Jaya Ekadashi Vrat – जानियें जया एकादशी व्रत कब हैं? और पढ़ें जया एकादशी व्रत कथा

Jaya Ekadashi vrat

दुखों का नाश करने वाला और नीच योनि से मुक्ति दिलाने वाला है जया एकादशी (Jaya Ekadashi) का व्रत। बहुत दुर्लभ और शुभ फल देने वाली जया एकादशी के व्रत की विधि, व्रत का दिन, महत्व, नियम और व्रत कथा जानने के लिये पढ़ें।

Jaya Ekadashi Vrat
जया एकादशी व्रत

हिंदु पंचांग के माघ मास की शुक्लपक्ष की एकादशी को जया एकादशी (Jaya Ekadashi) के नाम से पुकारा जाता हैं। जया एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु की पूजा किये जाने का विधान हैं। हिंदु मान्यता के अनुसार इस दिन विधि-विधान और पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ व्रत एवं पूजन करने से साधक के सभी पापों का शमन होता है, उसे नीच योनि का भय नही रहता और उसे मोक्ष के प्राप्ति होती हैं। जया एकादशी के व्रत को कुछ श्रेष्ठ व्रतों में से एक माना जाता हैं।

Jaya Ekadashi Vrat Kab Hai
जया एकादशी व्रत कब हैं?

इस वर्ष जया एकादशी (Jaya Ekadashi) का व्रत एवं पूजन 20 फरवरी, 2024 मंगलवार के दिन किया जायेगा।

Significance Of Jaya Ekadashi Vrat
जया एकादशी व्रत का महत्व

धार्मिक मान्यता के अनुसार जया एकादशी (Jaya Ekadashi) का व्रत एवं पूजन पूरे विधि-विधान और पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ करने से

  • जातक के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
  • अपार धन-धान्य की प्राप्ति होती हैं।
  • सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती हैं।
  • जातक को आरोग्य की प्राप्ति होती हैं।
  • यश और कीर्ति में वृद्धि होती हैं।
  • साधक को अभीष्ट की प्राप्ति होती हैं।
  • बुरी योनियों का भय समाप्त हो जाता हैं।
  • मनुष्य इस लोक में सुख भोगकर मरणोपरांत मोक्ष को प्राप्त होता हैं।
  • साधक को हजारों वर्षों तक स्वर्ग के सुखों की प्राप्ति होती हैं।

Vrat Ki Vidhi
व्रत की विधि

माघ मास की जया एकादशी (Jaya Ekadashi) के व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस उत्तम व्रत की विधि इस प्रकार है –

  • माघ मास की जया एकादशी (Jaya Ekadashi) का व्रत एक दिन पूर्व यानी दशमी तिथि की रात से ही आरम्भ हो जाता हैं। दशमी की रात से ही मनुष्य को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये और भोजन में मसूर की दाल का सेवन नही करना चाहिये।
  • जया एकादशी के दिन प्रात: काल स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत होकर व्रती को व्रत का संकल्प लेना चाहिये।
  • पूजा स्थान पर एक चौकी बिछाकर उसपर एक कपड़ा बिछायें। फिर जया एकादशी के व्रत का संकल्प लेने के बाद चौकी पर कलश की स्थापना करें। उस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा रखें। फिर उसकी पूजा करें।
  • भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाकर नेवैद्य अर्पित करें। रोली-चावल से तिलक करें, चंदन लगाये, फूल-फल अर्पित करें, और धूप, दीप से आरती करें। यदि आप स्वंय ये पूजा नही कर सकते तो किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से भी पूजन करवा सकते हैं।
  • विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
  • इसके बाद जया एकादशी व्रत की कथा पढ़ें या सुनें।
  • जया एकादशी के व्रत के दिन अन्न का सेवन ना करें। संध्या को पूजन करने के बाद ही फलाहार ग्रहण करें।
  • व्रत की रात को जागरण अवश्य करें। इस व्रत के दिन दुर्व्यसनों से दूर रहे और सात्विक जीवन जीयें।
  • व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मण को भोजन करवायें और यथाशक्ति दान-दक्षिणा दे कर संतुष्ट करें।

Vrat Ke Niyam
व्रत के नियम

जया एकादशी (Jaya Ekadashi) का व्रत करने वाले स्त्री-पुरूष को इन नियमों का पालन अवश्य करना चाहिये। जया एकादशी व्रत के नियम इस प्रकार हैं –

  • व्रती एकादशी से एक दिन पूर्व अर्थात दशमी तिथि की रात्रि को भोजन में मसूर की दाल का सेवन ना करें।
  • जया एकादशी के व्रत के दिन चने या चने से बनी किसी भी खाद्य सामग्री का सेवन ना करें।
  • व्रत करने वाली स्त्री इस दिन सिर से स्नान ना करें अर्थात केश ना धोयें।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें और संयमित आचरण करें।
  • इस दिन क्रोध ना करें।
  • अपशब्द और परनिंदा से परहेज करें।
  • भोजन में अन्न का सेवन ना करें।
  • इस दिन चावल का सेवन ना करें।

