जीवन में सुख-सुविधाएँ पाने के लिये करें आस माता की पूजा। जानियें आस माता की पूजा कब की जाती है? साथ ही पढ़ें आस माता के व्रत और पूजा की विधि, व्रत का महत्व और आस माता की व्रत कथा (Aas mata ki kahani)।
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Aas Mata Ki Puja
आस माता की पूजा
हिंदु पंचांग के फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष में प्रतिपदा से लेकर अष्टमी तिथि के मध्य किसी भी दिन आस माता का व्रत एवं पूजन किया जा सकता है। आस माता का पूजन के बाद आस माता की कहानी (Aas mata ki kahani) अवश्य सुनें। किया जाता है। आस माता का व्रत और पूजन करने वाले के जीवन में कोई कष्ट नही आता, जो भी विपत्ति आती है वो आस माता की कृपा से बड़ी आसानी से टल जाती है।
Aas Mata Ki Puja Kab Kare?
आस माता की पूजा कब करें?
फाल्गुन मास की शुक्लपक्ष की प्रथमा तिथि से शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि के मध्य किसी भी दिन आस माता की पूजन और व्रत किया जा सकता है।
इस वर्ष आस माता का व्रत एवं पूजन 11 मार्च, 2024 सोमवार से लेकर 17 मार्च, 2024 रविवार के मध्य कभी भी किया जा सकता है।
Aas Mata Ki Puja Ka Mahatva
आस माता की पूजा का महत्व
हिंदु मान्यता के अनुसार आस माता की पूजा और व्रत करने वाले मनुष्य का कभी अनिष्ट नही हो सकता। इस व्रत और पूजन के विषय में ज्यादा लोग नही जानते। यह व्रत बहुत दुर्लभ है। इसकी विधि बहुत ही आसान है। इस व्रत करने वाले जातक को आस माता का सरंक्षण मिल जाता है। आस माता सदैव उसकी सहायता करती है।
आस माता का व्रत एवं पूजन बहुत ही शुभ परिणाम देने वाला माना जाता है
- इस व्रत और पूजन को करने वाले जातक का कभी अनिष्ट नही होता।
- उसका सदैव मंगल ही होता है।
- जीवन में उसे सभी प्रकार के सुख साधन प्राप्त होते है। वो एक सुविधापूर्ण जीवन जीता है।
- वो हमेशा विजयी होता है।
- उसको कभी धन-धान्य की कमी नही होती।
- जीवन में प्रसन्नता आती है।
- पारिवारिक सम्बंधों में मधुरता आती है।
How to worship Aas Mata?
आस माता की पूजा कैसे करें?
फाल्गुन मास की शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से अष्टमी तक के बीच में आप जिस दिन भी यह व्रत और पूजन करना चाहें, उस दिन इस विधि से व्रत और पूजन करें।
- व्रत के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजास्थान पर के चौकी बिछाकर उस पर एक जल से भरा कलश स्थापित करें।
- धूप-दीप जलाकर कलश पर रोली से स्वास्तिक बनाकर उसपर चावल चढ़ायें।
- फिर गेहूँ के सात दाने हाथ में लेकर आस माता की कहानी (Aas mata ki kahani) कहें या सुनें।
- कहानी सुनने के पश्चात् एक थाली में पूरी, हलवा और दक्षिणा रखकर बायना निकालकर अपनी सास या परिवार की किसी बड़ी स्त्री या किसी ब्राह्मणी को दें। फिर उनके पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त करें।
- बायना निकालने के पश्चात् स्वयं भोजन करें। दिन में एक भी समय पूजा करें।
- यदि किसी के पुत्र का जन्म हुआ हो या पुत्र का विवाह हुआ हो तो उस वर्ष आस माता का उद्यापन अवश्य करें।
Aas Mata Ke Vrat Ke Udyapan Ki Vidhi
आस माता के व्रत की उद्यापन विधि
