भगवान दत्तात्रेय की पूजा से त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की कृपा प्राप्त होती हैं। दत्तात्रेय जयंती को दत्ता जयंती (Datta Jayanti) भी कहा जाता है। इस दिन भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था। जानियें कब है दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti)? दत्तात्रेय जयंती का क्या महत्व है और दत्तात्रेय जयंती की पूजा कैसे करें? साथ ही पढ़े भगवान दत्तात्रेय के जन्म की कथा।
Dattatreya Jayanti
दत्तात्रेय जयंती
मार्गशीर्ष (अगहन) माह की पूर्णिमा के दिन दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti) का त्यौहार मनाया जाता हैं। पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था। भगवान दत्तात्रेय सती अनुसूया और ऋषि अत्रि की संतान हैं। उनको त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) का संयुक्त अवतार माना जाता हैं। दत्तात्रेय जयंती को दत्त जयंती (Datta Jayanti) भी कहा जाता हैं। भगवान दत्तात्रेय के अन्य नाम – स्मृतिमात्रानुगन्ता और स्मर्तृगामी।
ऐसा कहा जाता है कि भगवान दत्तात्रेय अपने भक्तों से बहुत अनुराग रखते हैं और उनके भक्त उन्हे जब भी याद करते हैं, वो उनकी सहायता और मनोकामनापूर्ति के लिये उनके समक्ष पहुँच जाते हैं। इनकी उपासना करने से त्रिदेव की उपासना का पुण्य मिलता हैं। भगवान दत्तात्रेय के विषय में वर्णित है कि उनको 24 गुरूओं ने शिक्षा प्रदान की थी।
Dattatreya Jayanti Kab Hai?
दत्तात्रेय जयंती कब हैं?
इस वर्ष दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti) का पर्व 26 दिसम्बर, 2023 मंगलवार के दिन मनाया जायेगा। इसी दिन मार्गशीर्ष पूर्णिमा एवं अन्नपूर्णा जयंती भी मनायी जायेगी।
Significance Of Datta Jayanti
दत्ता जयंती का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी के संयुक्त अवतार है भगवान दत्तात्रेय। सती अनुसूया (अनुसूइया) और ऋषि अत्रि की संतान के रूप में भगवान दत्तात्रेय ने अवतार लिया था। इनकी भक्ति करने से त्रिदेव की भक्ति प्राप्त होती हैं।
भगवान दत्तात्रेय में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का अंश हैं, इनमें उन तीनों की शक्तियाँ विद्यमान हैं। भगवान के तीन मुख है और इनकी छः भुजायें हैं। वैसे तो भगवान दत्तात्रेय की पूजा पूरे भारत में की जाती हैं किंतु गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में इनके बहुत से मंदिर है और यहाँ पर इनकी पूजा और जन्मोत्सव बहुत धूम-धाम से मनाया जाता हैं।
भगवान दत्तात्रेय का ध्यान एवं पूजन करने से
- साधक को त्रिदेव की कृपा प्राप्त होती हैं।
- भगवान दत्तात्रेय शीघ्र प्रसन्न होते हैं और उन्हे मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।
- भगवान दत्तात्रेय का सच्चे हृदय से स्मरण करने मात्र से ही भगवान अपने भक्तों की इच्छापूर्ति और सहायता के लिये प्रस्तुत हो जाते हैं।
Dattatreya Jayanti Puja Vidhi
दत्तात्रेय जयंती पूजा विधि
मार्गशीर्ष (अगहन) माह की पूर्णिमा के दिन दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti) का पर्व मनाया जाता हैं। इस दिन भगवान दत्तात्रेय की पूजा किये जाने का विधान हैं।
- दत्तात्रेय जयंती (Dattatreya Jayanti) के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजास्थान पर एक चौकी बिछाकर उसको गंगाजल से शुद्ध करके पर उसपर स्वच्छ वस्त्र बिछायें।
- एक जल से भरा कलश स्थापित करें। उसके बाद भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा या चित्र चौकी पर स्थापित करें। और साथ ही भगवान गणेश की प्रतिमा भी स्थापित करें।
- सर्वप्रथम धूप-दीप जलाकर भगवान गणेश की पूजा करें। रोली-चावल से उनका तिलक करें, जनेऊ चढ़ायें, फल-फूल अर्पित करें। भोग निवेदन करें।
- फिर भगवान दत्तात्रेय की पूजा करें। उनका पंचामृत से अभिषेक करें। रोली-चावल से तिलक करें, सुगंध अर्पित करें।
- फल-फूल अर्पित करें। भगवान को भोग व दक्षिणा चढ़ायें।
- तत्पश्चात् अवधूत गीता और जीवनमुक्ता गीता का पाठ करें। ऐसा करने से साधक के जीवन के सभी कष्टों का निवारण हो जाता हैं।
