani)।
Sakat Chauth (Sankashti Chaturthi)
सकट चौथ (संकष्टी चतुर्थी)
हिन्दु कैलेण्डर के माघ माह की कृष्णपक्ष की चतुर्थी को सकट चौथ (Sakat Chauth) के नाम से जाना जाता हैं। इसे गणेश चौथ (Ganesh Chauth), तिल चौथ (Til Chauth), तिलकुटा चौथ (Tilkuta Chauth) और संकष्ट चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) भी कहा जाता हैं। इस दिन चौथ माता और भगवान गणेश की पूजा किये जाने का विधान हैं। माताएँ अपनी संतान की सुरक्षा के लिये इस दिन का व्रत करती हैं और इसके अतिरिक्त भगवान गणेश की कृपा एवं धन-समृद्धि पाने हेतु इस दिन भगवान गणेश का विधि-विधान से पूजन किया जाता हैं। इस व्रत में तिल का विशेष महत्व हैं। इस दिन विशेष रूप से प्रसाद में तिल की मिठाई और तिलकुटा बनाया जाता हैं। सकट चौथ (Sakat Chauth) का व्रत रात्रि को चंद्रमा को अर्ध्य देने के बाद ही खोला जाता हैं।
Sankashti Chaturthi Kab Hai?
संकष्टी चतुर्थी कब हैं?
इस वर्ष संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) का व्रत एवं पूजन 29 जनवरी, 2024 सोमवार के दिन किया जायेगा।
Sakat Chauth Pujan Aur Vrat Vidhi
सकट चौथ पूजन एवं व्रत विधि
हिंदु मान्यता के अनुसार संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) के दिन भगवान गणेश और चौथ माता की पूजा किये जाने का विधान हैं। व्रत करने वाली स्त्री और पुरूष को चौथ माता एवं गणेश जी की कथा कहनी या सुननी चाहिये।
- सकट चौथ (Sakat Chauth) के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। व्रत करने वाली स्त्रियाँ सिर धोकर स्नान करें, हाथों में मेहंदी लगायें और भोग के लिये गुड़ और तिल के लड्डू के साथ बुरा और सफेद तिल का तिलकुटा अवश्य बनायें।
- संध्या के समय पूजास्थान पर एक लकड़ी का पाटा बिछायें, उस पर एक जल से भरा कलश स्थापित करें।
- साथ ही भगवान गणेश की प्रतिमा भी स्थापित करें और चौथ माता का चित्र या प्रतिमा लगायें।
- भगवान गणेश की रोली-चावल से पूजा करें, जनेऊ चढ़ाये, दूर्वा अर्पित करें और फल-फूल अर्पित करें।
- फिर चौथ माता की रोली-चावल से पूजा करें, मेहंदी लगायें, वस्त्र एवं सुहाग की सामग्री अर्पित करें। फल–फूल चढ़ायें।
- जल से भरे कलश पर एक स्वास्तिक बनायें और साथ ही कलश पर 13 बिंदियाँ लगायें।
- तिलकुटा का प्रसाद अर्पित करें।
- हाथ में तिलकुटा लेकर चौथ माता की कहानी कहें या सुनें। कहानी सुनने के बाद हाथ में लिया तिलकुटा पटरे पर चढ़ा दें।
- फिर से तिलकुटा हाथ में लेकर गणेश की कहानी कहें या सुनें। कहानी सुनने के बाद हाथ में लिया तिलकुटा पटरे पर चढ़ा दें।
- गणेश जी की आरती करें।
- एक थाली में तिल के लड्डू और रूपये रखकर मिनसकर अपनी सास या किसी परिवार की बड़ी स्त्री या योग्य पण्डितानी को देकर चरणस्पर्श करें।
- चंद्रमा को अर्ध्य देकर ही भोजन करें। इस दिन एक समय ही भोजन करें।
- भोजन में तिलकुटा अवश्य लें।
Significance Of Sankashti Chaturthi
संकष्टी चतुर्थी (सकट चौथ) का महत्व
संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) को संकट हरने वाली कहा जाता हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान गणेश जी बहुत बड़े संकट से सुरक्षित हुये थे, इसलिये इसे संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) कहते हैं। संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश और चौथ माता (Chauth Mata) की पूजा करने से
