Guru Pradosh Vrat Katha : गुरु प्रदोष व्रत कथा का पाठ करने से शत्रु पराजित होंगे और ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी

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हर शिव भक्त को प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) अवश्य करना चहिये। यह व्रत भगवान भोलेनाथ को समर्पित है। हिन्दू कैलेण्ड़र के हर माह में दो प्रदोष व्रत आते है। एक कृष्ण पक्ष में और दूसरा शुक्लपक्ष में। जब प्रदोष व्रत गुरुवार के दिन होता है तो उसे गुरु प्रदोष (Guru Pradosh) कहते है। गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat) के दिन गुरु प्रदोष व्रत कथा (Guru Pradosh Vrat Katha) का पाठ अवश्य करना चाहिये। इस व्रत को करने से धन, ऐश्वर्य के साथ ही शत्रुओं पर विजय भी प्राप्त होती है। जानिये कब है गुरु प्रदोष व्रत? साथ ही पढ़ियें गुरु प्रदोष व्रत कथा (Guru Pradosh Vrat Katha) और उसका महत्व…

वर्ष 2024 का प्रदोष व्रत कैलेण्ड़र (Pradosh Vrat Calendar) – जानियें हर माह के प्रदोष व्रत की तारीख

Guru Pradosh Vrat Kab Hai?
गुरु प्रदोष व्रत कब है?

वर्ष 2024 में होने वाले गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat)। जिनकी तारीख इस प्रकार है –
1 अगस्त, 2024 (सावन मास कृष्णपक्ष त्रयोदशी),
28 नवम्बर, 2024 (मार्गशीर्ष मास कृष्णपक्ष त्रयोदशी)
27 मार्च, 2025 (चैत्र मास कृष्णपक्ष त्रयोदशी)

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Significance of Guru Pradosh Vrat
गुरू प्रदोष व्रत का महत्व

प्रदोष का व्रत बहुत ही मंगलकारी है। जब प्रदोष व्रत गुरूवार के दिन होता है तो इसका महत्व और अधिक हो जाता है। गुरू प्रदोष व्रत के दिन विधि विधान के साथ पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से भगवान शिव की उपासना करने और गुरू प्रदोष व्रत कथा का श्रवण या वाचन करने से साधक को एक सौ गायों के दान के समान पुण्य की प्राप्त होती है। विधि अनुसार गुरू प्रदोष व्रत का पालन करने से –

  • सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  • धन-वैभव में वृद्धि होती है।
  • शत्रु पराजित होते है।
  • जीवन के हर क्षेत्र में विजय की प्राप्ति होती है।
  • कष्टों का निवारण होता है।
  • रोग-दोष, दुख-दरिद्रता समस्याओं का नाश होता है।
  • साधक को आध्यात्मिक उर्जा प्राप्त होती है और विचारों में सकारात्मकता आती है।
  • भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  • गुरू ग्रह की शुभता प्राप्त होती है।

Guru Pradosh Vrat Katha
गुरु प्रदोष व्रत कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार अति प्राचीन काल में एक बार देवराज इंद्र और वृत्तासुर नामक राक्षस के मध्य भीषण युद्ध हुआ। वृत्तासुर ने एक बहुत विशाल सेना लेकर देवलोक पर आक्रमण किया। उसके प्रत्युत्तर में देवताओं ने वृत्तासुर की सेना का बहुत बड़ी संख्या में संहार कर दिया। अपनी सेना को इस प्रकार से नष्ट-भ्रष्ट हुआ देखकर वृत्तासुर क्रोध से भर गया। वृत्तासुर अपनी आसुरी माया से एक बहुत ही विकराल रूप धारण करके युद्ध के प्रस्तुत हुआ। उसकी शक्ति के समक्ष देवता टिक नही सके और सहायता के लिये देव गुरु बृहस्पति के पास जा पहुँचे।

देवताओं से सारा वृत्तांत जानकर देव गुरू बृहस्पति ने उन्हे कहा – हे देवराज! जिस वृत्तासुर के विषय में आप बात कर रहे है। मैं आपको उसका वास्तविक परिचय देता हूँ। वृत्तासुर पूर्व जन्म में एक राजा था। उसका नाम था चित्ररथ। राजा चित्ररथ अपने विमान में बैठकर भगवान शिव के दर्शन करने गया। वहाँ देवी पार्वती को भगवान शिव के वाम अंग में विराजित देखकर उसने उपहासपूर्वक बोला – हे प्रभु! पृथ्वी पर हम मनुष्य मोह-माया में फंसे होने के कारण स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं किंतु ऐसा कभी देवलोक में नही देखा कि स्त्री सभा में आलिंगनबद्ध हो बैठे।’

चित्ररथ के मुख से इस प्रकार के उपहासपूर्ण वचन सुनकर सर्वशक्तिमान भगवान भोलेनाथ ने हंसकर उत्तर दिया और बोले- ‘हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण आपसे पृथक है। मैंने जगत कल्याण हेतु मृत्युदाता-कालकूट महाविष का पान किया और उसे अपने गले में धारण किया है। यह सब जानते हुये भी तुम एक साधारण जन की भांति मेरा उपहास उड़ा रहे हो।’

देवी पार्वती जो कि भगवान शिव के निकट विराजमान थी वो राजा चित्ररथा की इस धृष्टता से क्रोधित हो उठी। देवी पार्वती ने राजा चित्ररथ से कहा- “अरे मूर्ख! तूने सर्वेश्वर सर्वशक्तिमान सर्वव्यापी भगवान महेश्‍वर के साथ ही मेरा भी उपहास किया है। तुझे इसका दण्ड़ अवश्य मिलना चाहिये। मैं तुझे ऐसा दण्ड़ दूंगी की तू फिर कभी इस प्रकार से संतों का उपहास करने की धृष्टता नहीं करेगा।“ इसके बाद देवी पार्वती ने उसे श्राप दिया कि – तू एक दैत्य स्वरूप धारण करके धरती पर वास करेगा।

देवगुरू बृहस्पति वोले उसी श्राप के कारण राजा चित्ररथ इस जन्म में असुर योनि को प्राप्त होकर वृत्तासुर के रूप में उत्पन्न हुआ है। यह ऋषि त्वष्टा के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न होकर वृत्तासुर बना है। वृत्तासुर बहुत ही कर्मनिष्ठ और ईश्वर भक्त है। इसने अपनी घोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया है। देवगुरु बृहस्पति ने आगे कहा- ‘अपने बाल्यकाल से ही वृत्तासुर शिवभक्त रहा है। अत: हे देवराज! अगर तुम वृत्तासुर पर विजय पाना चाहते हो तो तुम्हे भगवान शिव को प्रसन्न करना होगा। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत करो।’

देवगुरु बृहस्पति की आज्ञा से देवराज इन्द्र ने गुरू प्रदोष व्रत का पालन किया। बृहस्पति प्रदोष व्रत के प्रभाव से देवराज इंद्र को वृत्तासुर पर विजय प्राप्त हुई। देवराज फिर से देवलोक के सिंहासन पर आरूढ हुये। जिससे फिर से देवलोक में शांति छा गई।