Narak Chaturdashi 2023: जानियें नरक चतुर्दशी कब है? और इस दिन पर किन छ: देवी-देवताओं की पूजा की जाती है?

Narak Chaturdashi

नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) के विभिन्न नाम :- नरक चौदस (Narak Chaudas), रूप चौदस (Roop Chaudas), रूप चतुर्दशी (Roop Chaturdashi) और छोटी दीवाली (Chhoti Diwali)। नरक का भय समाप्त करती हैं नरक चतुर्दशी की पूजा एवं व्रत। जानियें नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) कब हैं? इसका क्या महत्व हैं? नरक चतुर्दशी पर किन छ: देवताओं का पूजन की जाती हैं? साथ में पढ़िये नरक चतुर्दशी की पूजन की विधि और कथा (Narak Chaturdashi Ki Katha)।

Narak Chaturdashi
नरक चतुर्दशी

कार्तिक माह की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) का त्यौहार मनाया जाता हैं। इसे नरक चौदस (Narak Chaudas) , रूप चौदस (Roop Chaudas), रूप चतुर्दशी (Roop Chaturdashi) और छोटी दीवाली (Chhoti Diwali) के नाम से भी पुकारा जाता हैं। इस दिन छ: देवताओं के पूजन का विधान हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन यमराज, काली माँ, श्री कृष्ण, भगवान शिव, हनुमान जी और भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की पूजा किये जाने का विधान हैं। नरक चतुर्दशी के दिन संध्या के समय दीपक प्रज्वलित (दीप दान) किये जाने की परम्परा हैं।

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Naraka Chaturdashi Kab Hai?
नरक चतुर्दशी कब हैं?

इस वर्ष नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) का त्यौहार नवम्बर, 2023 रविवार के दिन मनाया जायेगा।

Narak Chaturdashi Ka Mahatva
नरक चतुर्दशी का महत्व

नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) को छोटी दीवाली (Chhoti Diwali) के नाम से भी पुकारा जाता हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन छ देवताओं की पूजा किये जाने का विधान हैं। इन सब के पूजन से साधक को अलग-अलग लाभ होते हैं। सबकी पूजा का अपना महत्व हैं।

यमदेव की पूजा (Yamdev Ki Puja) – हिंदु मान्यता के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन यमदेव की पूजा करने से जातक अकाल मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता हैं, वो नरक के भय से मुक्त हो जाता है और साथ ही उसके पूर्वजों को भी नरक की यातनायें नही झेलनी पड़ती। नरक चतुर्दशी पर रात्रि को यम का दीपक (Yam Ka Deepak) जलाया जाने की परम्परा हैं। यम का दीपक जलाने की विधि इस प्रकार हैं-

विधि – यम के नाम का दीपक (Yam Ka Deepak) जलाने से पहले पूजन की जाती हैं। एक चौकी पर रोली से सतिया (स्वास्तिक) बनाकर उसपर चौमुखी दीपक बनाकर रखें। फिर दीपक पर रोली-चावल से तिलक करें, फूल अर्पित करें। उसमें एक सिक्का ड़ालें। घर के सदस्यों के तिलक करें। फिर दक्षिण की ओर मुख करके उस दीपक को चौराहे पर रख दें और इस मंत्र का जाप करें।

मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन श्यामया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम्॥

माँ काली का पूजन (Maa Kali Ki Puja)- नरक चतुर्दशी पर अर्ध रात्रि को माँ काली के पूजन का विधान हैं। हिन्दु मान्यता के अनुसार इस दिन प्रात:काल शरीर पर तेल लगाकर फिर स्नान करें और अर्धरात्रि को माँ काली का पूजन करें। नरक चतुर्दशी पर माँ काली का पूजन करने से जातक के जीवन के समस्त दुखों और कष्टों का नाश हो जाता हैं।

