Anant Chaturdashi 2024: जानियें अनंत चतुर्दशी का व्रत एवं पूजन कब और कैसे करें?

Anant chaturdashi Vrat

सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला और सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला है अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) का व्रत। जानियें कब और कैसे करें अनंत चौदश (Anant Chaudas) का व्रत? पढ़ें अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा (Anant Chaturdashi Vrat Katha) और माहात्म्य।

Anant Chaturdashi 2024
अनंत चतुर्दशी 2024

भाद्रपद माह (भादों) की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन भगवान विष्णु के अनन्त स्वरूप का व्रत एवं पूजन किया जाता हैं। इस दिन को अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) के नाम से जाना जाता हैं। इस दिन आदि मध्य और अंत से रहित सृष्टि के कर्ता भगवान विष्णु की भक्ति की जाती है और व्रत एवं पूजन करने वाले स्त्री-पुरूष उनके नाम का धागा अपने हाथ में बाँधते हैं।

Anant Chaturdashi Kab Hai?
अनंत चतुर्दशी कब हैं?

इस वर्ष अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) का व्रत एवं पूजन 17 सितम्बर, 2024 मंगलवार के दिन किया जायेगा।

Anant Chaudas Ki Puja Vidhi
अनंत चौदस की पूजन विधि

अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) के व्रत और पूजन के लिये निम्नलिखित पूजन सामग्री एकत्रित करें।

भगवान विष्णु की मूर्ति, अनंत का धागा (चौदह गांठों वाला धागा), लाल वस्त्र, सफेद वस्त्र, कदली खम्भ, आम के पत्ते, पंच पल्लव, कलश, यज्ञोपवीत, सुपारी, रोली, मोली, गुलाल, गुड़, धूप, दीप, कमल के फूल, तुलसीदल, श्रीफल, मौसमी फल, फूलमाला, पंचामृत, भोग के लिये खीर, लौंग, इलायची, दूब, कर्पूर, जल, चौकी, पैसे दक्षिणा के लिये।

पूजन की विधि

यह पूजन आप स्वयं भी कर सकते हैं और यदि आप चाहे तो किसी योग्य ब्राह्मण के द्वारा भी पूजन करा सकते हैं।

  • अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • कदली खम्भ और वस्त्र से एक मण्ड़प का निर्माण करें।
  • एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। साथ में कलश में जल भरकर स्थापित करें।
  • भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष अनंत का धागा रखें।
  • धूप दीप जलाकर इस मंत्र का पाठ करते हुये भगवान विष्णु की पूजा करें

अनन्तः सर्व नागानामधिपः सर्वकामदः।
सदा भयात प्रसन्नोमे भक्तानां भयंकरः ॥

  • पंचामृत से भगवान विष्णु की प्रतिमा का अभिषेक करें। जल चढ़ाकर उन्हे वस्त्र अर्पित करें।
  • केशर, रोली से उनका तिलक करें, अक्षत, मोली, यज्ञोपवीत, कमल के फूल, दूर्वा आदि चढ़ायें।
  • फूलमाला और मौसमी फल भगवान को अर्पित करें।
  • तत्पश्चात्‌ खीर का भोग लगाकर पान, सुपारी, लौंग, इलायची आदि के दक्षिणा अर्पित करें।
  • दूध और जल में अनंत के धागे को शुद्ध करके, अनंत भगवान का ध्यान करते हुये स्त्री उसे अपने बायें हाथ में बाँधे और पुरूष उसे अपने दाहिने हाथ पर बाँधें। अनंत बाँधने के बाद अनंत चतुर्दशी की कथा कहें या सुनें।
  • कथा सुनने के बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
  • धूप-दीप और कर्पूर से भगवान विष्णु की आरती करें।
  • ब्राह्मण को भोजन करायें और उसे दक्षिणा दें।
  • स्वयं दिन में एक ही समय भोजन करें। और रात्रि में भजन-कीर्तन और जागरण का आयोजन करें।
  • यह व्रत हर वर्ष करते रहना चाहिये। जब आपको लगे कि आप यह व्रत करने में सक्षम नही हैं, तो इसका उद्यापन करके ही इसे छोड़ना चाहिये।
  • कुछ धर्मग्रंथों के अनुसार चौदह वर्षों तक हर वर्ष लगातार यह व्रत करके भी आप उद्यापन कर सकते हो।