आस माता के व्रत के उद्यापन में उपरोक्त विधि से पूजन करें। उद्यापन में चार-चार पूरी और हलवे के सात बायने निकालें और उसमें से एक पर तीयल और दक्षिणा रखकर अपनी सास को दें। बायना देने के बाद उनके चरणस्पर्श करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें। फिर बाकी बचें छ बायने सुहागिन स्त्रियों में बाँट दें।
Aas Mata Ke Vrat Ki Kahani
आस माता के व्रत की कहानी
बहुत समय पहले के बात एक गाँव में एक आसलिया नाम का आदमी रहा करता था। वो आस माता का पक्का भक्त था। वो नियम से हर वर्ष आस माता का व्रत एवं पूजन किया करता था। आसलिया चौसर का बहुत मंजा हुआ खिलाड़ी था। उसकी एक विशेषता यह थी कि वो चौसर में जीते या हारे पर उसके बाद ब्राह्मण को भोजन अवश्य कराता था।
आसलिया आये दिन भोजन के लिये ब्राह्मणों को घर लाया करता था। उसकी इस बात से उसकी भाभियाँ और माँ बहुत नाराज रहते थे। एक दिन उन्होने क्रोध में आकर आसलिया को कहा कि आप चौसर में हारों या जीतों हमें उससे कोई सरोकार नही हैं। कोई ढ़ंग का काम तो करते नही और आये जिन किसी न किसी को खिलाने के लिय ले आते हो।“ ऐसा कहकर सभी आसलिया को घर से चले जाने को कह दिया।
आसलिया घर व गाँव छोड़ कर नगर में चला गया। वहाँ शुरूआत में उसे बहुत परेशानियाँ हुई। उन दिनों आस माता का व्रत का समय आया उसने सबकुछ छोड़कर आस माता का व्रत एवं पूजन किया। आस माता की कृपा से उसकी सभी परेशानियाँ समाप्त हो गई। चौसर के खेल ने उसे उस नगर में बहुत प्रसिद्ध बना दिया। उसके पास धन-धान्य की कोई कमी नही रही। उसके खेल की प्रशंसा सुनकर उस नगर के राजा ने उसे चौसर खेलने के लिये आमंत्रित किया।
राजा और आसलिया में चौसर का खेल चला। राजा उस खेल में आसलिया से हार गया। राजा उसके खेल से बहुत प्रभावित हुआ। राजा ने प्रसन्न होकर उससे अपनी पुत्री का विवाह करा दिया और उसे अपने राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। आसलिया उस नगर का राजा बन गया। उधर उसके घर छोड़ने के बाद से उसके घर पर विपत्तियाँ आने लगी। उसके परिवार वाले अन्न और जल के लिये भी तरसने लगे। भूख-प्यास से दुखी होकर वो भी भटकते हुये नगर आ गये। उन्होने नगर में आसलिया के विषय लोगों से सुना कि वो प्रतिदिन ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन कराता है और उसके समान चौसर कोई नही खेलता।
यह सब बातें सुनकर उन्हे आसलिया की याद आ गई। भूख मिटाने और राजा के दर्शन के लिये वो सभी राजमहल के प्रांगण में पहुँच गये। उस दिन राजा आसलिया ने लोगों को अपने हाथ से भोजन परोसा। अपने परिवारजनों को देखकर आसलिया ने उन्हे पहचान लिया। उन सभी ने भी आलसिया को पहचान लिया। आलसिया ने उन सभी का स्वागत किया और वहाँ सभी से मिलवाया। तब उसके परिवारवाले अपने किये पर लज्जित हुये और उन्होने उससे क्षमा माँगी।
आसलिया ने उनसे कहा मैंने कभी आपकी बातों का बुरा नही माना। जो आपने किया वो आपकी करनी थी और जो मैंने किया वो मेरा कर्म था। मुझे जो कुछ भी प्राप्त हुआ वो आस माता की कृपा से प्राप्त हुआ है। तब सभी लोगों को इस व्रत के विषय में जानकारी और लोगों ने फाल्गुन मास की प्रथमा से अष्टमी के मध्य इसका व्रत और पूजन आरम्भ कर दिया।
हे आस माता! आपने जिस प्रकार अपने भक्त आसलिया की सभी विपत्तियाँ समाप्त की वैसे सबकी करना। इस प्रकार से व्रत करने वाले सभी लोगो को आस माता की कहानी (Aas mata ki kahani) कहनी और सुननी चाहिये।