श्रीकृष्ण की पूजा (Shri Krishna Ki Puja) – धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने नरक चौदस के दिन नरकासुर नाम के असुर का वध करके उसकी कैद से 16,100 स्त्रियों को मुक्त कराया था। और उनको समाज में सम्मान दिलाने के लिये उनसे विवाह भी किया। इसलिये इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजन किये जाने का भी विधान हैं।

भगवान शिव की पूजा (Shiv Ji Ki Puja) – नरक चतुर्दशी पर भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा पाने और उन्हे प्रसन्न करने के लिये उनकी विशेष पूजा की जाती हैं। इस भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक किया जाता हैं। और दीपक प्रज्वलित किये जाते हैं।

हनुमान जी की पूजा (Hanuman Ji Ki Puja)– पौराणिक मान्यता के अनुसार रूप चौदस के दिन हनुमान जयंती (Hanuman Jayanti) का उत्सव भी मनाया जाता हैं। इस दिन हनुमान जी की पूजा करने से जातक के ऊपर आये बड़े-से-बड़े संकट का भी निवारण हो जाता हैं।

भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की पूजा – नरक चतुर्दशी पर दक्षिण भारत में भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की पूजा की जाती हैं।

नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली के नाम से भी पुकारा जाता है। इस दिन संध्या के समय घर, मंदिर, कुए, वृक्ष, गोशाला, तुलसी, आदि पर दीपक जलाये जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से जातक को देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती हैं।

Narak Chaturdashi Ki Pournanik Kathaye
नरक चतुर्दशी से जुड़ी पौराणिक कथायें

भगवान श्री कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध – पौराणिक कथा के अनुसार नरकासुर नाम के असुर ने अपने बल के अभिमान में देवताओं, मनुष्यों आदि सभी का जीवन मुश्किल कर दिया था। उसने बलपूर्वक सोलह हजार एक सौ कन्याओं का अपहरण करके जबरन उनको कैद कर लिया था। तब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ मिलकर नरकासुर से युद्ध करके उसका वध किया और उन कन्याओं को उसकी कैद से स्वतंत्र कराया। नरकासुर की कैद से स्वतंत्र होने के बाद जब उन्होने समाज द्वाराा ना अपनाये जाने के कारण आत्महत्या का विचार किया तो श्री कृष्ण ने उनसे विवाह करके उनको समाज में सम्मान दिलाया।

राक्षस राज बलि की कथा – नरक चौदस के विषय में एक अन्य पौराणिक कथा भी हैं जिसके अनुसार भगवान विष्णु ने वामन रूप लेकर असुरों के राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी और उसके पूरे राज्य को अपने दो कदमों से नाप कर तीसरा पग उसके शीष पर रखा। तब भगवान विष्णु राजा बलि की भक्ति और दानवीरता से प्रसन्न हो गये थे। जब उन्होने उससे वरदान मांगने के लिये कहा था। तब उसने भगवान से यह वरदान मांगा था कि भगवान विष्णु सदा उसके सामने रहें। इसके अतिरिक्त राजा बलि ने एक यह वरदान भी मांगा था कि वर्ष में कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिन तक सभी लोकों में मेरा राज्य हो और जो भी मेरे राज्य में धनतेरस, नरक चतुर्दशी और दीवाली मनायेगा उसको कभी धन की कोई कमी नही होगी और उसके घर में लक्ष्मी का वास होगा। जो व्यक्ति नरक चतुर्दशी को दीप दान करेगा, वो नरक की यातनायें नही भोगेगा और साथ ही उसके पितर भी नरक के दुखों से सुरक्षित हो जायेंगे। भगवान ने उसे यह वरदान दिया उसके बाद से नरक चतुर्दशी का पूजन और दीपदान आरम्भ हुआ।