Anant Chaturdashi Vrat Ka Mahatamya
अनंत चतुर्दशी व्रत का महात्म्य

अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) का दिन उस आदि-मध्य और अंत से रहित सुष्टि कर्ता के पूजन और भक्ति का है जो कि अनंत हैं। इस दिन भगवान विष्णु के अनन्त स्वरूप की भक्ति की जाती हैं। इस दिन जो चौदह ग्रंथि का धागा बाँधा जाता है, उसके विषय में यह मान्यता है कि उसमें भगवान अनंत विद्यमान रहते हैं, उसकी चौदह गांठों को चौदह लोकों का प्रतीक माना जाता हैं, जो भी मनुष्य अनंत के इस धागे को अपने हाथ पर बांधता हैं, उसके सभी कष्टों को अनंत भगवान हर लेते हैं। उसे बहुत शुभ फल प्राप्त होते हैं।

  • अनंत चतुर्दशी का व्रत (Anant Chaturdashi Vrat) एवं पूजन करने वाले साधक को समस्त भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।
  • उसके सभी रोगों का नाश हो जाता है और उसे आरोग्य की प्राप्ति होती हैं।
  • वंश की वृद्धि होती हैं।
  • घर-परिवार में सुख- समृद्धि बनी रहती हैं।
  • अपार धन-धान्य की प्राप्ति होती हैं।
  • संतान सुख की प्राप्ति होती हैं।
  • मान-प्रतिष्ठा के साथ ऐश्वर्य और वैभव की भी वृद्धि होती हैं।
  • शत्रुओं का नाश होता हैं और साधक को हर स्थान पर विजय प्राप्त होती हैं।
  • सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।
  • और अंत मे मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।

