Indira Ekadashi 2023: भूलकर भी ना करें इंदिरा एकादशी पर यह काम? पढ़ें व्रत की विधि, नियम और व्रतकथा…

Indira Ekadashi

पितृ-दोष से मुक्ति और स्वर्ग प्राप्ति के लिये करें इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) का व्रत एवं पूजन। जानियें इंदिरा एकादशी व्रत (Indira Ekadashi Vrat) कब किया जायेगा?, इस व्रत में क्या करना चाहिये और क्या नही करना चाहिये?, व्रत की विधि और महत्व के साथ ही पढ़ियें इंदिरा एकादशी व्रत कथा (Indira Ekadashi Vrat Katha)…

Indira Ekadashi 2023
इन्दिरा एकादशी 2023

आश्विन मास की कृष्णपक्ष (श्राद्धपक्ष) की एकादशी को इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) के नाम से जाना जाता हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इंदिरा एकादशी का व्रत एवं पूजन करने से साधक के सभी पापों का नाश हो जाता हैं, और मृत्यु के बाद उसको यमलोक की यातनायें नही सहन करनी पड़ती बल्कि उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं। इस व्रत का पुण्य अपने पितरों को देने से या उनके निमित्त इस व्रत को करने से उनको सद्गति प्राप्त होती हैं।

Indira Ekadashi Kab Hai?
इन्दिरा एकादशी कब हैं?

इस वर्ष इन्दिरा एकादशी (Indira Ekadashi) का व्रत 10 अक्टूबर, 2022 मंगलवार के दिन किया जायेगा।

Significance of Indira Gyaras
इन्दिरा एकादशी व्रत का महत्व

हिंदु धर्मग्रंथो के अनुसार इन्दिरा एकादशी का व्रत (Indira Ekadashi Vrat) एवं पूजन करने से मनुष्य के सभी पापों का नाश होता हैं और मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं। इस व्रत के विषय में भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। इस एकादशी का व्रत एवं पूजन करने से साधक को अनेक यज्ञों के समान पुण्य प्राप्त होता हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन्दिरा एकादशी (Indira Ekadashi) के दिन व्रत एवं पूजन करने से –

1. पितृ-दोष से मुक्ति मिलती हैं।

2. पितरों को अधोगति से सद्गति प्राप्त होती हैं।

3. अपने पूर्वजों (पितरों) के निमित्त इस व्रत को करने से या इस व्रत का पुण्य उनको देने से उन्हे स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं।

4. पितरों की शांति के लिये भी इस व्रत को किया जाता हैं।

5. इस व्रत को करने से मनुष्य को धन-समृद्धि की प्राप्ति होती हैं।

Indira Ekadashi Par Kya Kare?
इंदिरा एकादशी पर क्या करें?

1. पितरों की शांति के लिये इस दिन भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने बैठकर श्रीमद्भगवत गीता का पाठ करें।

2. इस दिन तुलसी का और पीपल का पौधा लगाने का भी विशेष महत्व हैं।

3. इस दिन पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने से आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती और मनुष्य ऋण मुक्त हो जाता हैं।

Ekadashi Vrat Ki Vidhi
एकादशी व्रत की विधि

इन्दिरा एकादशी (Indira Ekadashi) का व्रत एक दिन पूर्व यानी दशमी तिथि से ही आरम्भ हो जाता है। दशमी के दिन एक ही समय भोजन करना चाहिये और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये।

1. इन्दिरा एकादशी (Indira Ekadashi) के दिन प्रात: काल स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत होकर व्रती को निराहार व्रत का संकल्प लेना चाहिये।

2. संकल्प लेने के बाद कलश की स्थापना करके उस पर शालिग्राम जी की प्रतिमा रखें। फिर उसकी पूजा करें।

3. भगवान शालिग्राम की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवायें।

4. धूप, दीप जलाकर रोली-चावल से पूजा करें। फल-फूल अर्पित करें। नैवेद्य चढ़ायें।

5. भगवान शालिग्राम को तुलसी अवश्य से चढ़ायें।

6. विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।

7. इसके बाद इंदिरा एकादशी व्रत का महात्म्य और कथा पढ़े या सुनें। कथा सुनने के बाद आरती करें।

