होलिका दहन के अगले दिन रंग वाली होली खेली जाती है। इसे धुलेंडी (Dhulandi) के नाम से पुकारा जाता है। इस दिन लोग आपस में एक दूसरे को रंग और गुलाल लगाते हैं। जानियें होली (धुलेंडी) कब है? और इसका क्या महत्व है?
Dhulandi Ya Rangwali Holi
होली या धुलेंडी या छारेड़ी (धूलिका पर्व)
चैत्र मास की कृष्णपक्ष की प्रतिपदा के दिन यानि होलिका दहन के अगले दिन धूलण्डी का का त्यौहार मनाया जाता है। इसे रंग वाली होली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन होलिका दहन की अवशिष्ट राख की वंदना की जाती है। वैदिक मन्त्रों से दहन की गई होलिका की अभिषिक्त उस राख को लोग मस्तक पर लगाते है तथा एक-दूसरे से प्रेमपूर्वक मिलते हैं। फिर एक दूसरे पर रंग, गुलाल, अबीर, कुमकुम, केसर की साँवरी बौछार लगाते हैं। इसे रंगों का त्यौहार भी कहा जाता है। धुलेंडी को धुरड्डी, धुरखेल, धूलिवंदन, छारेड़ी और धूलिका के नाम से भी पुकारा जाता है।
Holi (Dhulandi) Kab Hai?
होली (धुलेंडी) कब है?
इस वर्ष धुलेंडी (Dhulandi) का त्यौहार 25 मार्च, 2024 सोमवार के दिन मनाया जायेगा।
Significance Of Rangwali Holi
होली (धुलेंडी) का महत्व
- माना जाता हैं कि त्रैतायुग के प्रारंभ में विष्णु ने धूलि वंदन किया था। इसकी याद में धुलेंडी (Dhulandi) मनाई जाती है। धूल वंदन अर्थात लोग एक दूसरे पर धूल लगाते हैं।
- होली के अगले दिन धुलेंडी के दिन सुबह के समय लोग एक दूसरे पर होलिका दहन की राख लगाते और धूल लगाते हैं। पुराने समय में यह होता था जिसे धूल स्नान भी कहते हैं। पुराने समय में चिकनी मिट्टी की गारा का या मुलतानी मिट्टी को शरीर पर लगाया जाता था।
- धुलेंडी के दिन टेसू के फूलों के रंग और गुलाल लोग एक-दूसरे पर डालते हैं। धुलैंडी पर सूखा रंग उस घर के लोगों पर डाला जाता हैं जहां किसी की मौत हो चुकी होती है। कुछ राज्यों में इस दिन उन लोगों के घर जाते हैं जहां गमी हो गई है। उन सदस्यों पर होली का रंग प्रतिकात्मक रूप से डालकर कुछ देर वहां बैठा जाता है। कहते हैं कि किसी के मरने के बाद कोई सा भी पहला त्योहार नहीं मनाते हैं।
- पुराने समय में होलिका दहन के बाद धुलेंडी (Dhulandi) के दिन लोग एक-दूसरे से प्रहलाद के बच जाने की खुशी में गले मिलते थे, मिठाइयां बांटते थे। हालांकि आज भी यह करते हैं परंतु अब भक्त प्रहलाद को कम ही याद किया जाता है।
- होली का त्योहार हर्ष, उल्लास और प्रेम का पर्व है। इस दिन लोग एक दूसरे पर रंग लगाकर अपने पुराने बैर-भाव को समाप्त कर देते है।
- आजकल होली के अगले दिन धुलेंडी को पानी में रंग मिलाकर होली खेली जाती है तो रंगपंचमी को सूखा रंग डालने की परंपरा रही है। कई जगह इसका उल्टा होता है। हालांकि होलिका दहन से रंगपंचमी तक भांग, ठंडाई आदि पीने का प्रचलन हैं।