Narak Chaturdashi Ki Puja Ki Vidhi
नरक चतुर्दशी की पूजा की विधि

  • नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi) के दिन प्रात:काल अपने शरीर पर तेल लगाकर जल में अपामार्ग (चिचड़ी) पौधे के पत्ते ड़ालकर स्नान करें।
  • संध्या के समय घर पर देवी लक्ष्मी और गणेश जी की पूजन करें। जल के छींट लगाये, रोली-चावल चढ़ायें, गुड़ चढ़ायें, धूप-दीप प्रज्वलित करें।
  • देवी लक्ष्मी को फूल, चार सुहाली, गुलाल, फल और दक्षिणा चढ़ायें।
  • घर में, द्वार पर, रसोई में, आंगन में, मंदिर में, पेड़ के पास, जल के स्थान पर, गोशाला आदि पर दीपक जलायें।
  • विधि अनुसार यम के नाम का दीपक जलायें और दक्षिण के ओर मुख करके उसे चौराहे पर रखें।
  • भगवान श्री कृष्ण, हनुमान जी, भगवान वामन की पूजा करें। उनका तिलक करें, फल-फूल अर्पित करें और भोग लगायें।
  • अर्ध रात्रि को माँ काली का ध्यान एवं पूजन करें।
  • छोटी दीवाली पर दीप दान का विशेष महत्व हैं।

Narak Chaturdashi Ki Katha
नरक चतुर्दशी की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में ‘रन्तिदेव’ नाम का एक बहुत ही धर्मात्मा और दानवीर राजा था। राजा रन्तिदेव अपने पूर्व जन्म में भी बहुत दान-पुण्य करने वाला धर्मात्मा था। दूसरे जन्म में भी उसने दान पुण्य आदि बहुत से सतकर्म करके बहुत पुण्य अर्जित किया था। जब राजा की मृत्यु का समय आया तो यमदूत उसे लेने के लिये आये और उन्होने राजा रन्तिदेव से नरक में चलने के लिये कहा।

राजा रन्तिदेव को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने यमदूतोंं से कहा कि मैंने तो जीवन भर सतकर्म ही किये है, तो फिर तुम मुझे नरक क्यों ले जाना चाहते हो? तब आये हुये यमदूतों ने कहा, आपने जीवन भर अच्छे कार्य किये है किंतु आपसे एक पाप भी हुआ हैं। राजा ने पूछा, कौन सा पाप? तब उन यमदूतों ने कहा कि एक बार आपके द्वार पर एक गरीब ब्राह्मण जो भूख से व्याकुल होकर आपके पास सहायता मांगने के लिये आया था, किंतु आपने उसकी सहायता नही की थी। यह उसी पाप का फल है, जो आपको नरक की यातानायें सहनी पड़ेगी।

यह सुनकर राजा भय के मारे काँपने लगा। उसने उन यमदूतों से कहा- मैं इस पाप का प्रायश्चित करना चाहता हूँ। इसके लिये आप मेरी आयु एक वर्ष और बढ़ा दीजिये। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की आयु प्रदानकर दी।

यमदूतों से जीवन दान पाकर राजा वन में ऋषियों के पास गया और उनसे अपने पाप से मुक्ति पाने और नरक से बचने का उपाय पूछा। तब ऋषि ने उसे नरक चतुर्दशी के व्रत के विषय में बताया। ऋषि ने कहा, “हे राजन! कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी जिसे नरक चतुर्दशी (Naraka Chaturdashi) के नाम से जाना जाता हैं। तुम उस दिन व्रत रखों और भगवान श्री कृष्ण की पूजा करों। ब्राह्मण को भोजन कराओ और उसे दक्षिणा देकर सन्तुष्ट करों।

फिर उसे अपने अपराध के विषय बताकर उससे क्षमा याचना करना। रात्रि को यम का दीपक जलाना (Yam Ka Deepak) और दीप दान करना। ऐसा करने से तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जायेंगे और तुम्हे नरक की यातनायें नही सहनी पड़ेगी। राजा ने यथाविधि नरक चतुर्दशी का व्रत एवं पूजन किया। व्रत के प्रभाव से राजा को अपने पाप से मुक्ति मिल गई और मृत्यु के उपरांत उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई।

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