Jaya Ekadashi Vrat Katha
जया एकादशी व्रत कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से माघ मास की शुक्लपक्ष की एकादशी के विषय में बताने के लिये कहा, वे बोले “हे केशव! आप ही सृष्टि का सृजन, पालन व नाश करने वाले हो। मेरा आपको बारम्बार प्रणाम हैं। आपसे मेरा निवेदन है कि मुझ पर कृपा करके मुझे माघ मास की शुक्लपक्ष की एकादशी के विषय में बताइये।“ तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “ हे धर्मराज युधिष्ठिर ! माघ मास की शुक्लपक्ष की एकादशी को जया एकादशी (Jaya Ekadashi) के नाम से जाना जाता हैं। इसका व्रत करने से जातक के समस्त पापों का नाश होता है और उसे दुष्ट योनियों का भय भी समाप्त हो जाता हैं।“

श्रीकृष्ण ने जया एकादशी की कथा सुनाते हुये कहा, ”एक बार देवराज इंद्र ने सभी देवताओ के लिये नंदन वन मे एक नर्तन और गायन की सभा का आयोजन किया। उस सभा में सभी देवता, गंधर्व आदि उपस्थित थे। सभी उस आयोजन का आनंद ले रहे थे। उस सभा में सुप्रसिद्ध गंधर्व पुष्पदंत अपनी कन्या पुष्पवती को साथ लेकर आया था। पुष्पवती अत्यंत रूपवती थी। उसका रूप लावण्य ऐसा था कि जो भी उसको देखता उसपर मोहित हो जाता। इधर गंधर्व चित्रसेन अपनी पत्नी मालिनी और पुत्र माल्यवान के साथ वहाँ आया था। माल्यवान भी बहुत देखने में बहुत आकर्षक था।

पुष्पदंत की कन्या पुष्पवती और चित्रसेन का पुत्र माल्यवान एक दूसरे को देखते ही एक दूसरे पर मोहित हो गये। गंधर्व अपने गायन से सभी का मनोरंजन कर रहे थे और अप्सराएँ नृत्य प्रस्तुत कर रही थी। इसी बीच जब माल्यवान गाने लगा तब उसका ध्यान पुष्पवती पर ही रहा। ध्यान भटकने के कारण वो गायन में त्रुटियाँ करने लगा। यह सब देखकर देवराज इंद्र को उन दोनो पर क्रोध आ गया और उन्होने उन दोनों को श्राप दे दिया। देवराज इंद्र ने उन्हे कहा, “ हे कामातुर निर्लज्ज मूर्ख तुमने इंद्र की सभा की मर्यादा को भंग किया। तुम्हारी अनियंत्रित भावनाओं के फूहड प्रदर्शन के कारण मैं तुम्हे श्राप देता हूँ कि तुम जिस रूप-सौंदर्य पर मोहित हो रहे हो उसका नाश हो जायेगा और तुम पृथ्वी लोक में पिशाच की योनि में अपने कर्मों का दण्ड़ पाओगे।“

देवराज इंद्र के श्राप के कारण उन दोनों को स्वर्ग से निष्कासित कर दिया। फिर उन दोनो को धरती पर पिशाच योनि प्राप्त हुई। पिशाच की नीच योनि में जिसमें उन्हे ना किसी गंध का, ना ही स्पर्श का और ना ही किसी रस का ही अनुभव होता उसमें जन्म लेकर हिमालय के ठण्ड़े वातावरण में अपने जीवन के दिन बिताने लगे।

वो दोनों अपने कष्ट पूर्ण जीवन से दुखी होकर उससे मुक्ति पाने की कामना करते रहते। एक समय अत्यधिक ठण्ड़ के कारण उन्हे पूरी रात नींद नही आयी। अगले दिन उन्हे भोजन भी नही मिला और उन्हे कंद-मूल खाकर ही दिन बिताना पड़ा। फिर रात्रि को ठण्ड़ और भूख के कारण उन्हे नींद नही आयी। सौभाग्य से उस दिन जया एकादशी (Jaya Ekadashi) थी और अंजाने ही उनसे जया एकादशी का व्रत हो गया। इस व्रत के पुण्य के प्रभाव से उनके सभी पापों का नाश हो गया और उन्हे उस पिशाच योनि से मुक्ति मिल गयी।

पिशाच योनि से मुक्त होकर वो पुन: पहले की ही भांति रूपवान और आकर्षक हो गये थे। उन्हे पुन: स्वर्ग की प्राप्ति हुयी। जब देवराज इंद्र ने उन्हे देखा तो उनसे पूछा की तुम मेरे श्राप से मुक्त कैसे हुये? तब उन्होने बताया कि यह सब जया एकादशी के व्रत के पुण्य का फल है। भगवान विष्णु की कृपा से हमें पिशाच योनि से मुक्ति मिल गयी और हमें पुन: अपना पुराना स्वरूप भी प्राप्त हो गया। तब देवराज इंद्र ने उनसे कहा- “ हे माल्यवान! भगवान विष्णु की कृपा से तुम्हारे सभी पापों का नाश हो गया है और तुम अब निर्मल हो गये हो। जया एकादशी का व्रत करके तुमने भगवान विष्णु की भक्ति प्राप्त कर ली है। तुम अब हमारे लिये वंदनीय हो।“ इसके बाद माल्यवान और पुष्पवती दोनों ने वर्षों तक स्वर्ग के आनंद का भोग किया।

भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया कि जया एकादशी का व्रत पूरे विधि-विधान से श्रद्धा-भक्ति के साथ करने से जातक नीच योनि से छूट जाते हैं। जो मनुष्य इस परम दुर्लभ एकादशी का व्रत करता है उसे सहस्त्रों यज्ञों के समान पुण्य प्राप्त होता हैं। इसके पुण्य प्रभाव से जातक को सहस्त्रों वर्षो तक स्वर्ग का सुख प्राप्त होता हैं।

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