- जातक को उसके जीवन में आने वाली समस्त विघ्न-बाधाओं से मुक्ति मिल जाती हैं।
- भगवान गणेश की कृपा से ज्ञान-बुद्धि, धन-समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति होती हैं।
- सौभाग्य में वृद्धि होती हैं।
- हर कार्यक्षेत्र में सफलता मिलती हैं।
- घर-परिवार में सुख-शांति का वातावरण रहता हैं। गृह क्लेश से मुक्ति मिलती हैं।
- कार्यों मे आने वाली बाधाओं का नाश होता हैं।
- जातक की समस्त मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।
- जातक के अंतर्मन से नकारात्मकता का नाश होता है और जीवन व विचारों में सकरात्मकता आती हैं।
- चौथ माता (Chauth Mata) की कृपा से संतान की आयु लम्बी होती हैं और उसका स्वास्थ्य उत्तम रहता हैं।
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन विधि-विधान से व्रत एवं पूजा करने से जातक को नवग्रहों की शुभता प्राप्त होती हैं।
Sakat Chauth Ki Katha (Chauth Mata Ki Katha)
सकट चौथ की कथा (चौथ माता की कथा)
प्राचीन समय में एक नगर था। उस नगर के राजा का एक बहुत बड़ा आंवां था। उस आंवे को सम्भालने का काम एक अनुभवी कुम्हार करता था। एक बार बहुत समय राजा का आंवां पक नही पा रहा था। कुम्हार ने जाकर राजा को यह समाचार सुनाया तो राजा ने कुम्हार से उसका कारण बताने के लिये कहा। कुम्हार के कुछ भी समझ में नही आ रहा था, उसने इसका यथोचित कारण बता पाने में अपनी असमर्थता जताई।
राजा ने अपने मंत्रियों की बैठक बुलायी और उनसे आंवां नही पकने की समस्या के निवारण का उपाय तलाशने के लिये कहा। वहाँ उपस्थित सभी सभासदों में से राजपुरोहित ने राजा को कहा, हे महाराज! इस आंवे को पकाने के लिये हमें हर माह एक नरबलि देनी होगी। राजपुरोहित की बात सुनकर सभी अचम्भित हो गये और उन्होने कहा कि हर माह बलि के लिये मनुष्य कहाँ से लायेंगे। तब उन्होने यह तय किया कि हर माह नगर के एक परिवार से एक पुरूष को बलि के लिये आना होगा।
तब से हर माह बलि के लिये एक पुरूष को चुना जाता। उसी नगर में एक बुढ़िया अपने इकलौते पुत्र के साथ रहती। उसके जीवन का एकमात्र सहारा उसका पुत्र था। वो हर माह अपने पुत्र की लम्बी आयु के लिये चौथ माता का व्रत करती थी। एक बार सकट चौथ का दिन था, राजा का संदेशवाहक उस बुढिया के पास आया और उसे बताया कि इस माह नरबलि के लिये उसे अपने परिवार से एक पुरूष को भेजना होगा। यह सुनकर वो बुढ़िया शोक के सागर में डूब गई। उसने दुखी मन से चौथ माता का व्रत एवं पूजन पूर्ण किया। और माता से अपने पुत्र की रक्षा की कामना की।
राजा के सिपाही नियत समय पर उस बुढ़िया के पुत्र को लेने के लिये आगये। उस बुढ़िया ने अपने पुत्र को पूजा की सुपारी और दूब देकर कहा कि जब तू उस आंवे में बैठे तब चौथ माता का ध्यान करके इसे अपने हाथ में रखना। माता तेरी रक्षा करें। दुखी मन से बुढ़िया ने अपने पुत्र को विदा किया।
उस लड़के को कुम्हार के आंवे में बिठाया गया। तब उसने चौथ माता का ध्यान करके जैसा उसकी माँ ने कहा वैसा ही किया। देखते ही देखते कुम्हार का आंवा पक गया और उस बुढ़िया का पुत्र सुरक्षित रहा। जब कुम्हार ने यह देखा तो वो आश्चर्य से भर गया। उसने राजपुरोहित और राजा को इस घटना से अवगत कराया। उस लड़के को सुरक्षित देखकर सबको आश्चर्य हुआ।
