Jitiya Vrat 2023- जानियें जितिया व्रत की तारीख, पूजा विधि, महत्व और व्रतकथा…

Jivitputrika Vrat

जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) पुत्र के जीवन की रक्षा के लिये किया जाता है। यह व्रत जितिया व्रत के नाम से भी प्रसिद्ध है। जानियें कब किया जायेगा जितिया व्रत (Jitiya Vrat)?, क्या है व्रत और पूजा की विधि? साथ ही पढ़ियें इस व्रत का क्या महत्व है?, इस व्रत की शुरूआत कैसे हुई? और जितिया व्रत कथा (Jitiya Vrat Katha)…

Jitiya Vrat 2023 (Jivitputrika Vrat)
जितिया व्रत 2023 (जीवित्पुत्रिका व्रत)

आश्विन मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि के दिन जितिया व्रत (Jitiya Vrat) किया जाता हैं। इसे जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) के नाम से भी जाना जाता हैं। हिंदु मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से जिन माताओं के पुत्र जन्म लेते ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं, उनके जीवन की रक्षा होती हैं। इस व्रत के नाम जीवित्पुत्रिका का अर्थ है पुत्र को जीवन देने वाला। माता-पिता यह व्रत अपने पुत्रों की दीर्धायु और सुरक्षा के लिये करते हैं।

Jitiya Vrat Kab hai?
जितिया व्रत कब हैं?

इस वर्ष जितिया व्रत (Jitiya Vrat) 6 अक्टूबर, 2023 शुक्रवार के दिन किया जायेगा।

Jivitputrika Vrat Ka Mahatva
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व

जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) पुत्र प्राप्ति और उसकी सुरक्षा के लिये किया जाता हैं। इस व्रत के दिन भगवान सूर्यनारायण का पूजन किया जाता हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन का व्रत करने से मृतवत्सा दोष का निवारण होता हैं। जिन स्त्रियों के पुत्र जन्म लेते ही मृत्यु को प्राप्त होते है या जिन माताओं के पुत्र अल्पायु में मर जाते हैं, वो महिलायें अपने पुत्रों के लम्बी आयु और उनकी सुरक्षा के लिये इस व्रत को करती हैं। भगवान श्री कृष्ण ने इस व्रत का माहत्म्य एक ब्राह्मण को बताया था। जिससे उसके पुत्र की मृत्यु टल गयी थी और उसको लम्बी आयु प्राप्त हुयी थी।

How did the Jivitputrika Vrat begin?
जीवित्पुत्रिका व्रत की शुरूआत कैसे हुई?

पौराणिक कथा के अनुसार जब महाभारत के युद्ध के पश्चात्‌ अश्वत्थामा ने प्रतिशोध में आकर क्रोधवश पाण्ड़व समझकर सोते हुये द्रौपदी के पांचों पुत्रों और उसके भाई धृष्टधुम्न की हत्या कर दी थी। तब उसको दण्ड़ित करने के लिये पांड़व श्रीकृष्ण के साथ अश्वत्थामा के पास गये। पाण्ड़वों को जीवित देखकर उसने उन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया, श्री कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने भी अपना ब्रह्मास्त्र चला दिया।

तब वेदव्यास जी ने आकर उन अस्त्रों को रोका और वापस लेने को कहा। अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया, किंतु अश्वत्थमा को अपना अस्त्र वापस लेना नही आता था। इसलिये उसने उसकी दिशा बदल कर उत्तरा के गर्भ ने पल रहे अभिमन्यु के पुत्र को मार दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा से उसकी मणि छीन ली और उसे अनंतकाल तक पृथ्वी पर दुख भोगने का श्राप दिया। तत्पश्चात्‌ श्री कृष्ण ने ही अपने समस्त पुण्यों का फल देकर उत्तरा के पुत्र को पुन:जीवन दान दिया। इसीलिये उसका नाम परीक्षित पड़ा।

ऐसी मान्यता है कि तभी से संतान की रक्षा और उसकी दीर्धायु के लिये माताओं ने जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) करना आरम्भ कर दिया।

Jitiya Vrat Ki Vidhi
जितिया व्रत की विधि

जितिया व्रत (Jitiya Vrat) की दो पूजन विधियाँ प्रचलित हैं-

प्रथम विधि – इस विधि से राजस्थान, गुजरात और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में व्रत एवं पूजन किया जाता हैं।

जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) में भगवान सूर्यनारायण की पूजा की जाती हैं। श्राद्धों की अष्टमी के दिन यह व्रत किया जाता हैं।

1. आश्विन मास की अष्टमी के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. पूजा स्थान पर एक चौकी बिछाकर स्वयं पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे।
3. चौकी पर कपड़ा बिछाकर उस पर सूर्य भगवान की मूर्ति स्थापित करें।
4. सूर्य भगवान की मूर्ति को ताम्बे के कलश में जल लेकर उससे स्नान करायें। रोली – चावल से तिलक करें।
5. धूप-दीप जलायें और फूल-माला चढ़ायें।
6. फिर भगवान सूर्य को भोग अर्पित करें। भोग में बाजरे और चने से बने खाद्य पदार्थ निवेदन करें।
7. तत्पश्चात्‌ जितिया व्रत की कथा (Jitiya Katha) कहे या सुनें। फिर आदित्यहृदय स्त्रोत्र का पाठ करें।
8. कहानी सुनने के बाद भगवान की सूर्य की आरती करें।
9. फिर सबको प्रसाद बाँटें। दिन में एक ही समय भोजन करें। कुछ स्थानों पर यह व्रत निर्जल भी किया जाता हैं। इस दिन काटे हुये या कटे हुये फल-सब्जी इत्यादि का सेवन ना करें और ना ही फल-सब्जी इत्यादि किसी वस्तु को काटे।

द्वितीय पूजन विधि – इस विधि से बिहार, पूर्वी उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में पूजन किया जाता हैं।

1. जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) का आरम्भ एक दिन पूर्व से ही हो जाता हैं, व्रत करने वाली महिलायें व्रत के एक दिन पहले यानि सप्तमी के दिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व ही उठकर स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर सूर्योदय होने पर भगवान सूर्य की पूजा करें।

2. पूजन करने के बाद सप्तमी के दिन एक ही समय भोजन करें। एक बार भोजन करने के पश्चात्‌ फिर कुछ भी नही खायें।

3. अगले दिन यानी अष्टमी तिथि पर (जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन) पुन: प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व ही उठकर स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर सूर्योदय होने पर भगवान सूर्य की पूजा करें।

4. फिर संध्या के समय (प्रदोष काल) में स्त्रियाँ जीमूत वाहन की पूजा-अर्चना करें।

5. धूप-दीप जलाकर रोली-चावल चढ़ायें, फल-फूल अर्पित करें। उसके बाद जितिया व्रत कथा (Jitiya Vrat Katha) – जीमूत वाहन की कथा कहें या सुनें।

6. इस दिन महिलायें निर्जल व्रत रखें।

7. नवमी के दिन जितिया व्रत का पारण (Jitiya Vrat Ka Paran) करें। इस व्रत का पारण छठ के व्रत की ही भंति किया जाता हैं। महिलाएं व्रत का पारण करने से पूर्व सूर्यदेव को अर्घ्य दें और फिर उसके बाद भोजन करें।

8. पारण के दिन यानी नवमी तिथि के दिन भोजन में झोर भात, मरुआ की रोटी और नोनी का साग बनाया जाता हैं।

Jitiya Vrat Ke Niyam
जितिया व्रत के नियम

1. भगवान सूर्य देव को बाजरे और चने से बने पकवान भोग लगायें।

2. इस दिन कोई वस्तु ना काटे और ना ही कटे हुये फल-सब्जी का उपयोग करें।

Jitiya Katha
जितिया कथा – प्रथम

जो स्त्रियाँ जितिया व्रत (jitiya vrat) की पूजा प्रथम विधि से करती हैं, उन्हे यह जितिया व्रत कथा (jitiya vrat katha) कहनी और सुननी चाहिये।

पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया था और वो द्वारिका में थें। तब उनके राज्य द्वारिका में एक ब्राह्मण रहता था। उस ब्राह्मण के सात पुत्र हुये परंतु सभी अपने बाल्यकाल में ही मृत्यु को प्राप्त हो गये। अपने सात पुत्रों की असमय मृत्यु के दुख से वो ब्राह्मण दम्पति बहुत दुखी और आहत थे।

