सनातन धर्म में देवनदी गंगा का विशेष महत्व है। गंगा स्नान और गंगा पूजन दोनों ही बहुत शुभ फल देने वाले है। जानिये गंगा सप्तमी (Ganga saptami) कब है?, गंगा सप्तमी का क्या महत्व है?, गंगा सप्तमी पर किस प्रकार से पूजा करनी चाहिये? और गंगा सप्तमी की क्या कथा है?
Ganga Saptami
गंगा सप्तमी
धर्मग्रंथों के अनुसार गंगा सप्तमी (Ganga saptami) के दिन ही मां गंगा ने इस धरती पर पुनर्जन्म लिया था। वैशाख माह की शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि के दिन गंगा सप्तमी का पर्व मनाया जाता है। सनातन धर्म में गंगा नदी और गंगा स्नान का बहुत महत्व है। गंगा को देवनदी माना जाता है। गंगा नदी को मोक्षदायिनी माना जाता है। इस दिन गंगा स्नान और गंगा पूजन का विशेष महत्व होता है।
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When is Ganga Saptami?
गंगा सप्तमी कब है?
इस वर्ष गंगा सप्तमी (Ganga saptami) तिथि 14 मई, 2024 मंगलवार के दिन मनाई जाएगी।
What Is The Significance Of Ganga Saptami?
गंगा सप्तमी का क्या महत्व है?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माँ गंगा मनुष्य के सभी पापों का नाश करके उसे निर्मल बना देती है। माँ गंगा अपने भक्तों को मोक्ष प्रदान करने वाली मानी जाती हैं। सनातन धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक जितने भी धार्मिक अनुष्ठान होते है उसमें गंगा जल का उपयोग किया जाता है। हर घर में गंगाजल रखा जाता है। मरते हुये व्यक्ति के मुख में गंगाजल और तुलसी डाला जाता है, जिससे उसकी सद्गति हो। गंगा सप्तमी (Ganga saptami) के शुभ दिन पर गंगा स्नान करने और मां गंगा की श्रद्धा-भक्ति और विधि-विधान के साथ पूजन करने से बहुत ही शुभफल मिलता है। गंगा सप्तमी पर गंगा स्नान और गंगा पूजन से-
- साधक को रिद्धि-सिद्धि प्राप्त होती है।
- मान-सम्मान में वृद्धि होती है।
- यश- कीर्ति बढ़ती है।
- मनुष्य अपने सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है।
- जीवन पर पडने वाला ग्रहों का अशुभ प्रभाव कम होता है।
- इस दिन दान करने का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन किये गये दान का कई गुणा फल मिलता है।
How to worship on Ganga Saptami?
गंगा सप्तमी पर किस प्रकार से पूजा करनी चाहिये?
गंगा सप्तमी (Ganga saptami) पर गंगा पूजन और गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है। गंगा सप्तमी के दिन इस विधि से गंगा माँ की उपासना करने से साधक को अपार पुण्य की प्राप्ति होती है-
- गंगा सप्तमी (Ganga saptami) के पावन दिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व (ब्रह्म मुहूर्त में) में नित्यक्रिया से निवृत होकर गंगा नदी के तट पर जाकर गंगा स्नान करना चाहिए। यदि ऐसा करना संभव न हो तो घर पर स्नान करने के जल में गंगाजल मिलाकर माँ गंगा का ध्यान करके स्नान करें। तत्पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- यदि आप गंगा नदी के घाट पर है तो नदी के जल में सिंदूर, अक्षत, गुलाल,लाल फूल, लाल चंदन अर्पित करके मां गंगा की विधि पूर्वक पूजन करें। माँ गंगा को सफेद मिठाई अर्थात मावे की बरफी का भोग लगाये।
- और यदि आप घर पर ही पूजा करना चाहते है तो मां गंगा की मूर्ति या उनके चित्र पर सिंदूर एवं लाल चंदन लगाकर लाल फूल, अक्षत, गुलाल और भोग अर्पित करें। भोग के लिये मावे की बरफी का उपयोग करें।
- गंगा माँ की कथा पढ़ें या सुनें।
- माँ गंगा की आरती करें।
- इसके बाद धूप-दीप जलाकर श्री गंगा सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करें।
- तत्पश्चात् गंगा मंत्र- ॐ नमो भगवति हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा’ का 108 बार जाप करें।
Story of Ganga Saptami
गंगा सप्तमी की कथा
गंगा की उत्पत्ति के विषय में कई कथायें प्रचलित है। पुराणों में वर्णित कथाओं के आधार पर एक मत है कि मां गंगा सबसे पहले भगवान विष्णु के चरणों के पसीने से निकली थीं। और दूसरा मत है कि माँ गंगा भगवान ब्रह्मा के कमंडल से प्रकट हुई थीं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार गंगा सप्तमी (Ganga saptami) के दिन माँ गंगा का धरती पर पुनर्जन्म हुआ था। माँ गंगा को धरती पर लाने के लिये श्री राम के पूर्वज अयोध्या के सूर्यवंशी राजा भागीरथ ने कठोर तपस्या की थी। अपने पूर्वज राजा सगर के पुत्रों को कपिल ऋषि के श्राप से मुक्त कराने के लिये राजा भागीरथ ने गोकर्ण तीर्थ में जाकर कठोर तपस्या करी।
भागीरथ कई वर्ष तक तपस्या में करते रहे। तब ब्रह्माजी ने उन पर प्रसन्न होकर गंगा जी को पृथ्वी पर ले जाने का वरदान दिया। परंतु समस्या यह थी कि ब्रह्माजी के कमण्डल से निकलने के बाद माँ गंगा का वेग इतना अधिक था कि अगर वह सीधे धरती पर आतीं तो धरती उनका वेग सहन नही कर पाती और वो धरती को नष्ट करती हुई पाताल में चलीं जातीं। तब ब्रह्माजी ने भागीरथ को यह सुझाया कि गंगा के वेग संभालने के लिए वो भगवान शिव से प्रार्थना करें। महाराज भागीरथ ने भगवान शंकर की कठोर तपस्या की। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिवजी ने गंगा जी को अपनी जटाओं में संभालना स्वीकार कर लिया। गंगाजी जब अपने पूरे वेग से देवलोक से पृथ्वी की ओर आने लगी तो शिवजी ने गंगाजी की धारा को अपनी जटाओं में समेट लिया और गंगा की सिर्फ एक धारा को ही धरती पर छोड़ा। ऐसा माना जाता है कि गंगा सप्तमी के दिन भगवान शिव ने माँ गंगा को धरती पर छोड़ा था। तभी से हर वर्ष गंगा सप्तमी के दिन माँ गंगा का पूजन किया जाता है।