Ramdev Chalisa (रामदेव चालीसा)

Ramdev Chalisa

॥दोहा॥

जय जय जय प्रभु रामदे, नमो नमो हरबार ।
लाज रखो तुम नंद की, हरो पाप का भार ।
दीनबंधु किरपा करो, मोर हरो संताप ।
स्वामी तीनो लोक के, हरो क्लेश, अरु पाप ।

चौपाई

जय जय रामदेव जयकारी । विपद हरो तुम आन हमारी ॥
तुम हो सुख सम्पत्ति के दाता । भक्तजनो के भाग्य विधाता ॥
बाल रूप अजमल के धारा । बनकर पुत्र सभी दुख टारा ॥
दुखियों के तुम हो रखवारे । लागत आप उन्हीं को प्यारे ॥
आपहि रामदेव प्रभु स्वामी । घट घट के तुम अंतरयामी ॥
तुम हो भक्तों के भय हारी । मेरी भी सुध लो अवतारी ॥
जग में नाम तुम्हारा भारी ॥ भजते घर घर सब नर नारी ॥
दु:ख भंजन है नाम तुम्हारा ॥ जानत आज सकल संसारा ॥
सुंदर धाम रुणिचा स्वामी ॥ तुम हो जग के अंतरयामी ॥
कलियुग में प्रभु आप पधारे । अंश एक पर नाम है न्यारे ॥
तुम हो भक्त जनों के रक्षक । पापी दुष्ट जनों के भक्षक ॥
सोहे हाथ आपके भाला । गल में सोहे सुंदर माला ॥
आप सुशोभित, अश्व सवारी । करो कृपा मुझ पर अवतारी ॥
नाम तुम्हारा ज्ञान प्रकाशे । पाप अविद्या सब दुख नाशै ॥
तुम भक्तों के भक्त तुम्हारे । नित्य बसो प्रभो हिये हमारे ॥
लीला अपरम्पार तुम्हारी ॥ सुख दाता भय भंजन हारी ॥
निर्बुद्धि भी विद्या पावे । रोगी रोग बिना हो जावे ॥
पुत्र हीन सु संतति पावे । सुयश ज्ञान करि मोद मनावे ॥
दुर्जन दुष्ट निकट नहिं आवे । भूत पिशाच सभी डर जावे ॥
जो कोई पुत्र हीन नर ध्यावे । निश्चय ही नर वो सुत पावे ॥
तुमने डूबत नाव उबारी । नमक किया मिसरी को सारी ॥
पीरो को परचा तुम दीना । नीर सरोवर खारा कीना ॥
तुमने पुत्र दिया दलजी को । ज्ञान दिया तुमने हरजी को ॥
सुगना का दुख तुम हर लीना । पुत्र मरा सरजीवन कीना ॥
जो कोइ तुमको सुमरन करते । उनके हित पग आगे धरते ॥
जो कोइ टेर लगाता तेरी । करते आप तनिक ना देरी ॥
विविध रूप धर भैरव मारा । जाम्भा को परचा दे डारा ॥
जो कोइ शरण आपकी आवे । मन इच्छा पूरण हो जावे ॥
नयनहीन के तुम रखवारे । कोढ़ी पुंगल के दुख टारे॥
नित्य पढ़े चालीसा कोई । सुख सम्पत्ति वाके घर होई ॥
जो कोई भक्ति भाव से ध्याते । मन वांछित फल वो नर पाते ॥
मैं भी सेवक हूँ प्रभु तेरा । काटो जनम मरण का फेरा ॥
जय जय हो प्रभु लीला तेरी । पार करो तुम नैया मेरी ॥
करता नंद विनय प्रभु तेरी । करहु नाथ तुम मम उर डेरी ॥

॥दोहा॥

भक्त समझ कृपा करी नाथ पधारे दौड़ ।
विनती हे प्रभु आपसे नंद करें कर जोड ।
यह चालीसा नित्य उठ पाठ करे जो कोय ।
मन वांछित फल पाय वो सुख सम्पत्ति घर होय ।