Mantra Pushpanjali : सुख-सौभाग्य और मनोकामना पूर्ति हेतू करें मंत्र पुष्पांजलि

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मंत्र पुष्पांजलि (Mantra Pushpanjali) एक विशेष मंत्रों का संग्रह है, जिसमें देवताओं के नामों और उनके मंत्रों का संकलन है। इन मंत्रों को उच्चारित करके पुष्पों को देवताओं को समर्पित किया जाता है| धार्मिक अनुष्ठानों जैसे हवन, पूजन, आरती, ग्रहप्रवेश या अन्य पूजन से संबंधित कार्यों में इसका उच्चारण देव शक्तियों को मंत्र पुष्पांजलि (Mantra Pushpanjali) के माध्यम से अर्पित किया जाता है। ऐसा करने से जातक का धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण होता है और उसे उसका शुभ फल प्राप्त होता है। जातक को सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है और उसकी मनोकामना पूर्ण होती है।

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How to do Mantra Pushpanjali?
मंत्र पुष्पांजलि कैसे करें?

मंत्र पुष्पांजलि (Mantra Pushpanjali) में देवताओं के नाम और उनके मंत्रों का पाठ करते हुये उनके निमित्त पुष्प अर्पित करते है। जानियें किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में मंत्र पुष्पांजलि कैसे करते है:

मंदिर, घर में पूजा का स्थान या जिस स्थान पर आपनें धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन किया हो वहाँ गुलाब या चमेली के सुगन्धित एवं ताजें पुष्पों को थाली या टोकरी में व्यवस्थित करें। फिर अनुष्ठान की पूर्ति के लिये आरती के बाद देवताओं के नाम और मत्रों का उच्चारण करते हुये उन्हें फूलों से पुष्पांजलि दें।

मंत्र पुष्पांजलि (Mantra Pushpanjali) देवता की मूर्ति, चित्र या वेदी में एक निश्चित स्थान पर दी जाती है। पूजा के लिये साफ़ और व्यवस्थित वेदी होनी चाहिए।

मंत्रों का उच्चारण शुद्ध हो इसका विशेष ध्यान रखें। यदि आपको पूजा की वैदिक विधि का ज्ञान नही हो तो धार्मिक अनुष्ठान किसी योग्य आचार्य या पंड़ित के द्वारा करायें। पूर्ण भक्ति और श्रद्धा के साथ देवता का ध्यान करते हुए पंड़ित के कहे अनुसार मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए।

देवता के नाम और मंत्रों के उच्चारण के बाद देवता के चित्र, प्रतिमा या वेदी में नियत स्थान पर दोनों हाथों से पुष्प धन्यवाद के साथ देवता को अर्पित करें। पुष्पांजलि (Pushpanjali) के पश्चात् अनुष्ठान को अंतिम मंत्रों एवं प्रार्थनाओं के वाचन के साथ पूर्ण करें।

नोट : यदि आपको धार्मिक अनुष्ठान की वैदिक प्रक्रिया का ज्ञान नही हो तो किसी योग्य आचार्य के निरिक्षण में अनुष्ठान को सम्पादित करें।

Significance Of Mantra Pushpanjali
संपूर्ण मंत्र पुष्पांजलि का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार किसी धार्मिक अनुष्ठान और पूजा मंत्र पुष्पांजलि (Mantra Pushpanjali) के बाद ही पूर्ण माना जाता है। हर धार्मिक अनुष्ठान में इसका विशेष महत्व होता है। मंत्र पुष्पांजलि (Mantra Pushpanjali) में अनुष्ठानकर्ता देवताओं के नाम और उनके मंत्रों पुष्पों का उच्चारण करके उन्हें ताजा पुष्प समर्पित करता है। इसमें पुष्प देवताओं के नाम और मंत्र के साथ उन्हे समर्पित किये जाते है। इसके द्वारा जातक अपनी भक्ति और प्रेम को अभिव्यक्त करता है। इसके पालन करने से

  • आत्मा को दिव्यता की प्राप्ति होती है।
  • मन की शुद्धि होती है। पर्यावरण शुद्ध होता है।
  • सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन समृद्ध होता है।
  • साधक को आनंद के साथ ही आध्यात्मिकता और संतोष का अनुभव होता है।

Mantra Pushpanjali Lyrics
मंत्र पुष्पांजलि

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्व्वे साध्याः सन्ति देवाः॥
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे।
स मे कामान् कान कामाय मह्यम् कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु।
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ।

ॐ स्वस्ति साम्राज्य भोज्यं स्वराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं समन्तपर्यायी स्यात् सार्वभौमः सार्वायुषऽ आन्तादापरार्धात् पृथिव्यै समुद्रपर्यन्तायाऽएकराडिति । तदप्येषश्लोकोऽभिगीतो मरुतः परिवेष्टारोमरुत्तस्याऽऽवसन्गृहे। आविक्षितस्य कामप्रेर्व्विश्वेदेवाः सभासद इति ।

ॐ विश्वतश्चक्षुरूत व्विश्वतोमुखो व्विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात्। सं बाहुभ्यां धमति संपतत्रैर्द्यावाभूमी जनयन्देवऽएकः ।

ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि । तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ।
ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि । तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ।
ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि । तन्नः लक्ष्मीः प्रचोदयात् ।
ॐ नंदनंदनाय विद्महे यशोदानंदनाय धीमहि । तन्नो कृष्णः प्रचोदयात् ।
ॐ वृषभानुजायै च विद्महे कृष्णवल्लभायै च धीमहि। तन्नो राधा प्रचोदयात् ।।
ॐ आदित्याय विद्महे सहस्रकिरणाय धीमहि । तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ।
ॐ हंस हंसाय विद्महे, परमहंसाय धीमहि । तन्नः शुकः प्रचोदयात् ।
ॐ आन्जनेयाय विद्महे रामभक्ताय धीमहि । तन्नो वीरः प्रचोदयात् ।
ॐ महादिव्यै च विद्महे, सर्वशक्त्यै च धीमहि । तन्नो देवी प्रचोदयात् ।
ॐ ब्रह्मरूपाय विद्महे, रुद्ररूपाय धीमहि । तन्नो गुरुवः प्रचोदयात् ।

सेवन्तिकावकुलचम्पकपाटलाब्जै:, पुन्नागजातिकरवीररसालपुष्पै: ।
बिल्वप्रवालतुलसीदलमञ्जरीभिः, त्वां पूजयामि जगदीश्वर मे प्रसीद ।

नाना सुगन्धि पुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च ।
पुष्पाञ्जलिर्मया दत्तः प्रसीद परमेश्वर ।

मन्त्र पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि, इति मन्त्रैः पुष्पाञ्जलिं समर्पयेत् ।

प्रदक्षिणा

ये तीर्थानि प्रचरन्ति सृकाहस्ता निषंगिणः । तेषां सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि ॥
यानि यानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च । तानि तानि प्रणश्यन्ति, प्रदक्षिणा पदे पदे ॥

त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देवदेव ॥

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