8. विधि विधान से श्राद्ध करके ब्राह्मणों को फलाहार करायें।

9. स्वयं दिनभर निर्जल एवं निराहार रहकर व्रत करें। यदि शक्ति ना हो तो जलीय आहार और फलाहार कर सकते हैं।

10. अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मण को भोजन करवायें और यथाशक्ति दान-दक्षिणा दे कर संतुष्ट करें।

11. फिर उसके बाद अपने बंधु-बांधवों के साथ मौन रहकर खाना खायें।

12. व्रत की रात को जागरण अवश्य करें। इस व्रत के दिन काम-क्रोध-आलस्य का त्याग करके सात्विक जीवन जीयें।

यदि आप स्वंय ये पूजा नही कर सकते तो किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से भी पूजन करवा सकते हैं।

Indira Ekadashi Par Kya Na Kare?
इन्दिरा एकादशी पर क्या ना करें?

1. इस दिन स्त्रियाँ सिर से स्नान न करें। यानि बाल न धोयें।

2. भोजन में चावल का सेवन न करें।

3. व्रत करने वाला इस दिन सात्विक जीवन जीये और ब्रह्मचर्य का पालन करें।

4. क्रोध और आलस्य बिल्कुल ना करें।

Indira Ekadashi Vrat Ki Katha
इन्दिरा एकादशी व्रत की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से आश्विन मास की कृष्णपक्ष की एकादशी के विषय में पूछा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा, “ हे धर्मराज! आश्विन मास की कृष्णपक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी (Indira Ekadashi) कहते हैं। इंदिरा एकादशी का व्रत सभी पापों का नाश करने वाला और पितरों को सद्गति प्रदान करने वाला हैं। इस व्रत को करने से अपने कर्मों के फलस्वरूप अधोगति को प्राप्त हुये तुम्हारे पूर्वज उससे मुक्त होकर सद्गति को प्राप्त करते हैं।“

फिर भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को इंदिरा एकादशी के व्रत की कथा (Indira Ekadashi Vrat Katha) सुनाते हुये कहा,” हे धर्मराज! मैं आपको इंदिरा एकादशी के व्रत की कथा और महात्म्य सुनाता हूँ। इस व्रत को करने से राजा इंद्रसेन को स्वर्ग और उनके पूर्वजों को सदगति प्राप्त हुयी थी।“

अति प्राचीन समय में इंद्रसेन नाम का एक बहुत ही प्रतापी और धर्मपरायण राजा हुआ करता था। महिष्मति नाम के राज्य पर इंद्रसेन का राज था। इंद्रसेन के राज्य में चारों ओर सत्य और धर्म का पालन होता था। राजा अपनी प्रजा से बहुत प्रेम करता था। धर्म और न्यायपूर्वक अपनी प्रजा के हितों की रक्षा करता था।

राजा इंद्रसेन भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। उनकी कृपा से राजा को सभी प्रकार के सुख प्राप्त थे। उसके पास धन-धान्य की कोई कमी नही थी। उसके पुत्र-पौत्र भी सुयोग्य थे। एक बार राजा इंद्रसेन की सभा में देवर्षि नारद आये। राजा इंद्रसेन ने देवर्षि नारद का हृदय से स्वागत-सत्कार किया। देवर्षि नारद को उचित आसन देकर उनको सभा में बिठाया और उनके आने का प्रयोजन पूछा। तब देवर्षि नारद ने कहा, “ हे राजन! आप बहुत ही धर्मात्मा और न्यायप्रिय हैं। आप धर्म का पालन करने वाले हो। आप यहाँ पर सब प्रकार के सुखों का भोग कर रहे हो, परंतु आपके पिता यमलोक में दुखी हैं। एक बार मैं धर्मराज से भेंट करने यमलोक गया था, तब आपके पिता से भी भेंट हुयी। उन्होने ही मुझे आपके के पास यह संदेश पहुँचाने के लिये कहा था। आपके पिता के एकादशी व्रत के भंग होने के कारण उन्हे दोष लगा और उसके कारण उन्हे यमलोक में कष्ट झेलने पड़ रहे हैं। उनको सद्गति दिलाने और उनके स्वर्ग प्राप्ति के लिये आप उनके निमित्त आश्विन मास की कृष्णपक्ष की इंदिरा एकादशी का व्रत करें। जिससे उन्हे यमलोक के कष्टों से मुक्ति मिलें और स्वर्ग की प्राप्ति हो।

