अधिक मास को लोंद मास और पुरूषोत्तम मास भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार अधिक मास (Adhik Maas) में दान-पुण्य और ईश्वर की उपासना जैसे धार्मिक कार्य करने से उनका पुण्यफल कई गुना अधिक हो जाता है । जानियें क्या होता है अधिक मास? क्यों यह तीन साल में एक बार आता है? और इसका क्या महत्व है? साथ ही पढ़ियें कब से शुरू हो रहा है यह अधिक मास और इससे जुड़ी पौराणिक कथा।
Adhik Maas
अधिक मास
हिन्दु धर्म में वैदिक पंचांग में वर्ष की गणना सौर मास और चंद्र मास के आधार पर होती है। एक वर्ष चंद्रमास की गणना के अनुसार 354 दिनों का होता है और यदि हम एक वर्ष की गणना सौरमास से अनुसार करें तो उसमें एक वर्ष 365 दिनों का होता है। इस तरह से एक वर्ष में इन दोनों की गणनाओं में 11 दिनों का अंतर आता है। जो कि तीन वर्ष में लगभग एक महिने के बराबर हो जाता है। इसलिये चंद्रमास और सूर्यमास की गणना में संतुलन बनाने के लिये अधिक मास (Adhik Maas) का समायोजन किया गया है। हर तीन वर्ष में एक अधिक मास (Adhik Maas) होता है। वर्ष 2023 में सावन माह में अधिकमास के दिनों का समायोजन होने से इस बार दो सावन होंगे या यूँ भी कह सकते है की सावन दो महीने का होगा।
Adhik Maas 2023 Start date
कब से शुरू होगा अधिक मास?
इस वर्ष अधिक मास (Adhik Maas) का समायोजन सावन मास में हो रहा है। पुरुषोत्तम मास (Purushottam Maas) का आरम्भ 18 जुलाई, 2023 मंगलवार से होगा और 16 अगस्त, 2023 बुधवार को समाप्त होगा।
Why Purushottam Maas 2023 is special?
वर्ष 2023 में क्यों खास है पुरूषोत्तम मास?
इस वर्ष सावन मास में पुरूषोत्तम मास (Purushottam Maas) का समायोजन होने से इस साल दो सावन होंगे। सावन 59 दिनों का होगा। जिसमें आठ सावन के सोमवार और नौ मंगला गौरी व्रत होंगे। सावन माह भगवान शिव को समर्पित है और पुरूषोत्तम मास भगवान विष्णु को समर्पित है। अधिक मास का समायोजन सावन में होने से साधक को भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों की कृपा प्राप्त होगी। यह दुर्लभ संयोग भगवान के भक्तों के लिये बहुत ही शुभ होगा।
What to do in Adhik maas?
अधिक मास में क्या करें?
अधिक मास (Adhik Maas) जिसे भगवान विष्णु ने अपना नाम पुरुषोत्तम दिया है, जिसके कारण इसे पुरूषोत्तम मास (Purushottam Maas) भी कहा जाता है। इस महीने में सनातन धर्म में आस्था रखने वाले लोगों को धार्मिक कार्य करने चाहियें। विधि – विधान और भक्ति भाव के साथ व्रत-उपवास, पाठ-पूजा, अनुष्ठान, दान-पुण्य, तीर्थ यात्रा, गंगा स्नान, इत्यादि कार्य करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है और भगवान प्रसन्न होते है। ऋषियों के अनुसार अधिक मास में मनुष्य को सादा भोजन करना चाहिये जैसे गेहूँ, चावल, जौ, तिल, मटर, केला, ककड़ी, आम, जीरा, सोंठ, सुपारी, आंवला, सेंधा नमक। समस्त प्रकार की अभक्ष्य वस्तुयें जिसमें उड़द, राई, प्याज, लहसुन, नशे की सभी चीजें, गाजर, मूली, शहद, दार्ले, तिल का तेल आदि मुख्य है इनका त्याग कर देना चाहिये । पूरे अधिक मास जातक को व्रत रखना चाहिये और एक ही समय भोजन करना चाहिये। प्रतिदिन स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर इस मंत्र की 5 माला जपें।
मंत्र- गोवर्धन धरं वंदे गोपालं गोपरूपिणां गोकुलोत्सवमीशानं गोविंद गोपिका प्रिय ॥
