Ratha Saptami – जानें कब है रथ सप्तमी? पढ़ें रथ सप्तमी की कथा और महत्व…

Achala saptami surya saptami ratha saptami

सुख-समृद्धि और आरोग्य प्राप्ति के लिये करें रथ सप्तमी (Ratha Saptami) का व्रत एवं पूजन। रथ सप्तमी को अचला सप्तमी, सूर्य सप्तमी एवं आरोग्य सप्तमी के नाम से भी जाना जाता हैं। जानियें कब है सूर्य रथ सप्तमी (Surya Ratha Saptami)? पढ़ियें रथ सप्तमी व्रत का महत्व, पूजन विधि और पौराणिक कथायें।

Ratha Saptami / Achala Saptami / Surya Saptami
रथ सप्तमी / अचला सप्तमी / सूर्य सप्तमी

हिंदु पंचांग के माघ मास की शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि को रथ सप्तमी (Ratha Saptami) के नाम से जाना जाता है। रथ सप्तमी के अतिरिक्त इस सप्तमी को अचला सप्तमी (Achala Saptami), भानु सप्तमी (Bhanu Saptami), सूर्य सप्तमी (Surya Saptami), सूर्य जयंती (Surya Jayanti) और अरोग्य सप्तमी (Aarogya Saptami) के नाम से भी पुकारा जाता हैं। यदि अचला सप्तमी रविवार के दिन होती है, तो उसे अचला भानु सप्तमी कहा जाता हैं।

पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन से भगवान सूर्य ने सृष्टि को अपने प्रकाश से प्रकाशित किया था। इसलिये इसे सूर्य जयंती (Surya Jayanti) भी कहा जाता हैं। इस दिन भगवान सूर्य की उपासना किये जाने का विधान हैं। भगवान सूर्य और चंद्र को प्रत्यक्ष देवता माना जाता हैं। अन्य देवता अदृश्य रूप में रहते हैं। आदि काल से ही भगवान सूर्य की उपासना की जाती रही हैं। सूर्यदेव को ग्रहों का राजा कहा जाता हैं। हिंदु मान्यता के अनुसार सूर्य सप्तमी (Surya Saptami) पर भगवान सूर्य का विधि-विधान से व्रत एवं पूजन करने से भगवान सूर्य शीघ्र प्रसन्न होते है और साधक को आरोग्य के साथ सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं।

Ratha Saptami Kab Hai?
रथ सप्तमी कब हैं?

इस वर्ष रथ सप्तमी (Ratha Saptami) का व्रत एवं पूजन 16 फरवरी, 2024 शुक्रवार के दिन किया जायेगा।

Significance Of Achala Saptami Vrat
अचला सप्तमी व्रत का महत्व

रथ सप्तमी (Ratha Saptami) का दिन भगवान सूर्य की उपासना को समर्पित हैं। शास्त्रों के अनुसार इस दिन से सूर्यदेव ने अपने प्रकाश से इस धरती को प्रकाशित किया था। उनकी उष्मा से इस धरती पर जीवन सम्भव हो पाया। भगवान सूर्य को समस्त ब्रह्माण्ड़ की ऊर्जा का केंद्र माना जाता हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस जातक की जन्मकुण्ड़ली में सूर्य ग्रह उच्च व शुभ अवस्था में होते है उसे पद-प्रतिष्ठा और मान-सम्मान की प्राप्ति होती हैं। सूर्यदेव एक प्रत्यक्ष देवता हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य रथ सप्तमी (Surya Ratha Saptami) अर्थात सूर्य जयंती के दिन सूर्यदेव की पूरे विधि-विधान और सच्चे मन से व्रत एवं उपासना करने से