राजा इंद्रसेन ने देवर्षि नारद से इंदिरा एकादशी के व्रत की विधि बताने का अनुरोध किया। तब देवर्षि नारद ने राजा इन्द्रसेन को इंदिरा एकादशी के व्रत के विधि के विषय में बताया। देवर्षि नारद ने कहा, “ हे राजन! इंदिरा एकादशी का व्रत करने से जातक के सभी पापों का नाश हो जाता है और उसको स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं। अपने पूर्वजों के निमित्त इस व्रत को करने से उनको सद्गति मिलती हैं। यह व्रत आश्विन माह की कृष्णपक्ष की एकादशी के दिन किया जाता हैं। इस व्रत का आरम्भ एक दिन पूर्व दशमी तिथि से ही हो जाता हैं। दशमी तिथि वाले दिन श्रद्धापूर्वक प्रात: काल ही स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त हो जाये। फिर दोपहर के समय नदी या तीर्थ स्थान या सरोवर पर जाकर पुन: स्नान करें। प्रेम और श्रद्धा से पितरों का श्राद्धकर्म करें और स्वयं दिन में एक ही बार भोजन करें। इसके पश्चात्‌ एकादशी के दिन भी प्रात:काल उठकर स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर नियमानुसार श्रद्धा और भक्ति के साथ निराहार रहकर एकादशी के व्रत को करने का संकल्प करें। शालिग्राम जी की प्रतिमा का अभिषेक करके धूप-दीप जलाकर उनकी पूजा करें। फल-फूल चढ़ाये। उसके बाद नैवेद्य निवेदन करें। भगवान विष्णु का ध्यान करके शालिग्राम जी की प्रतिमा के समक्ष विधि-विधान के साथ पितरों का श्राद्ध करें। ब्राह्मण को भोजन में फलाहार कराये और दक्षिणा देकर संतुष्ट करें। गाय को भोजन करायें।

रात्रि में भजन-कीर्तन का आयोजन करके जागरण करें। तत्पश्चात्‌ द्वादशी के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर सूर्य भगवान को जल चढ़ाकर भगवान विष्णु का पूजन करके ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन करायें। फिर मौन धारण करके अपने भाई-बंधुओं और परिवार के साथ भोजन करें। यह व्रत पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से साथ काम-क्रोध और आलस्य का त्याग करके करने से आपके पिता को सद्गति अवश्य प्राप्त होगी। “ राजा इंद्रसेन को व्रत का सारा विधान बताकर नारद जी वहाँ से अंतर्ध्यान हो गए।

अपने पिता की इच्छापूर्ण करने और उनकी स्वर्ग प्राप्ति के लिये राजा इंद्रसेन ने अपने पिता के निमित्त इंदिरा एकादशी के व्रत का संकल्प किया और पूरी श्रद्धा-भक्ति के साथ विधि-विधान से व्रत को पूर्ण किया। फिर भगवान विष्णु से अपने पिता को स्वर्ग में स्थान प्रदान करने की प्रार्थना करी।

भगवान विष्णु की कृपा से राजा इंद्रसेन के पिता यमलोक के कष्टों से छूटकर स्वर्ग लोक को चले गये। इंदिरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से राजा इंद्रसेन भी इस धरती के सुख भोगकर मरणोपरांत स्वर्ग लोक को चले गये।

भगवान कृष्ण ने कहा, “हे धर्मराज! मैनें तुम्हे जो इंदिरा एकादशी के व्रत का माहात्म्य बताया है, उसे कहने और सनने से ही मनुष्य के सभी पापों का नाश हो जाता हैं। और मनुष्य धरती के सभी सुख भोगकर मृत्यु के बाद वैकुंठ धाम को चला जाता हैं। साथ ही उसके पितरों का भी उद्धार हो जाता हैं। इस व्रत को करने से मनुष्य पितृ-दोष से मुक्त हो जाता हैं।