Anant Chaturdashi Ki Katha
अनन्त चतुर्दशी की कथा

एक बार नैमिषारण्य तीर्थ पर पुराणों के जानने वाले श्रीसूत जी महाराज अपने शिष्यों और अन्य ऋषि मुनियों को श्रीमद्भागवत की कथा सुनाते हुये बोले- हे ऋषियों! जरासंध की मृत्यु के पश्चात्‌ महाराज युधिष्ठिर ने विशाल राजसूय यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ मे दूर –दूर से भारत वर्ष के बड़े-बड़े राजा – महाराजा सम्मिलित हुये। पाण्ड़वों द्वारा बसाया गया नगर इंद्रप्रस्थ बहुत ही सुंदर था। उसका वैभव और स्थापत्य देखते ही बनता था। पाण्ड़वों के लिये असुरों के शिल्पी मय दानव ने बहुत ही सुंदर भवन का निर्माण किया था। उसमें भवन में कई ऐसी विशेषतायें थी, जो उस भवन को देखने वालों को भ्रम में ड़ाल देती थी। उसमें जहाँ पर अग्नि प्रज्जवलित होती दिखती वहाँ सबकुछ सामान्य होता, जहाँ जल होता वहाँ स्थल होने का आभास होता और जहाँ स्थल होता वहाँ जल होने का भ्रम होता। ऐसी विशेषताओं वाले उस भवन को देखने के लिये दुर्योधन भी गया और उस भवन की भव्यता और सौंदर्य को देखकर विस्मित हो गया। एक स्थान पर जहाँ जल था, परंतु स्थल होने का आभास होता था, वहाँ वो जल में गिर पड़ा और उसे ऐसी अवस्था में देखकर द्रोपदी को हंसी आ गई और उसने दुर्योधन को अंधे का पुत्र अंधा कह दिया। द्रोपदी द्वारा किये इस अपमान से दुर्योधन तिलमिला उठा। उसने पाण्ड़वों और द्रोपदी को अपमानित करने और उनसे उनका राज्य छीनने की इच्छा से पाण्ड़वों को हस्तिनापुर आकर द्यूत (जुआ / चौसर) खेलने का निमंत्रण दिया और उस चौसर के खेल में कपट द्वारा पाण्ड़वों का राज्य छीन कर उन्हे दास बना लिया और महारानी द्रोपदी को जीतकर उन्हे दासी कहकर अपमानित किया और उसके चीरहरण का प्रयास किया। उस समय द्रोपदी के सम्मान की रक्षा स्वयं भगवान कृष्ण ने की थी। उसके बाद पाण्ड़वों को बारह वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास का प्रण निभाने के लिये कहा गया। एक सम्राट से महाराज युधिष्ठिर एक वनवासी बन गये थे। उनका समस्त वैभव उनके पास से चला गया था। वो अपने भाइयों और रानी द्रोपदी के साथ वन में रहने ले लिये विवश हो गये। एक बार जब भगवान श्रीकृष्ण उनसे भेंट करने के लिये आये तब उन्होने दुखी होकर उनसे अपने मन का सारा हाल कहा और उनसे उपाय पूछा कि कैसे उनकी समस्त परेशानियों का नाश हो सकता हैं? कौन सा ऐसा व्रत और पूजन है, जिसके करने से उन्हे उनका खोया हुआ मान-सम्मान और राज्य प्राप्त हो सकता हैं। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हे अनंत चतुर्दशी के व्रत का विधान सुनाया। श्रीकृष्ण ने कहा, “हे धर्मराज! अनंत भगवान का व्रत एवं पूजन करने से आपकी समस्त परेशानियों और दुखों का नाश हो जायेगा और जो कुछ भी आपने खोया है वो पुन: आपको प्राप्त हो जायेगा। आपकी सभी मनोकामनायें पूर्ण होगी।“ यह कहकर भगवान श्री कृष्ण ने उन्हे अनंत चतुर्दशी के व्रत की विधि (Anant Chaturdashi Vrat Ki Vidhi) बताकर उसकी कथा सुनाई।