ईश्वर की कृपा से उस ब्राह्मण की स्त्री ने फिर से गर्भधारण किया। अपनी आठवीं संतान की कुशलता की कामना लेकर वो ब्राह्मण भगवान श्रीकृष्ण से भेंट करने पहुँच गया। भगवान श्रीकृष्ण को सामने देखकर उसके अश्रु निकल गये और वो उनके चरणों पर गिर गया। तब श्रीकृष्ण ने उसे सम्भाला और उससे आने का कारण पूछा। तब उस ब्राह्मण ने श्रीकृष्ण को कहा, “ हे द्वारिकाधीश! मेरे सात पुत्र अपने बाल्यकाल में ही मृत्यु को प्राप्त हो गये। अब मेरे आठवीं संतान होने वाली हैं। मैं उसके जीवन की रक्षा की कामना लेकर आपके पास आया हूँ। आपके राज्य में सभी लोग सुखी हैं। हमें भी सभी प्रकार के सुख प्राप्त हैं, लेकिन पुत्रो की असमय मृत्यु के शोक ने हमारा जीवन दुखों से भर दिया हैं। अब आप ही हमारे इस दुख के निवारण का कोई उपाय बताइये।“

तब भगवान श्रीकृष्ण ने उस ब्राह्मण से कहा, “हे विप्रवर! आपके आठवें पुत्र की आयु भी मात्र तीन वर्ष ही हैं। मं आपको एक व्रत के विषय में बताता हूँ जिसके करने से आपका पुत्र दीर्धायु होगा। आप आश्विन मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन होने वाले पुत्रजीवि व्रत का अनुष्ठान करों। इस व्रत को करने से आपके पुत्र की आयु में बढ़ोत्तरी होगी। इस दिन भगवान सूर्य की पूजा की जाती हैं। तुम पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से भगवान सूर्य की पूजा करो और उनसे अपने पुत्र के लिये दीर्धायु का आशीर्वाद माँगो। ऐसा करने से तुम्हारे पुत्र की उम्र लम्बी होगी।

उस ब्राह्मण ने श्रीकृष्ण के कहे अनुसार पुत्रजीवि व्रत का अनुष्ठान किया। और व्रत वाले दिन दोनो पति-पत्नी भगवान सूर्य के समक्ष हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगे।

सूर्यदेव विनती सुनो, पाऊँ दुख अपार।
उम्र बढ़ाओ पुत्र की कहता बारंबार ॥

उस ब्राह्मण और उसकी पत्नी की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने अपने गले से एक माला निकाल कर उस ब्राह्मण के पुत्र के गले में ड़ाल दी। और फिर अंतर्ध्यान हो गये। फिर जब उस बालक की मृत्यु का दिन आया और यमराज उसे लेने के लिये आये तो अपने पुत्र के प्राणों पर संकट आया देखकर उस ब्राह्मण ने पुन: भगवान श्रीकृष्ण को याद किया।

भगवान श्रीकृष्ण उस ब्राह्मण की पुकार सुनकर उसकी सहायता के लिये आगये। तब उस ब्राह्मण ने उनसे कहा कि मैंने आपके कहे अनुसार पुत्रजीवि व्रत का पालन किया और सूर्य देव ने अपने गले से माला निकाल कर मेरे पुत्र के गले में ड़ाल दी, लेकिन फिर भी यमराज मेरे पुत्र के प्राण लेने के लिये आगये। तब श्रीकृष्ण ने उस ब्राह्मण से कहा कि तुम उस माला को यमराज के ऊपर ड़ाल दों। उस ब्राह्मण ने वैसा ही किया तो यमराज वहाँ से चले गये परंतु उनकी छाया वही रह गई। और उस छाया पर माला पड़ गई।

तब उस छाया ने शनिदेव का रूप लेकर श्रीकृष्ण से प्रार्थना करी। तब भगवान श्रीकृष्ण ने शनि देव पर प्रसन्न होकर उन्हे पीपल के वृक्ष पर रहने का स्थान दिया। ऐसी मान्यता है कि तब से शनि देव की छाया पीपल के वृक्ष पर वास करती हैं। तब भगवान श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से उस ब्राह्मण के पुत्र को लम्बी आयु प्राप्त हुई।