जब सबने उससे पूछा कि तुम सुरक्षित कैसे बचें? तो उस लड़के ने बताया कि मेरी माँ ने मेरी दीर्धायु के लिये सकट चौथ का व्रत किया था। चौथ माता की कृपा से ही मैं आज जीवित हूँ।
यह देखकर राजा ने पूरे नगर में सबको चौथ माता के व्रत का महात्म्य बताने का आदेश दिया। उस के बाद से उस नगर में नरबलि देना भी बंद कर दिया गया। और हर घर में चौथ माता (Chauth Mata) का पूजा और व्रत होने लगें। चौथ माता की महिमा अपरमपार हैं। वो सदा ही अपने भक्तों का कल्याण करती हैं।
Sankashti Chaturthi Ki Katha (Ganesh Ji Ki Kahani)
संकष्टी चतुर्थी की कथा (गणेश जी की कहानी)
बहुत समय पहले की बात हैं एक गाँव में दो भाई रहते थे। उनमें से बड़ा भाई बहुत धनवान था और छोटा भाई बहुत गरीब था। छोटा भाई अपने बड़े भाई के खेत पर मज़दूरी किया करता और उसकी पत्नी भी उसके बड़े भाई के घर काम किया करती। बडी मुश्किल से छोटा भाई और उसकी पत्नी दोनों अपना जीवन-यापन करते थे।
एक बार सकट चौथ (Sakat Chauth) का दिन आया। जेठानी के घर पर ढेर सारे पकवान बनें। इसलिये देवरानी को काम करते-करते देर हो गई। उधर जब उसका पति भी दिन भर की मेहनत से थक कर घर पहुँचा और अपनी पत्नी को नही पाकर उसे बहुत क्रोध आया। और जब घर में भोजन के लिये कुछ नही मिला तो उसका गुस्सा और बढ़ गया। जब देवरानी अपने घर पहुँची तो उसके पति ने उस पर बहुत क्रोध किया। उसने जो रूखा-सूखा भोजन बनाया उसे भी नही खाया। और अपनी पत्नी को मारा भी। दिन भर की मेहनत के बाद भूखी-प्यासी रहने के बाद अपने पति से पिटाई खाकर रोती हुयी सो गई। दिनभर भूखी रहने से अंजाने ही उसका सकट चौथ का व्रत हो गया था।
अर्धरात्रि को गणेश जी उसके घर वेश बदल कर आये और उससे कहा, “ हे देवी! मुझे भूख लगी हैं, कुछ खाने को दों।“ वो स्वयं भूखी और दुखी थी। उसने गणेश जी को नही पहचाना। जब गणेश जी ने उससे भोजन माँगा तो उसने क्रोध से कहा जो भी रसोई मे रूखा-सूखा पड़ा है जाकर खा लों। गणेश जी ने जाकर भरपेट भोजन किया। फिर उससे कहा कि मुझे पानी पीना हैं। उसने घड़े की ओर इशारा करके कहा कि जाकर घड़े से पानी पी लों। गणेश जी ने पानी पी लिया। गणेश जी फिर उसके पास आये और बोले मुझे तो हगास लगी हैं, कहाँ करूँ? यह सुनकर उस देवरानी को गुस्सा आ गया, उसने कहा पूरा घर खुला है, चारों कोनें और पाँचवी देहरी जहाँ मन करें वहाँ विष्ठा करों। गणेश जी फिर उसके पास आयें और बोले मैं घीसनी कहाँ करूँ तो उस देवरानी ने कहा मुझ कर्मफूठी के सिर से। उसके बाद गणेश जी वहाँ से अंतर्ध्यान हो गये।
अगले दिन सुबह जब वो देवरानी उठी तो आश्चर्य ने उसकी आँखें फटी की फटी रह गई। उसने अपने पति को उठाया। जब उसने अपने घर को देखा तो वो भी आश्चर्य के भर गया। पूरे घर में चारों तरफ सोने-चाँदी-हीरे-मोती के ढ़ेर लगे हुये थे। पूरा घर मणि-माणक्य से चमक रहा था। चारों तरह धन का अम्बार लगा हुआ था। ऐसा चमत्कार देखकर उन दोनों के कुछ समझ में नही आया। तभी उस देवरानी को रात्रि का किस्सा याद आया और वो समझ गई कि यह सब गणेश जी की कृपा से हुआ हैं। अब वो दोनों पति-पत्नी धन को समेटने लगें। इस कारण ना हो उसका पति काम पर जा पाया और ना ही उसकी पत्नी अपनी जेठानी के यहाँ काम पर गई। जब वो काम पर नही आयी तो जेठानी ने उसे बुलाने के लिये अपने बच्चों को भेजा, तो देवरानी ने मना कर दिया। जेठानी गुस्से से लाल होकर उसके घर आयी। जब उसने यह दृश्य देखा तो वो विस्मय से भर गई। उसने अपनी देवरानी से सारा किस्सा पूछा तो देवरानी ने कहा दीदी आप तो जानती हो कि हमारी आर्थिक स्थिति कैसी थी? और यह कह कर उसने अपनी जेठानी को रात्रि का किस्सा सिलसिलेवार सुना दिया। यह सुनकर जेठानी के मन में लालच उत्पन्न हो गया।