अति प्राचीनकाल में सतयुग के समय में एक ब्राह्मण हुआ करता था। उसका नाम था सुमन्त। उसका विवाह वशिष्ठ गोत्र में उत्पन्न हुई भृगु की सुन्दर कन्या से हुआ। और विवाह के बाद उनके उत्तम गुणों वाली कन्या का जन्म हुआ। उन्होने उसका नाम सुशीला रखा। सुशीला की अल्पायु में उसकी माँ का स्वर्गवास हो गया। तब उसके पिता सुमंत का दूसरा विवाह कर्कशा नाम की कन्या से हुआ। कर्कशा स्वभाव से बहुत ही दुष्ट थी और वो सुशीला के प्रति द्वेषपूर्ण भाव रखती थी। कर्कशा अपने पति से भी प्रतिदिन झगड़ा किया करती थी। समय के साथ सुशीला की आयु बढती गई और वो विवाह के योग्य हो गई। उसके रूप और गुणों की चर्चा सुनकर वेदों के ज्ञाता और मुनियों में श्रेष्ठ कौंडिल्य ऋषि सुमंत के पास सुशीला से विवाह की इच्छा लेकर आयें। कौंडिल्य ऋषि ने सुमंत से उसकी पुत्री सुशीला विवाह उनके साथ करने के लिये कहा। सुमंत ने खुशी के साथ अपनी पुत्री का विवाह कौंडिल्य ऋषि के साथ कर दिया। अपनी पुत्री को विदा करते समय उसे कुछ देने की इच्छा से सुमंत अपनी पत्नी कर्कशा से कहा तो उसने घर के सारे पुराने सामान और बारात के खाने के लिये रास्ते के भोजन के लिये रात का बचा हुआ भोजन बाँध दिया। यह सब सुशीला ने देखा लिया। उसको यह देखकर बहुत दुख हुआ। उसे लगा कि जब उसके ससुराल वालों को यह सब पता चलेगा तो उसका कितना अपमान करेंगे? उसे उनका तिरस्कार भी सहना पड़े। यह सोचकर उसके मन में आत्महत्या का विचार आया। जब मार्ग में सब एक नदी के किनारे रूके तो सुशीला नदी में ड़ूबकर आत्महत्या करने के विचार से वहाँ पहुँच गई। वो जब वहाँ पहुँची तो उसने देखा की वहाँ पर बहुत सी स्त्रियाँ कोई पूजन कर रही हैं। सुशीला ने उन स्त्रियों से पूछा कि आप लोग यह क्या कर रही हो? तब उन्होने उसे बताया कि आज अनंत चतुर्दशी है और हम सब अनंत भगवान का व्रत एवं पूजन कर रहे हैं। इसके करने से मनुष्य की सभी मनोकामनायें पूरी होती हैं। तब सुशीला ने उनसे अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) के व्रत एवं पूजन की विधि पूछी। तब एक स्त्री ने उसे बताया कि, “हे सुशीला! यह अनंत चतुर्दशी का व्रत है और इसमें भगवान विष्णु के अनन्त स्वरूप का व्रत और पूजन किया जाता हैं। पूजन के बाद चौदह ग्रंथि वाला धागा शुद्ध करके स्त्रियाँ अपने बाये हाथ पर और पुरूष अपने दायें हाथ पर बाँधते हैं। इस धागे को बांधते समय अन्नत भगवान से प्रार्थना करे कि, हे अनंतदेव! आप इस संसार रूपी सागर से मुझे पार लगाओ, मेरा उद्धार करों, आपको बारम्बार मेरा प्रणाम हैं।“
फिर सूत्र को अपने हाथ में बाँधे और अनन्त भगवान का ध्यान करें। तब सुशीला ने वही व्रत का संकल्प किया और पूजन करके अपनी बायी बाँह पर चौदह ग्रन्थि युक्त सूत्र बांधा और अनंत भगवान से प्रार्थना करी, हे प्रभु! आप तो सब जानते है। आज मेरे ससुराल वालो के समक्ष मेरी और मेरे पिता का लाज रखों। मैं आपसे यही माँगती हूँ। यह ध्यान करके जब सुशीला वापस उसी स्थान पर पहुँची तो उसके पति ने उससे पूछा कि वो कहाँ गयी थी? तो उसने कहा, कि आज अनंत चतुर्दशी हैं, और मैं नदी के किनारे अनंत भगवान का पूजन करने गयी थी। इधर उसके बारात के सब लोग आनन्द से भोजन कर रहे थे। वहाँ भोजन में तरह-तरह के पकवान थे। सबने सुशीला के परिवार का प्रशंसा करी। तब सुशीला ने अनंत भगवान का आभार किया और अपना व्रत पूर्ण किया। जब वो अपने ससुराल पहुँची तो उसे अनंत चतुर्दशी के व्रत का महात्म्य पता चला। उस व्रत के प्रभाव से उसके परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ने लगी और धन-धान्य से उसका घर परिपूर्ण हो गया। उसका जीवन सुखमय हो गया। एक बार उसके पति के दृष्टि उसके हाथ पर बंधे सूत्र पर पड़ी तो उसने सुशीला से पूछा कि यह क्या हैं? और तुमने इसे क्यों बाँध रखा हैं? तब सुशीला ने कहा, “हे स्वामी! यह अनंत भगवान का सूत्र है। मैं अनंत भगवान का व्रत करती हूँ और उन्ही की कृपा से आज हमारे पास धन-धान्यादि सबकुछ हैं। सुशीला की ऐसे वचन सुनकर कौंडिल्य ऋषि अहंकार वश अनन्त सूत्र को तोड़कर जलती हुई अग्नि में फेंक दिया। सुशीला ने तुरंत अनन्त सूत्र को आग से निकाला और उसे दूध में डाल दिया।

