It is collection of stotra’s of various hindu God & Goddess. Collection of sampoorn stotra.
स्तोत्र संकलन
सम्पूर्ण स्तोत्र का संग्रह

मंगला गौरी स्तोत्रं का नित्य पाठ करने से साधक को मनवांछित फल प्राप्त होता है। माँ अपने भक्त की सदैव हर मुशकिल से रक्षा करती हैं। सावन में मंगला गौरी…

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माँ दुर्गा का अत्यंत ही दुर्लभ और फलदायी स्तोत्र है श्री दुर्गा सहस्त्रनाम स्तोत्रम्। इसके नित्य पाठ से मनुष्य को अपार धन-सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। भूत-पिशाच की पीड़ा दूर…

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मनचाही नौकरी/ सरकारी नौकरी दिलाने वाला, जल्दी फल प्रदान करने वाला है सूर्याष्टकम् का पाठ । ऐसा कई बार देखने को मिलता है कि योग्यता होने के बावजूद भी मनचाही…

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धन- समृद्धि, शक्ति, सफलता, विजय, सौभाग्य, आरोग्य, दीर्धायु और रूप-सौन्दर्य प्रदान करने वाला है यह महालक्ष्मी स्तुति का जप… महालक्ष्मी स्तुति द्वारा माँ लक्ष्मी के विभिन्न रूपों की स्तुति की…

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सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ साधक को ज्ञान का प्रकाश प्रदान करने वाला, रोग, शत्रु और भय का नाश करने वाला, ह्रदय में सकारात्मका भरने वाला, सभी विपदाओं से सुरक्षा प्रदान…

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जन्म कुण्ड़ली के सभी ग्रहों को शांत एवं सशक्त बनाने वाला, सुख-शांति, यश-ऐश्वर्य और धन-सम्पदा प्रदान करने वाला है ये विष्णुसहस्रनाम (Vishnu Sahasranam) का पाठ… Five Divine Weapons of Lord…

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रावण ने शिव-ताण्डव-स्तोत्रम् (shiv-tandav storam) की रचना की थी और इसको पढ़ कर महादेव को प्रसन्न कर लिया था । जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थलेगलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् |डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयचकार चण्ड्ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||…

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॥ आवाहन ॥ ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यंच । हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ॥ ॐ जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम । तपोऽरि सर्वपापघ्मं सूर्यमावाह्याम्यहम ॥ ॐ विश्वानिदेव…

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योगरत्नावली में दिये दुर्गा सप्तशती (Durga Saptashati) के पाठ के क्रम के अनुसार सर्वप्रथम देवी कवच फिर अर्गला स्तोत्र (Argala Stotram) और फिर इसके बाद कीलक स्तोत्र का पाठ किया…

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जय भगवति देवि नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे । जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे ॥१॥ जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे । जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे ॥२॥ जय महिषविमर्दिनि शुलकरे जय…

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न तातो न माता न बन्धुर्न दाता न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता । न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥१॥ भवाब्धावपारे महादुःखभीरु पपात…

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मौनव्याख्या प्रकटित परब्रह्मतत्त्वं युवानं वर्षिष्ठांते वसद् ऋषिगणौः आवृतं ब्रह्मनिष्ठैः । आचार्येन्द्रं करकलित चिन्मुद्रमानंदमूर्तिं स्वात्मारामं मुदितवदनं दक्षिणामूर्तिमीडे ॥ विश्वं दर्पणदृश्यमाननगरीतुल्यं निजान्तर्गतं पश्यन्नात्मनि मायया बहिरिवोद्भूतं यथा निद्रया । यः साक्षात्कुरुते प्रबोधसमये स्वात्मानमेवाद्वयं…

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