आंवला एकादशी (Amla Ekadashi) व्रत एवं पूजन से करें भगवान विष्णु को प्रसन्न। आंवला एकादशी को आमलकी एकादशी (Amalaki Ekadashi) और रंगभरी एकादशी (Rangbhari Ekadashi) भी कहा जाता हैं। जानियें आमलकी एकादशी व्रत कब हैं? इसका क्या महत्व हैं? और साथ में पढ़ें व्रत की विधि और व्रत कथा।
Amla Ekadashi
आंवला एकादशी
हिंदु पंचांग के फाल्गुन मास की शुक्लपक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता हैं। इस एकादशी को आंवला एकादशी और रंगभरी एकादशी के नाम से भी पुकारा जाता है। धर्मशास्त्रों में उल्लिखित कथाओं के आधार पर ऐसा माना जाता है कि जब सृष्टि की रचना हेतु भगवान विष्णु ने परमपिता ब्रह्मा को जन्म दिया तब उसी समय भगवान विष्णु ने आंवले के वृक्ष को भी उत्पन्न किया। पुराणों के अनुसार आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास होता हैं। इसलिये इस दिन इसकी पूजा करने से साधक को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती हैं।
Amla Ekadashi Kab Hai?
आंवला एकादशी कब है?
इस वर्ष आंवला एकादशी (स्मार्त एवं वैष्णव) व्रत एवं पूजन 20 मार्च, 2024 बुधवार के दिन किया जायेगा। और आंवला एकादशी (निम्बार्क) व्रत एवं पूजन 21 मार्च, 2024 गुरूवार के दिन किया जायेगा।
Amalaki Ekadashi Ka Mahatva
आमलकी एकादशी का महत्व
हिंदु धर्म में एकादशी के व्रत को बहुत महत्वपूर्ण और शुभफल देने वाला माना जाता है। पूरे वर्ष में आने वाली सभी एकादशियों की अपनी विशेषता और महत्व है। फाल्गुन माह की शुक्लपक्ष की एकादशी जिसे आमलकी एकादशी और आँवला एकादशी (Amla Ekadashi) कहा जाता है उसका उल्लेख आयुर्वेद और पद्म पुराण में मिलता हैं। आँवला एकादशी (Amla Ekadashi) का व्रत एवं पूजन पूरे विधि-विधान और श्रद्धा-भक्ति के साथ करने से साधक को भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी दोनों की कृपा प्राप्त होती हैं। इस एकादशी के व्रत का इतना महात्म्य है कि इसका व्रत करने से साधक को सहस्त्रों गायों के दान के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत का पालन करने से
- साधक के सभी पापों का नाश हो जाता हैं।
- ईश्वर उसकी सभी कठिन परिस्थितियों में सहायता करते हैं।
- उसका कभी अनिष्ट नही होता।
- धन-समृद्धि में वृद्धि होती हैं।
- परिवार में सुख-शांति रहती हैं।
- आँवला एकादशी (Amla Ekadashi) का व्रत करने से साधक को अनेकानेक तीर्थों के दर्शन के समान पुण्य प्राप्त होता हैं।
- जातक इस लोक के सभी सुखों का भोग करके मरणोंपरांत वैकुंठ धाम को चला जाता हैं।
- इस एकादशी के दिन आँवले की पूजा करने से भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी प्रसन्न होते हैं। इस दिन आँवले की पूजा के अतिरिक्त भगवन विष्णु को आँवला अर्पित करना भी शुभ माना जाता है। इसके अतिरिक्त आँवले का सेवन करने से भी शुभ फल प्राप्त होता हैं।
- इस एकादशी को रंगभरी एकादशी (Rangbhari Ekadashi) और रंगछिटकनी एकादशी भी कहा जाता जाता हैं। ब्रज क्षेत्र में इस दिन जमकर होली मनायी जाती हैं। लोग एक दूसरे पर रंग छिटक कर होली मनाते हैं। ब्रज क्षेत्र के मंदिरों में इस दिन विशेष आयोजन किये जाते हैं।
Amla Ekadashi Vrat Aur Pujan Vidhi
आँवला एकादशी व्रत एवं पूजन की विधि
आँवला एकादशी (Amla Ekadashi) के व्रत में भगवान विष्णु एवं आँवले के वृक्ष के पूजन का विधान हैं। इस उत्तम व्रत की विधि इस प्रकार से हैं
फाल्गुन मास की शुक्लपक्ष की एकादशी जिसे आँवला एकादशी कहा जाता है उसका व्रत एक दिन पूर्व यानी दशमी तिथि की रात से ही आरम्भ हो जाता हैं। दशमी की रात से ही मनुष्य को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये और भगवान विष्णु का ध्यान करते हुये संयमित आचरण करना चाहिये।
- आँवला एकादशी (Amla Ekadashi) के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजास्थान एक चौकी बिछाकर उसे शुद्ध करें। फिर उसपर एक पीला वस्त्र बिछायें।
- चौकी पर एक जल से भरा कलश स्थापित करें। साथ ही उसपर भगवान विष्णु और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
- पूजास्थान पर आसन पर भगवान की प्रतिमा के सामने बैठकर हाथ में कृश, तिल, सिक्का और जल लेकर अमालकी एकादशी के व्रत एवं पूजन का संकल्प करें। संकल्प के बाद जिस मनोरथ की सिद्धि हेतु व्रत कर रहे है वो अपना मनोरथ भगवान से निवेदन करें।