अनंत सूत्र का इस प्रकार अपमान करने से कौंडिल्य ऋषि पर अनंत भगवान रूष्ट हो गये और इसके कारण उनका समस्त ऐश्वर्य समाप्त हो गया। घर जल गया, धन चोरी हो गया, घर परिवार में कलह होने लगा और उनका स्वास्थ्य भी खराब रहने लगा। तब उन्होने अपने पत्नी सुशीला से कहा, अचानक यह क्या हो गया? हमारा सारा धन-वैभव नष्ट हो गया। तब सुशीला ने उन्हे कहा कि यह सब अनंत भगवान और उनके उस सूत्र के अपमान के कारण हुआ हैं। तब कौंडिल्य ऋषि को अपनी गलती पर पश्याताप हुआ। और उसका प्रायश्चित करने के लिये वो तप करने और अनन्त भगवान के दर्शन की इच्छा से वन में चले गये। वन में पहुँच कर कौंडिल्य ऋषि इधर-उधर घूम कर सबसे अनंत भगवान के विषय मे पूछने लगे। वन में उन्होने एक फलों से लदा पेड़ देखा, जिसमें कीड़े पड़े हुये थे। उन्होने उससे पूछा कि तुमने अनंत भगवान को देखा है क्या? तब उस वृक्ष ने मना कर दिया और कहा नही मैंनें नही देखा। यह सुनकर जब कौंडिल्य ऋषि आगे बढ़ने लगे तो वृक्ष ने कहा कि अगर तुम्हे अनंत भगवान मिले तो उनसे पूछना कि मेरे अंदर कीड़े क्यो हैं? तब कौंडिल्य ऋषि उसे हाँ कहा और आगे बढ़ गये।

अनंत भगवान के दर्शन की इच्छा मन में लिये कौंडिल्य ऋषि वन में आगे बढ़ते रहे। वन में उन्हे घूमती गायें और बछड़े मिले तब कौंडिल्य ऋषि ने गायों से पूछा, हे गौमाता क्या तुमने अनंत भगवान को देखा हैं? तब उस गाय ने भी मना कर दिया। आगे कौंडिल्य ऋषि को एक बैल मिला उससे भी उन्होने वही प्रश्न किया तो उस बैल ने भी मना कर दिया। उससे आगे उन्हे दो पुष्कर्णियाँ मिली उनसे भी उन्होने वही सवाल किया और उन्होने भी वही उत्तर दिया जो उनसे पहले सब ने दिया था। इस प्रकार कौंडिल्य ऋषि वन में आगे बढ़ते रहे और उन्हे जो भी मिलता उससे वो यही प्रश्न पूछते कि क्या आपने अनन्त भगवान को देखा हैं? परंतु किसी से भी संतोषजनक उत्तर ना पाकर वो बहुत दुखी हुये और उन्होने अपने प्राण त्यागने का निश्चय कर लिया। जब उन्होने आत्महत्या का प्रयास किया तभी अनन्त भगवान एक ब्राह्मण के रूप में प्रकट हो गये। और कौंडिल्य ऋषि को लेकर एक गुफा के अंदर ले गये। उस गुफा के अंदर कौंडिल्य ऋषि को बहुत सुंदर लोक दिखा वहां पर चारो ओर एक दिव्य प्रकाश फैला हुआ था। वहाँ पर सभी लोग प्रसन्न थे। वही पर उन्हे अनंत भगवान के विश्वरूप के दर्शन हुये।