  • जातक के सभी पापों का शमन हो जाता हैं।
  • उसके बड़े-से-बड़े व पुराने रोगों का नाश हो जाता है और आरोग्य की प्राप्ति होती हैं।
  • साधक को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती हैं।
  • मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती हैं।
  • अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती हैं।
  • सौभाग्य में वृद्धि होती हैं।
  • यदि निसन्तान दम्पत्ति संतान प्राप्ति की इच्छा से इस व्रत का पालन करते है तो उन्हे उत्तम संतान की प्राप्ति होती हैं। इसके अतिरिक्त जिनकी संतान बीमार रहती हो उन्हे भी इस दिन का व्रत करने से लाभ होता हैं।
  • सूर्य जयंती (Surya Jayanti) का व्रत करने से जातक को सूर्य ग्रह की शुभता और अनुकूलता प्राप्त होती हैं।
  • प्रशासनिक सेवा से जुड़े लोगों को पदोन्नति प्राप्त होती हैं।
  • नौकरी पाने की इच्छा रखने वाले को मनपसंद नौकरी प्राप्त होती हैं।
  • विद्यार्थी द्वारा इस व्रत को करने से उसकी शिक्षा में आ रही रूकावटें समाप्त हो जाती हैं।
  • इस दिन का व्रत एवं पूजन करने से साधक की आध्यात्मिक उन्नति भी होती हैं।
  • वास्तुशास्त्र के अनुसार इस दिन घर में सूर्य ब्रह्मास्त्र स्थापित करने से समस्त प्रकार के वास्तु दोषों का निवारण होता हैं।
  • सौभाग्यवती स्त्रियों के सौभाग्य में वृद्धि होती हैं।
  • स्त्रियों का रूप-सौंदर्य और व्यक्तित्व आकर्षक होता हैं।
  • इस दिन का व्रत एवं पूजन करने से जातक के चर्म रोगों का निदान होता हैं।
  • इस दिन का व्रत एवं पूजन करने से नेत्र रोग, मस्तिष्क रोग और त्वचा सम्बंधी रोगों का निदान होता हैं।
  • पिता-पुत्र के सम्बंध घनिष्ठ होते हैं। परिवार में सौहार्द बढ़ता हैं।

Ratha Saptami Vrat Aur Pujan Ki Vidhi
रथ सप्तमी व्रत एवं पूजन की विधि

पुराणों में रथ सप्तमी (Ratha Saptami) के व्रत को बहुत महत्वपूर्ण बताया गया हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से साधक की सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं। इस दिन पूरी श्रद्धा-भक्ति और विधि-विधान के साथ व्रत एवं पूजन करने से जातक को भगवान सूर्य की कृपा प्राप्त होती हैं।

  • सूर्य रथ सप्तमी (Surya Ratha Saptami) के व्रत के दिन व्रती को सूर्योदय से पूर्व ही स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिये। इस दिन व्रती को पूजन के लिये श्वेत वस्त्र धारण करने चाहिये। यदि सम्भव हो तो किसी पवित्र नदी या सरोवर या किसी तीर्थ स्थान पर स्नान करें और सूर्यदेव के निमित्त दीपदान करें। नदी पर स्नान सम्भव ना हो तो स्नान के जल में गंगाजल डालकर स्नान करें और फिर दीपदान करें।
  • ताम्बे के कलश में जल लेकर उसमें लाल रोली या लाल चंदन एवं लाल गुडहल के फूल डालकर सूर्योदय के समय सूर्यदेव को अर्ध्य दें। सूर्य देव को अर्ध्य देते समय इस मंत्र का जाप करें
मंत्र :- ऊं घृणि: सूर्याय नम:।
  • अर्ध्य देतें समय कलश से गिरती जल की धार के बीच से भगवान सूर्य के दर्शन करें।
  • घर के द्वार पर रंगोली बनाये।
  • फिर पूजास्थान पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें। सात घोडों के रथ पर आरूढ़ भगवान सूर्य की तस्वीर लगायें।
  • धूप-दीप जलाकर सर्वप्रथम भगवान गणेश की पूजा करें। जल के छींटें लगायें, रोली-चावल से तिलक करें, मौली चढ़ाये, जनेऊ चढ़ायें, फल-फूल व दूर्वा अर्पित करें। भोग लगायें।
  • फिर भगवान सूर्य की तस्वीर पर जल के छींटें लगाकर रोली-चावल से तिलक करें। लाल पुष्प अर्पित करें। नैवेद्य अर्पित करें।
  • आदित्यहृदय स्त्रोत्रसूर्याष्टकम का पाठ करें। इस सूर्य मंत्र का 108 बार जाप करें।
मंत्र : – एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणाध्र्य दिवाकर॥
  • तत्पश्चात्‌ भगवान सूर्य का ध्यान करते हुये उनके चित्र के सामने हाथ जोडकर अपना मनोरथ निवेदन करें।
  • इस व्रत में सूर्यास्त के बाद एक ही समय भोजन करें। भोजन में नमक का सेवन ना करें। सिर्फ मिठाई आदि का ही सेवन करें या फलाहार करें।
  • अचला सप्तमी के दिन तिल, चावल, दूर्वा, चंदन, फल आदि का दान करना श्रेष्ठ होता हैं।