इसके अतिरिक्त सम्पूर्ण अधिक मास भूमि पर शयन करें।
Significance of Adhik maas
अधिक मास का महत्व
अधिक मास (Adhik Maas) के विषय में शास्त्रों में कहा जाता है कि हिन्दु कैलेण्डर के हर चन्द्र मास का के लिये एक देवता निर्धारित है। परंतु अधिक मास सूर्यमास और चन्द्रमास की गणना के बीच में संतुलन स्थापित करने के लिये बनाया गया है और यह तीन वर्ष में आता है इसलिये कोई भी देवता इस माह का अधिपति बनने के लिये तैयार नही था। इसलिये सभी ऋषियों के द्वारा भगवान विष्णु से प्रार्थन की गई तब उन्होने इस अधिक मास का अधिपति होना स्वीकर किया। इसलिये इसे पुरूषोत्तम मास भी कहा जाता है। यह माह भगवान विष्णु को समर्पित है और इस माह में उनकी ही उपासना की जाती है। अधिक मास (Adhik Maas) में विधि अनुसार दान-पुण्य, भजन-कीर्तन, हवन-अनुष्ठान, व्रत-उपवास आदि प्रभु भक्ति से जुड़ें धार्मिक कार्य करने से साधक को
- सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- जन्म-कुण्ड़ली के समस्त दोषों का निवारण होता है।
- साधक के समस्त पापों का नाश होता है और वो अंत में वैकुंठ धाम को प्राप्त होता है।
- दुख-दरिद्रता का नाश होता है।
- रोग-पीड़ा का शमन होता है।
- विचारों में सकारात्मकता आती है।
- भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
- साधक की सभी मनोकामनायें पूर्ण होती है।
अधिक मास (Adhik Maas) को मल मास (Mal Maas) भी कहा जाता है। इसलिये इस माह में मांगलिक कार्य वर्जित होते है। मल मास में विवाह, जनेऊ, नामकरण, गृहप्रवेश आदि किसी प्रकार के मांगलिक कार्य नही किये जाते। किंतु तीर्थ यात्रा, भगवान कथा श्रवण, तीर्थ स्नान, दानादि का फल कई गुणा अधिक मिलता है।
नोट: अधिक मास में कांस्य के पात्र में 32 पूयें (पूआ) रखकर दान करने का विशेष महत्व होता है।
Story of Adhik maas
अधिकमास की पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक समय दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी की कठोर तप करके उनसे वरदान में अमरत्व प्राप्त करना चाहा। किन्तु ब्रह्मा जी ने उसे अमरता प्रदान करने से मना कर दिया क्योकि यह प्रकृति के नियमों के विरूद्ध है। और हिरण्यकश्यप को कोई ओर वदान मांगने के लिये कहा तब हिरण्यकश्यप ने यह वरदान मांगा कि उसे ब्रह्मा की सृष्टि में जन्मा संसार का कोई भी नर, नारी, पशु , देवता या असुर उसका वध नही कर सकें। वो ना तो घर मरें, ना बाहर, ना दिन में, ना रात में, ना अस्त्र से, ना शस्त्र से, ना धरती पर, ना आकाश में और ना ही वर्ष के किसी बारह महीनों में।
ब्रह्मा जी ने उसे उसकी इच्छा के अनुसार वरदान दे दिया। ऐसा वरदान पाकर हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर मानने लगा और उसने स्वयं को भगवान घोषित कर दिया। सभी ऋषियों मुनियों को उसने यज्ञ आदि अनुष्ठान करने रोक दिया। उसके अत्याचार से सभी लोग त्राहि -त्राहि करने लगें। उसने अपने पुत्र प्रहलाद को भी मारने का प्रयास किया क्योकि उसने हिरण्यकश्यप को भगवान मानने से मना कर दिया। प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उसकी रक्षा के लिये भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर अधिक मास (Adhik Maas) में संध्या के समय अपनी गोद में लिटाकर अपने नाखुनों से उसको चीर दिया। मानवता की रक्षा हेतु हिरण्यकश्यप के वध के लिये अधिक मास का सन्योजन किया गया।