- फिर भगवान दत्तात्रेय की आरती करें।
- आप चाहे तो भगवान दत्तात्रेय के मंदिर जाकर भी उनकी पूजा-अर्चना कर सकते हैं।
Dattatreya Jayanti Ki Katha
दत्तात्रेय जयंती की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार धरती लोक का भ्रमण करके देव ऋषि नारद जी भगवान शिव के दर्शन के लिये कैलाश पर्वत पर गये। वहाँ उनको भगवान शिव तो नही मिलें किंतु उनकी भेंट देवी पार्वती से हुई। देवी पार्वती ने उनसे आने का प्रयोजन पूछा तो उन्होने कहा, “मैं धरती पर सती अनुसूया (अनुसूइया) के दर्शन करके ब्रह्मलोक जा रहा था तो मार्ग में भगवान शिव और आपके दर्शन की इच्छा से कैलाश पर आ गया।“ फिर नारद जी ने देवी पार्वती जी से सती अनुसूया के पतिव्रत धर्म के पालन की प्रशंसा आरम्भ कर दी। नारद जी के द्वारा सती अनुसूया के सतीत्व का बखान सुनकर देवी पार्वती के मन में देवी अनुसूया की परीक्षा लेने की इच्छा हुयी।
नारद जी वहाँ से ब्रह्मलोक गये और वहाँ उन्होने देवी सरस्वती से सती अनुसूया के पतिव्रत धर्म पालन और सतीत्व की शक्ति की प्रशंसा की। तत्पश्चात् नारद जी वैकुण्ठ लोक गये और वहाँ उन्होने देवी लक्ष्मी से सती अनुसूया के पतिव्रत धर्म पालन और सतीत्व की शक्ति की प्रशंसा की। सती अनुसूया की इतनी प्रशंसा सुनकर देवी सरस्वती और देवी लक्ष्मी के मन में भी सती अनुसूया की परीक्षा लेने की इच्छा हुयी। तब तीनों देवियों लक्ष्मी जी, सरस्वती जी और पार्वती जी ने त्रिदेव विष्णु जी, ब्रह्मा जी और शिव जी को देवी अनुसूया के सतीत्व के बल की परीक्षा लेने के लिये भेजा।
ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी ब्राह्मण का वेश लेकर अत्रि मुनी के आश्रम पहुँच गये। वहाँ पहुँचकर उन्होने भोजन की इच्छा प्रकट की। देवी अनुसूया ने उनका अतिथि सत्कार किया। जब वो उनके लिये भोजन लेकर आयी तो उन्होने भोजन ग्रहण करने के लिये एक विचित्र शर्त रख दी। उन्होने कहा, “हम यह भोजन तभी ग्रहण करेंगे, जब आप हमें निर्वस्त्र होकर भोजन करायेंगी।“ यह सुनकर देवी अनुसूया को बहुत क्रोध आ गया। तब उन्होने क्रोध पर सन्यम करते हुये ध्यान लगाकर देखा तो वो जान गयी को ब्राह्मण के वेश में त्रिदेव उनकी परीक्षा लेने आये हैं। उन्होने अपने पति ऋषि अत्रि के चरणों के जल के छींटे उन तीनों पर मारे और उनको छ: माह के बालक के रूप में परिवर्तित कर दिया। भगवान ब्रहमा, विष्णु और शिव तीनों छ: महीने के बालक बन गये। तब सती अनुसूया ने उनकी शर्त के अनुसार उनकों भोजन कराया। और उनको पालने में लिटा दिया। वो उनका पालन अपनी संतान के समान करने लगी।
उधर जब बहुत दिनों तक त्रिदेव का कोई समाचार नही आया और वो अपने लोकों में नही लौटे तो देवी पार्वती, देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती को चिंता होने लगी। वो तीनों मिलकर ऋषि अत्रि के आश्रम पहुँची और देवी अनुसूया से मिली। वहाँ उन्होने देखा की भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी तीनों पालने में झूल रहें। तब उन्हे अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होने देवी अनुसूया को सारा वृत्तांत बताकर उनकी परीक्षा लेने की बात को स्वीकार किया और उनके सतीत्व के बल की सराहना की। फिर तीनों देवियों ने सती अनुसूया से त्रिदेव को पुन: उनका असल स्वरूप प्रदान करने का आग्रह किया।
तब सती अनुसूया ने उनसे कहा, कि उन्होने त्रिदेव को अपनी संतान मानकर उनका पालन किया है और उनको भोजन कराया हैं। इसलिये उनको उनकी संतान के रूप में रहना होगा। तब त्रिदेव ने उनकी संतान की इच्छा को पूर्ण करने के लिये अपना-अपना एक अंश प्रदान किया। उससे भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ। भगवान दत्तात्रेय के तीन मुख और छ: हाथ थे। त्रिदेव के अंश भगवान दत्तात्रेय को बालस्वरूप में पाकर देवी अनुसूया ने जल छिडकर भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी को पुन: उनके यथार्थ स्वरूप में ला दिया। इस प्रकार भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ।
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