मन्त्रः-
“ॐ गों गोरक्षनाथ महासिद्धः, सर्व-व्याधि विनाशकः ।
विस्फोटकं भयं प्राप्ते, रक्ष रक्ष महाबल ।। १।।
यत्र त्वं तिष्ठते देव, लिखितोऽक्षर पंक्तिभिः ।
रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति, वातपित्त कफोद्भवाः ।। २।।
तत्र राजभयं नास्ति, यान्ति कर्णे जपाः क्षयम् ।
शाकिनी भूत वैताला, राक्षसा प्रभवन्ति न ।। ३।।
नाऽकाले मरणं तस्य, न च सर्पेण दश्यते ।
अग्नि चौर भयं नास्ति, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गों ।। ४।।
ॐ घण्टाकर्णो नमोऽस्तु ते ॐ ठः ठः ठः स्वाहा ।।”
विधिः- कार्य~सिद्धि कारक गोरक्षनाथ मंत्र को छत्तीस हजार (36,000) बार जप करके सिद्ध करें। इस मंत्र के प्रयोग के इच्छुक साधकों को सर्व प्रथम गुरु-पुष्य, रवि-पुष्य, अमृत-सिद्धि-योग, सर्वार्त-सिद्धि-योग या दिपावली की रात से शुरू करके छत्तीस हजार बार जप करें। इसके पश्चात में कार्य सिद्धि के लिये प्रयोग में ले इससे आपको पूर्णफल प्राप्त होता है ।
विभिन्न उपयोग – इस मंत्र को सिद्ध करने के बाद सिर्फ 21 (इक्कीस) बार जपने से राज्य का भय, आग का भय, साँप, चोर आदि सबका भय दूर हो जाता है। भूत बाधा शान्त होती है। इस मंत्र से मोर-पंख से झाड़ा देने पर वात, पित्त, कफ-सम्बन्धी बीमारियों का उपचार होता है।
1. घर, दुकान, गोदाम, आदि में भूत-प्रेत का उपद्रव हो तो 10,000 (दस हजार) जप के साथ 10,000 (दस हजार) गुग्गुल की गोलियों से हवन करने पर भूत-प्रेत का भय समाप्त हो जाता है। यदि राक्षस का उपद्रव हो, तो 11,000 (ग्यारह हजार) जप व 11,000 गुग्गुल की गोलियों से हवन करें।
2. अष्टगन्ध से मंत्र को लिखकर गेरुआ रंग के नौ तंतुओं का डोरा बनाकर नवमी तिथि के दिन नौ गांठ लगाकर इक्कीस बार अभिमंत्रित कर हाथ में बाँधने से 84 (चौरासी) प्रकार के वायु उपद्रव नष्ट हो जाते हैं।
3. इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जप करने से चोर, शत्रु व सारे कष्टों नाश हो जाता हैं। तथा अकाल मृत्यु भी नहीं होती है।
4. इक्कीस बार पानी को अभिमंत्रित कर छींटने से लगी हुई आग शान्त हो जाती है।
5. इस मंत्र से मोर-पंख के द्वारा झाड़ा देने से शारीरिक नाड़ी रोग व श्वेत कोढ़ दूर हो जाता है।
6. कुंवारी कन्या के द्वारा कता सूत के सात तंतु लेकर इक्कीस बार अभिमंत्रित करके धूप बत्ती देकर गले या हाथ में बाँधने से बुखार, एकान्तरा, तिजारी आदि जैसे रोग चले जाते हैं।
7. सात बार पानी अभिमंत्रित कर पिलाने से पेट की पीड़ा शान्त होती है ।
8. पशुओं के बीमार हो जाने पर इस मंत्र को उसके कान में पढ़ने से या अभिमंत्रित जल पिलाने से रोग दूर हो जाता है। यदि इस मंत्र से अभिमंत्रित घंटी पशु के गले में बाँध दी जाये, तो वह उस घंटी की आवाज़ को सुनता है और निरोगी रहता है।
9. गर्भ पीड़ा के समय मंत्र से १०८ बार जल अभिमंत्रित करके गर्भवती को पिलाने से पीड़ा दूर होकर बच्चा आराम से हो जाता है।
10. यदि मकान आदि में साँप का उत्पात हो तो पानी को १०८ बार अभिमंत्रित करके मकान आदि में छिड़कने से साँप का डर दूर हो जाता है। साँप के काटने पर जल को ३१ बार अभिमंत्रित करके पिलाने से विष का असर दूर हो जाता है।