हे ईश्वर! जैसे आपने उस ब्राह्मण के पुत्र को जीवनदान दिया और आपकी कृपा से उसका पुत्र दीर्धायु हुआ। उसी प्रकार इस व्रत को करने वाले सभी पर कृपा करना।

द्वितीय कहानी – व्रत के दिन द्वितीय पूजन विधि का अनुसरण करने वाले इस जितिया व्रत कथा (jitiya vrat katha) को कहते और सुनते हैं।

जितिया कथा (Jitiya Katha) – जीमूत वाहन की कथा

प्राचीन समय में जीमूत वाहन नाम का एक गंधर्व राजकुमार था। जीमूत वाहन बहुत ही साहसी, निड़र और सभी से प्रेम करने वाले था। उसमें राज-पाट की बिल्कुल लालसा नही थी। उसकी योग्यता को देखकर उसके पिता ने उसे अपना उत्तराधिकारी चुना और वन की ओर प्रस्थान करते समय अपना राज्य जीमूत वाहन को सौंप दिया। परंतु जीमूत वाहन का मन राज-काज के कार्यों में नही लगा और अपने पिता की सेवा करने की इच्छा से उन्होने वन की ओर प्रस्थान करने का निर्णय लिया। अपना राज्य अपने अनुज भ्राता को सौंप कर वो वन की ओर चल दिये।

वो वन में अपने पिता की सेवा में अपना जीवन बिताने लगे। वही उस वन में उनकी भेंट मलयवती नाम की एक राजकन्या से हुई। और फिर उन दोनों का विवाह हो गया। वो दोनों ही वन में बहुत खुश थे। प्रकृति की गोद में बड़ी खुशी से अपना जीवन बिता रहे थे। एक दिन वन में जीमूत वाहन को एक वृद्ध महिला के करूण क्रंदन की आवाज़ सुनाई दी। जीमूत वाहन ने उससे उसके दुख का कारण पूछा तो उस वृद्धा ने कहा, “मैं एक नागवंशी हूँ। हमारे नागवंश और पक्षिराज गरूड़ के बीच एक संधि हुई थी, जिसके अंतर्गत हम नागवंशियों को प्रतिदिन पक्षिराज गरूड़ को एक नाग भोजन के लिये भेजना होता हैं। मेरा एक ही पुत्र है और कल उसकों गरूड़ का भोजन बना कर भेजा जायेगा। कल मेरा पुत्र जीवित नही रहेगा। यही सोचकर मैं दुखी हो रही हूँ।“
उस स्त्री की बात सुनकर जीमूत वाहन ने उससे कहा, “आप चिंता ना करें। मैं आपके पुत्र के जीवन की रक्षा करूँगा। उसके स्थान पर गरूड़ का भोजन बन कर मैं जाऊंगा।“ ऐसा कहकर जीमूत वाहन उस वृद्धा के साथ उसके निवास पर चला गया।

अगले दिन उस वृद्धा के पुत्र के स्थान पर स्वयं जीमूत वाहन एक वस्त्र ओढ़कर नियत स्थान पर जाकर लेट गया।
पक्षिराज गरूड़ आये और उसे अपने पंजों से जकड़कर उठाकर उड़ गये। फिर एक ऊँचे स्थान पर जाकर उन्होने उसे नीचे रखा और जैसे ही चोंच से कपड़ा हटाया जो एक जीवित इंसान को देखकर विस्मित हो गये। गरूड़ ने पूछा, तुम कौन हो? और उस नाग के स्थान तुम वहाँ पर क्या कर रहे थे? तब जीमूत वाहन ने उन्हे सारा वृतांत कह सुनाया। जीमूत वाहन से सारा वृतांत जानकर गरूड़ उनके साहस और परहित के लिये अपने प्राणों तक को दाँव पर लगाने पर उनसे प्रभावित हो गये। तब उन्होने जीमूत वाहन को सकुशल छोड़ दिया और भविष्य में नागवंशियों से बलिदान ना लेने का वचन दिया।

जीमूत वाहन द्वारा एक वृद्धा के पुत्र के जीवन की रक्षा के लिये अपने प्राणों को दाँव पर लगाने के कारण इस दिन उनका पूजन किया जाता है और साथ ही उनकी कथा कही व सुनी जाती हैं।