- फिर धूप-दीप जलाकर सर्वप्रथम भगवान गणेश की पूजा करें। उनके सिंदूर लगायें, रोली-चावल से तिलक करें, फल-फूल व दूर्वा चढ़ायें। जनेऊ चढ़ाये और भोग लगायें।
- तत्पश्चात् भगवान विष्णु की पूजा करें। उनको पंचामृत से अभिषेक करायें, रोली-चावल से तिलक करें, चंदन लगायें, पीले रंग के फल-फूल अर्पित करें, तुलसी दल चढ़ाये और भोग लगायें।
- विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
- अमालकी एकादशी की व्रत कथा (Amalaki Ekadashi Vrat Katha) और महात्म्य का पाठ करें।
- भगवान विष्णु की आरती करें।
- इस पूजन के पश्चात आंवले के वृक्ष की पूजा करें।
- सर्वप्रथम आंवले के वृक्ष के चारों की धरती को स्वच्छ करें, उसे गाय के गोबर से लीप कर पवित्र करें।
- आंवले के वृक्ष की जड़ में वेदी बनायें उस वेदी पर जल से भरा कलश स्थापित करें।
- दीपक जलायें।
- वेदी पर स्थापित कलश पर चंदन से लेपन करके और वस्त्र लपेटे।
- जल से भरे कलश में सुगंधी और पंच रत्न रखें और कलश के ऊपर पंच पल्लव रखें, उसपर भगवान परशुराम की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान परशुराम की प्रतिमा किसी भी धातु की हो सकती हैं।
- इसके बाद भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम की पूजा करें। पंचामृत से अभिषेक करायें, रोली-चावल से तिलक करें, चंदन लगायें, पीले रंग के फल-फूल अर्पित करें, और भोग लगायें।
- संध्या पूजन के बाद दिन में एक ही समय भोजन करें। इस व्रत में अन्न का सेवन ना करें। दिन में एक बार फलाहार करें।
- रात्रि में जागरण का आयोजन करें। भगवान के भजन-कीर्तन व उनके ध्यान में समय व्यतीत करें।
- एकादशी के अगले दिन अर्थात द्वादशी के दिन सुबह स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर भगवान का ध्यान करके योग्य ब्राह्मण को भोजन करायें और यथाशक्ति दक्षिणा देंकर उसे संतुष्ट करें। साथ ही पूजा में प्रयुक्त भगवान परशुराम जी की प्रतिमा कलश के साथ ब्राह्मण को भेंट स्वरूप प्रदान करें। इसके बाद स्वयं भोजन करें।
Amalaki Ekadashi Vrat Katha
आमलकी एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार अति प्राचीन काल में चित्रसेन नाम का राजा था। राजा चित्रसेन बहुत धार्मिक प्रवृत्ति का और न्यायप्रिय राजा था। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। राजा चित्रसेन नियमित रूप से आमलकी एकादशी का व्रत एवं पूजन किया करता था। साथ ही उसके राज्य में भी सभी लोग राजा का अनुसरण करते हुये एकादशी का व्रत एवं पूजन किया करते थे। राजा चित्रसेन के राज्य में चारों ओर खुशहाली थी।
एक बार राजा अपने सहयोगियों के साथ वन में आखेट के लिये गया। शिकार का पीछा करते-करते राजा जंगल में बहुत दूर निकल गया और मार्ग भटक गया। तभी अकस्मात राजा चित्रसेन पर बहुत से मलेच्छों ने आक्रमाण कर दिया। अचानक हुये इस हमले से राजा अचम्भित रह गयें। उन्होने डट कर उन मलेच्छों का सामना किया। परंतु राजा चित्रसेन अकेला था और मलेच्छों की संख्या बहुत अधिक थी। उनसे युद्ध करते-करते राजा थक गया और अचेत होकर गिर गया। मलेच्छों को लगा कि उन्होने राजा चित्रसेन का वध कर दिया है किंतु यह उनकी भूल थी। जब वो राजा की ओर बढ़े तभी राजा के शरीर से एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई और उसने पलक झपकतें सभी मलेच्छों को मौत के घाट उतार दिया। राजा की मलेच्छों से रक्षा करके वो शक्ति पुन: राजा चित्रसेन के शरीर में समाहित हो गई।
कुछ समय पश्चात राजा चित्रसेन सचेत हुये और उन्हे चेतना आई तब उन्होने देखा की उन पर आक्रमण करने वाले सभी मलेच्छ यमलोक पहुँच गये है, तो उन्हे बहुत आश्चर्य हुआ। राजा के मन में प्रश्न आया कि उसकी रक्षा किसने की और इन मलेच्छों का संहार किसने किया? तभी आकाशवाणी हुई कि, “हे राजा चित्रसेन! तुम एक सच्चे भगवत भक्त हो। तुम्हारे आमलकी एकादशी व्रत के प्रभाव से तुम्हारी रक्षा के लिये तुम्हारे शरीर से ही वैष्णवी शक्ति प्रकट हुई और उसी ने इन सभी मलेच्छों का संहार किया।“ तब राजा ने पूछा, “हे देव! मुझे बचाने वाली वो वैष्णवी शक्ति अब कहाँ हैं? मैं उनका आभार प्रकट करना चाहता हूँ।“ तब राजा को उत्तर मिला कि, “हे राजन! वो वैष्णवी शक्ति तुम्हारे शरीर से प्रकट हुयी थी वो पुन: तुम्हारे ही शरीर में विलय हो गई।“
आकाशवाणी सुनकर राजा को बहुत संतोष हुआ और उसने सम्पूर्ण जीवनभर आँवला एकादशी (Amla Ekadashi) का व्रत एवं पूजन किया और सभी को इसके महात्म्य से विषय में बताया।