‍Shri Kanakadhara Stotra – जानियेंं श्री कनकधारा स्त्रोत्र का पाठ करने के लाभ

Kanakadhara Stotra

आर्थिक तंगी से हमेशा के लिये छुटकारा पाने के लिये करें कनकधारा स्त्रोत्र का पाठ

Benefits Of Chanting Shri Kanakadhara Stotra
श्री कनकधारा स्त्रोत्र का पाठ करने के लाभ

माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद पाने का बहुत आसान उपाय हैं कनकधारा स्त्रोत्र का नित्य पाठ। श्री कनकधारा स्त्रोत्रम का नित्य पाठ करने से माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। कनकधारा स्त्रोत्र एक बहुत ही सिद्ध और चमत्कारिक स्त्रोत्र हैं। इसके नित्य पाठ से

  • साधक को अतुल्य सम्पत्ति की प्राप्ति होती हैं।
  • सुख-समृद्धि में वृद्धि होती हैं।
  • आर्थिक तंगी समाप्त होती हैं। धन-धान्य की कभी कमी नही होती।
  • साधक की सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।
  • ऐश्वर्य में वृद्धि होती हैं।
  • धन का संचय होता हैं।

Method Of Reciting Shri Kanakdhara Stotra
श्री कनकधारा स्त्रोत्र का पाठ करने की विधि

  • प्रात:काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूजास्थान पर माँ लक्ष्मी की प्रतिमा के सामने पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जायें।
  • धूप-दीप जलाकर देवी लक्ष्मी की पूजा करें। रोली-हल्दी-चावल चढ़ाये। लाल फूल चढ़ायें।
  • माता को भोग अर्पित करें। और फिर माँ लक्ष्मी का ध्यान करके श्री कनकधारा स्त्रोत्र का पाठ करें।

Shri Kanakadhara Stotra
श्री कनकधारा स्तोत्र

अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया: ॥1॥

मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया: ॥2॥

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय: ॥3॥

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया: ॥4॥

बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरि‍नीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया: ॥5॥

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:॥6॥

प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया: ॥7॥

दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह: ॥8॥

इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया: ॥9॥

गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै ‍नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ॥10॥

श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै ॥11॥

नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै ॥12॥

सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम् ॥13॥

यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥14॥

सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥15॥

दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम् ॥16॥

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ॥17॥

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया: ॥18॥

॥ इति श्री कनकधारा स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