Mangal Pradosh Vrat Katha: मंगल प्रदोष के दिन पढ़ियें मंगल प्रदोष व्रत कथा और पायें मंगल दोष से मुक्ति

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जब प्रदोष व्रत मंगलवार के दिन हो तो उसे मंगल प्रदोष (Mangal Pradosh) या भौम प्रदोष (Bhaum Pradosh) कहा जाता हैं। इस प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) के दिन भगवान शिव और भगवान हनुमान की पूजा का विधान है। इस दिन हनुमान जी की पूजा करने से जातक को मंगल ग्रह की शुभता प्राप्त होती है। भौम प्रदोष व्रत (Bhaum Pradosh Vrat) के दिन मंगल प्रदोष व्रत कथा (Mangal Pradosh Vrat Katha) का पाठ अवश्य करना चहिये। पढ़ियें व्रत कथा और इस व्रत के लाभ…

वर्ष 2024 का प्रदोष व्रत कैलेण्ड़र (Pradosh Vrat Calendar) – जानियें हर माह के प्रदोष व्रत की तारीख

Mangal Pradosh Vrat Kab hai?
मंगल प्रदोष व्रत कब है?

इस वर्ष मंगल प्रदोष व्रत (Mangal Pradosh Vrat) 4 जून, 2024 (ज्येष्ठ मास कृष्णपक्ष), 15 अक्टूबर, 2024 (आश्विन मास शुक्लपक्ष) और 30 अक्टूबर, 2024 (कार्तिक मास कृष्णपक्ष) को रहेगा। इसके पश्चात् 25 फरवरी, 2025 (फाल्गुन मास कृष्णपक्ष) और 11 मार्च, 2025 (फाल्गुन मास शुक्लपक्ष) के दिन होगा।

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Benefits Of Bhaum pradosh Vrat
भौम प्रदोष व्रत एवं पूजन के लाभ

प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) बहुत ही प्रभावशाली है। मंगलवार के दिन प्रदोष व्रत होने से इसका प्रभाव और भी बढ़ जाता है। इस दिन व्रत एवं पूजन करने से साधक को भगवान शिव और हनुमान जी दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मंगल प्रदोष (Mangal Pradosh) के दिन हनुमान जी के पूजन से विशेष लाभ होता है।

  • भौम प्रदोष (Bhaum Pradosh) पर हनुमान जी की उपासना करने से साधक के तेज और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  • मंगल प्रदोष का व्रत (Mangal Pradosh Vrat) करने से साधक पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव कम होता है और यदि उसकी जन्मकुण्ड़ली में मंगल दोष हो तो उसका भी निवारण होता है।
  • साधक को ऋण से मुक्ति मिलती है और वो कर्ज मुक्त हो जाता है।
  • मंगल प्रदोष के दिन भगवान शिव जी की आराधना करके साधक को उनकी विशेष कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।
  • साधक को मंगल ग्रह की शुभता प्राप्त होती है।

Mangal Pradosh Vrat Katha
मंगल प्रदोष व्रत कथा

बहुत समय पहले की बात है एक गाँव में एक बुढ़िया अपने इकलौते बेटे के साथ रहती थी। वो अपने पुत्र से बहुत स्नेह रखती थी। वो वृद्ध स्त्री हनुमान जी की बहुत बड़ी भक्त थी। उसकी हनुमान जी में अटूट श्रद्धा थी। वह नियमपूर्वक विधि अनुसार हर मंगलवार के दिन व्रत रखती और हनुमानजी की उपासना करती थी। उसकी इतनी भक्ति और श्रद्धा देखकर हनुमानजी ने उसकी की परीक्षा लेने का निश्चय किया।

मंगलवार के दिन एक साधु का रूप लेकर हनुमानजी उस बुढ़िया के घर आकर आवाज लगाने लगे। वो बोले- है कोई हनुमान भक्त, जो हमारी इच्छा पूर्ण करें? ऐसी पुकार सुनकर वो वृद्ध स्त्री अपने घर से बाहर आई और बोली- महाराज बताइयें में आप की क्या सेवा कर सकती हूँ?साधु रूप धारी हनुमान जी बोले- मुझे भूख लगी है। मैं भोजन करूंगा। तू थोड़ी जमीन लीप दे। वो बुढ़िया दुविधा में फंस गई क्योकि उस दिन उसका व्रत था और व्रत के नियम के अनुसार उस दिन मिट्टी खोदना और लीपना दोनों ही निषिद्ध थे। इसलियें वो वृद्धा हाथ जोड़कर बोली- हे महाराज। मैं आज मिट्टी खोदने और लीपने का कार्य नही कर सकती आप इसके अतिरिक्त कोई दूसरी आज्ञा दें। मैं अवश्य पूर्ण करूंगी।

साधु ने उससे इस बात की तीन बार शपथ लेने को कहा। उसने वैसा ही किया। प्रतिज्ञा कराने के पश्चात् साधु ने उससे कहा – तू अपने पुत्र को बुला। मैं उसकी पीठ पर अग्नि जलाकर भोजन पकाऊंगा। साधु के ऐसे वचन सुनकर बुढ़िया बरी तरह से घबरा गई। किंतु वचनबद्ध होने के कारण उसने साधु के कहे अनुसार अपने पुत्र को बुलाकर साधु को सौंप दिया। साधु का रूप धारण किये हनुमानजी ने उस वृद्ध स्त्री के द्वारा ही उसके बेटे को पेट के बल भूमि पर लिटवाया और फिर उसकी पीठ पर आग जलवाई। पुत्र की पीठ पर आग जलाकर अत्यंत दुख से भरकर वो बुढ़िया घर के भीतर चली गई। भोजन बनाने उपरांत साधु ने उस वृद्ध महिला को बुलाया और कहा – तुम अपने बेटे को पुकारो जिससे वो भी आकर भोग लगा लें।

इस बात पर वो बुढ़िया बोली- इस प्रकार अब उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट मत पहुँचाइयें। किंतु साधु महाराज के हठ के आगे उस वृद्धा को झुकना पड़ा और उनके कहे अनुसार उसने अपने पुत्र को पुकारा। वृद्धा के पुकारते ही उसका पुत्र घर से बिल्कुल स्वस्थ रूप में निकला आया जैसे कुछ हुआ जी ना हो। अपने बेटे को जीवित पाकर वो बुढ़िया आश्चर्य से भर गई और साधु महाराज के चरणों में गिर गई। वो बोली आप कोई साधारण साधु नही है कृपया मुझे अपना सही परिचय दें। तब हनुमान जी ने उस वृद्धा को अपने वास्तविक रूप में दर्शन दिये और कहा कि मै तुम्हारी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हूँ। तुम जो चाहों मांग लो। उस वृद्धा को उसकी इच्छानुसार वर देकर भगवान वहाँ से अंतर्ध्यान हो गये।