अगले वर्ष जब सकट चौथ (Sakat Chauth) आयी तो जेठानी ने व्रत रखा और 56 भोग बनायें। अपने पति से कहा कि तुम मुझपर गुस्सा करों और मुझे मारों। पति ने उसे समझाने की कोशिश की किंतु वो नही मानी। पति ने उसकी बात मानकर उसे पीटा। रात्रि को गणेश जी वेश बदल कर आयें और जेठानी से बोले मुझे भूख लगी हैं, भोजन दों। जेठानी ने एक थाल में 56 भोग सजाकर गणेश जी को भोजन कराया। गणेशजी ने जी भर के भोजन किया। फिर भोजन के उपरांत उन्होने पानी मांगा तो जेठानी ने चाँदी के कलश में पानी पिलाया। गणेश जी से जब हगास के लिये कहा तो जेठानी ने घर का हर कोना बताया कि यहाँ करो-यहाँ करों। जब उन्होने घीसनी के लिये कहा तो उसने अपना सिर आगे कर दिया। इसके बाद गणेश जी वहाँ से चले गये।
सुबह जब वो उठी तो उसका पूरा घर बदबू से भर गया था। उसे आशा थी कि घर धन से भरा होगा लेकिन इसके विपरीत पूरा घर गंदगी और विष्ठा से भर गया था। वो जितना समेटने की कोशिश करती उतना वो और बढता जाता। यह देखकर उसका पति भी क्रोधित हो गया और उसने अपनी पत्नी को खूब खरी-खोटी सुनायी। जब उस जेठानी से कुछ बन नही पड़ा तो वो अपनी देवरानी के पास गयी और उसे सारी बात बतायी। देवरानी ने कहा, दीदी! आप तो जानती हो उस समय मैं कितनी दुखी थी। मैंने किसी की रीस या नकल नही करी थी। आपको तो गणेश जी ने पहले ही सबकुछ दे रखा था। आपने लालच मे आकर मेरी नकल करके अच्छा नही किया। जेठानी को अपनी गलती का अहसास हो गया था।
देवरानी ने गणेश जी से प्रार्थना की, हे गणेश जी महाराज ! मेरी जेठानी ने जो गलती कि है उसे क्षमा करें। आपकी माया आप ही जानते है। इन्होने जाने – अंजाने जो भी भूल की है उसके लिये इन्हे माफ करों और अपनी माया को समेटों। उस जेठानी ने भी बार-बार गणेश जी को नमन किया और अपनी भूल की माफी मांगी। गणेश जी ने उनकी विनती सुनली और सबकुछ पहले जैसा कर दिया। उसके बाद वो दोनों देवरानी–जेठानी सुख और खुशी से रहने लगी।
हमें कभी लालच नही करना चाहिये। किसी की नकल नही करनी चाहिये। जैसी कृपा गणेश जी ने देवरानी पर की वैसी सब पर करें और जैसी हालत जेठानी की करी वैसी किसी की ना करें।
Sakat Chauth Ka Ujaman Karne Ki Vidhi
सकट चौथ का उजमन करने की विधि
सकट चौथ (Sakat Chauth) का उजमन जब किया जाता है जब घर में पुत्र जन्म हुआ हो या लडके का विवाह हुआ हों। उजमन जन्म और विवाह के एक वर्ष मे किया जाना उत्तम माना जाता हैं। उजमन के लिये सकट चौथ पर भुने तिल को कूटकर और बूरा मिलाकर सवा किलों तिलकुटा बनायें और उसके 14 भाग करें। उनपर साड़ी, ब्लाऊज व रुपये रखकर एक साथ जल लेकर मिनश दें। उसमें से एक बायना अपनी सास या ननद या जेठानी को दें और चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। फिर बाकी बायने भी अपने परिवारजनों में बाँट दें।
इस बात का ध्यान रखें कि जिस वर्ष उजमन किया जाता है उस वर्ष एक बायना तो हर वर्ष की भांति सामान्य बायना निकलता है और दूसरा तिलकुट के साथ साड़ी-ब्लाऊज एवं दक्षिणा (रूपये) रखकर निकाला जाता हैं।
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