Saptashloki Durga (सप्तश्लोकी दुर्गा)

Saptashloki Durga

सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ साधक को ज्ञान का प्रकाश प्रदान करने वाला, रोग, शत्रु और भय का नाश करने वाला, ह्रदय में सकारात्मका भरने वाला, सभी विपदाओं से सुरक्षा प्रदान करने वाला और मनोवान्छित फल देने वाला हैं। इसका पाठ दुर्गा सप्तशती के पाठ के समान ही माना गया है।

यदि आप श्री दुर्गा सप्तशती के 13 अध्यायों के 700 श्लोकों का पाठ नहीं कर सकते तो इससे चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं है। क्योंकि सप्तश्लोकी दुर्गा के पाठ से आपको पूरे दुर्गा सप्तशती के पाठ के समान फल प्राप्त होता है।

मां दुर्गा को दुर्गा सप्तशती का पाठ अति प्रिय है। इसमें 700 श्लोक और 13 अध्याय आते हैं। उसे हर व्यक्ति के लिए का नियमित पाठ कर पाना संभव नहीं हो पाता। ऐसे लोगों के लिए दुर्गा सप्तशती का विकल्प है सप्तश्लोकी दुर्गा। सिर्फ कुछ ही मिनटों की पूजा से पूरी दुर्गा सप्तशती के पाठ के समान ही फल प्राप्त होता है।

ऋषियों ने संपूर्ण दुर्गा सप्तशती में से सिर्फ सात श्लोक निकालकर सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र की रचना की है। ये सात श्लोक माता को सर्वाधिक प्रिय हैं और इनके पाठ को सप्तशती के पाठ के समान ही माना गया है। सप्तश्लोकी दुर्गा के पाठ से पहले दीपक जलाकर सप्तशती ग्रंथ की हल्दी, पुष्प, अक्षत, कुमकुम, सुगंध, नैवेद्य आदि उपलब्ध वस्तुओं से पूजन करना चाहिए। और इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिये।

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृकृत्यै भद्रायै नियतान: प्रणता: स्मताम् ।।

॥ अथ सप्तश्लोकी दुर्गा ॥

शिव उवाच

देवी त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी। कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः॥

देव्युवाच

श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्। मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते॥

ॐ अस्य श्री दुर्गा सप्तश्लोकी स्तोत्र मंत्रस्य नारायण ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवताः, श्री दुर्गा प्रीत्यर्थं सप्तश्लोकी दुर्गा पाठे विनियोग:।

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥1॥

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्रयदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदाचित्ता ॥2॥

सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ॥3॥

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते ॥4॥

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते। भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते ॥5॥

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥6॥

सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ॥7॥

॥ इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा सम्पूर्णा ॥