एक दिव्य सिंहासन पर अनंत भगवान शंख, चक्र, गदा, पद्म लिये गरुड़ के साथ विराजमान थे। भगवान के विराट रूप को देखकर कौंडिल्य ऋषि ने उनकी स्तुति करी और अपनी गलतियों के लिये उनसे क्षमा माँगी। कौंडिल्य ऋषि के भक्ति युक्त वचन सुनकर अनंत भगवान ने उनसे कहा, हे कौंडिल्य! तुम किस इच्छा से मुझे खोज रहे थे। तुम भयमुक्त होकर मुझसे अपने मन की बात कहो। तब कौंडिल्य ऋषि ने कहा, “ हे प्रभु! मैंने अज्ञान और अहंकार के कारण आपका अपमान किया और आपके अनंत सूत्र को अग्नि में फेंक दिया। जिसके कारण मेरी सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई। मेरे परिवार में अशांति हो गई। मेरी मान-प्रतिष्ठा धूमिल हो गई। मैं अपनी गलती की क्षमा प्रार्थना लेकर आपके दर्शनार्थ यहाँ आया हूँ। आपके दिव्य स्वरूप के दर्शन पाकर मेरा जीवन धन्य हो गया। हे प्रभु! मैं आपसे अपने अपराध के लिये क्षमा माँगता हूँ। और मेरे जीवन में सबकुछ पहले जैसा कैसे होगा इसका उपाय भी कृपा करके बताइये। तब अनंत भगवान को उसपर दया आ गई और उन्होने कहा, “है कौंडिल्य! तुम अपने घर जाकर चौदह वर्षों तक अनंत चतुर्दशी का व्रत एवं पूजन पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करों। अपने दायें हाथ में चौदह ग्रंथि युक्त अनंतसूत्र बांधना। ऐसा करने से तुम्हारे सभी कष्टों का नाश हो जायेगा। तुम्हारी सभी मनोकामनायें पूरी होंगी। जीवन के सभी सुख भोगकर तुम अंत समय में सद्गति को प्राप्त करोगे।

भगवान के ऐसे वचन सुनकर कौंडिल्य ऋषि को संतोष हुआ। तब उन्होने अनंत भगवान से मार्ग में मिले वृक्ष द्वारा पूछे गये प्रश्न के विषय में पूछा तब अनंत भगवान ने उसे बताया कि वो वृक्ष पूर्व जन्म में एक विद्वान ब्राह्मण था परंतु उसने विद्यार्थियों को शिक्षा ना देकर जो पाप अर्जित किया था उसी का परिणाम है कि उस फलदार वृक्ष पर फल तो आते पर कीड़ों के कारण कोई उनका उपभोग नही करता। कौंडिल्य ऋषि के मन में वन में मिले अन्य जीवों के विषय में जानने की इच्छा हुई। उन्होने अनन्त भगवान से उनके विषय में पूछा तो उन्होने बताया कि वो दोनो पुष्कर्णी पूर्वजन्म में बहने थी। उन्होने तब कोई पुण्य कर्म नही किया, ना ही किसी याचक को भिक्षा दी ना ही कोई धर्म का कार्य किया। इसलिये परस्पर लहरे उनसे आकर टकराती है परन्तु जल वहाँ नही रूकता। अनन्त भगवान ने आगे कहा कि वो गाय पृथ्वी है, वह बैल धर्म है, गधा क्रोध है, वह हाथी अहंकार है, वो गुफा संसार है, और मैं अनन्त हूँ। फिर कौंडिल्य ऋषि ने अपने घर आकर अपनी स्त्री के साथ चौदह वर्ष तक अनन्त चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) के व्रत का पालन किया। और अनन्त भगवान की कृपा से जीवन के समस्त सुख भोगकर अंत में स्वर्ग को चला गया।

फिर भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा कि आप भी इस व्रत को करों। जैसे कौंडिल्य ऋषि और सुशीला की सभी मनोकामनायें अनन्त भगवान ने पूर्ण करी थी उसी प्रकार तुम्हारी भी सभी मनोकामनायें पूर्ण होगी। जो कुछ भी आपने ने खोया है, वो सब आपको पुन: प्राप्त होगा। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “हे धर्मराज युधिष्ठिर! अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) का जो व्रत मैंने तुम्हे बताया है, उस व्रत को करने से मनुष्य अपने सभी पापों से मुक्त होकर स्वर्गलोक को जाता हैं। भगवान श्रीकृष्ण के कहे अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत और पूजन किया। व्रत के प्रभाव से उनके सभी मनोरथ सिद्ध हुये और महाभारत के युद्ध में जीतकर उन्हे उनका राज्य और यश पुन: प्राप्त हुआ। और मरणोपरांत पांड़वों को स्वर्ग प्राप्त हुआ।