आश्विन मास की पूर्णिमा (Ashwin Purnima) को शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) और कोजागरी पूर्णिमा (Kojagiri Purnima) के नाम से भी पुकारा जाता है। शरद पूर्णिमा का व्रत एवं पूजन करने से कर्ज मुक्ति, धन एवं आरोग्य प्राप्ति होती है। जानियें शरद पूर्णिमा कब है? और इस दिन किस प्रकार से पूजा की जाती है? इसके साथ ही पढ़ियें कोजागरी पूर्णिमा का महत्व (Significance Of Kojagiri Purnima) और शरद पूर्णिमा की कथा (Sharad Purnima Ki Katha)…
Sharad Purnima
शरद पूर्णिमा
आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) के नाम से जाना जाता हैं। हिंदु मान्यता के अनुसार वर्ष भर की समस्त पूर्णिमाओं में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व हैं। इस दिन चंद्रमा अपनी सम्पूर्ण कलाओं यानि सोलह कलाओं का होता हैं। इसलिये इसे अमृत काल भी कहते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा पर ही समुद्र मंथन से माँ लक्ष्मी प्रकट हुयी थी। शरद पूर्णिमा को आश्विन पूर्णिमा (Ashwin Purnima), रास पूर्णिमा (Ras Purnima), कमला पूर्णिमा, कौमुदी व्रत पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा (Kojagiri Purnima) और कर्ज मुक्ति पूर्णिमा भी कहा जाता हैं।
Sharad Purnima Kab Hai?
शरद पूर्णिमा कब हैं?
इस वर्ष शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) 16 अक्टूबर, 2024 बुधवार के दिन मनाई जायेगी।
Kojagiri Purnima Ka Mahatva
कोजागरी पूर्णिमा का महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) के ही दिन समुद्रमंथन से देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थी। ऐसा माना जाता है, कि इस दिन माँ लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ पृथ्वी के भ्रमण पर निकलती हैं और सम्पूर्ण प्रकृति उनके स्वागत के लिये संवर जाती हैं। इस दिन देवी लक्ष्मी की यथाविधि पूजन एवं व्रत करने वाले जातक को माँ लक्ष्मी की कृपा से धन-समृद्धि की प्राप्ति होती हैं। और ऋण से मुक्ति मिलती हैं।
इस दिन चंद्रमा अपनी सम्पूर्ण सोलह कलाओं का होता हैं। हिंदु मान्यता के अनुसार इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता हैं। उसकी चमक और दिनों से कहीं अधिक होती हैं। शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) पर चंद्रमा पृथ्वी के निकट होता है इसीलिये उसका आकार भी अधिक बड़ा दिखता हैं।
शरद पूर्णिमा पर अस्थमा के रोगियों के उपचार के लिये औषधी ड़ालकर खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रातभर रखी जाती हैं। और सुबह उसे खाने से अस्थमा के रोगियों को लाभ होता हैं।
शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) पर रात्रि को दूध की खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखकर सुबह खाने से बहुत से औषधिय लाभ होते हैं। शरद पूर्णिमा की रात्रि को आकाश के नीचे चंद्रमा की रोशनी मे रखी खीर का सेवन करने से
- पित्त की समस्या में सुधार होता हैं।
- आंखों की रोशनी बढ़ती हैं।
- श्वास सम्बंधी रोगों में लाभ होता हैं।
- हृदय रोग की आशंका कम होती हैं।
- चर्म रोग आदि में भी लाभ होता हैं।
- साथ ही जिनकी कुण्ड़ली में चंद्रमा पीड़ित हो या दुर्बल हो उन्हे भी इससे लाभ होता हैं। उन्हे चंद्रमा की शुभता प्राप्त होती हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों संग महारास किया था। जिसके उपलक्ष्य में शरद पूर्णिमा के दिन ब्रज क्षेत्र में रास का आयोजन किया जाता हैं। और इसी कारण से इसे रास पूर्णिमा (Ras Purnima) भी कहा जाता है।
Sharad Purnima Vrat Aur Pujan Vidhi
शरद पूर्णिमा व्रत एवं पूजन विधि
शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) पर देवी लक्ष्मी की पूजा किये जाने का विधान हैं। इस दिन देवी लक्ष्मी के आठ रूपों की पूजा की जाती हैं। वो आठ स्वरूप हैं- धनलक्ष्मी, धान्यकलक्ष्मीप, राज लक्ष्मी, वैभव लक्ष्मी, ऐश्वर्या लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, कमला लक्ष्मी और विजय लक्ष्मी।
- शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। यदि हो सके तो ब्रह्म मुहूर्त में किसी पवित्र नदी या सरोवर पर स्नान करें।
- पूजास्थान पर एक चौकी लगायें और उस पर लाल कपड़ा बिछायें। उस पर एक कलश में जल भरकर रखें। साथ में एक गिलास में गेहूँ भरकर रखें।
- चौकी पर माँ लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। यदि प्रतिमा ना हो, तो देवी लक्ष्मी की तस्वीर भी रख सकते हैं। रोली-चावल से कलश की पूजा करें और दक्षिणा चढ़ायें।
- धूप-दीप जलाकर देवी लक्ष्मी का दूध से अभिषेक करें। फिर उनकी रोली-हल्दी-चावल से पूजा करें।
- देवी को लाल फूल अर्पित करें। सुगंधित इत्र चढ़ायें। फल चढ़ायें।
- देवी लक्ष्मी को सुंदर वस्त्राभूषण और श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें।
- नैवेद्य अर्पित करें। पान-सुपारी के साथ दक्षिणा भी चढ़ायें।
- इसके बाद शरद पूर्णिमा की कथा कहें या सुनें।
- कथा सुनने के बाद श्री कनकधारा स्त्रोत्र, श्री सूक्त एवं लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें।
- देवी लक्ष्मी की आरती करें।
- देवी लक्ष्मी को गाय के दूध से बनी खीर का भोग मध्य रात्रि को लगायें।
- फिर खीर को चंद्रमा की रोशनी में खुले आकाश के नीचे किसी स्वच्छ कपड़े से ढ़क कर रखदें। अगले दिन प्रात: सब को खीर का प्रसाद वितरित करें।
- रात्रि को कलश के जल से चंद्रमा को अर्ध्य दें। और चंद्र दर्शन करते हुये इन मंत्रो का पाठ करें-
- ॐ नमो श्री चंद्राय नमः। ॐ नमो श्री सोमाय नमः। इससे चंद्रमा की शुभता प्राप्त होती हैं।
- शरद पूर्णिमा पर भगवान शिव, देवी पार्वती और भगवान कार्तिकेय की पूजा भी की जाती हैं।
- विशेष : पूर्णिमा के व्रत का आरम्भ शरद पूर्णिमा से करना शुभ माना जाता हैं। इसी दिन से कार्तिक स्नान भी प्रारम्भ होता हैं। शरद पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक दीपक जलाने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती हैं।
Sharad Purnima Ki Katha
शरद पूर्णिमा की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक साहूकार हुआ करता था। उसके दो बेटियाँ थी। उस साहूकर की दोनों बेटियाँ पूर्णिमा का व्रत किया करती थी। जब साहूकार की बेटियाँ विवाह योग्य हुई तो साहूकार ने अपनी दोनों बेटियों का विवाह बड़ी धूम-धाम से योग्य वर चुनकर किया।
साहूकार की बड़ी बेटी बहुत समझदार और प्रभु भक्त थी। वो विवाह के उपरांत भी पूरी श्रद्धा-भक्ति के साथ पूरे विधि- विधान से पूर्णिमा के व्रत का पालन करती रही। किन्तु साहूकर की छोटी बेटी ने विवाह के बाद पूर्णिमा का व्रत करना छोड़ दिया।
पूर्णिमा का व्रत बिना उद्यापन के छोड़ने के दोष के कारण साहूकार की छोटी बेटी की संतान या तो मृत पैदा होती या पैदा होते ही मृत्यु को प्राप्त हो जाती। यह देखकर साहूकार बहुत दुखी हुआ। साहूकार इसका कारण जानने के लिये अपनी छोटी बेटी को लेकर एक विद्वान पण्ड़ित के पास पहुँचा।
उस पण्ड़ित ने उसे बताया कि यह सब तुम्हारे विवाह के बाद पूर्णिमा का व्रत छोड़ने के कारण हुआ हैं। तुम इसका समाधान करों और श्रद्धा-भक्ति के साथ पूर्णिमा का व्रत पूर्ण करों। ऐसा करने से तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। उसने वही किया और उसे पुत्र की प्राप्ति हुई। किंतु वो भी ज्यादा समय तक जीवित ना रहा। तब उसने अपनी बड़ी बहन को अपने घर बुलाया। उसकी बड़ी बहन का स्पर्श पाकर वो मृत बच्चा पुन: जीवित हो गया। तब से उस नगर में पूर्णिमा के व्रत के प्रभाव और महिमा का ढ़िढ़ोरा पिटवा दिया गया।
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