Surya Ratha Saptami Ki Katha
सूर्य रथ सप्तमी के विषय में दो कथायें प्रचलित हैं-

Surya Ratha Saptami Ki Katha – First
सूर्य रथ सप्तमी की कथा – प्रथम

एक पौराणिक कथा के अनुसार अति प्राचीन काल में एक गणिका थी। उस गणिका का नाम इंदुमति था। उस गणिका ने कभी कोई दान-धर्म आदि शुभ कार्य नही किया था। उसको अपने अंत समय की चिंता सताने लगी। अपनी चिंता के समाधान के लिये वो ऋषि वशिष्ठ के आश्रम गयी और उनसे प्रार्थना करने लगी। उसने कहा, “हे ऋषिवर! मैं एक गणिका हूँ। मैंने कभी कोई दान-धर्म आदि शुभ कार्य नही किया और ना ही मैं अब कोई जप-तप या भक्ति आदि कर सकती हूँ। तामसिक जीवन जीतें-जीतें मैं पापों में लिप्त हो चुकी हूँ। कृपा करके कोई ऐसा उपाय बताये जिसके करने से मेरे सभी पापों का शमन और मुझे सद्गति प्राप्त हो।“

उस गणिका की बात सुनकर ऋषि वशिष्ठ ने उसे रथ सप्तमी (Ratha Saptami) का व्रत करने का सुझाव दिया। उस गणिका ने अचला सप्तमी का व्रत पूरी श्रद्ध-भक्ति के साथ किया। इस व्रत के प्रभाव से उसके सभी पाप नष्ट हो गयें। मृत्यु के उपरांत उसे स्वर्ग प्राप्त हुआ और वो देवराज इन्द्र की अप्सराओं की नायिका बनी।

Aarogya Saptami Ki Katha – Second
आरोग्य सप्तमी की कथा – द्वितीय

आरोग्य सप्तमी की पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का पुत्र शाम्ब बहुत ही शक्तिशाली और रूपवान था। उसे अपने शारीरिक बल और सौंदर्य पर बहुत अहंकार था। एक समय जब उसकी भेंट ऋषि दुर्वासा से हुई तो उसने अपनी शक्ति के अहंकार में उनका अपमान कर दिया।

शाम्ब द्वारा की गयी अभद्रता से ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो गये और उन्होने शाम्ब से कहा, “हे दुष्ट! तूने अपने जिस शारीरिक सौंदर्य के अभिमान में आकर एक ऋषि का अपमान किया है, वो नष्ट हो जायेगा और एक कुष्ट रोगी का जीवन जीयेगा।“
ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण शाम्ब को कुष्ट रोग हो गया। तब उसे अपने किये का पश्च्याताप होने लगा।

तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसे भगवान सूर्य की आराधना करने और आरोग्य सप्तमी (Aarogya Saptami) के दिन भगवान सूर्य का व्रत एवं पूजन करने का परामर्श दिया। शाम्ब ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ प्रतिदिन भगवान सूर्य की आराधना करनी आरम्भ कर दी। जब आरोग्य सप्तमी (Aarogya Saptami) आई तब विधि-विधान से उसका का व्रत एवं पूजन किया। इसके प्रभाव उसे भगवान सूर्य की कृपा प्राप्त हुयी और उसका कुष्ट रोग समाप्त हो गया। वो पुन: पूर्व की भांति कांतिमान हो गया।

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